Thursday, April 25, 2024

कोरोना काल का हासिल: साथ चल रही मौत का भी डर जाता रहा

आज एक स्ट्रगलिंग फिल्मी लेखक से मुलाकात हुई, वो आया था मुझे अपनी कहानी सुनाने जो उसने वेब सीरीज के लिए लिखी है। हम एक चाय की दुकान पर मिले, जहां पर उसे वड़ा-पाव बिकते दिखा तो उसने सबसे पहले वो खाने की इच्छा जाहिर की और तुरंत ले खा भी लिया।

उसने बताया- घर से काफी देर से निकला हुआ है और भूख जोरों की लग रही है।

मैंने उससे पूछा- इससे पहले क्या करते थे? कहां रहते हों? इत्यादि।

उसने बताया- वो अंधेरी में एक वन रूम अपार्टमेंट में रहता है, जिसमें उसके अलावा तीन और लोग रहते हैं। सभी बैचलर्स हैं।

मैंने पूछा- फिर खाने-पीने का कैसे करते हो? पिछले चार महीनों से तो बाई इत्यादि कोरोना के डर की वजह से काम पर आ नहीं रहीं हैं। तो क्या सब मिलकर खाना बनाते हो या अलग-अलग?

उसने बताया- हम घर पर खाना बनाते ही नहीं।

मैंने कहा- पर ये कोरोना टाइम में कैसे मैनेज किया?

उसने बताया- सर, घर से कुछ कदम दूरी पर एक रेस्टोरेंट है।

मैंने कहा- पर वो तो लॉकडाउन में बंद रहा होगा न?

उसने कहा- नहीं जी, बिल्कुल नहीं, वो चालू था और मैं तो रोज़ाना शाम को वहां जाता था चाय पीने। और लोग भी आते थे, फिर चाय पीकर मैं लोखण्डवाला का चक्कर लगाकर घर वापस आता था। वो क्या है कि मुझे बिना वाक किए जमता नहीं। और जहां तक बात है कोरोना की तो मैं आपको अपना खुद का एक्सपीरियंस बताता हूं जी…।

मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी। हम घरों में कैद थे और एक आदमी कह रहा है कि वो रेस्टोरेंट में बैठता था। फिर शहर में घूमता था और तीनों समय का खाना भी रेस्टोरेंट से मंगाता था।

अब मुझे उसकी लिखी हुई कहानी से ज्यादा मज़ा इस कहानी में आ रहा था।

मैंने पूछा- हां, बताओ अपना कोरोना का एक्सपीरियंस?

उसने कहा- सर, मेरे रूम में चार लोग रहते हैं। हुआ यूं कि एक की तबियत अचानक बहुत खराब हो गई। वो डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने उसे चेक किया और बताया कि उसे कोरोना के सभी लक्षण हैं।

मैंने पूछा- फिर? क्या उसे किसी हॉस्पिटल में एडमिट किया?

बोला वो- जी वो घर आया और बताया कि डॉक्टर ने कहा है कि कोरोना के लक्षण हैं और साथ ही डॉक्टर ने ये भी कहा है कि अगर अस्पताल गए तो ज़िंदा वापस नहीं आओगे।

मैंने पूछा- क्या, ऐसा कहा डॉक्टर ने?

उसने कहा- हां ऐसा ही कहा था।

मैंने पूछा- फिर क्या किया तुम लोगों ने? क्योंकि उसके अलावा तुम तीन लोग और रहते हो उस एक रूम में?

उसने बताया- जी, मेरे बीमार दोस्त ने हम सभी रूम पार्टनर्स से कहा कि अगर तुम कहते हो तो मैं हॉस्पिटल चला जाता हूं और मेरा अंतिम सलाम स्वीकार करो।

पर हम सबने कहा कि नहीं तुम कहीं नहीं जाओगे और अगर तुम्हें है तो हम सबको भी हो जाएगा। इससे ज्यादा क्या होगा? और सर हम सब लग गए उसकी तीमारदारी में। टाइम पर दवाई देना। समय-समय पर गर्म पानी पिलाना। विटामिन की गोलियां देना। मतलब जो भी हो सकता था वो सब किया। लगभग बीस दिनों तक। सभी ने मिलकर किया।

मैंने पूछा- अब कहां है? कैसा है वो?

उसने बताया- अभी एकदम ठीक है जी। अपने गांव गया हुआ है मां-बाप के पास।

बिंदास वड़ा-पाव खाते कभी मैं उसकी शक्ल देखता और कभी सड़क पर चलते अनमने ढंग से मास्क लगाए लोगों की, जो जहां-तहां मास्क हटा कर चाय-सिगरेट पी एक दूसरे से गपियाने में मशगूल थे। मास्क जहां होना चाहिए उससे दो इंच नीचे। न नाक पर और न मुंह पर। चेहरों पर लटके मास्क। मास्क के साथ अनमास्क्ड लोग।

लोग सिर्फ यहां नहीं थे। सड़कों पर ट्रैफिक जाम है। लाखों की संख्या में लोग बाहर हैं। अब वो लोग बाहर हैं जब कुछ हजार कोरोना के केस थे। अप्रवासी मज़दूरों के अपने-अपने घरों को जाने के लिए निकलने पर गालियां दे रहे थे।

तब कम्पलीट लॉक डाउन था। अब लगभग अस्सी हजार कोरोना केस रोजाना मिल रहे हैं और इसकी वजह 67000 से ज्यादा मौतें सिर्फ भारत में हो चुकी हैं। दुनिया भर में मौतों का आंकड़ा नौ लाख को छूने वाला है।

कोरोना ख़बरों की हेड लाइन तय हैं। पिछले चौबीस घंटों में अब तक सबसे ज्यादा कोरोना मरीज़ मिले। पर सरकार सब अनलॉक कर रही है। सिर्फ मोबाइल की रिंग टोन में सुनाई पड़ता है, कोरोना एक खतरनाक बीमारी है।

सवाल ये है कि क्या सरकारों और मीडिया ने इतना ज्यादा कोरोना का डर फैलाया कि अब लोगों ने उससे डरना ही बंद कर दिया। सवाल ये भी है कि क्या कोरोना बीमारी है, महामारी है या है सिर्फ डर?

अगर सिर्फ डर है तो क्यों फैलाया गया वैश्विक रूप ये डर?

और अगर महामारी है तब क्यों है जनता अब सड़कों पर बिना डरे बेफिक्र? सिर्फ एक देश में नहीं, पूरी दुनिया में। क्या काबू पा लिया गया है इस खतरनाक वायरस पर?

एक जवाब देते हैं अक्सर कुछ लोग, भई काम भी तो करने हैं। पैसे नहीं कमाएंगे तो खाएंगे कैसे? भारत की जनसंख्या है भी इतनी ज्यादा

करें भी तो क्या करें?

तब भी सवाल तो है ही। तब जब लॉक डाउन लगातार बढ़ रहा था तब निर्णय लेने वालों के दिमाग में ये बात नहीं आई थीं क्या? जनसंख्या ज्यादा है। लोग बिना घर से काम पर निकले खाएंगे कैसे? जिएंगे कैसे?

(अजय रोहिल्ला अभिनेता और लेखक हैं।)

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