जितेंद्र चाहर
नई दिल्ली/सीकर। राजस्थान में चल रहे किसान आंदोलन का आज तेरहवां दिन हो चुका है। कल, 12 सितंबर को मंत्रिमंडल से वार्ता विफल हो जाने के बाद किसानों ने नई रणनीति के तहत सीकर को पूरी तरह से एक किले में बदल दिया है।
1 सितंबर से आंदोलन
1 सितंबर 2017 से राजस्थान के सीकर जिले से कृषि कर्ज माफ करने तथा समर्थन मूल्य बढ़ाने को लेकर किसानों ने अपना आंदोलन शुरू किया। अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन में किसानों ने सीकर से नागौर, जयपुर, जोधपुर, झुंझनु, चुरु, गंगानगर, बीकानेर की तरफ जाने वाली सड़कें जाम कर दी हैं।
करीब 30 से 40 हजार किसान सीकर में पड़ाव डाले हुए हैं। इसके अलावा झुंझनु, चुरू, हनुमानगढ़, बीकानेर, नागौर, गंगानगर सहित प्रदेश के 18 जिलों में किसान जिला मुख्यालयों को घेर कर बैठे हुए हैं।

लगातार तेज़ हो रहा है आंदोलन
किसानों द्वारा कर्जा माफ़ी सहित 11 मांगों को लेकर किया जा रहा आंदोलन दिन-ब-दिन और ज्यादा तेज होता जा रहा है। राजस्थान के लाखों किसान अपनी मांगों को लेकर सड़क पर हैं और प्रशासन से सीधी मुठभेड़ लेने को तैयार हैं। 12 सितंबर को वार्ता विफल होने के बाद अखिल भारतीय किसान महासभा ने पूरे राज्य में आज फिर से चक्का जाम करने का आह्वान किया। किसान पूरे प्रदेश में रोड जाम कर बैठ गए हैं। जयपुर-सीकर हाइवे 10 सितंबर से जाम है। बाकी संपर्क मार्ग भी जाम कर दिए गए हैं।
किसान जयपुर-बीकानेर को जोड़ने वाले सड़क पर बैठे हुए हैं। किसान आंदोलन के चलते चूरू, झुंझुनू, सीकर में धारा 144 लगा दी गई है।

किसानों की 11 मांगें
इस आंदोलन की मुख्य तौर पर 11 मांगे हैं। किसान उनका कर्ज माफ़ किए जाने, समर्थन मूल्य बढ़ाए जाने, बिजली के बिल माफ़ किए जाने, स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश लागू करने, साठ साल से ऊपर के किसानों को पांच हजार रुपये की मासिक पेंशन समेत दलितों, अल्पसंख्यकों तथा महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लगाने जैसी मांगें कर रहे हैं। किसानों ने गायों के बछड़ों की बिक्री पर लगी रोक को हटाए जाने की मांग भी की है।
व्यापारियों समेत कई संगठनों का समर्थन
इस आंदोलन की खास बात यह है कि किसानों का आंदोलन होने के बावजूद इसे व्यापारी, ऑटो चालकों, मजदूरों, ट्रेड यूनियनों, बस चालकों, शिक्षण संस्थाओं समेत समाज के लगभग हर तबके से सहयोग मिल रहा है। मंडी के व्यापारियों ने यह कहते हुए कि किसानों को उनकी लागत न मिलने की वजह से उनका धंधा भी ठप्प पड़ रहा है, आंदोलन में भागीदारी की।

महिलाओं की ख़ास भूमिका
आंदोलन में महिलाओं की भूमिका काबिले-तारीफ है। महिलाएं पूरे जोश के साथ बंद को सफल बनाने में लगी हुई हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार सीकर के आर.ओ. पानी आपूर्तीकारकों ने टेम्पुओं के माध्यम से आंदोलन में शिरकत की। वह आंदोलनकारियों को लगातार पीने का पानी उपलब्ध करवा रहे हैं।

सामूहिक रसोई
पूरी तरीके से अहिंसात्मक तथा अनुशासनपूर्ण तरीके से चल रहे इस आंदोलन में दिन भर लोग आंदोलन में भाग लेते हैं और शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते हैं। जगह-जगह पर चल रही सामूहिक रसोइयां आंदोलन को उत्सव सा माहौल दे रही हैं। आंदोलन को शहरों से भी पूरा सहयोग मिल रहा है।
जिले में करीब 450 किसान चौकी बनाई गईं हैं। 11 तारीख से सीकर में इन्टरनेट सेवा बंद है। सीकर पूरी तरह से बाकी जिलों से कट गया है। ऐसा ही हाल हनुमानगढ़, झुंझुनू और चुरू में भी है।
जहां एक तरफ पड़ोसी राज्य में यह हंगामा मचा हुआ है वहीं देश की राजधानी दिल्ली इस मामले में पूरी तरह से शांत है। देश के तमाम जनांदोलनों की तरह ही राजस्थान के किसानों का यह जनांदोलन चंद अखबारों या मीडिया चैनलों में स्थान ले पाया है। देखने वाली बात यह है कि दिल्ली कब तक किसानों के इस उभार की तरफ आंखें मूंदे बैठी रहेगी।
(लेखक जितेंद्र चाहर सामाजिक कार्यकर्ता हैं और जन संघर्षों पर रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट www.sangharshsamvad.org के मॉडरेटर हैं। आप झुंझुनू, राजस्थान के निवासी हैं और फिलहाल दिल्ली में रहते हैं।)