मामाजी बालेश्वर दयाल का 26 दिसंबर को 27 वां स्मृति दिवस है। 25 दिसंबर की रात मामाजी के 50 हजार से ज्यादा अनुयाई राजस्थान से 4 दिन पदयात्रा करते हुए मामाजी की समाधि पर बामनिया भील आश्रम पहुंचते हैं। कोरोना काल में भी यह संख्या कम नहीं हुई।
मामाजी के प्रति भीलों की श्रद्धा को इस तथ्य से समझा जा सकता है, कि किसी भी फसल का उपयोग आदिवासी मामाजी को चढ़ाने के बाद ही करते हैं। 250 से अधिक मंदिर आदिवासियों ने स्वयं अपने गांव में बनाये हैं। इटावा के निवाड़ी कला गांव में पैदा हुए मामाजी दो भाई और दो बहनें थीं।
मामाजी का नाम बालेश्वर दयाल दीक्षित था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम निवाड़ी कला, जिला इटावा उत्तर प्रदेश में हुई। वहीं राजकीय इंटर कॉलेज से उन्होंने इंटर पास किया। मामाजी को उनके कॉलेज के प्रोफेसर मित्रा जी ने सर्वाधिक प्रभावित किया।
मामाजी ने पहली बार इटावा में गांधी जी को देखा था तब वे रेलगाड़ी से निकल रहे थे। युवाओं ने ट्रेन रोक कर गांधीजी को 65 रुपये की थैली भेंट की तथा उनकी हैंड माइक से उनकी सभा कराई। गांधीजी के द्वारा जो अपील की जाती थी उसे अखबारों में पढ़कर मामाजी उसे लागू करते थे।
मामाजी बतलाते थे कि उनके जीवन पर जेम्स टॉड की किताब अनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान का सर्वाधिक असर हुआ था।
मामा जी को इटावा में कॉलेज के अंग्रेज प्रिंसिपल ने निष्कासित कर दिया तो वे ग्वालियर स्टेट स्थित खाचरोद, उज्जैन पहुंचे। गांधीजी ने गुरुवायूर मंदिर में दलितों का प्रवेश कराया था, उसका असर मामाजी पर पड़ा। यह वह दौर था जब दलितों को अन्नदाता आवाज लगा कर चलना पड़ता था ताकि सवर्ण रास्ते से हट जाए।
यदि एक ही रास्ते पर आमने सामने आ जाएं तब सजा भुगतना पड़ती थी। मामा जी ने गांधी जी के उपवास के समर्थन में सड़क पर सत्यनारायण कथा कराई जिसमें दलित भी शामिल हुए।
जब लोगों को मालूम हुआ कि दलितों के साथ बैठकर कथा हुई है, तब खाचरोद की कोर्ट में मामाजी के खिलाफ केस दर्ज हुआ। मामाजी के साथ जितने युवा थे उन्हें अपनी-अपनी जातियों से निकाल दिया गया।
जातियों की पंचायत ने फैसला किया कि अब उनकी शादी कभी नहीं होगी। ऐसे 67 युवाओं को निकाला गया। उन्हें लेकर मामा जी ने आंदोलन शुरू किया। मामाजी को खाचरोद में मास्टर की नौकरी से निकाल दिया गया।
इस बीच उन्हें खबर मिली कि रतलाम के पास झाबुआ रियासत में एक नौकरी खाली हुई है क्योंकि एक मास्टर जी को खादी पहनने के कारण निकाल दिया गया है। खाचरोद की नौकरी में 40 रुपये मिलते थे, थांदला में 60 रुपये मिलने लगे।
थांदला में वे अपनी पत्नी के साथ रहने लगे। इस बीच वहां अकाल पड़ा। मामाजी ने अपील निकाली जिसमें उन्होंने आदिवासियों को अन्नदाता कहा। जिसके लिए उन पर मुकदमा दर्ज हुआ अर्थात भीलों को अन्नदाता कहने पर मुकदमा दर्ज किया गया।
ग्वालियर स्टेट में भी किसान को अन्नदाता कहना आपत्तिजनक माना जाता था। वहां मामाजी ने शराब छुड़ाने का काम शुरू किया। 1932 से 1937 के बीच बेगार कराए जाने का विरोध करने के कारण तीन बार जेल जाना पड़ा।
झाबुआ रियासत सहित आसपास की 7 रियासतों में राजाओं द्वारा सभी काम बेगारी से कराए जाते थे मतलब मजदूरी नहीं दी जाती थी। जो लोग ईसाई हो जाते थे, उन्हें बेगारी नहीं करनी होती थी। इस कारण कई लोग बड़ी संख्या में आदिवासी इसाई बन गए और अंग्रेजी राज के समर्थक हो गए।
बेगारी करना कानून था। मध्य प्रदेश राजस्थान की तमाम रियासतों में बेगारी का कानून एक जैसा था। यानी बेगारी करने से मना करना गैर कानूनी था। मामाजी ने पहले आदिवासी बच्चों को पढ़ाया तथा झाबुआ के राजा के खिलाफ 1937 में आंदोलन चलाया, तब उन्हें रियासत से निकाल दिया गया।
उन्होंने झाबुआ की सरहद पर इंदौर स्टेट के बामनिया ग्राम में आश्रम खोला, वहां बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया। कोशिश यह भी की कि बच्चों को पढ़ाकर कार्यकर्ता बनाया जाए। उन्होंने डूंगर विद्यापीठ की स्थापना की जिसके माध्यम से उन्होंने 13 पाठशाला और दो आश्रम मतलब बोर्डिंग चलाए। डूंगर विद्यापीठ को हिंदू यूनिवर्सिटी प्रयाग ने परीक्षा का केंद्र बनाया।
बामनिया में एक गोली कांड हुआ जिसके खिलाफ 1945 दाहोद में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में मामाजी ने बैठक बुलाई। कपास और मूंगफली के कम दाम को लेकर वहां आंदोलन चला था। इस आंदोलन को कुचलने के लिए बामनिया की आस-पास की 6 रियासतों की पुलिस ने मिलकर बामनिया में गोली चलाया था।
तब आचार्यजी के साथ देसी राज्य लोक परिषद के अध्यक्ष कन्हैयालाल वैद्य भी बामनिया आए। सम्मेलन के बाद जो लोग गोली चालन में मारे गए आदिवासियों को मुआवजा भी दिया गया।
1946 में रतलाम में गोली चली तब मामाजी ने जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखकर कहा कि गोलीकांड की जांच होनी चाहिए। तब जवाहरलाल जी ने फोन पर इलाहाबाद से रतलाम स्टेट के दीवान को हटाने तथा गोलीकांड की जांच कराने का बयान जारी किया।
यह आंदोलन सबको अनाज देने को लेकर चलाया गया था। जांच में यह साबित हो गया है कि जो लोग मारे गए थे वे जुलूस में शामिल नहीं थे।
1942 में इंदौर स्टेट से मामाजी को निर्वासित कर दिया गया। आरोप मालगाड़ी को पटरी से नाले में गिराए जाने का था। जब पूरी बात मामाजी ने नेहरू जी को बताई, तब उन्हे श्रीनगर बुलाया, शेख अब्दुल्लाह ने हाउस बोट में ठहराया। इस बीच 15 अगस्त को देश आजाद हुआ तथा 17 अगस्त को मामा जी का निर्वासन खत्म हुआ और वे वापस बामनिया आ गए।
मामाजी ने 1948 में जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा कि जितने जागीरदार थे वे कांग्रेस के सदस्य बन गए हैं और वे सब आदिवासियों को लूट रहे हैं। उन्होंने साहूकारों के शोषण का मुद्दा भी उठाया तथा जागीरदारी खत्म करने के लिए भी लिखा।
1949 में फिर से चिट्ठी लिखकर जवाहरलाल नेहरू को मुद्दों का ध्यान दिलाया। मामाजी ने जब जागीरदारी खत्म कराने का आंदोलन शुरू किया था तभी उन्होंने 1948 में कांग्रेस छोड़ दी। मामाजी के आंदोलन को समर्थन देने जयप्रकाश नारायण बामनिया आए थे।
1950 में इंदौर में सोशलिस्ट पार्टी का सम्मेलन हुआ जिसमें जयप्रकाश नारायण आए थे वहां मामाजी सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बने। जागीरें समाप्त होने पर सरकार द्वारा कोई निर्णय नहीं लेने पर मामाजी ने ‘नो टैक्स कैंपेन‘ चलाया जिसके चलते लोगों ने लगान देना बंद कर दिया।
आंदोलनकारियों की मुख्य मांग थी कि जागीरदारी प्रथा समाप्त की जाए। इस पर मामाजी को गिरफ्तार कर 8 माह जेल में रखा गया। आंदोलन लगातार बढ़ता गया।
राजगोपालाचारी ने जो भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे, उन्होंने ऑर्डिनेंस निकालकर राजस्थान और मध्य भारत में जहां-जहां आंदोलन चल रहा था वहां जागीरदारी समाप्त कर दी तथा मामाजी को छोड़ दिया गया। इस तरह उन्होंने जगीरदारी प्रथा समाप्त कराने में ऐतिहासिक योगदान दिया।
1952 के चुनाव में मध्य भारत की एसेंबली के लिए मामाजी ने चार उम्मीदवार खड़े किए जिसमें एक महिला थी। यह जानकारी मिलने पर समाजवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी डॉ. राममनोहर लोहिया बहुत प्रभावित हुए। इस तरह 1952 में लोहिया से साथ घनिष्ठ संबंध बना, उधर चुनाव मैदान में कांग्रेस ने प्रचार किया कि मामाजी ने औरत को चुनाव में खड़ा करके पुरुषों की मूछें काट ली हैं।
राजस्थान के बांसवाड़ा के महाराज कांग्रेस के उम्मीदवार बने तो मामाजी ने यशोदा बहन को खड़ा किया। पंडित नेहरू हवाई जहाज से प्रचार के लिए आए लेकिन यशोदा बहन चुनाव जीत गई। मामाजी से मिलने तीन बार जयप्रकाश नारायण तथा चार बार डॉ लोहिया बामनिया आए।
बामनिया में मामाजी ने अखिल भारतीय वनवासी सम्मेलन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. राममनोहर लोहिया ने की। मामाजी यही बताते थे कि रात में डॉ. लोहिया जी ने आदिवासी पुरुष और महिलाओं का नाच देखा तथा खुद भी सबके साथ नाचे थे। डॉ. लोहिया के आमंत्रण पर मामाजी संथालियों के इलाके में बिहार गए।
1955 में जब केरल में गोली कांड हुआ उसको लेकर मामा जी ने जयप्रकाश नारायण को चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने लिखा कि 1950 में ग्वालियर में विद्यार्थियों पर जब गोली चालन हुआ जिसमें दो विद्यार्थी मारे गए थे। तब सभी पार्टियों ने एक सम्मेलन में मामा जी को जांच समिति का कन्वीनर बनाया था।
तब सोशलिस्ट पार्टी ने निर्देशित किया था कि जब तक सरकार भंग ना हो जाए तब तक जांच में भागीदारी ना करें। मामाजी ने कहा कि यह सूत्र केरल में भी अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने सूत्र दिया (मिनिस्ट्री रेजिगनेशन फर्स्ट इंक्वायरी लास्ट)।
मामाजी के बयान को लेकर 2 दिन तक विशेष सम्मेलन में चर्चा चली। बहुमत से मामाजी का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया, जिस कारण उन्होंने राष्ट्रीय समिति से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद मधु लिमये को भी निकाल दिया गया तथा पार्टी टूट गई। मामाजी सक्रिय समाजवादी रहे। सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।
उन्हें राज्यसभा सदस्य भी बनाया गया। परंतु उन्होंने बामनिया और भीलांचल को कभी नहीं छोड़ा। मामाजी ने अपने क्षेत्र को कर्जे और शराब से मुक्त कराया। सामाजिक सुधार के प्रयास आजीवन करते रहे। मामाजी जीवन के अंत तक समाजवादी अचार-विचार के अनुरूप जीवन जीते रहे। मामाजी का जीवन आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।
(डॉ. सुनीलम किसान नेता और पूर्व विधायक हैं)
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