Tuesday, April 23, 2024

गरीब दशरथ मांझी के ब्रांड नेम की सबको दरकार है!

गर्वीली गरीबी के नायक दशरथ मांझी को हम क्यों याद कर रहे हैं। भारत के श्रमिकों के आईकॉन दशरथ मांझी का कल 13 वां परिनिर्वाण दिवस था। हम दशरथ मांझी की पुण्यतिथि को परिनिर्वाण दिवस इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि दशरथ मांझी कबीर और बुद्ध के विचारों में विश्वास रखते थे। खदान में कोयला खनन करने वाले, पत्थर तोड़ने वाले दशरथ मांझी कबीर से बेइंतहा मुहब्बत करते थे।

वे मेहनतकश गरीबों के बीच ज़िंदा कबीर थे। कबीर करोड़ों लोगों के दिलों में जैसे लोक कबीर बनकर ज़िंदा हैं। दशरथ मांझी अपने देहावसान के 13 साल बीतने के बाद भी करोड़ों दिलों में  जिन्दा हैं। ज्ञात हो कि 2007 में दिल्ली स्थित एम्स में इलाज के दौरान दशरथ मांझी की मौत हो गई थी। दशरथ मांझी जीते-जी किंवदंती हो गए थे। वे अब ‘माउन्टेन –मैन ‘ के रूप में पूरी दुनिया में जाने जाते हैं।

दशरथ मांझी को बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने ट्वीट कर याद किया है। बिहार के कुछ राजनेताओं और मंत्रियों ने भी दशरथ मांझी को सोशल मीडिया में याद किया है। दशरथ मांझी के गया स्थित गेहलौर ग्राम में उनके समाधि-स्थल पर जिला प्रशासन, मंत्रियों और राजनेताओं का जमावड़ा लगा हुआ था। जब मैंने दिल्ली से उनकी पोती अंशु को फोन किया तो उसने बताया कि पिता भागीरथ मांझी आज समाधि स्थल पर व्यस्त हैं। इस समय देर रात कबीरपंथियों के द्वारा परिनिर्वाण सभा और भजन कार्यक्रम जारी है। परसों गया के डीडीसी, एसडीओ,बीडीओ दशरथ मांझी के घर आए थे। उन्होंने जिला प्रशासन की ओर से इलाज के सहायतार्थ 30 हजार रुपए की सहायता प्रदान की है।

गया से 20 किलोमीटर दूर वजीरगंज-अतरी मार्ग में दशरथ मांझी का ग्राम गेह्लौर स्थित है। वजीरगंज –अतरी की ओर जाने वाली सड़क का नाम दशरथ मांझी मार्ग है। गेह्लौर में प्रवेश करते ही भव्य दशरथ मांझी द्वार आपका स्वागत करता है। दशरथ मांझी प्राथमिक चिकित्सालय और दशरथ मांझी की सुन्दर, आकर्षक समाधि-स्थल आगत पर्यटकों के लिए एक नूतन तीर्थ की तरह आकर्षण पैदा कर रहा है। हर वर्ष गया में सरकारी खर्च पर दशरथ मांझी महोत्सव आयोजित होता है। बिहार सरकार ने बिहार की राजधानी पटना में 40 करोड़ रुपए खर्च कर दशरथ मांझी इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर एंड इम्प्लायमेंट स्टडीज की स्थापना की है। दशरथ मांझी के प्रति बिहार सरकार का रवैया इतना सकारात्मक है तो उनके परिवारजन की माली हालत अक्सर देश की बड़ी खबर क्यों बनती रहती है।

 एक श्रमिक के माउन्टेन-मैन बनने की कहानी 

 दशरथ मांझी बालकाल में अपने घर से भाग गए थे और धनबाद की कोयले की खानों में उन्होंने कोयला मजदूर की दिहाड़ी की। फिर वे अपने घर लौट आए और फाल्गुनी देवी से शादी की। अपने पति के लिए खाना ले जाते समय उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयीं और उनकी मौत हो गई थी। अगर फाल्गुनी देवी को तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया होता तो शायद वो बच जातीं, यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले अपने दम पर वे पहाड़ के बीचों-बीच से रास्ता निकालेंगे और फिर उन्होंने 360 फ़ुट-लम्बा (110 मी), 25 फ़ुट-गहरा (7.6 मी) 30 फ़ुट-चौड़ा (9.1 मी) गेहलौर की पहाड़ियों से रास्ता बनाना शुरू किया। बकौल दशरथ मांझी – “जब मैंने पहाड़ तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इस बात ने मेरे निश्चय को और भी मजबूत किया।”

उन्होंने अपने काम को 22 वर्षों (1960-1982) में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अतरी और वज़ीरगंज की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया। माँझी के प्रयास का मज़ाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने गेहलौर के लोगों के जीवन को आसान बना दिया। हालांकि उन्होंने एक सुरक्षित-संरक्षित पहाड़ को काटा था, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम के अनुसार दंडनीय था। फिर भी अपने संघर्षों से अर्जित लोकप्रियता व ख्याति ने उन्हें कानून व दंड के डंडों से राहत  दिला दी।

दशरथ  मांझी अपनी उपलब्धि पर कहते थे,” पहले-पहले गाँव वालों ने मुझ पर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे अन्न, जल और औज़ार खरीदने में मेरी आर्थिक सहायता भी की।” मांझी के प्रयत्न का सकारात्मक नतीजा निकला। केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर उन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट कर एक सड़क का रूप प्रदान किया। इस सड़क ने गया के अतरी और वज़ीरगंज की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दी। गांव के लोगों के आने-जाने की तकलीफ समाप्त हो गई। आख़िरकार 1982 में 22 वर्षों की मेहनत के बाद मांझी ने अपने कार्य को पूरा किया। 

पत्नी को असमय खोने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया। लेकिन यह आसान नहीं था। अकेला शख़्स पहाड़ भी फोड़ सकता है!

भारत सरकार के फिल्म प्रभाग ने दशरथ मांझी पर एक वृत्तचित्र (डाक्यूमेंट्री) फिल्म ” द मैन हु मूव्ड द माउंटेन” 2012 में निर्मित  किया। कुमुद रंजन इस वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) के निर्देशक हैं। जुलाई 2012 में प्रसिद्ध निदेशक केतन मेहता ने दशरथ माँझी के जीवन पर आधारित फिल्म ‘मांझी: द माउंटेन मैन’ बनाने की घोषणा की। अपनी मृत्यु शैय्या पर, मांझी ने अपने जीवन पर एक फिल्म बनाने के लिए “विशेष अधिकार” दे दिया था। 21 अगस्त 2015 को फिल्म को रिलीज़ किया गया।नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने माँझी की और राधिका आप्टे ने फाल्गुनी देवी की भूमिका निभाई है। मांझी के कीर्तिमान  को एक कन्नड़ फिल्म “ओलवे मंदार” में जयतीर्थ ने प्रतिष्ठित किया है।

नवाजुद्दीन शूटिंग के दौरान।

मार्च 2014 में प्रसारित चर्चित टीवी शो ‘सत्यमेव जयते’ का सीजन 2 जिसकी मेजबानी आमिर खान ने की थी, उसका पहला एपिसोड दशरथ माँझी को समर्पित किया गया। आमिर खान ने गया आकर दशरथ माँझी के बेटे भागीरथ मांझी और उनकी बहू बसंती देवी से मुलाकात की थी और सत्यमेव जयते कार्यक्रम के मुनाफे से उनके परिवार को लाभान्वित करने की घोषणा की थी। 1 अप्रैल, 2014 को चिकित्सीय देखभाल वहन करने में असमर्थ होने के कारण बसंती देवी की मृत्यु हो गयी। हाल ही में दशरथ मांझी के पुत्र ने मीडिया से कहा कि अगर आमिर खान ने मदद का वादा पूरा किया होता तो वे अपनी पत्नी को ज़िंदा बचा लेते।

दशरथ मांझी दुनिया से चले गए लेकिन यादों से नहीं!

दशरथ मांझी जब पहाड़ पर हथौड़े चला रहे थे तो दुनियाँ कबीर कुल के इस बौरम से अनजान थी पर गया के गहलौर में वे जब पहाड़ का सीना चीरने में  कामयाब हो गए तो केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां घोषित किया। वे दुनिया को छोड़ गए पर रह गई पहाड़ पर लिखी गई उनकी वह कहानी, जो आने वाली  पीढ़ियों को रौशनी दिखाती रहेगी।

 दशरथ मांझी के परिवार की गरीबी:

दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ मांझी और पुत्री लौंगिया देवी गेहलौर में साथ रहते हैं । दशरथ मांझी के पुत्र-पुत्री को बिहार सरकार से हर माह पारिवारिक सहायता वृद्धा पेंशन के तहत 4 -4 सौ रुपए प्राप्त होते हैं। दशरथ मांझी की पुत्री के 3 लड़के और एक पुत्री दैनिक श्रमिक हैं। पिछले माह लोंगिया देवी के पोते की दुर्घटना में हाथ-पाँव टूटने के बाद इलाज के लिए पैसों की आफत राष्ट्रीय खबर बनी थी तो मुम्बई से फ़िल्मी स्टार सोनू सूद ने उनके परिवार की गरीबी समाप्त करने की घोषणा की थी।

अब तक दशरथ मांझी के परिवार के पास सूद की ओर से चावल, आटा, दाल के अलावा बड़ी सहायता नहीं पहुंची है। परिवारजन बताते हैं कि सूद ने मुम्बई से वीडियो कांफ्रेंसिंग से बात करते हुए रहने के लिए कुछ कमरे बनवाने और पर्याप्त आर्थिक सहायता का आश्वासन दिया था। परिवारजन इन्तजार कर रहे हैं कि मजदूरों की सहायता के लिए यश कमाने वाले सोनू सूद जरूर उनके परिवार के लिए मसीहा साबित होंगे।

दशरथ मांझी की पोती अंशु इंटर पास हैं और दामाद मिथुन मांझी बीए पास हैं। अंशु आंगनवाड़ी सेविका के रूप में कार्य करते हुए 4400 रुपए हर माह कमा रही हैं। दशरथ मांझी के पुत्र-पुत्री के संयुक्त परिवार में पोती और पोती के पति शिक्षित हैं तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन्हें तत्काल सरकारी नौकरी उपलब्ध कराकर  परिवार को बदहाली से बचा सकते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तब मीडिया में काफी चर्चित हुए थे ,जब दशरथ मांझी को उन्होंने ससम्मान अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया था।

राज्य सरकार की ओर से दशरथ मांझी के परिवार को दी गई 5 एकड़ भूमि में मात्र 1 एकड़ जमीन कृषि योग्य उपजाऊ है। परिवारजन केतन मेहता की तरफ भी उम्मीद लगाए हैं क्योंकि उन्होंने फिल्म की रायल्टी के रूप में माउन्टेन-मैन के परिवार को एक लाख रुपए मात्र दिए थे। भागीरथ मांझी बताते हैं कि मीडिया में यह खबर आई थी कि फिल्म के पूरे बिजनेस का 2 फीसदी उनके परिवार को रायल्टी के रूप में उपलब्ध कराया जाएगा।

अगर ऐसा सच है तो मांझी परिवार को फिल्म के कुल 18 करोड़ के बिजनेस का 2 फीसदी  36 लाख रुपए प्राप्त होने चाहिए। दशरथ मांझी को प्राण-प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले प्रसिद्ध फिल्म निदेशक केतन मेहता और आमिर खान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए हम मांझी परिवार का सन्देश उन तक जरूर पहुंचाएंगे। मुमकिन है कि भारत की गर्वीली गरीबी के शान दशरथ मांझी के परिवार की बदहाली को बिहार सरकार चुनाव से पूर्व जरूर ख़त्म करना चाहेगी। दशरथ मांझी के कृत्य को पर्यटन का सौन्दर्य प्रदान करना गौरव की बात है पर दशरथ मांझी के परिजनों की बदहाली शान और गौरव के भाल पर एक बदनुमे धब्बे की तरह प्रतीत होता है। गरीबी, श्रम और पसीने का मान हम अपने नायक के  परिनिर्वाण दिवस से ग्रहण करते हैं।

(पुष्पराज यायावर पत्रकार और लेखक हैं। नंदीग्राम पर लिखी गयी इनकी पुस्तक बेहद चर्चित हुई थी।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

पुस्तक समीक्षा: निष्‍ठुर समय से टकराती औरतों की संघर्षगाथा दर्शाता कहानी संग्रह

शोभा सिंह का कहानी संग्रह, 'चाकू समय में हथेलियां', विविध समाजिक मुद्दों पर केंद्रित है, जैसे पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता और स्त्री संघर्ष। भारतीय समाज के विभिन्न तबकों से उठाए गए पात्र महिला अस्तित्व और स्वाभिमान की कहानियां बयान करते हैं। इस संग्रह में अन्याय और संघर्ष को दर्शाने वाली चौदह कहानियां सम्मिलित हैं।

Related Articles

पुस्तक समीक्षा: निष्‍ठुर समय से टकराती औरतों की संघर्षगाथा दर्शाता कहानी संग्रह

शोभा सिंह का कहानी संग्रह, 'चाकू समय में हथेलियां', विविध समाजिक मुद्दों पर केंद्रित है, जैसे पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता और स्त्री संघर्ष। भारतीय समाज के विभिन्न तबकों से उठाए गए पात्र महिला अस्तित्व और स्वाभिमान की कहानियां बयान करते हैं। इस संग्रह में अन्याय और संघर्ष को दर्शाने वाली चौदह कहानियां सम्मिलित हैं।