उमाशंकर सिंह
(बीएचयू के पूर्व छात्र और फिल्म लेखक-पत्रकार उमाशंकर सिंह का यह लेख एक आईना है जिसमें हम बीएचयू के साथ-साथ अपना और अपने संस्थानों का भी चेहरा देख सकते हैं।- संपादक)
बीएचयू में लड़के-लड़की जब 12 वीं पास करके आते हैं तब वे भी टीनएजर ही होते हैं। ठीक से युवा भी नहीं बने होते। वे अपने-अपने परिवेश और अपनी-अपनी सामाजिक बुराई के साथ आते हैं। बीएचयू अपने छात्रों के कास्ट, जेंडर और दूसरे पूर्वग्रहों वाली उनकी बुराई से ठीक से डील नहीं करता, बल्कि उन्हें और बढ़ावा देता है। वे लड़कों को और लड़का मर्द, लड़कियों को और लड़की औरत, ब्राह्मणों को और ब्राह्मण और राजपूतों को और राजपूत बनाता है। दलितों को और दबा हुआ बनाने पर जोर देता है। .

हर जाति का अलग गुट
वहां छात्रों से लेकर अध्यापकों तक के हर जाति के अलग अलग गुट हैं। अपनी खास जाति के वजह से जिनसे आप मिले भी नहीं हो आप उनके करीब होते हैं, उनकी सुरक्षा में होते है। जो इनसे बाहर ऑपरेट करते उन्हें तरह-तरह के व्यंग्य बाणों से घायल किया जाता है। निशाने पर लिया जाता है। बीएयचू प्रशासन लड़कियों को लड़कों और लड़कों को लड़कियों से अलग रखने का पूरा इंतजाम रखता है। कुछ कोर्सों को छोड़ दें तो कोएड एजुकेशन बीए के लेवल पर बीएचयू में नहीं है। बीएचयू के भीतर लड़कियों के अलग कॉलेज हैं। इसके बाहर लड़के-लड़कियों के जो कॉमन प्वाइंट हो सकते हैं वहां लड़के-लड़की अलग.अलग रो में एक सुरक्षित दूरी पे नजर आते हैं।

लड़के-लड़की का साथ होना आज भी सहज नहीं
लड़के-लड़की का साथ होना आज भी बीएचयू में एक सहज दृश्य नहीं है। लेकिन लड़कियों को छेड़ना बीएयचू में एक स्वाभाविक बात है। तीसेक हजार छात्रों वाले बीएचयू में आज भी सबसे ज्यादा झगड़ा लड़के लड़कियों के लिए करते हैं। किसी दूसरे शहर से आई लड़की के साथ यदि कोई लड़का घूमता पाया जाता है तो यह काफी है कि उस लड़के के शहर के दूसरे लड़के, जिसे वो लड़की जानती भी नहीं है, उसके साथ पाए जाने वाले लड़के का सर फोड़ दें।
आधुनिकता से संघर्ष का रिश्ता
बीएचयू में सामान्यतः स्त्रियां समग्र रूप में ‘देवी’ होती हैं। हॉस्टल के बाहर साइकिल से गुजर रही लड़की ‘माल’ होती है और लड़कों का प्रपोजल ठुकराने वाली लड़की ‘साली रंडी’ होती है। अव्वल तो बीएचयू में लड़कियां गर्ल फ्रेंड बनती नहीं, बनती हैं तो वह लड़कों के लिए एक दोस्त से ज्यादा शील्ड होतीं जिसे लड़के शान से चमकाते हैं। बीएचयू का आधुनिकता से संघर्ष का रिश्ता है। 2000 के आसपास जब हम बीएचयू में बीए में थे तब क्लीन शेव वाले लड़कों को मकालू कहने का चलन था।

लड़कियां छेड़ना सामूहिक कार्रवाई
बीएचयू में लड़कियां छेड़ना कोई वैयक्तिक उद्यम नहीं, बल्कि सामूहिक कार्रवाई है, कलेक्टिव अफर्ट है। लड़के शाम को समूह बनाके, तैयार हो के, कॉम्बिंग करके, डियो लगा के लड़कियां छेड़ने लंका निकलते हैं जिसे लंकेटिंग कहा जाता है। इस तरह आप बीचयू में सहमे हुए किशोर की तरह भले ही घुसते हों पर निकलते मादा भक्षी मर्द बनकर ही हैं।
यह लड़कियों से ज़्यादा लड़कों के हित का आंदोलन
बीच में कुछ अच्छे अध्यापक, कुछ अच्छे साथी मिल जाएं तो आपको जीवन जीने की नई दृष्टि मिलती हैं वर्ना बीएचयू मोटा मोटी आपको ऐसा सोशल प्रोडक्ट बना देता है जो सोसाइटी तो छोड़िये अपने घर वालों के लिए भी हानिकारक होता है। इसलिए बीएचचू की लड़कियों का ये आंदोलन भले ही अपनी सुरक्षा के लिए हो, पर ये लड़कियों से ज्यादा लड़कों के हित का आंदोलन है। क्योंकि ये लड़कों को जानवर से इंसान बनाने का भी आंदोलन है और मेरा इस आंदोलन को इसलिए पुरजोर समर्थन है।