Friday, March 29, 2024

‘डायन, पापिन, अपशकुनी’ जिसने इन सभी लांछनों को मात दे दी, मिलिए उस केतकी जानी से

लोकमित्र गौतम

उसने पीड़ा, अपमान और भेदभाव की तमाम मिसालों को अपनी हिम्मत से मात देकर प्ररेणा का एक बिल्कुल नया मुहावरा गढ़ा है। एक मुलाकात में मिलिए एक ऐसी साहसी महिला केतकी जानी से ।

• औरतें तो तब गंजी होती हैं जब उनका पति मर जाता है। इसका तो पति जिंदा है, जरूर इसने कोई पाप किये होंगे, तभी भरी जवानी में गंजी हो गई है।

• अरे, एक तरफ हट जाओ, वह अपशकुनी आ रही है। सामने पड़ेगी तो न जानें क्या न हो जाए?

• एक किशोर दूसरे से कह रहा है- ‘वो देख रहे हो न, जो आंटी जा रही हैं, वो जल्दी मर जायेंगी। उन्होंने कोई पाप किया है, इसलिए पूरी तरह से गंजी हो गई हैं।’

इन्हें फबतियां तो नहीं कहना चाहिए मगर 40 वर्षीय केतकी जानी की जिंदगी में अचानक आये यह कमेंट फबतियों से भी ज्यादा दिल को छलनी-छलनी करने वाले थे। ये कमेंट ऐसी गालियां थीं, जिन्हें सुनते हुए वह हर एक पल मर रही थीं। उन्हें यह एक ऐसी सजा मिल रही थी जिसकी कुसूरवार 10 जनवरी 1971 को अहमदाबाद के एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्मी केतकी जानी तो बिल्कुल नहीं थी। केतकी जानी की दुनिया में सन 2011 तक सब कुछ अच्छा चल रहा था। अपनी मातृभाषा गुजराती से बेहद प्यार करने वाली केतकी ने एमए, बीएड तक की पढ़ाई की थी, उनकी अपने ही जैसे पढ़े-लिखे और शिष्ट नीतेश जानी से साल 1993 में शादी हो गई थी।

एक साल बाद ही एक परी सी प्यारी बेटी भी उनकी गोद में आ गई थी और जब वह जिंदगी में कुछ और बेहतर पाने के लिए साल 1997 में अहमदाबाद से पुणे चली आयीं तो इसके अगले ही साल वह एक प्यारे से बेटे की भी मां बन गईं थीं। इस तरह उनकी दुनिया खुशियों से आबाद थी और अब ये खुशियां दोगुना हो गईं थी क्योंकि न केवल उनका परिवार कंपलीट हो चुका था बल्कि उन्हें महाराष्ट्र राज्य पाठ्यक्रम ब्यूरो में गुजराती भाषा विभाग में स्पेशल ऑफिसर की शानदार नौकरी भी मिल चुकी थी।

जिंदगी खुशियों से लबालब थी। घर, परिवार और कॅरियर हर जगह केतकी उम्मीद से भी ज्यादा सफल थीं। लेकिन जिंदगी किस पल कैसा मोड़ ले ले भला इसे कौन जानता है, इसलिए तो यह जिंदगी है। केतकी के साथ भी जिंदगी ने एक झटके में ऐसा ही मजाक किया। यह ऐसा मजाक था कि इसके बारे में शायद वह करतीं तो इतनी भयावह कल्पना भी नहीं कर पातीं। उनकी खुशियों से लबालब भरी जिंदगी में अचानक दुर्भाग्य का कहर टूट पड़ा।

‘आखिर यह क्या था, जिसने उनकी खुशियों से लबरेज जिंदगी को पटरी से उतार दिया?’

मेरे इस सवाल पर केतकी जानी एक पल में सात साल पीछे लौट जाती हैं। उनकी आंखें हल्की सी छोटी हो जाती हंै। कुछ याद करते ही चेहरे पर एक अनकही पीड़ा उभर आती है। शायद इसे छिपाने के लिए वह गिलास से एक घूंट पानी पीती हैं, फिर रूंधे गले को साफ करते हुए कहना शुरू करती हैं।

केतकी अपने बच्चे के साथ।

‘यह साल 2011 की गर्मियों (शायद मई) का एक दिन था। मैं ऐसे ही अपनी कुर्सी में बैठी थी, जैसे अभी आपके सामने बैठी हूं। सिर में हल्की सी खुजली हुई और मैं खुजलाने लगी, तभी अचानक लगा कि जैसे मैं जहां खुजला रही हूं, सिर के उस हिस्से में बाल ही नहीं हैं। पहले मुझे लगा यह वहम है। लेकिन जब बार-बार मैंने सिर के उस हिस्से पर उंगलियां फिरायी, जिस हिस्से में लग रहा था, चिकनी त्वचा का एक चकत्ता है तो यह नंगी त्वचा का लिबलिबा सा एहसास मुझे परेशान करने लगा।

मैंने अपनी एक सहकर्मी को बुलाया और कहा कि ‘देखो क्या मेरे सिर में इस जगह बाल नहीं हैं? सहकर्मी ने ध्यान से देखा और कहा, ‘अरे हां, यहां तो बाल बिल्कुल हैं ही नहीं। क्या हुआ? फिर उसने ही कहा लगता है कोई चोट लग गई होगी? मैंने कहा नहीं ऐसा तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन उन पलों में घबराने के बावजूद हम इतने चिंतित नहीं हुए कि जैसे कुछ बहुत खौफनाक हो गया हो।’

‘…तो यह जो कुछ हुआ था, वह खौफ का बायस कब बना?’

‘बहुत ही जल्द। मैं अपनी उसी सहकर्मी के साथ एक डॉक्टर के पास गई, उसे दिखाया। पहले दिन तो उसने कुछ नहीं कहा बस दो चार बातें पूछी। ढेर सारे आश्वासन और दवा दे दी, यह कहते हुए कि इससे बाल वापस आ जाएंगे। साथ ही एक हफ्ते बाद फिर से आने को कहा। लेकिन मैं दो दिन बाद ही पहुंच गई क्योंकि सिर में बिना बालों वाला जो चकत्ता महज कुछ कुछ मिलीमीटर का था, वह दो दिन बाद ही अब अपने आकार से कई गुना ज्यादा हो गया था।

केतकी सिर में टैटू कराती हुईं।

भयानक डर और दहशत की झुरझुरी तो नहाने के समय और सुबह सोकर जगने के समय होती, जब देखती कि मेरे सिर से बाल झड़ने की मानो बारिश हो रही है। सुबह जब सोकर जगती तो देखती कि तकिया बालों से भर गया है, लेकिन उससे भी कई गुना ज्यादा बाल तब दिखते, जब मैं नहाती। पूरा बाथरूम बालों से भर जाता।’

‘क्या इससे आपको एहसास होने लगा था कि आप बहुत तेजी से गंजी हो रही हैं?’

‘हां, बेहद डरावना एहसास होने लगा था। पहले दिन तो मैं सिर्फ डरी थी। अगले दिन अपने झड़े हुए बाल देखकर रो पड़ी। जबकि तीसरा दिन आते-आते तो मैं दहशत से भर गई। अब हर पल एक ही बात दिलोदिमाग पर गूंजने लगी, अगर पूरी तरीके से गंजी हो गई तो क्या होगा? कैसे अपने बच्चों का, पति का, ससुराल वालों का, मायके वालों का, दफ्तर का, दोस्तों का और रास्ते में चलते-फिरते आम लोगों का सामना करूंगी? यह सब सोचकर ही मेरे चेहरे मे हवाईयां उड़ती रहतीं। मन ही मन भगवान से प्रार्थना करती रहती कि यह सब दुःस्वप्न साबित हो, मैं जल्दी से ठीक हो जाऊं, लेकिन एक हफ्ते के भीतर ही सारी दुनिया उलट-पलट गई।

डॉक्टर ने जल्द ही बता दिया कि मैं ‘एलोपेशिया’ नामक बालों की दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त हूं, जिसका दुनिया में अभी तक कोई इलाज नहीं है। शायद इस हकीकत की वजह से ही अमरीका और दूसरे देशों में एलोपेशिया के शिकार लोगों ने अपने समूह बना रखे हैं, उनके अपने क्लब हैं, उनकी अपनी गतिविविधयां हैं और सरकार व समाज के साथ बेहतर सहानुभूति भरे संबंध हैं। इस वजह से विदेशों में एलोपेशिया के साथ जीना कोई मुश्किल नहीं है। लेकिन भारत में बिल्कुल उल्टी स्थिति है। यहां गंजी औरत (लोग यह जानने की कोशिश नहीं करते कि क्यों गंजी है और न ही यह कि यह कोई बीमारी भी है, जिसमें गंजे होने वाले का अपना कोई वश नहीं है) तमाम सारे दुर्भाग्य और अपशकुनों का समुच्चय है।

फैशन में हिस्सा लेती केतकी।

लोग नहीं चाहते कि ऐसी किसी औरत का उन्हें मुंह देखना पड़े क्योंकि माना जाता है कि ऐसी औरत का मुंह देखने से आपका हर काम बिगड़ जाता है। कोई नहीं चाहता कि ऐसी औरत कभी आपके सामने आये या आपके रास्ते से गुजरे; क्योंकि उसका रास्ता काटना भी अपशकुनी काली बिल्ली से भी ज्यादा अपशकुन माना जाता है। …और भी अनंत खौफ हैं सिर में बाल न होने के। शायद इसी वजह से मैं गिरते बालों और तेजी से होते गंजेपन के चलते सदमे में थी। लेकिन मेरे रोके कुछ भी न रूका। एक ही हफ्ते में पति को, बच्चों को और सास को भी मालूम हो गया कि मैं बहुत तेजी से गंजी हो रही हूं। पति ने सांत्वना दी कि अच्छा से अच्छा इलाज करायेंगे और सब सही हो जायेगा। बच्चों को शुरु में कुछ समझ में ही नहीं आया कि आखिर मैं किस संकट और दहशत से गुजर रही हूं। इसलिए उन्होंने ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया।

मगर सासु मां चूंकि जवानी के दिनों में ही विधवा हो गई थीं, जिस कारण उन्हें अपने सिर के बाल निकलवाकर गंजा होना पड़ा था, इसलिए वह गंजेपन का दुर्भाग्य और उसकी भयावहता को बहुत अच्छे ढंग से जानती थीं। यही वजह थी कि उन्होंने हिचकते हुए मुझे कुछ हिदायतें देनी शुरु की, मसलन- गंजी खोपड़ी के साथ किसी के सामने मत आ जाना। किसी के घर में अगर मंगल कार्य हो रहे हों तो वहां जाने से बचना तथा और भी ऐसी तमाम हिदायतें जो भले मुझे सहूलियत के लिए दी जा रही थीं लेकिन हर गुजरते पल के साथ वो मुझे छलनी कर रही थीं। हालांकि अभी मैं पूरी तरह से गंजी नहीं हुई थी लेकिन उन्हें पता नहीं क्यों लग रहा था, शायद मैं इसी दिशा में आगे बढ़ रही हूं। आप समझ सकते हैं यह कितना अपमानजनक और दहशतभरा था। 

मैं एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा, तीसरे के बाद चौथा। छह महीने के भीतर कई डॉक्टर बदल डाले। सभी डॉक्टरों से कहा किसी भी कीमत पर मुझे मेरे बाल चाहिए। क्योंकि मैं डायन होने का तमगा नहीं लेना चाहती थी। मैं अपशकुनी होने का अपमानजनक लांछन नहीं झेलना चाहती थी। इसके लिए मैं अपनी हैसियत से भी ज्यादा पैसे खर्च करने के लिए तैयार थी। यही वजह है कि हर डॉक्टर मुझे आश्वासन देता, अच्छी खासी फीस लेता, दवा के नाम पर स्टेराइड देता, जिससे तात्कालिक तौर पर कुछ बाल तो आते लेकिन जल्द ही वो फिर गिर जाते। साथ ही स्टेराइड ने मेरे शरीर में तमाम किस्म की परेशानियां पैदा करनी भी शुरु कर दीं।

मेरा वजन 50 किलो से बढ़कर 85 किलो हो गया। याद्दाश्त कमजोर हो गई। पूरी तरह से गंजी होकर मैं दुनिया का सामना कैसे करूंगी? इस सामना करने से तो बेहतर है कि मैं मर जाऊं। यही सब सोचकर मैं उन दिनों हर पल दहशत में रहती। बदहवासी मेरी स्थायी पहचान बनने लगी, जिसका नतीजा मेरे काम पर भी बहुत बुरा हुआ और जिंदगी के ऊपर भी अनिश्चिय की तलवार लटकने लगी। एक दिन तो मैंने आत्महत्या करने का भी फैसला कर लिया। आत्महत्या करने के अंतिम पल तक पहुंच गई। लेकिन फिर अचानक यह सोचकर कि बच्चे मुझे इस हाल में देखकर क्या सोचेंगे, रूक गई।’

‘आखिर यह खौफनाक हिस्टीरियाई अंदाज वाला व्यवहार क्यों?’

‘क्योंकि अब तक मैं गंजे होने की दहशत में पूरी तरह से गिरफ्त हो चुकी थी। मैं यह सब इसलिए भी कर रही थी क्योंकि मैंने इस बीच समाज में गंजी औरतों के साथ वर्तमान में किस तरह का सलूक किया जाता है और अतीत में उनके साथ कैसे-कैसे भेदभाव होते रहे हैं, इस सबको लेकर बहुत कुछ पढ़ लिया था, इस कारण यह जानकारी ही मेरी बदहवासी का बायस बन गई थी। मैंने जैसे-जैसे  एलोपेशिया से पीड़ित तमाम महिलाओं की कहानियां पढ़ी, वैसे-वैसे सिहरती गई। दरअसल हमारा समाज गंजी औरत को कभी नहीं स्वीकार करता, जबकि गंजे पुरुष सहजता से जिंदगी जीते रहते हैं।

गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री के साथ केतकी।

यह अकारण नहीं है कि हमारे इर्दगिर्द कोई औरत कभी गंजी नहीं दिखती, बशर्ते वह कोई साध्वी या मॉडल न हो। हालांकि ऐसा नहीं है कि हमारे समाज में गंजी औरतें होती ही नहीं, वे होती तो हैं  लेकिन समाज के भय से अपने को छिपाये रखती हैं। उन पर सामाजिक बदनामी का इतना कड़ा शिंकजा जकड़ा होता है कि वह या उनका घर परिवार बाहरी लोगों को कभी जानने ही नहीं देता कि वे एलोपेशिया से ग्रस्त हैं या कि वे गंजी हैं।

वास्तव में सच्चाई यही है कि हमारे समाज में गंजी औरत किसी की सहानुभूति नहीं पाती। धार्मिक और मैथोलॉजिकल आधार पर भी उन्हें सहानुभूति के दो वाक्य नहीं मिलते। यही कारण है कि एक मेहर भसीन जैसी मॉडल को छोड़कर जो अपने एक विज्ञापन की जरूरत के चलते गंजी हुई थी, देश में कभी कोई दूसरी महिला सार्वजनिक रूप से गंजे रहते हुए जीने की कल्पना नहीं कर पायी। न जाने कितनी ऐसी महिलाओं को डायन बताकर मार दिया गया। ऐसी महिला को हर समय उसके घर परिवार द्वारा ही बताया जाता है कि वह दुर्भाग्यशाली है, वह अपशकुनी है।

उससे कहा जाता है कि वह किसी के सामने कभी गंजे सिर के साथ न आये। किसी मंगल काम में शामिल न हों। इन सब बातों ने मुझे भावनात्मक रूप से बेहद तोड़ दिया था। जब मुझे पता चला कि गुजरात में मेरे जैसी ही एक महिला को उसके पति ने 40 सालों तक खेतों में एक कोठरी बनवाकर रखा, जिसके दरवाजे बंद रहते थे। वह हमेशा इसी बंद कोठरी में रहने को मजबूर होती थी। उसे हमेशा दरवाजे के नीचे से ही खाना दे दिया जाता था।

इन जैसी कहानियों को जानकर मुझे लगता कि मैं क्यों जिंदा हूं? मैं सच में जिंदा रहना नहीं चाहती थी। मैं मर जाना चाहती थी। घर मेरे लिए मुंह चुराने की जगह थी। दफ्तर मेरे लिए हीनभावना में लगातार धंसते जाने का दलदल बन चुका था। लोग अंधेरे से उजाले की तरफ जाते हैं। लोग जिंदगी में उजाले की कामना करते हैं, मैं मनाती थी कि कितना जल्दी अंधेरा हो और मुझे अपना गंजापन छुपाने में सहूलियत हो।’

‘फिर जिंदगी में यू टर्न कैसे आया? आप आज की केतकी कैसे बनीं?’

‘यह बस एक दिन अचानक ही हो गया। जब मेरी बेटी पुण्यजा ने एक दिन कहा, ‘ममा, मैं भी अपना सर मुंडवा लेती हूं फिर हम दोनों साथ-साथ मुंडे हुए सिर के साथ बाहर जाएंगे। तीन साल आपने ये सोचने में गुज़ार दिए कि लोग क्या सोच रहे हैं? ये उनकी परेशानी है। अब आप अपने बारे में सोचो। मां आप गंजे होने में भी बहुत खूबसूरत लगती हो।’ बेटी के इस प्रोत्साहन वाक्य ने कमाल कर दिया। उसके इन शब्दों ने बल ही नहीं दिया बल्कि मेरी आंखें भी खोल दी या हो सकता है इसकी वजह यह भी हो कि अब तक मेरी नरक जैसे जिंदगी के साढे तीन साल गुजर चुके थे। मैं भी डिप्रेशन से ऊब चुकी थी, बेटी की इस बात ने मुझे बल दिया और मैंने उसी दिन फैसला कर लिया कि बहुत हो चुका डरना, बहुत हो चुका खौफ में, दहशत में जीना।

मैंने न जाने कितने जतन से अपने गंजेपन को छुपाने के लिए तमाम किस्म के जो स्कार्फ इकट्ठा किये थे, उन्हें फेंक दिया और अगले दिन बिना स्कार्फ के दफ्तर आ गई। सहकर्मी हैरान हुए। लेकिन कुछ ही मिनटों में मैंने महसूस किया कि जैसे सदियों का छाती में रखा मेरा बोझ उतर गया। मैंने काफी हल्कापन महसूस किया। अब मेरे दफ्तर में कोई आ रहा होता तो दौड़कर मेरी सहायक मुझसे यह कहने नहीं आती कि मैं कैप पहन लूं या सिर में स्कार्फ बांध लूं। मुझे काफी अच्छा लगने लगा कि मैं अपने आपका सामना कर रही हूं। इससे मुझे काफी राहत मिली। हालांकि रास्ते में मुझे लोग अब भी घूर रहे थे। जहां मैं जाती अब भी सबका ध्यान मुझ पर ही चला जाता, लोग अनगिनत किस्म की सात्वनाएं देने मुझ तक आ जाते। अब भी सबको यही लगता कि कैंसर की वजह से मेरे बाल खत्म हो गये हैं।’

‘क्या लोगों की तरस पर अब तक विराम लग सका है और फिर ये गंजी खोपड़ी पर टैटू कब बनवाया तथा आपके जो कैटवॉक की परीकथाओं जैसे किस्से हैं, उनका सिलसिला कब और कैसे शुरु हुआ?’

‘मेरे इस लंबे सवाल पर केतकी जानी राह खोजती हैं कि कैसे एक क्रम में उत्तर दे पाएं। फिर मन ही मन एक व्यवस्था बनाकर वह बताती हैं कि पूरी तरह से लोगों की तरस पर विराम तो अभी भी नहीं लगा, लेकिन अब मेरे घर परिवार और रिश्तेदारों को मुझे लेकर कोई शर्म नहीं आती। उल्टे उन्हें मुझ पर गर्व है और मेरा परिवार मुझे बहादुर होने के अवार्ड से नवाजता है। जहां तक गंजी खोपड़ी में टैटू बनवाने का ख्याल है। दरअसल मैं हमेशा से टैटू बनवाना चाहती थी, लेकिन जब तक मैं गंजी नहीं हुई थी, मुझे शरीर में ऐसी कोई जगह ही नहीं मिल रही थी कि मैं वहा टैटू बनवा सकूं। मुझे लगता था कि जहां भी टैटू बनवाऊंगी तो वह जगह खराब हो जायेगी। बहरहाल जब गंजी हुई तो एक दिन मुझे ख्याल आया कि जैसे कुदरत ने मुझे मेरे सपने के लिए ही यह गंजापन बख्शा है। मैंने सोचा सालों से जिस सपने को बार-बार टालती रही हूं अब वह सपना पूरा करने का वक्त आ गया है।

मैंने सिर में ब्रह्मांड के चित्र जैसा टैटू बनवा लिया, जो कोणों से ओम जैसा भी लगता है। लेकिन यह आसान नहीं था। टैटू बनाने वाले ने भी मुझे एक बार मना कर दिया। दरअसल वह डर गया था। उसका कहना था बहुत दर्द होगा और संभव है कुछ कंपलीकेशन भी पैदा हो जाएं। इसलिए मैं नहीं बनाऊंगा। लेकिन मैं जिद पर अड़ी रही और अंततः टैटू बनवा लिया। कई सिटिंग्स में और पीड़ा की पराकाष्ठा वाली अनुभूति में पहुंचने के बाद यह संभव हुआ। लेकिन अंततः मैंने यह करवा लिया। जहां तक मेरी मॉडलिंग की किस्सों का सवाल है उसकी शुरुआत तो एक खुराफात से हुई।

दरअसल सोशल मीडिया में एक विज्ञापन आया था, ’मिसेज इंडिया वर्ल्ड वॉइड प्रतियोगिता। उसमें भाग लेने वाले प्रतियोगियों को अपने बालों के रंगों का विवरण देना था कि उनके बाल कैसे हैं, काले, भूरे, गहरे भूरे, हल्के काले वगैरह वगैरह। मुझे शरारत सूझी मैंने भी फार्म भरा और बालों के रंगों के विवरण की जगह लिख दिया ‘नो हेयर’। मुझे लगा था, मेरा यह सच उन्हें मेरे बारे में सोचने के लिए भी मजबूर नहीं करेगा, लेकिन मैं तब हैरान हो गई जब मुझे प्रतियोगिता में शामिल होने के पहले चरण के लिए मुंबई बुलाया गया।

जब केतकी के बाल हुआ करते थे।

7 नवंबर 2016 को मुंबई में प्रतियोगिता का पहला राउंड हुआ। मैंने कैटवॉक किया। सवाल-जवाब के राउंड से भी गुजरी। मैंने पूछे गये एक सवाल के जवाब में कहा, ’मैं यहां एक अलग उद्देश्य लेकर आयी हूं। मैं दूसरे लोगों से अलग नहीं हूं। मेरा दिल भी आम लोगों की भांति ही धड़कता है। लेकिन जब मेरे गंजे होने की वजह से, जिसका कारण मैं नहीं हूं, लोगों की कौतूहल भरी नजरें मेरे अंदर धंसती हैं, तो मैं बहुत हताश होती हूं। मैंने इसीलिए इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया है कि दुनिया को बता सकूं मैं भी सबके जैसी हूं।

ये प्रतियोगिता मेरे लिए हार जीत नहीं अपितु मेरे जैसी तमाम महिलाओं में जीवन को लेकर जिजीविषा जगाने का मंच है। मैं चाहती हूं गंजेपन के चलते निराशा के दलदल में फंसकर कोई महिला अपनी जान न गंवाए। इस प्रतियोगिता में हिस्सेदारी करने का मेरा मकसद उनमें यही आशा जगाना है कि हम भी दूसरों की तरह कुछ भी कर सकते हैं। मेरे इस जवाब के आधार पर मुझे ‘मिसेज इंसपिरेशन कैटेगरी’ की विजेता चुना गया। मैंने 32 प्रतियोगियों को पछाड़कर सफलता पायी।

इस प्रतियोगिता के मंच पर मुझे असली अवार्ड तो तब मिला जब ज़ीनत अमान ने मुझे गले लगाकर कहा, ‘भले ही खि़ताब किसी को मिले मेरे लिए तो तुम ही विजेता हो। फ़िल्म इंडस्ट्री में बहुत लोग ऐसे हैं जिनके सिर में कम बाल हैं या जो कि पूरी तरह से गंजे हैं, लेकिन वह कभी एक पल को भी बिना विग के बाहर नहीं निकलते। तुम बहादुर लेडी हो। सचमुच मेरे लिए यह बड़ा अवार्ड था, इसके बाद तो मुझे दर्जनों ऐसी प्रतिस्पर्धाओं में बुलाया गया और हर जगह मैं कोई न कोई अवार्ड लेकर लौट।

इस समय जब पाठक मेरी यह कहानी पढ़ रहे होंगे, उस समय भी मैं एक सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सेदारी कर रही हूं। मैं पाठकों से अनुरोध करूंगी कि अगर उन्हें लगे कि मैंने कोई प्रेरणादायक काम किया है तो वह सोशल मीडिया पर मेरा समर्थन करें। इसी के साथ मैं आपका धन्यवाद करूंगी कि आपने इतने धैर्य और रूचि से मेरी जिंदगी के साथ जद्दोजहद की कहानी सुनी।

(लोकमित्र गौतम वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल मुंबई में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles