Friday, March 29, 2024

मुझे कोरोना से ज़्यादा अपने प्रधानमंत्री से डर लगता है!

कोरोना भूखा नहीं मारता। रोड पर बच्चे नहीं जनवाता । बाल मज़दूर नहीं रखता जो मां और बाप की गोद पाने की आस में सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हैं और खाली पेट मर जाते हैं , घर पहुंचने से कुछ पहले..!

कोरोना को टिके रहने के लिए दलाल मीडिया नहीं चाहिये । वो बहुजनों को अंबानियों-अडानियों, टुटपुजिये ब्राह्मण, ठाकुर, संघियों का गुलाम बनाने के षड्यंत्र नहीं रचता।

नदियां, पहाड़, जंगल, खदान भी कोरोना नहीं डकार सकता। किसानों की फसल, मज़दूरों का ख़ून-पसीना सत्ता के सदके नहीं लुटाता । कोरोना को ग़रीबों को तिल-तिल कर मरते देखने का शौक़ नहीं। वो नहीं लेना चाहेगा श्रम कानूनों के ख़ात्मे का इल्ज़ाम अपने सिर।  

मुझे यक़ीन है, वो रोटियां जो रेल से कटकर मरे मज़दूरों की भूख से महरूम कर दी गईं उन रोटियों को एंटिलीया के गोदामों तक पहुंचाने में कोरोना को कोई दिलचस्पी नहीं है।

कोरोना को अपनी साख बनाने के लिए किसी पाकिस्तान की ज़रूरत नहीं। वो नहीं डरता डाॅलर के रूतबे से। अमरीका जैसों की माफियागिरी भुला सकता है। वो परमाणु बमों को ठेंगा दिखाने आया है। राफेल के परखच्चे उड़ा देगी उसकी मौजूदगी। वो पशु-पक्षियों, नदियों, पेड़ों, हवाओं को जीवन देने वाला है।

कोरोना गोगोई जैसों के घिनौने चरित्रों के तथाकथित इंसाफ़ का मखौल उड़ाने आया है। गोगाई के राम अपने दर पर पड़े प्यासे साधु को एक घूंट पानी पिलाने न निकल सके। एक कौर न रख सके रामलला भूख से प्राण त्यागते उस साधु के मुंह में।

वो झूठे लोकतंत्र की नींव हिलाकर रख देगा। कोरोना वो सब कुछ तहस-नहस कर सकता है जिसे हमारे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और बगल में मनुस्मृति दबाए संघी संभालकर रखना चाहते हैं। 

प्रधानमंत्री कहते हैं हमें कोरोना के साथ जीना सीखना होगा। खुशी-खुशी साहेब। हम तैयार हैं। ये कोरोना 85 प्रतिशत बहुजनों को क़रीब और… क़रीब लाएगा।

कोरोना उस गिद्ध से बेहतर है जो अस्थि-पंजरों से सांसें उड़ जाने का इंतज़ार करता है । 

तो… प्रधानमंत्री और कोरोना के विकल्प में मुझे कोरोना प्यारा है।

(जनचौक की दिल्ली हेड वीना व्यंग्यकार और फ़िल्मकार भी हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles