देश के हजारों कार्यकर्ताओं बच्चों की मां, मौसी और बड़ी दीदी की तरह 91 साल की राधा बहन का नाम 2025 के पद्म पुरस्कारों की सूची में देखकर कुछ अचरज नहीं हुआ। राधा बहन के नाम से विख्यात राधा दीदी (मूल नाम राधा भट्ट) का नाम पद्मश्री की सूची में देखकर गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बहुत ज़्यादा ख़ुशी का इज़हार नहीं किया। न वो यह समझते हैं कि इसे ख़ास मानकर इसके लिए कोई कार्यक्रम करने की ज़रूरत है।
जैसा कि राधा दीदी ने एक अखबार के संवाददाता से बातचीत में यह बताया कि उन्होंने इसके लिए कभी प्रयास भी किया और यह भी समझाना ज़रूरी है कि उनके किसी साथी/साथियों ने भी इसके लिए कोई प्रयास नहीं किए होंगे।
राधा दीदी पिछले 6-7 दशकों से देश और विदेश, (डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, कनाडा, मैक्सिको, अमेरिका) आदि अनेक देशों में कभी विद्यार्थी, शिक्षिका, अध्येता, एक्टिविस्ट रचनात्मक कार्यकत्री, मार्गदर्शक के रूप में काम कर चुकी हैं। 1966 से 89 तक लक्ष्मी आश्रम (कस्तूरबा महिला उत्थान मण्डल) की सचिव रहीं।
उत्तराखण्ड, हिमालय और शेष देश में लगातार यात्राएं और जनान्दोलनों में शिरकत की। देश और विदेश में गांधी विचार, अहिंसा व रचनात्मक कार्यों, के साथ पर्यावरण, हिमालय, नयी तालीम, तिब्बत और शराब बंदी, रोजगार, विनाशकारी हाइड्रो पावर परियोजनाओं का विरोध, हिमालय गंगा और नदी बचाओ जनान्दोलनों पदयात्राओं, के साथ मानव तथा स्त्री अधिकार और ग्रामीण उद्योग, खेती किसानी और बागवानी से महिला सशक्तिकरण पर लगातार काम करती, बोलती-लिखती रहीं हैं। उन्होंने देश में विभिन्न वर्गों और धर्मों के बीच विवाद की स्थिति में शान्ति प्रयासों का भी काम किया।
1980 में कोपेहेगन, डेनमार्क में अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन, 1982 में अमेरिका में गांधी विचार, महिला एवं सामाजिक विकास सम्मेलन में भाग लिया।
1984 में सेंट जेवियर्स विश्वविद्यालय कनाडा में ‘विकास और लोगों की पहल’ कार्यक्रम में भाग लिया। 1987 में रवालपिंडी, पाकिस्तान में ‘दक्षिण एशिया ग्रामीण विकास सम्मेलन’ में भाग लिया और इन सभाओं को संबोधित भी किया।
एक बार अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मुझसे बातचीत में उन्होंने कहा कि हर दिन महिला का, हर दिन पुरुष का और हर दिन इंसानियत का। ‘अलग से महिलाओं के लिए दिवस या दिन मनाने की कोई ज़रूरत नहीं है’।
ये धरती, ये दुनिया एक है और सभी ईश्वर की कृति और मख़्लूक हैं। दुनिया को एक रहना चाहिए। पुरुष महिला सहित सभी तरह के विभाजन गैर ज़रूरी हैं। इंसान-इंसान के बीच फर्क और विभेद इस समय सबसे बड़ी समस्या है। धर्म, जाति और लैंगिक रूप से हर तरह का विभेद मिटना चाहिए। इसको रद्द किया जाना चाहिए।
उनका कहना था कि सभी को यह समझना ज़रूरी है कि इस संसार में महिलाओं की भूमिका सृजन और पोषण की है। सृजक और पोषक के रूप महिलाओं को समाज में महत्व मिलना चाहिए।
पूरी दुनिया में महिलाओं की विशेषताओं को समाज और मानवता के लिए आवश्यक बताते हुए उनका कहना है कि पूरी दुनिया में करूणा, रचनात्मकता, दया, प्रेम मेघा सहनशीलता, मानवमात्र का सम्मान व सहिष्णुता और शान्ति के भाव की जय होनी चाहिए, इसी से इंसानियत बचेगी और चलेगी।
राधा बहन ने 1988 में स्वीडन में दो महीने तक 30 बैठकों को संबोधित किया। पर्यावरण, अहिंसा, महिला सशक्तीकरण पर चर्चा की। 1975 में डनेमार्क में अहिंसा पर तीन महीने का व्याख्यान दिया। 1998 में बीजिंग, चीन में विश्व महिला सम्मेलन में भाग लिया।
उत्तराखंड में लक्ष्मी आश्रम, हिमालय सेवा संघ, और देश की शीर्ष गांधी वादी संस्थानों जैसे, सर्व सेवा संघ, गांधी स्मारक निधि, हिमालय सेवा संघ, कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट इंदौर, हिमवंती (नेपाल), महिला हाट, कस्तूरबा मेडीकल कॉलेज, गांधी शान्ति प्रतिष्ठान, गुजरात विद्यापीठ जैसी संस्थाओं की अध्यक्ष/निदेशक रहकर महत्वपूर्ण कार्य किए। राधा बहन ने ‘हिमालय की बेटी’ किताब भी लिखी है। जिसे जर्मन और डेनिस भाषा में भी प्रकाशित किया गया है।
उन्हें अनेक पुरस्कारों जैसे जमनालाल पुरस्कार, बाल सम्मान, इंदिरा प्रियदर्शनी पर्यावरण, गौदावरी गौरव आदि पुरस्कार आदि से भी सम्मानित किया गया है।
राधा दीदी का नाम एक बार नोबल पुरस्कार के लिए मनोनीत होने वाली सौ महिलाओं की सूची में शामिल हो चुका था।
स्वयं राधा दीदी किसी भी तरह के पुरस्कारों से ऊपर उठ चुकी हैं। 91 साल की राधा बहन हमारे बीच एक गरिमामयी प्रेरणा की तरह उपस्थिति हैं ।
इसलिए उनको पद्मश्री मिलने को हम इसे बड़े निरपेक्ष ढंग से ले रहे हैं। हां इससे पद्मश्री की गरिमा ज़रूर बढ़ेगी। वैसे बधाई देने की रस्म है तो पद्मश्री के लिए प्रिय राधा दीदी को तहेदिल से मुबारकबाद।
(इस्लाम हुसैन गांधीवादी कार्यकर्ता हैं और काठगोदाम, नैनीताल में रहते हैं)
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