सम्मानित होंगे साझी संस्कृति के पैरोकार, गीतकार इरशाद कामिल

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पंजाब और मलेरकोटला में इन दिनों बहुत खुशी भरा माहौल है। वजह है मलेरकोटला की धरती पर जन्म लेने वाले प्रसिद्ध गीतकार, शायर और कवि इरशाद कामिल को एक और सम्मान मिलना। 22 जनवरी को उन्हें जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में खासतौर पर सम्मानित किया जा रहा है। जयपुर में इन दिनों अंतरराष्ट्रीय स्तर का ‘लिटरेचर फेस्टिवल’ चल रहा है और कामिल को वहां एक लाख रुपए नगद व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा।

वह द्वारका प्रसाद अग्रवाल अवार्ड से सम्मानित होंगे जो विभिन्न क्षेत्रों में किए गए ऐसे कार्यों के लिए दिया जाता है, जिससे हिंदी को ऊंचाई मिली हो। इरशाद कामिल पंजाब के जिला मलेरकोटला के रहने वाले हैं और उनके मां-बाप तथा भाई यहीं रहते हैं। जब भी इरशाद को कोई बड़ा सम्मान मिलता है तो इस शहर में खुशी की लहर आ जाती है और इस बार भी यही आलम है।

यहां रसायन विज्ञान के शिक्षक मोहम्मद सिद्दीकी और बेगम इक़बाल बानो के घर 5 सितंबर 1971 को उनकी सातवीं संतान के तौर पर जन्मे इरशाद ने सनातन धर्म प्रेम प्रचारक स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई की ओर सूबे की राजधानी चंडीगढ़ का रुख किया और वहां उन्होंने स्नातकोत्तर के बाद पत्रकारिता में भी डिग्री हासिल की और हिंदी साहित्य में पीएचडी की।

सन् 2022 के नवंबर में उन्हें रूस का लब्ध प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘पुश्किन अवार्ड’ दिया गया था। इरशाद कामिल देश के ऐसे पहले गीतकार हैं, जिन्हें इस अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया। वामपंथी रुझान के गीतकार इरशाद कामिल जब इस पुरस्कार को हासिल करने के लिए रूस गए तो इधर पंजाब और मलेरकोटला में खुशियां मनाईं गईं। चंडीगढ़ के अदबी हलकों में भी उत्साह का आलम था।

पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ में उनके अध्यापक तथा बाद में उन्हें पीएचडी करवाने वाले डॉक्टर सतपाल सहगल कहते हैं कि उन्हें अपने शिष्य इरशाद कामिल की प्राप्तियों पर बेहद नाज़ है। इसलिए भी कि इरशाद ने मुंबईया फिल्मी गीतों में काव्य साहित्य से जुड़ी रचनात्मक और संवेदनशील आधारभूमि की नई बुनियाद रखी।

वह शैलेंद्र, गुलजार और जावेद अख्तर इत्यादि की परंपरा को आगे लेकर गए। बहुत कम लोग जानते हैं कि पंजाब में रहते हुए इरशाद कामिल ने शुरुआती दिनों में पंजाबी में गीत लिखे। जिनमें से कुछ पंजाबी संगीत एल्बमों में शुमार हैं। वह पंजाबी कवियों शिव कुमार बटालवी, पाश, संतराम उदासी और सुरजीत पातर के गहरे प्रशंसक हैं। समकालीन पंजाबी कवियों में उन्हें विजय विवेक और गुरतेज कोहारवाला की शायरी बहुत अच्छी लगती है। पुरातन सूफी कवियों में उन्हें बाबा बुल्ले शाह, शेख फरीद और गुरु नानक देव की काव्य रचनाएं बेहद पसंद हैं।

मुंबई जाकर और विदेशों तक ख्याति हासिल करने के बावजूद इरशाद कामिल का मोह पंजाब से बरकरार रहा। अब भी पहली फुरसत पाते ही वह मलेरकोटला और चंडीगढ़ का रुख करते हैं।

कविता से इरशाद कामिल का अनुराग किशोरावस्था से ही रहा। उनकी दो कविताओं के संग्रह ‘एक महीना नज़्मों का’ और ‘काली औरत का ख्वाब’ प्रकाशित हैं। दोनों के कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। अब शोध प्रबंध भी पुस्तकाकार में उपलब्ध है। खुद इरशाद कामिल कहते हैं कि कविता उनका पहला प्यार है। उन्होंने शोध प्रबंध भी पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के प्रोफेसर सतपाल सहगल के दिशा-निर्देश में हिंदी कविता पर लिखा है। बतौर कवि वह खुद को साझा और गंगा-जमुनी संस्कृति का कलमकार मानते हैं। पंजाब के हिंदी कवियों में से उन्हें कुमार विकल सबसे ज्यादा पसंद हैं।

चंडीगढ़ में उन्होंने औपचारिक शिक्षा के बाद ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘जनसत्ता’ में पत्रकारिता की। फरवरी 2002 में लेख टंडन अपने टेलीविजन सीरियल ‘कहां से कहां तक’ की शूटिंग के लिए चंडीगढ़ आए तो उन्हें सीरियल के डायलॉग लिखवाने के लिए एक नए लेखक की तलाश थी। इरशाद कामिल इंटरव्यू के सिलसिले में उनसे मिले तो लेख टंडन उनसे बहुत प्रभावित हुए और अपने संवाद लिखवाने के साथ-साथ मुंबई आने का न्योता भी दिया। मुंबई में उनकी दोस्ती निर्देशक इम्तियाज अली से हुई जो उन दिनों फिल्मी दुनिया में कामिल की मानिंद ही नवोदित थे। दोनों ने पहली बार फिल्म ‘चमेली’ के लिए एक साथ काम किया।

यह दोस्ती और जुगलबंदी आगे जाकर बेहद परवान चढ़ी। उसके बाद इरशाद कामिल ने इम्तियाज़ अली की हर फिल्म के लिए गीत लिखे। इनमें ‘जब वी मेट’, ‘लव आजकल’, ‘रॉकस्टार’ और ‘हाईवे’ जैसी बेहतरीन फिल्में शामिल हैं। इम्तियाज अली की फिल्मों में लिखे गीतों ने उन्हें कई बड़े सम्मान दिलाए। वह अब तक स्क्रीन, फिल्मफेयर, आइफा, जी सिने अवॉर्ड्स तथा मिर्ची म्यूजिक अवार्ड हासिल कर चुके हैं। बतौर गीतकार उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। पुश्किन सम्मान उन्हें उनके समग्र गीत लेखन के लिए दिया गया। अब जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में 22 जनवरी को उन्हें सम्मानित किया जाएगा।

जब भी इरशाद कामिल कोई सम्मान या उपलब्धि हासिल करते हैं तो मलेरकोटला तथा पंजाब में खुशी का आलम हो जाता है, जैसे इन दिनों हो रहा है। कामिल कहते हैं कि उन्हें खुद को सम्मानित होता पाकर ऐसा लगता है कि जैसे पंजाब, मलेरकोटला और चंडीगढ़ को सम्मान दिया जा रहा हो! इरशाद कामिल ने सौ से ज्यादा फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं। हर कामयाब लेखक की तरह उनका भी मानना है कि अभी उनका सर्वश्रेष्ठ आना शेष है। कामिल के गीतों में पंजाबी शब्दों की भरमार पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। इस बाबत इरशाद कामिल कहते हैं कि लोगों को उनके गीत इसलिए भी अच्छे लगते हैं कि वे उन्हें अपने इर्द-गिर्द के माहौल और समकालीन समाज की सच्चाइयों सरीखे लगते हैं। अतीत में जीना अच्छी बात हो सकती है; लेकिन बंधी-बंधाई लीक पर चलते रहेंगे तो नईं राहें कैसे खोज पाएंगे? वह जोर देकर कहते हैं कि गीतों में भाषागत लिहाज से जो बात सरल-साधारण, करीने तथा सलीके से कही जाए वह अपना असर जरूर छोड़ती है।

सिनेमाई सीमाओं के बावजूद इरशाद कामिल खुद को ‘लोगों का गीतकार’ मानते हैं। चंडीगढ़ में रहते हुए उन्होंने नुक्कड़ नाटक भी लिखे और आज भी लिखते हैं। वह कहते हैं कि सिनेमा ही उनकी मंजिल नहीं है बल्कि एक पड़ाव है। महज सिनेमा के जरिए उनका सब कुछ अभिव्यक्त नहीं हो पाता और शायद इसका एक कारण यह भी है कि वहां व्यावसायिकता हावी है जो श्रेष्ठ रचनात्मकता के आड़े आती है। बाहरहाल, मलेरकोटला को खुशी है कि उसके बेटे की झोली में एक और प्रतिष्ठित सम्मान 22 जनवरी को आ रहा है। आखिर मलेरकोटला की एक आधुनिक पहचान का नाम ‘इरशाद कामिल’ भी है।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं पंजाब में रहते हैं)

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मनोज़ 'निडर'
मनोज़ 'निडर'
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1 year ago

इरशाद कामिल का सफ़रनामा और अमरीक सिंह सिरसा की कलम की बानगी दोनों बेमिसाल। नफरत के मौजूदा दौर में इस तरह के अफसाने सुकून के पल देते हैं। इरशाद कामिल और अमरीक को दिल की गहराइयों से शुभकामनाएं।

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