Friday, March 29, 2024

अमित शाह ने दिखाया पाटीदारों को ठेंगा

पिछले रविवार को कांग्रेस युवराज ने अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट से संवाद कार्यक्रम के जरिये गुजरात चुनाव अभियान का आरम्भ किया था। कल रविवार को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अड़ीखम गुजरात कार्यक्रम के द्वारा 180352 युवाओं से संवाद कर चुनाव का रण फूँक दिया। इस कार्यक्रम को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के द्वारा 312 स्थानों पर दिखाया गया था। बीजेपी ने लोकल न्यूज़ चैनल, सोशल मीडिया तथा बीजेपी टीवी के माध्यम से 21 लाख दर्शकों तक पहुंचने का दावा किया है। शाह ने गुजरात मॉडल पर राहुल गाँधी के प्रश्नों पर प्रतिक्रिया देने के साथ-साथ राज्य में विकास के बड़े बड़े दावे भी किये। उधर विकास को आंकड़ों के ज़रिये पेश किए जा रहे खोखले दावे को काउंटर करने के लिए कांग्रेस का आईटी सेल “विकास गांडो थयो” (विकास पागल हुआ) की कैम्पेन चला रहा है। यही वजह है कि आजकल विकास के जवाब में कांग्रेस की प्रतिक्रिया सिर्फ इतनी होती है विकास गांडो थयो।

दलित और पाटीदार आन्दोलन के चलते शाह फिर से गुजरात की राजनीति को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे थे। ये बात उस समय दिखी जब उन्होंने पूरे संवाद के दौरान बार-बार कांग्रेस शासन को आलिया मालिया और जमालिया का शासन बताया। और इसके जरिये कांग्रेस को अल्पसंख्यकों की सरपरस्त पार्टी बताने की कोशिश की। पाटीदार आरक्षण के सवाल को उन्होंने संवैधानिक व्यवस्था का हिस्सा बताते हुए उन्हें पिछड़े वर्ग में शामिल होने के लिए कानूनी रास्ता अपनाने की अपील की। साथ ही उन्होंने पूरे पाटीदार आंदोलन को राजनीति से प्रेरित बताया।

जिसकी प्रतिक्रिया में रेशमा पटेल ने कहा कि “पिछड़ा वर्ग आयोग को कई बार समाज के लोग लिखित अर्जी दे चुके हैं। हम लोग जब भी आयोग के पास जाते हैं पुलिस गिरफ्तार कर लेती है। सरकार की इच्छा शक्ति नहीं है इसीलिए तो आन्दोलन करना पड़ता है। आन्दोलन हमेशा सत्ता पक्ष के खिलाफ ही होता है हमारा आन्दोलन राजनीति से प्रेरित नहीं है बल्कि हम राजनैतिक दबाव के जरिये सरकार से अपनी मांग का हल चाहते हैं”।

दलित अत्याचार पर शाह ने कहा कि राज्य में अन्य राज्यों के मुकाबले में सबसे कम अत्याचार घटनाएं होती हैं। ऊना घटना की निंदा और दलित अत्याचार पर शाह की प्रतिक्रिया को राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक जिग्नेश मेवानी ने जुमलेबाज़ी बताते हुए कहा कि राज्य में दलितों की परिस्थिति अत्यंत दयनीय है। मेवानी ने क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड के हवाले से बताया कि वर्ष 2016 में 1100 से अधिक दलित उत्पीड़न के मामले दर्ज हुए हैं। इस वर्ष 92 दलितों की हत्याएं हुई हैं और 80 दलित बहनों के साथ बलात्कार की घटनाएं हुई हैं। गुजरात में दलित बेटियां सुरक्षित नहीं हैं वर्ष 2004 में बलात्कार की 24 घटनाएं हुईं थीं। 2016 में इसके आंकड़ों में 300 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। दलितों से जबरन पशुओं की चमड़ी निकालने तथा परम्परागत काम करने के लिए उन्हें मजबूर किया जाता है। उन्होंने कहा कि शाह किस मुंह से दलितों की हालत बेहतर होने का दावा कर रहे हैं। चुनाव के मद्दे नजर शाह भोले भाले दलितों को ठगने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य में कई गोवों में दलितों का बहिष्कार चल रहा है। उत्पीड़न केस में मात्र 3% लोगों को सजा हो पाती है। दलितों को कागज़ पर मिली ज़मीनों का कब्ज़ा नहीं मिल रहा है। राज्य में ‘’सौ ना साथ सौ ना विकास’’ नहीं बल्कि ‘’दलितों ने त्रास अने दलितों ना विनाश’’ के फोर्मुले से शाह की पार्टी काम कर रही है।

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