आज वर्ल्ड हैप्पीनेस डे है। यानी विश्व खुशी दिवस। लेकिन शायद यह पहला खुशी दिवस होगा जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस जैसी महामारी की चपेट में है। कोरोना ने सबकी खुशियों को ग्रस लिया है। फिर भी जीवन है अगर जहर, तो पीना ही पड़ेगा। जीवन के कारोबार रुक तो नहीं जाएंगे! आपद महामारी से एहतियात और सावधानी बरतते हुए हम सब कुछ कर ही रहे हैं। फिर खुशियों पर ही हम क्यों ग्रहण लगाएं? जिस पर बच्चों का पहला और सबसे अधिक अधिकार बनता है।
वैसे बच्चों का तो और भी ज्यादा जिनके बचपन को बाल मजदूरी के दलदल में धकेल दिया जाता है। नोबेल शांति विजेता कैलाश सत्यार्थी के प्रयासों से उन्हें वहां से मुक्ति दिलाई जाती है। गौरतलब है कि ऐसे 90,000 से अधिक बच्चों को बाल दासता से आजाद कराने का रिकॉर्ड सत्यार्थी के नाम है। उन सबको जीवन और समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की पहल की है सत्यार्थी ने। आज के दिन वे स्वतंत्र, स्वस्थ, सुरक्षित, खुशहाल और सुखी जीवन जी रहे हैं। कई बच्चे ऐसे हैं जो वकील, शिक्षक, खजांची आदि हैं। बाल अधिकारों के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। उन्हीं में से दो ऐसे प्रतिनिधि और होनहार बच्चों की कहानी यहां प्रस्तुत की जा रही है जो लाखों, करोड़ों बच्चों की खुशियों और प्रेरणा के स्रोत हैं…
बाल आश्रम का लाल बना अमरलाल
पत्थर की खदानों में कभी तोड़ाई-खुदाई का काम करने वाला अमरलाल आज मानवाधिकार वकील बन कर बच्चों, युवाओं और महिलाओं के लिए प्रेरणा का काम कर रहा है। तीन पीढ़ियों से बंधुआ मजदूरी करने वाले राजस्थान के एक गरीब परिवार में जन्म लेने वाले अमरलाल ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उसकी दुनिया इस कदर बदल जाएगी। छह भाई-बहनों वाले परिवार का भरण-पोषण करने के लिए अमरलाल को 6 वर्ष की उम्र से ही पत्थर की खदानों में तोड़ाई-खुदाई के काम में अपने पिता का हाथ बंटाना पड़ता था।

लेकिन नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी संचालित ‘’बचपन बचाओ आंदोलन’’ के स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा 2001 में जब उसे बाल मजदूरी से मुक्त कराकर ‘‘बाल आश्रम’’ लाया गया, तब अमरलाल का जीवन ही बदल गया। आश्रम में अमरलाल को सुमेधा कैलाश जैसी मार्गदर्शक मिलीं जिनके स्नेह की छांव में वह अपना सर्वांगीण विकास करता है। आज वह मानवाधिकार के वकील की हैसियत से बाल अधिकारों का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरजोर वकालत करते दिखता है।
बाल आश्रम के अपने अनुभवों को साझा करते हुए अमरलाल बताता है-‘‘आश्रम में मैंने अपना सुरक्षित बचपन पाया। यहीं मुझे शिक्षा, खेलने-कूदने और हंसने की आजादी मिली। अपने सपनों को निखारने का अवसर मिला।‘’ अमर लाल कहता है कि मुझे तब सबसे बड़ी खुशी मिलती है जब मैं एक वकील के तौर पर हिंसा से पीड़ित किसी बच्चे के पक्ष में दलील और तकरीरें पेश कर रहा होता हूं। बाल मजदूरी, बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) और बाल यौन शोषण के पीड़ितों को अदालत में मेरे द्वारा पेश किए गए तर्कों से न्याय मिलता है।
तब मुझे लगता है कि मेरा पेशा आज सार्थक हो गया। उस वक्त मेरे दिल और दिमाग में सुख और खुशी की लहरें दौड़ जाती हैं। आखिर भाई साहेब कैलाश सत्यार्थी ने बाल मजदूरी के दलदल से मुझे इसलिए नहीं निकाला था कि मैं बड़ा होकर सिर्फ और सिर्फ अपना करियर बनाऊं। मुझे सुरक्षित जीवन मुहैया कराने का उनका उद्देश्य यह भी था कि मैं भी इस काबिल बनूं कि बाल अधिकारों का परचम लहराऊं। इस आधार पर मैं एक ऐसे भारत का स्वप्न देख रहा हूं जहां शोषण और गुलामी की कोई गुंजाइश नहीं होगी।

अमरलाल उस समय चर्चा में आया था जब 2007 में सेनेगल की राजधानी डकार में यूनेस्को के एक उच्चस्तरीय समूह की बैठक में उसने बाल मजदूरों का प्रतिनिधित्व किया था। अमरलाल को दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में 2016 में ‘‘लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन शिखर सम्मेलन’’ के गोलमेज पर चर्चा में भाग लेने के लिए बतौर युवा प्रतिनिधि आमंत्रित किया गया था।
गौरतलब है कि इस सम्मेलन की मेजबानी भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने की थी। अमरलाल 11 सितंबर, 2017 से 16 अक्टूबर 2017 तक कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में बाल यौन शोषण और दुर्व्यापार के खिलाफ निकाली गई देशव्यापी भारत यात्रा में भी मुख्य यात्री की हैसियत से शामिल हो चुका है। ये सारी गतिविधियां और घटनाएं एक ओर जहां अमरलाल के व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं, वहीं दूसरी ओर उसे आत्मविश्वासी भी बनाती हैं।
इसके अलावा अमरलाल ने अपने कॉलेज और नोएडा के पड़ोसी गांवों में कई बच्चों और युवाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित किया है। वह शिक्षा के महत्व और बच्चों के अधिकारों पर समूह चर्चाओं और सेमिनारों में भी बोलता रहता है। बच्चों के अधिकारों की कैसे रक्षा की जाए, बाल श्रम का कैसे उन्मूलन किया जाए और लोगों में कानूनी जागरुकता कैसे पैदा की जाए, जैसे विषय अमरलाल के सरोकार हैं। वर्तमान में अमरलाल दिल्ली हाई कोर्ट में वकील है।
बाल आश्रम का लाडला किंशु कुमार
एक बाल मजदूर के रूप में अपना जीवन शुरू करने वाला अगर आज बाल अधिकारों का प्रवक्ता बन बच्चों के प्रति बरती जा रही हिंसा और शोषण को दूर करने को अपनी आवाज बुलंद कर रहा है, तो निश्चित रूप से वह असहायों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के पुरीकटरा के लालडेगी मोहल्ला के स्लम में जन्म लेने वाले किंशु की जीवन कहानी कुछ ऐसी ही है। किंशु जब मात्र 6 साल का था तभी से परिवार की आजीविका चलाने के लिए उसे कार को साफ करने और घरेलू बाल मजदूर के काम में लगा दिया गया था।
लेकिन किंशु को ‘’बचपन बचाओ आंदोलन” के कार्यकर्ताओं द्वारा बाल मजदूरी से मुक्त कराकर जब ‘’बाल आश्रम” लाया गया तब उसकी दुनिया ही बदल गई। ‘’बाल आश्रम” में आकर किंशु को अपना सर्वांगिण विकास करने का अवसर मिला। आज बतौर बाल अधिकार कार्यकर्ता एक और जहां वह राजस्थान के विराटनगर स्थित ‘’बाल आश्रम’’ में रहकर बच्चों के सर्वांगीण विकास में लगा हुआ है, वहीं दूसरी ओर वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर भी सक्रिय है।

किंशु उस समय चर्चा में आया जब उसे अमिताभ बच्चन द्वारा होस्ट किया गया ‘’कौन बनेगा करोड़पति” के सीजन समारोह में देखा गया। किंशु को उस समारोह में सुमेधा कैलाश और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का साथ देने के लिए बच्चन ने मंच पर बुलाया।
किंशु का बचपन स्लम में बीता। पढ़ाई-लिखाई और खेल-कूद की बात ही दूर थी। यह बात किंशु के पिता को सालती रहती थी। ऐसे में उन्हें एक दिन ‘’बाल आश्रम” के बारे में जानकारी मिलती है और वे ‘’बचपन बचाओ आंदोलन” (बीबीए) के कार्यकर्ताओं के संपर्क में आते हैं। किंशु के पिता बीबीए के सहयोग से अपने लाडले को बाल मजदूरी के जंगल से मुक्त कराने में सफलता प्राप्त करते हैं।
‘’बाल आश्रम” में किंशु का एक नई दुनिया से परिचय होता है। वह वहां अपने खोए हुए बचपन को पाता है। उसे वहां पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने और जीवन को संवारने का अवसर मिलता है। शिक्षा के प्रति उसकी दीवानगी देखते बनती है। आश्रम में मात्र 6 महीने की अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद ही किंशु का दाखिला पास के ही एक सरकारी स्कूल में चौथी क्लास में हो जाता है। इसके बाद वह पीछे मुड़कर नहीं देखता है और लगातार आगे ही बढ़ता जा रहा है।
किंशु से जब सवाल किया गया कि आपको इतना कुछ करने की प्रेरणा कहां से मिलती है? तो वह कहता है-‘’मैं आज जो कुछ भी हूं सब भाईसाहेब कैलाश सत्यार्थी और भाभीजी सुमेधा कैलाश की बदौलत हूं। उन्हीं के द्वारा स्थापित ‘’बाल आश्रम’’ में मुझे पनाह मिला और आगे बढ़ने का लगातार अवसर मिल रहा है।’’ किंशु कहता है कि मैं जब बाल अधिकारों के लिए काम कर रहा होता हूं तो मुझे लगता है कि मैं अपना काम कर रहा हूं। मन का काम कर रहा हूं। भला मन का काम करने से अधिक संतुष्टि, खुशी और सुख किस काम में है? किंशु कहता है कि दुनिया का सबसे खुशनसीब शख्स वह है, जिसे मन लायक काम मिला है।
मन का काम आप दिल से करते हैं और अपना सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ दे पाते हैं। किंशु अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि मैं बाल मजदूरी का भुक्तभोगी हूं। मुझसे ज्यादा बाल हिंसा के अंतहीन दंश को भला और कौन समझ सकता है? मेरी पहली प्राथमिकता है कि मैं अपने भाई-बहनों को उस जहालत से निकालकर सुरक्षित जीवन मुहैया कराने का प्रयास करूं। किंशु अपने आदर्श कैलाश सत्यार्थी को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि उन्हें जिस तरह से किसी बाल मजदूर को मुक्त कराने से खुद की मुक्ति का अहसास होता है, ठीक वही अनुभूति, खुशी और आनंद मैं भी महसूस करता हूं जब मैं बाल शोषण को दूर करने की वकालत कर रहा होता हूं।
बाल अधिकारों पर बोलने और सलाह के लिए किंशु को दुनियाभर से बुलावे आते रहते हैं। वह अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में 2007 में बाल मजदूरी और शिक्षा संबंधी बैठक को भी संबोधित कर चुका है। यूरोपियन यूनियन (ईयू) की एक उच्चस्तरीय समिति में वह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर भी भाषण दे चुका है। किंशु को डच सरकार और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की ओर से भी आमंत्रित किया जा चुका है। किंशु द हेग में 2010 में आयोजित ग्लोबल चाइल्ड लेबर कॉन्फ्रेंस में 6 करोड़ असहाय और वंचित बच्चों का प्रतिनिधित्व करते हुए शिरकत कर चुका है।
दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में 2016 में “लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन सम्मिट” का जब आयोजन किया गया, तो उसके गोलमेज पर चर्चा में भाग लेने के लिए किंशु को भी बतौर एक युवा प्रतिनिधि की हैसियत से आमंत्रित किया गया था। किंशु 11 सितंबर, 2017 से 16 अक्टूबर 2017 तक नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में बाल यौन शोषण और दुर्व्यापार के खिलाफ निकाली गई देशव्यापी ‘’भारत यात्रा” में भी मुख्य यात्री की हैसियत से शामिल हो चुका है। ये सारी गतिविधियां और घटनाएं एक ओर जहां किंशु के व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं, वहीं दूसरी ओर ये उसे आत्मविश्वासी भी बनाती हैं।
किंशु अपने कॉलेज की अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय रूप से भाग लेता रहता है। इस संदर्भ में किंशु ने अपने कॉलेज में “जज्बा” नामक एक पहल की भी शुरुआत की, जो पड़ोसी गांवों के कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए एक नि:शुल्क ट्यूटोरियल है। वर्तमान में “जज्बा” के माध्यम से 1 से 12 तक की कक्षा के 150 बच्चे नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
(लेखक पंकज चौधरी हिंदी के चर्चित युवा कवि और पत्रकार हैं।)
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