झारखंड , , रविवार , 03-12-2017
रामकुमार
रांची। झारखंड की पुलिस माओवादियों के खिलाफ जंग लड़ने की रणनीति अब समर्पण कर चुके कुख्यात नक्सलियों से सीखेगी। पुलिस जवानों से कैसे निपटते और बचते रहे हैं, यह समर्पण कर चुके नक्सली पुलिस को बतायेंगे। यह खबर आम लोगों को हैरान करने वाली है। लेकिन यह पहल राज्य पुलिस के आईजी अभियान ने शुरू कर दी है। इस बाबत मुख्यालय आईजी अभियान ने पुलिस अधिकारियों को सरेंडर्ड नक्सलियों से संवाद कायम करने की जवाबदेही संबंधित रेंज आइजी एवं जिलों के एसएसपी व एसपी को बकायदा पत्र लिख कर दी है। पुलिस मुख्यालय से राज्य के आला पुलिस अधिकारियों को इस आशय का पत्र मिलने के बाद पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। यह कहा जा रहा है कि क्या झारखंड के पुलिस विभाग के शीर्ष अधिकारी यह मानते हैं कि माओवादियों का लड़ाकू दस्ता पुलिस से अधिक दक्ष हैं। राज्य व देश में पुलिस-अधिकारियों के लिये स्थापित प्रशिक्षण केंद्र इनके मुकाबले अक्षम हैं और जंगलो, खेत-खलिहानों के चप्पे-चप्पे की जानकारियां इनसे अधिक है। दूसरा, सवाल यह है कि जिन ग्रामीण आदिवासियों को नक्सली बताकर सरेंडर कराया जा चुका है क्या उसका इस्तेमाल भी राज्य पुलिस करेंगी? राज्य पुलिस सैकड़ों ग्रामीणों को नक्सली बता कर सरेंडर करा चुकी है। इस बाबत झारखंड हाईकोर्ट में फर्जी सरेंडर मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवायी चल रही है जिसकी अगली सुनवायी 5 दिसंबर को निर्धारित की गयी है। गौरतलब है कि-
झारखंड काउंसिल फॉर डेमोक्रेटिक की ओर से दायर याचिका में बताया गया है कि 514 युवकों को नक्सली बता कर सरेंडर कराया गया था। कई ग्रामीणों को नक्सली बता कर जेल में डाला गया। कई फर्जी एनकाउंटर किए गये। कई लोगों को पुलिस हिरासत में मार दिया। इससे उपजा जन आक्रोश कैसे थम पायेगा?
रघुवर सरकार ने दर्जनों कुख्यात नक्सलियों को सरेंडर करवाया है। लेकिन सरकार की सरेंडर योजना पर जो सवाल उभरते हैं, वह न केवल गंभीर है बल्कि लोकतंत्र के लिए घातक भी है। सरेंडर करने वाले कुख्यात नक्सली बंदूक के बल पर सत्ता पर काबिज होने के सपनों के साथ निकले थे। चालीस सालों की घटनाएं बताती है कि हथियारबंद सत्ता-संघर्ष करने वाली जमात मरते रहे, खपते रहे लेकिन सत्ता के समक्ष कभी सरेंडर नहीं किया। उनके सिद्दांत व विचार गलत है या सही इस पर बहस होती रही है और आगे भी बहस की गुंजाइश बनी हुयी है। लेकिन सरेंडर करने व सरकारी गवाह बनने वाले, या चुनाव लड़ने की घोषणा करने वाले लोग सैद्धांतिक रूप से नक्सली हैं यह संदेह के घेरे में है।फिर भी वाम-माओवादी संगठन इस आरोप से नहीं बच सकते हैं कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए माओवादी संगठन से जुड़े लोगों को अपने सिद्धांतों से लैस नहीं कर सके।
मुख्यमंत्री रघुवर दास और राज्य के डीजीपी दंभ के साथ कह रहे हैं कि दिसंबर तक नक्सलियों का सफाया हो जायेगा। लेकिन यह नहीं कहते हैं कि राज्य में सक्रिय संगठित अपराधिक गिरोह और माओवादियों के नाम पर अलग-अलग गुट पर अंकुश कब और कैसे लगेगा। अलग-अलग इलाके में कई छोटे-छोटे गुट समय-समय पर खूनी खेल खेलते रहते हैं। जिसे माओवादियों के सफाये के नाम पर सरकार व पुलिस के संरक्षण में पैदा किये गये थे। सरकार के दावे की धज्जियां उड़ाते हुए माओवादी संगठन सहित टीपीएस,झारखंड जन मुक्ति परिषद, पीएलएफवाइ इत्यादि अब भी सक्रिय है। जिनके सहारे सत्ता जनवादी आंदोलनों को कुचलने का अवसर प्राप्त करती है।
झारखंड की सरकार कॉरपोरेट और सरकार के खिलाफ उठने वाली आवाज को दबाने-कुचलने के लिए माओवादियों के नाम संगठित आपराधिक गिरोहों का इस्तेमाल कर रही है। केंद्र व राज्य की सरकार को झारखंड की जमीन व संसाधन पर कॉरपोरेट घराने को स्थापित करना है। जमीन के भीतर और बाहर जो भी खनिज है उस पर कॉरपोरेट नजर है। इसलिए चाहे माओवादियों की मुहिम हो या जनवादियों की, उसे कुचलने के लिए किसी भी हद तक सरकार जाने के लिए तैयार है। तमाड़ में सोना खदान रुंगटा को, पश्चिम सिंहभूम स्थित मनोहरपुर में वेंदांता को, संथाल परगना में अडानी को पांचवी अनुसूची के तहत आदिवासी जमीन की हिफाजत के लिए बने सीएनटी एक्ट व एसपीटी एक्ट कानून की अनदेखी कर जमीनें दे दी गयी।
- झारखंड की सरकार कॉरपोरेट के खिलाफ उठने वाली आवाज को दबाने के लिए संगठित आपराधिक गिरोहों का इस्तेमाल कर रही है।
- आवाज उठाने वाले विधायक प्रदीप यादव को चार महीने तक जेल में रहना पड़ा। उन पर कई झूठे मुकदमें किये गये।
- कुख्यात कंपनी वेदांता कंपनी को मनोहरपुर के पाथरबासा में स्टील प्लांट के लिए जमीन दे दी गयी है।
गोड्डा में डाणी के पावर प्लांट के लिए 1255 एकड़ जमीन प्रस्तावित है जिसके जद मे दर्जनों गांव हैं। सभी गांवों की जमीन खेती लायक व उपजाऊ है। यहां तैयार बिजली का 75 प्रतिशत हिस्सा बंगलादेश को बेचा जायेगा। इसके लिए बंगलादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड व अडाणी के बीच अगस्त 2015 में ही करार हो चुका है। सरकार का साहस देखते ही बनता है। अडाणी के पावर प्लांट के लिए जमीन का आधा से अधिक धन सरकार दे रही है। अडानी और प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह का रिश्ता जगजाहिर है।
विश्व में कुख्यात कंपनी वेदांता कंपनी को मनोहरपुर के पाथरबासा में स्टील प्लांट के लिए जमीन दे दी गयी है। उसके छोटे से स्टील प्लांट के लिए 410 एकड़ जमीन चाहिए। उसने 110 एकड़ जमीन ले भी ली है। बाकि के लिए दलाल- बिचैलियां सक्रिय हैं। दरअसल स्टील प्लांट तो एक दिखावा भर है। वेदांता की नजर लौह अयस्क खदानों पर है। इस इलाके में नक्सलियों का खौफ रहा है। लेकिन वेदांता के सवाल पर चुप्पी है। इसी तरह से तमाड़ के परासी में सोना खदान रुंगटा कंपनी को खनन के लिए दे दी गयी है। तमाड़ विधानसभा की आवाज रहे पूर्व मंत्री राजा पीटर को एक हत्या के षडयंत्र के आरोप में जेल भेज दिया गया हैं। इस मामले में सरेंडर्ड और जेल में बंद नक्सलियों को सरकारी गवाह बनाया गया है। इन घटनाओं के संकेत हैं कि अब जेल में बंद नक्सली व सरेंडर्ड नक्सली सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं।