लीक से हट कर चलने वाले शख्स का नाम स्वामी अग्निवेश है। कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज में प्रोफेसर की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़ कर संन्यास लिया। संन्यासी जीवन स्वीकार करने के बाद वे किसी मठ और मंदिर में रहकर विलासिता का जीवन जीने की बजाए गरीबों की सेवा में अपना जीवन लगा दिया। आजीवन धार्मिक कट्टरता, पाखंड, अंधविश्वास,सामाजिक ऊंच-नीच और गैर-बराबरी के लिए संघर्ष करते रहे।
दिल्ली के प्यारे लाल भवन के ठसाठस भरे हॉल में स्वामी अग्निवेश का 80वां जन्म दिवस मनाया गया। इस अवसर पर पर साधु-संत, आमजन, मजदूर-किसान, आदिवासी, महिलाएं व युवा उपस्थित थे। ये वे लोग थे जो आंदोलन व जनसंघर्षों में उनके साथ थे। अनेक लोग ऐसे भी थे जो उन्हें तब से जानते हैं जब वे प्रो. श्याम राव के रूप में कोलकाता यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियो को अर्थशास्त्र पढ़ाते थे। अनेक लोग उस मंजर के गवाह थे जब उन्होंने सन् 1970 में साधु वेदमुनि से अपने एक मित्र स्वामी इंद्रवेश के साथ सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी अग्निवेश कहलाए।
बहुत लोग ऐसे थे जो उनके सहयोगी व समर्थक रहे, जब वे एक राजनीतिक दल आर्यसभा बना कर हरियाणा की राजनीति में उतरे व सन् 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर शिक्षामंत्री बने। अनेक वे लोग भी थे जिन्होंने उन्हीं के शासनकाल में फरीदाबाद में भट्ठा मजदूरों की लड़ाई लड़ी तब अग्निवेश सरकार छोड़ कर इन मजदूरों के साथ खड़े थे। उनके वे साथी भी थे जो सन् 1980 में राजस्थान के देवराला में एक युवती रूप कंवर को आग को सुपुर्द कर महिमा मंडन के खिलाफ दिल्ली से देवराला की यात्रा में शामिल थे। वे भी लोग जन्मदिवस समारोह में शामिल थे जिन्होंने सन् 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश मे फैले साम्प्रदायिक उन्माद को रोकने के लिये स्वामी जी का साथ दिया था। ऐसे लोग भी अपनी हाजिरी जता रहे थे जिन्होंने सन् 2002 में गुजरात जनसंहार के बाद उनके साथ अहमदाबाद तक की यात्रा की थी। बंधुआ मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता अपने नेता स्वामी के प्रति अपनी एकजुटता जता कर जहां अपनी शुभकामनाएं देना चाहते थे वहीं उनसे समर्थन की भी आशा कर रहे थे कि अमीरी-गरीबी के खिलाफ चल रही लड़ाई में उन्हें स्वामी अग्निवेश की जरूरत है । आज जब समाज के बड़े लोग अपना जन्मदिन बड़े धूम-धाम से मनाते हैं, लेकिन स्वामी अग्निवेश ने अपने जन्मदिन को गरीबों को इज्जत देने और धार्मिक पाखंड पर हमला बोलने का अवसर बना दिया।
21 सितंबर को स्वामी अग्निवेश का 80 वां जन्मदिन था। हिंदू धर्म के अनुसार इस समय पितृ पक्ष चल रहा है। स्वामी अग्निवेश ने अपने समर्थकों और अनुयाइयों के सामने दो शर्तें रखी। पहला, स्वामी अग्निवेश ने कहा कि यदि आप लोग मेरा जन्मदिन मनाना चाहते हैं तो इसे हमारे जन्मदिन के रूप में नहीं श्राद दिवस के रूप में मनाइएं। क्योंकि संयोग वश यह श्राद का महीना है। अंधविश्वासी लोग इस माह में अपने पितरों का तर्पण कर रहे हैं। मरे हुए लोगों का नहीं जीते हुए लोगों का सम्मान और श्राद होना चाहिए। दूसरा, 21 सितंबर को विश्व शांति का दिवस है। इस मौके पर संपूर्ण धरती से धर्म, संप्रदाय, जातिवाद को लेकर बढ़ती राजनीति और अमीर-गरीब के बीच चौड़ी होती खाईं को समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए ।
प्रो. विट्ठल राव आर्य ने कहा कि वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से घृणा और हिंसा की अमानवीय राजनीति को समाप्त किया जा सकता है। अंधविश्वास और पाखंड की इस परिस्थिति में वैदिक आदर्शों को लेकर एक नया समाज बनाने के लिए और शिक्षा में जागतिक मूल्यों को प्रतिष्ठित करने के लिए वसुधैव कुटुंबकम से ही आध्यात्मिक क्रांति हो सकती है।
21 सितंबर को विश्व शांति का दिवस पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने जलवायु संकट से जूझ रहे विश्व के लिए दुनिया के राष्ट्र अध्यक्षों को चुनौती स्वीकार करने का आह्वान किया।
स्वामी अग्निवेश ने कहा कि “जब तक संयुक्त राष्ट्र संघ 193 देशों का, राष्ट्र- राज्यों का क्लब बना रहेगा तब तक इन समस्याओं का कोई समुचित समाधान नहीं हो सकेगा और न ही युद्ध की विभीषिका से और युद्ध सामग्री पर होने वाले प्रतिवर्ष 2000 अरब डॉलर के अत्यंत नुकसानदायक खर्चे से निजात मिलेगी। इसके लिए तो सारे राष्ट्र राज्यों को मिलाकर पृथ्वी का एक संविधान, एक संसद और एक सरकार अर्थात् वसुधैव कुटुंबकम की भावना को साकार करने के लिए बनाना जरूरी है।”
वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी ने कहा कि, “स्वामी अग्निवेश विचार और संकल्प के धनी हैं। लंबे समय से वे बंधुआ मजदूरों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन उनके संकल्प में जरा भी कमा नहीं आई है।”
स्वामी आर्यवेश ने स्वामी अग्निवेश के संघर्षों को याद करते हुए कहाकि, “महर्षि दयानंद के पदचिह्नों पर चलते हुये व सब अपमान सहते हुये वे आज उतने ही सक्रिय हैं जितने अठाईस वर्ष की आयु में थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय से अर्थ शास्त्र की उच्च शिक्षा प्राप्त कर प्रोफेसर बने,युवावस्था में संन्यास लेकर आजीवन वेदप्रचार करने व दबे कुचले लोगों के उत्थान का संकल्प लिया।”
डॉ. मुमुक्षु आर्य कहते हैं कि, “आन्ध्रप्रदेश के उच्च धनाढ्य ब्राह्मण परिवार की सब सुख सुविधाओं का त्याग कर जन-जन तक एक ईश्वर और एक धर्म का प्रचार करने में वाले स्वामी अग्निवेश पर कट्टरपंथियों ने कई बार जानलेवा हमले किये, अपमानित किया, जेल भेजा परन्तु वे अपने मार्ग पर अडिग हैं। हिन्दी अंग्रेजी, तेलगू में धाराप्रवाह बोलने वाले स्वामी अग्निवेश जी को देशविशेष में बडे चाव से सुना जाता है। नि:सन्देह वे आर्य समाज के अग्रणी नेताओं में से एक हैं और महर्षि दयानंद के बाद एक बड़ी उपलब्धि हैं। स्वामी आर्यवेश जी जैसे कई विद्वान सन्यासी उनके शिष्य हैं जो वेदप्रचार के कार्यों में लगे हुये हैं। परमात्मा उनको सौ से भी अधिक वर्षों की स्वस्थ दीर्घायु प्रदान करें।”
स्वामी अग्निवेश अपने उदबोधन में अपने मित्र गुरु स्वामी इंद्रवेश को याद करते हुए अत्यन्त भावुक थे परन्तु अपने शिष्य उत्तराधिकारी स्वामी आर्यवेश को देख कर आश्वस्त भी कि साम्प्रदायिकता, जातिवाद, भ्रष्टाचार, नशा, असमानता के विरुद्ध उनका संघर्ष जारी रहेगा। वसुधैव कुटुम्बकम् का सनातन वाक्य अब उनकी विरासत है जिस पर वे अडिग होकर कर पूरी दुनिया में इसका सन्देश फैलाना चाहते है ।
स्वामी दयानंद सरस्वती की साम्प्रदायिक सद्भाव की विरासत को वे मजबूती से सम्भाले हैं, जिसमें कार्ल मार्क्स का चिंतन है, महात्मा गांधी का सत्याग्रह तथा अम्बेडकर का संघर्ष।
Create an account
Welcome! Register for an account
A password will be e-mailed to you.
Password recovery
Recover your password
A password will be e-mailed to you.
जनचौक से जुड़े
Subscribe
Login
0 Comments