जनचौक डेस्क
अशोक वाजपेयी के खिलाफ जांच बैठाना मोदी सरकार की जानी-पहचानी और घृणित चाल : मंगलेश डबराल
वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल का कहना है कि अशोक वाजपेयी के ललित कला अकादमी के कार्यकाल पर सीबीआई जांच बिठाना और कुछ नहीं, प्रतिशोध लेने और तंग करने की मोदी सरकार की जानी-पहचानी और घृणित चाल है।
मंगलेश जी के मुताबिक भाजपा और संघ परिवार की लगातार आलोचना और भारत के सेकुलर लोकतांत्रिक ताने-बाने का समर्थन करने और साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने और गुजरात की हिंसा का तीखा विरोध करने के कारण सरकार इस witch hunt पर आमादा है।
अपनी फेसबुक पोस्ट में वह कहते हैं कि अशोक वाजपेयी पर पूरे जीवन में आर्थिक लाभ लेने, अपने को भौतिक लाभ पंहुचाने और सुविधाएं जुटाने का आरोप कभी नहीं लगा। उनसे वैचारिक असहमतियां भले ही हों, ऐसा आक्षेप उनके विरोधी भी नहीं लगाते। कलाओं में, लेखकों-कलाकर्मियों को अपना ज्यादातर अभावग्रस्त जीवन कुछ सुचारू बनाने में उनका ऐतिहासिक योगदान रहा है। कवि के रूप में भी वे उन चंद रचनाकारों में हैं जिनकी विश्व-स्तर पर पहचान बनी है।
उनके मुताबिक हिंदी और देश के सभी स्व-विवेकपूर्ण रचनाकार उनके साथ खड़े रहेंगे।
क्या है पूरा मामला?
आपको बता दें कि ललित कला अकादमी के पूर्व अध्यक्ष और साहित्यकार अशोक वाजपेयी के खिलाफ सरकार ने सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं।
अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक संस्कृति मंत्रालय ने पत्र लिखकर सीबीआई के निदेशक अलोक कुमार वर्मा से अनुरोध किया है कि वे "नई दिल्ली में ललित कला अकादमी में अनियमितताओं और सरकारी दिशा-निर्देशों के उल्लंघन" मामले की जांच करें।
पत्र के मुताबिक 2012-13 से 2014-15 के बीच का इंटरनल ऑडिट करवाया गया है। ऑडिट में सामने आया है कि इस दौरान कई नियमों की अनदेखी कर कई जगह सीमा से ज्यादा भुगतान किया गया है। साथ ही आरोप है कि अशोक वाजपेयी ने कथित तौर पर कुछ कलाकारों को बिना किसी फीस के गैलरी दे दी थी।
बताया जा रहा है कि संस्कृति मंत्रालय ने 20 नवंबर को ललित कला अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष अशोक वाजपेयी के खिलाफ सीबीआई जांच के लिए पत्र भेजा। यह खबर 6 दिसम्बर को सामने आयी।
अशोक वाजपेयी के खिलाफ सीबीआई जांच की खबर आने के बाद साहित्य जगत और बुद्धिजीवियों की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
आपको बता दें कि अशोक वाजपेयी ने असहिष्णुता के मुद्दे पर अवॉर्ड वापसी अभियान में बढ-चढ़कर हिस्सा लिया था। इस कार्रवाई को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।
'बदले की कार्रवाई'
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने इसे बदले की कार्रवाई करार दिया है। अपने फेसबुक पोस्ट में थानवी ने लिखा है कि कि कोई भी समझ सकता है, मोदी सरकार के अनाचार के खिलाफ ‘प्रतिरोध’ का झंडा खड़ा करने वालों में वाजपेयी अगुआ रहे। अकादमी के सचिव को उन्होंने निलम्बित किया था, जो भाजपा सरकार के आते ही बहाल हुए।”
आज के माहौल और इस पूरे प्रकरण को लेकर अशोक वाजपेयी की ही ‘आततायी की प्रतीक्षा’ कविता पढ़ना बेहद प्रासंगिक होगा।
आततायी की प्रतीक्षा-1
सभी कहते हैं कि वह आ रहा है
उद्धारक, मसीहा, हाथ में जादू की अदृश्य छड़ी लिए हुए
इस बार रथ पर नहीं, अश्वारूढ़ भी नहीं,
लोगों के कन्धों पर चढ़ कर वह आ रहा है :
यह कहना मुश्किल है कि वह ख़ुद आ रहा है
या कि लोग उसे ला रहे हैं।
हम जो कीचड़ से सने हैं,
हम जो ख़ून में लथपथ हैं,
हम जो रास्ता भूल गए हैं,
हम जो अन्धेरे में भटक रहे हैं,
हम जो डर रहे हैं,
हम जो ऊब रहे हैं,
हम जो थक-हार रहे हैं,
हम जो सब ज़िम्मेदारी दूसरों पर डाल रहे हैं,
हम जो अपने पड़ोस से अब घबराते हैं,
हम जो आँखें बन्द किए हैं भय में या प्रार्थना में;
हम सबसे कहा जा रहा है कि
उसकी प्रतीक्षा करो :
वह सबका उद्धार करने, सब कुछ ठीक करने आ रहा है।
हमें शक है पर हम कह नहीं पा रहे,
हमें डर है पर हम उसे छुपा रहे हैं,
हमें आशंका है पर हम उसे बता नहीं रहे हैं!
हम भी अब अनचाहे
विवश कर्तव्य की तरह
प्रतीक्षा कर रहे हैं!
आततायी की प्रतीक्षा-2
हम किसी और की नहीं
अपनी प्रतीक्षा कर रहे हैं :
हमें अपने से दूर गए अरसा हो गया
और हम अब लौटना चाहते हैं :
वहीं जहाँ चाहत और हिम्मत दोनों साथ हैं,
जहाँ अकेले पड़ जाने से डर नहीं लगता,
जहाँ आततायी की चकाचौंध और धूम-धड़ाके से घबराहट नहीं होती,
जहाँ अब भी भरोसा है कि ईमानदार शब्द व्यर्थ नहीं जाते,
जहाँ सब के छोड़ देने के बाद भी कविता साथ रहेगी,
वहीं जहाँ अपनी जगह पर जमे रहने की ज़िद बनी रहेगी,
जहाँ अपनी आवाज़ और अंत:करण पर भरोसा छीजा नहीं होगा,
जहाँ दुस्साहस की बिरादरी में और भी होंगे,
जहाँ लौटने पर हमें लगेगा कि हम अपनी घर-परछी, पुरा-पड़ोस में
वापस आ गए हैं !
आततायी आएगा अपने सिपहसालारों के साथ,
अपने खूँखार इरादों और लुभावने वायदों के साथ,
अश्लील हँसी और असह्य रौब के साथ..
हो सकता है वह हम जैसे हाशियेवालों को नजरअन्दाज़ करे,
हो सकता है हमें तंग करने के छुपे फ़रमान जारी करे,
हो सकता है उसके दलाल उस तक हमारी कारगुजारियों की ख़बर पहुँचाएं,
हो सकता है उसे हमें मसलने की फ़ुरसत ही न मिले,
हो सकता है उसकी दिग्विजय का जुलूस हमारी सड़कों से गुज़रे ही न,
हो सकता है उसकी दिलचस्पी बड़े जानवरों में हो, मक्खी-मच्छर में नहीं।
पर हमें अपनी ही प्रतीक्षा है,
उसकी नहीं।
अगर आएगा तो देखा जाएगा
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