गत वर्षों में भारत में निर्मित अनेक फिल्मों में पत्रकारों की दुनिया को दिखाया गया है। इनमें से कुछ फिल्में पूरी तरह से पत्रकारिता के इर्द-गिर्द घूमती हैं, कुछ फिल्मों में पत्रकार अहम किरदार निभाते नजर आते हैं। 1983 में आयी ‘जाने भी दो यारो’ की गिनती क्लासिक फिल्मों में होती है। इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह और रवि बासवानी ने फोटो जर्नलिस्ट का किरदार निभाया था। ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी में’ शाहरूख खान और जूही चावला रिपोर्टर के किरदार में नजर आए। वर्ष 2001 में आयी फिल्म ‘नायक’, जिसमें अनिल कपूर एक टीवी पत्रकार होते हैं और एक इंटरव्यू के बाद राज्य के मुख्यमंत्री बन जाते हैं। यह एक तमिल फिल्म की रीमेक थी।
साल 2005 में आयी ‘पेज 3′ फिल्म में एक पत्रकार के नजरिए से मुबंई के मनोरंजन जगत को दिखाया गया है। वहीं, 2011 में आयी फिल्म ‘नो वन किल्ड जेसिका’ में रानी मुखर्जी एक पत्रकार की भूमिका में नजर आयी हैं। ‘धमाका’ फिल्म में कार्तिक आर्यन ने टीवी एंकर का किरदार निभाया था। 2022 में आयी फिल्म ‘जलसा’ में विद्या बालन एक वरिष्ठ पत्रकार बनी हैं। ‘द ब्रोकन न्यूज’ वेब सीरीज में मीडिया चैनलों की आपसी लड़ाई दिखाई गई है। इसके अलावा, हाल ही में आयी ‘द साबरमती रिपोर्ट’ में भी पत्रकारों को फिल्म का मुख्य किरदार बनाया गया है।
हाल ही में 2025 की शुरुआत में, छत्तीसगढ़ में एक स्थानीय पत्रकार की हत्या कर दी गई। बस्तर क्षेत्र के बीजापुर जिले में हुई इस हत्या की घटना बेहद डराने वाली है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 32 वर्षीय मुकेश चंद्रकार ने एक सड़क निर्माण में हुए भ्रष्टाचार को उजागर किया था, जिसके बाद उनकी हत्या कर दी गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि उनके सिर में 15 फ्रैक्चर आए थे, गर्दन टूट गई थी और लिवर के चार टुकड़े हो गए थे। यह घटना भारत में पत्रकारिता करने के जोखिम को दिखाती है।
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 159वें स्थान पर आता है। यहां हर साल कई पत्रकार अपनी जान गंवा देते हैं। कर्नाटक में घटी एक घटना से विचलित होकर निर्देशक कनु बहल को ‘डिस्पैच’ फिल्म बनाने का ख्याल आया, जो पिछले वर्ष यानी दिसंबर 2024 में रिलीज हुई। डायरेक्टर कनु बहल ने ऐसी ही एक घटना के बाद डिस्पैच फिल्म बनाने के बारे में सोचा था। उनकी यह फिल्म हाल ही में जर्मनी में भारत सरकार द्वारा आयोजित करवाए गए इंडियन फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई। इस फिल्म में एक ऐसे पत्रकार की कहानी दिखाई गई है जिसमें व्यक्तिगत तौर पर बहुत कमियां हैं लेकिन वह अपने काम के लिए बहुत जुनूनी है। करोड़ों रुपए के एक घोटाले की तह तक जाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है।
फिल्म में पत्रकार का किरदार मनोज बाजपेयी ने निभाया है। उनके अलावा, शाहना गोस्वामी, अर्चिता अग्रवाल और रिया सेन की भी अहम भूमिका है। कनु बहल ने अपनी फिल्म के बारे में बताया है कि डिस्पैच फिल्म बनाने का विचार सबसे पहले साल 2017 में आया था, जब पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या हुई। उस समय मैंने और इस फिल्म में मेरी सह-लेखक ईशानी बनर्जी ने इस बारे में बात करना शुरू किया। हमें ऐसा महसूस हुआ कि भारत में बहुत बड़ा कुछ बदल रहा है। कुछ अलग हो रहा है लेकिन पूरा समझ में नहीं आ रहा था। फिर हम धीरे-धीरे खोजने लगे कि हम इस घटना की वजह से इतना ज्यादा परेशान क्यों हो रहे हैं।
काम करते वक्त हमें समझ आया कि हमें पत्रकारिता की दुनिया के बारे में ज्यादा पता नहीं है तो हमें रिसर्च करनी होगी। रिसर्च के दौरान, पत्रकारिता से जुड़े जिन लोगों से हमने बात की, उनमें से ज्यादातर ने कहा कि अब पत्रकारिता की दुनिया इतनी धुंधली हो चुकी है कि कौन, कहां, क्या और कब कर रहा है, वो अब पता चलना भी संभव नहीं है। तो ये हमारे लिए बहुत दिलचस्प बात बन गई। पता चला हमारे यहाँ पत्रकारिता पर बनी लगभग सारी फिल्में एक हीरो के बारे में होती हैं। हीरो एक स्टोरी पर काम करता है और सब हल कर देता है लेकिन जिन बातों का पता नहीं लगाया जा सकता, उनके बारे में कोई बात नहीं करता। तो ये हमारे लिए एक शुरूआती बिंदु बन गया और हमने इसी पर आगे काम किया।
मेरे लिए एक बड़ी प्रेरणादायक फिल्म रही है न्यू डेल्ही टाइम्स, जो मैंने एक युवा के तौर पर देखी थी। यह शशि कपूर की काफी पुरानी फिल्म है, जो बहुत दिलचस्प है। पत्रकारिता की दुनिया से जुड़ी और भी कई दिलचस्प फिल्में हैं लेकिन उनका यूनिवर्स अलग है, और उस यूनिवर्स में वो फिल्में अपने किरदारों को अलग-अलग तरह से और अलग-अलग निगाह से देखती हैं। न्यू डेल्ही टाइम्स हमेशा से मुझे प्रिय रही है। उसकी कुछ-कुछ यादें थी और उसकी कुछ छवियां याद थीं और ये याद था कि जब मैंने युवा उम्र में उसे देखा था तो उसने मुझे काफी प्रभावित किया था। जब हम शुरूआत में डिस्पैच के आइडिया पर चर्चा करते थे तो मैं न्यू डेल्ही टाइम्स के बारे में काफी सोचता था।
बहरहाल, पत्रकारिता में जानलेवा खतरों पर बात करने की शुरूआत फिल्म निर्माण से हुई यह अच्छा हुआ। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स’ के मुताबिक, साल 2024 में दुनियाभर में 122 पत्रकार मारे गए थे। इनमें तीन भारतीय पत्रकार- सलमान अली खान, शिवशंकर झा और आशुतोष श्रीवास्तव भी शामिल थे। वहीं, ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ के मुताबिक, भारत में साल 2000 से 2025 के बीच 73 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गए हैं।
‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर’ स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए काम करने वाला एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है। यह हर साल वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स जारी करता है। इसका उद्देश्य अलग-अलग देशों में पत्रकारों और मीडिया को मिली आजादी के स्तर की तुलना करना है। साल 2024 में 180 देशों की इस लिस्ट में भारत 159वें नंबर पर था। पड़ोसी देश चीन, बांग्लादेश और अफगानिस्तान को भारत से भी नीचे जगह मिली थी।
(शैलेन्द्र चौहान लेखक-साहित्यकार हैं और जयपुर में रहते हैं)
+ There are no comments
Add yours