दिल्‍ली चुनाव: ‘इस बार हम महिलाएं होंगी किंगमेकर’, देख लेना

Estimated read time 2 min read

इन दिनों दिल्‍ली में चुनावी सरगर्मियों के बीच कड़ाके की सर्दी पड़ रही है। हमारी बस्‍ती के मुहाने पर जहां से चार छोटी-छोटी सड़कें चार दिशाओं में जा रही हैं, लोग इसे मजदूर चौक, लेबर चौक या जनता चौक कहते हैं, वहीं सुबह के समय कुछ महिला एवं पुरुष मजदूर कहीं से लकड़‍ियां जुगाड़ कर तसला में रख उन्‍हें जलाकर हाथ सेंकते हैं।

और ठेकेदार का इंतजार करते हैं कि वह आए और उन्‍हें दिहाड़ी मिल जाए। मेरी तरह पार्क में सुबह की सैर कर लौटते हुए कुछ लोग भी आग की लपटों को देख ठिठुरते हाथ सेंकने का लोभ संवरण नहीं कर पाते और अलाव तापते मजदूरों में शामिल हो जाते हैं।

मैं जब शामिल हुआ तो अलाव पर चर्चा, मेरा मतलब है दिल्‍ली चुनाव पर चर्चा चल रही थी। लोग हाल ही में दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को याद करते हुए दिल्‍ली चुनाव पर आ गए थे।

चालीस पैंतालीस साल के एक मजदूर कह रहे थे कि मनमोहन सिंह के शासनकाल में मनरेगा योजना गांव के लोगों के लिए बनी थी जिसमें 100 दिन का रोजगार मिलता है। ऐसी ही योजना शहर के लिए भी हो जिसमें साल में कम से कम 300 दिन रोजगार की गारंटी हो और सरकार द्वारा निर्धारित न्‍यूनतम मजदूरी मिले।

और मजदूर की उम्र जब 60 साल हो जाए तो उसके लिए इतनी पेंशन मिले कि आराम से उसका गुजारा हो सके। दिल्‍ली में कोई राजनीतिक पार्टी किसी ऐसी योजना की घोषणा क्‍यों नहीं कर रही है। यदि कोई पार्टी ऐसा करे तो मेरा और मेरे जैसे हजारों मजदूरों का वोट उसे ही मिलेगा।”

”वैसे केंद्र सरकार हम असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए ई-श्रम कार्ड तो बनाती है जिसमें पात्र मजदूरों को 1000 रुपये महीना मिलता है।” एक सज्‍जन बोले।

”लेकिन क्‍या एक हजार रुपये से किसी का महीने का खर्च चल जाएगा। ऐसे तो सरकार गरीबों को पांच किलो अनाज देकर उन पर अहसान करती है और दावा करती है कि वह देश के अस्‍सी करोड़ लोगों का पेट भर रही है।

अरे भई हम गरीबों को पांच किलो मुफ्त राशन मत दो। हमें रोजगार दो ताकि हम अपने जीवन स्‍तर को सुधार सकें। सिर्फ पेट भरने से ही तो काम नहीं चलता। परिवार में शादी-विवाह है, रिश्‍तेदारियां हैं, बीमारियां है, बच्‍चों की शिक्षा है, आदि अनेक प्रकार के खर्चे होते हैं।”

”बच्‍चों की शिक्षा के लिए सरकार ने एक अच्‍छा कदम उठाया है कि ईडब्‍ल्‍यूएस के लिए जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्‍चे भी प्राईवेट स्‍कूलों में पढ़ सकते हैं उनकी आय सीमा एक लाख से बढ़ाकर पांच लाख कर दी है। इससे ईडब्‍ल्‍यूएस में पढ़ने वाले बच्‍चों का दायरा और बढ़ेगा।”

”मनमोहन सिंह के शासनकाल में ही राईट टू एजूकेशन एक्‍ट (RTE Act 2009) आया था। उसमें यह सुविधा दी गई थी कि आर्थिक रूप से कमजोर आय वर्ग के बच्‍चे भी आठवीं तक प्राईवेट स्‍कूलों में शिक्षा प्राप्‍त कर सकते हैं। उनके लिए 25% सीटें आरक्षित की गईं हैं।

पर इसकी एक खामी यह है कि आठवीं के बाद बच्‍चे के माता-पिता प्राईवेट स्‍कूलों द्वारा ली जाने वाली मोटी फीस कहां से भरेंगे। ऐसे में उन बच्‍चों की आगे की पढ़ाई का क्‍या होगा। मेरे हिसाब से यह प्रावधान 12वीं कक्षा तक होना चाहिए।

इसकी घोषणा भी कोई राजनीतिक पार्टी नहीं कर रही है। यदि ऐसा हो तो हमें फीस के बोझ से मुक्ति मिलेगी। हम जैसे कम आय वाले लोगों का वोट तो निश्चित रूप से ऐसे ही राजनीतिक दल को जाएगा।”

”आप मुद्दों की बात कर रहे हैं। पर भाई, आजकल चुनाव मुद्दों पर नहीं बल्कि दूसरी पार्टी की कमियां गिना कर मतदाता को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए राजनीतिक दल साम दाम दंड भेद सब अपनाते हैं और मतदाता को भ्रमित किया जाता है।

अब देखिए चुनाव प्रचार में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है। चुनाव नजदीक आ गए हैं तो पोस्‍टर छा गए हैं। आप बीजेपी के पोस्‍टर और होर्डिंग देखिए। उन्‍होंने प्रदूषण को ऐसा मुद्दा बनाया है कि दिल्‍ली वाले मानो गैस चैंबर में जी रहे हैं। हालांकि दिल्‍ली में वायु प्रदूषण की समस्‍या है पर उनके पोस्‍टर ऐसे हैं जैसे शहर में बिजली है ही नहीं।

दिन निकलता ही नहीं। रात ही रात है। दिल्‍ली अंधेरे में डूबी है। भूतिया माहौल है। दिल्‍लीवासी जैसे भूत बन गए हैं और बड़ी-बड़ी आंखें निकाल कर पूछ रहे हैं- ‘क्‍या यही है मेरी दिल्‍ली? अब नहीं सहेंगे, बदल के रहेंगे।’ ऐसे पोस्‍टर आपको दिल्‍ली में जगह-जगह देखने को मिल जाएंगे।”

”आप सही कह रहे हैं राजनीतिक दल आजकल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्‍यारोप लगाकर ही जनता के वोट हथियाना चाहते हैं। भाजपा और कांग्रेस आम आदमी पार्टी (आप) की आलोचना कर रही है। कांग्रेस न्‍याय यात्रा निकाल रही है। जैसे उसके पास जादू की छड़ी है। सबको न्‍याय दिला देगी।’’

”पर जब से संसद में अमित शाह ने आंबेडकर पर अपमानजनक टिप्‍पणी की है तब से कांग्रेस और आप पार्टी भाजपा को घेर रही हैं। इसका असर चुनाव पर देखने को मिलेगा।”

”मगर आप पार्टी भी कम दिखावा नहीं करती। आजकल वह दलित के वोट पाने के लिए आंबेडकर को अपना भगवान बता रही है। अरविंद केजरीवाल वर्चुअल आंबेडकर से आर्शीवाद ले रहे हैं।

पर सब जानते हैं कि इन्‍होंने दलित मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को बाबा साहेब की बाईस प्रतिज्ञाएं लेने पर न केवल मंत्री पद से बल्कि आम आदमी पार्टी से इस्‍तीफा देने के लिए विवश कर दिया था।”

”अरे भाई आजकल चुनाव जीतने का एक नया ट्रेंड चल पड़ा है। मतदाताओं को आर्थिक सहायता दो और वोट लो। मध्‍य प्रदेश में लाडली बहना का तो महाराष्‍ट्र में लाड़की बहन योजना का जादू चल गया। अब देखिए दिल्‍ली में भी भाजपा के प्रवेश वर्मा महिलाओं को ग्‍यारह-ग्‍यारह सौ रुपयों के लिफाफे बांटते देखे गए।

दूसरी ओर, केजरीवाल भी महिला सम्‍मान योजना के तहत 2100 रुपये देने का वादा कर रहे हैं। इससे तो लगता है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ही फिर आएगी।”

”भाई साहब, बीजेपी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भाजपा हर तरह के हथकंडे अपनाने में माहिर है। देखिएगा ऐन टैम पर वह कौन सा तुरुप का पत्ता चल दे और बाजी मार ले।”

अब तक पुरुषों में चर्चा चल रही थी। अब महिला मजदूरों ने भी इसमें भाग लेना शुरु किया। एक महिला ने तो साफ कहा कि जो पार्टी हमारे खाते में सबसे ज्‍यादा रुपये जमा कराने का वादा करेगी हम तो उसे ही वोट देंगे चाहे वह फूल हो, हाथ हो या झाड़ू।”

मेरे एक मित्र की पत्‍नी जो पेशे से शिक्षिका हैं वह मॉर्निंग वाक से लौटते हुए वहां से गुजर रहीं थीं। मैंने उनसे पूछ लिया-”भाभी जी, दिल्‍ली चुनाव में आप महिला मतदाताओं की क्‍या भूमिका देखती हैं?”

उन्‍होंने सामान्‍य भाव से कहा- ”इस बार हम महिलाएं ही किंग मेकर बनेंगी, देख लेना।” यह कहती हुईं वे अपने घर की ओर चली गईं।

मैं उनकी बात पर विचार करने लगा- ‘भाभीजी, सही कह रही हैं क्‍या?”

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author