अनिल जैन
पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के कठुआ में आठ साल की मासूम बच्ची के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और फिर उसकी हत्या की पाशविक घटना ने देश के आम जनमानस को बुरी तरह उद्वेलित किया है। इस सिलसिले में देश के 49 पूर्व नौकरशाहों ने तो बाकायदा कठुआ कांड का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है और देश के मौजूदा दौर को आजादी के बाद का सबसे स्याह दौर करार दिया है, वहीं मध्य प्रदेश में सेवारत एक वरिष्ठ नौकरशाह कठुआ कांड को लेकर सत्तारूढ़ दल के 'प्रवक्ता’ और संस्कृति के पहरेदार के तौर पर सामने आए हैं।
मध्य प्रदेश शासन के संस्कृति, धर्मस्व और वाणिज्यिक कर विमाग के प्रमुख सचिव पद का दायित्व निभा रहे इन वरिष्ठ आईएएस अफसर का नाम है मनोज श्रीवास्तव। इन महोदय को राज्य के मुख्यमंत्री तथा कुछ अन्य मंत्रियों के नाम से समय-समय पर समाचार पत्रों में छपने वाले लेखों का छद्म लेखक भी माना जाता है। मध्य प्रदेश के कुछ पत्रकार तो इन्हें 'प्रखर चिंतक’ और 'विचारक’ भी मानते हैं।
बहरहाल, विभिन्न अहम महकमों के इन प्रमुख सचिव महोदय ने अपनी फेसबुक वाल पर संस्कृतनिष्ठ हिंदी में कुछ अंग्रेजी और कुछ उर्दू के शब्दों का छोंक लगाते हुए कठुआ के बलात्कार की वीभत्स घटना पर तो क्षोभ व्यक्त किया है लेकिन उन्हें ज्यादा शिकायत इस बात को लेकर है कि बलात्कार के लिए मंदिर परिसर के इस्तेमाल और बलात्कार के बाद जय श्रीराम के नारे लगने वाली बात ज्यादा प्रचारित क्यों हो गई।

अफसर महोदय का मानना है कि इन बातों को प्रचारित करने वाले का लक्ष्य भारत को और हिंदू समाज को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने लज्जित करना था। बेहतर होता कि वे अपनी पोस्ट में थोडा प्रकाश इस बात पर डालने का कष्ट भी कर लेते कि-
बलात्कारियों के समर्थन में राज्य सरकार के दो मंत्रियों की भागीदारी से युक्त जुलूस में तिरंगा हाथों में लेकर भारतमाता की जय और जय श्रीराम के नारे लगाने वाले कौन थे और वे किस तरह विश्व समुदाय के सामने भारत तथा हिंदू समाज की प्रतिष्ठा में श्रीवृद्धि कर रहे थे? देश और हिंदू समाज की छवि को लेकर चिंतित और परेशान इन अफसर महोदय से यहां सवाल यह भी है कि कठुआ के पीडित पक्ष की महिला वकील को यह मामला अपने हाथ में न लेने के लिए जम्मू के जो वकील संस्थागत तौर पर धमका रहे हैं और सोशल मीडिया पर उनका चरित्र हनन कर रहे हैं, वे किस तरह की भारत-भक्ति और उदात्त हिंदू संस्कृति से प्रेरित हैं? क्या जम्मू बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों की इन आपराधिक हरकतों की खबर विदेशों में नहीं जा रही होगी और इन खबरों पर वहां भारत और समूचे हिंदू समाज की छवि को बट्टा नहीं लग रहा होगा?
पोस्ट में उपदेशात्मक शैली तथा पांडित्यपूर्ण भाषा में और भी कुछ अगड़म-बगड़म बातों के अलावा आखिरी पैराग्राफ में लेखक ने इस बात पर भी अपनी चिंता का इजहार किया है कि-
हमारा मुल्क एक तरह का गाली-गलित गणतंत्र (An abusive republic) बनता जा रहा है। वे लिखते हैं- 'गालियों का मवाद-सा सोशल मीडिया पर बहता रहता है। मवाद भी नहीं, अब तो बजबजाता हुआ नाला बन गया है। कहीं कुछ भी हो, गाली का केंद्र एक ही व्यक्ति है.....कौन कहता है कि हीरो-वरशिप ही देवता बनाती है, कि भक्त ही भगवान बनाते हैं, बल्कि एक व्यक्ति से इंतिहाई नफरत भी उसे भगवान बनाती है.....!’ यह एक व्यक्ति कौन है, इसका स्पष्ट जिक्र चूंकि पोस्ट लिखने वाले अफसर महोदय ने नहीं किया है, इसलिए मैं भी नहीं कर रहा हूं। फिर भी सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी चिंता के केंद्र में वह एक व्यक्ति कौन है!
हां, अफसर महोदय के इस कथन से सहमत हुआ जा सकता है कि हमारा मुल्क एक 'गाली-गलित गणतंत्र’ बनता जा रहा है, लेकिन यहां सवाल है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन? खुली आंखों से खुले दिमाग से देखेंगे तो पता चल जाएगा कि मामला एकतरफा नहीं है। देश की पहचान गाली-गलित गणतंत्र के रूप में बनाने में उनका भी योगदान कम नहीं है जो देश में हर सरकारी-गैर सरकारी मंचों से, संसद में और विदेशी धरती पर जाकर भी न सिर्फ अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए बल्कि अपने देश के राजनीतिक पुरखों और राष्ट्रीय आंदोलन के नायकों के लिए भी अपशब्दों का इस्तेमाल करने में अपनी शान समझते हैं। उन्हीं से प्रेरणा लेकर उनका वैतनिक-अवैतनिक 'भक्त समुदाय’ सोशल मीडिया पर न सिर्फ विपक्षी दलों के नेताओं का बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी आदि दिवंगत प्रधानमंत्रियों का चरित्र हनन करने में जुट जाता है। यह सब कहने का आशय महज इतना ही है कि जो जैसा बोएगा, वैसा ही उसे काटना भी होगा।
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)