Tuesday, March 21, 2023

सांस्कृतिक वर्चस्ववाद के ख़िलाफ़ विद्रोह है मराठी नाटक गोधड़ी, संविधान दिवस पर होगा मंचन

Janchowk
Follow us:

ज़रूर पढ़े

दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र का गौरव भारत ने अहिंसा से हासिल कर विश्व को शांति का पथ दिखलाया। सबसे श्रेष्ठ संविधान से समता, समानता के मौलिक इंसानी अधिकार से अपने नागरिकों को देश का मालिक बना सबसे बड़ा साम्यवाद का सूत्र दुनिया को दिया।

फिर भी 70 साल बाद भारत में लोकतंत्र भीड़ तंत्र बन गया। विकारी सत्ता ने अहिंसा को तिलांजलि दे हिंसा को अपना हथियार बनाया। सामाजिक सौहार्द तहस नहस कर दिया। आज भारत की हवा में भय और नफ़रत पसरी है। विकारी संघ ने संस्कृति और संस्कार की दुहाई देकर सत्ता हासिल की है। संस्कृति और संस्कार के नाम पर समाज को हिंसक, क्रूर और धर्मान्ध बना दिया।

नाटक : गोधड़ी (मराठी)

लेखक –निर्देशक : मंजुल भारद्वाज

कब : 26 नवम्बर, 2022, शनिवार ,सुबह 11.30 बजे

कहाँ : सावित्रीबाई फुले नाट्यगृह, डोम्बिवली, मुंबई!

कलाकार : अश्विनी नांदेडकर,सायली पावसकर,कोमल खामकर, प्रियंका कांबले, तुषार म्हस्के, संध्या बाविस्कर, तनिष्का लोंढे, प्रांजल गुडीले, आरोही बाविस्कर और अन्य कलाकार!

हमारी संस्कृति क्या है? क्या कभी हम सोचते हैं? संस्कृति के नाम पर हिंसा जनित त्यौहार और आडम्बर हमारे सामने परोसे जाते हैं। युद्ध ..युद्ध …युद्ध ..हिंसा विकार को पूजना क्या हमारी संस्कृति हैं ?

जी हाँ विकारी संघ जिस संस्कृति,अस्मिता,धर्म के रक्षक होने का दम्भ भरता है उसका मूल है हिंसा। इसका मूल है वर्णवाद ! वर्णवाद है भारत की संस्कृति जो शोषण,असमानता,अन्याय और हिंसा से चलती है। वर्णवाद इतना ज़हरीला है कि मनुष्य को मनुष्य नहीं समझता। पशु को माता बनाकर पूजता है और मनुष्य को अछूत समझता है। वर्णवाद वर्चस्ववाद से आत्म कुंठित अप संस्कृति को पैदा करता है जो मानवता के नाम पर कलंक है।

भारत की आत्मा हैं गाँव। भारत की आत्मा में वर्णवाद का दीमक लगा है। पूरा गाँव वर्णवाद को पूजता है। कभी गाँव को गौर से देखिये आपको वर्णवाद के शोषण की चीत्कार सुनाई देगी। 70 साल में संविधान सम्मत भारत के सपने को साकार नहीं होने दिया वर्णवाद ने।

संविधान सम्मत भारत बनाने के लिए भारत के गाँव से वर्णवाद का खात्मा अनिवार्य है। नाटक गोधडी वर्णवादी संस्कृति के खिलाफ विद्रोह है। नाटक गोधड़ी भारत के गाँव को वर्णवाद से मुक्त कराने का प्रण है। नाटक गोधडी समता का अलख है, मानवीय ऊष्मा है। हिंसा के विरुद्ध अहिंसा का आलोक है। गोधडी भारतीय संस्कृति का आत्मशोध है।

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest News

Kisan Mahapanchayat: मांग नहीं मानी तो फिर से होगा किसान आंदोलन, 30 अप्रैल को मोर्चे की बैठक

नई दिल्ली। मोदी सरकार द्वारा किसानों के साथ किए गए वायदे पूरे न होते देख सोमवार को एक बार...

सम्बंधित ख़बरें