Thursday, April 18, 2024

प्रवासी मजदूरों के लिए फरिश्ता बन गए हैं 80 वर्षीय मुजीबुल्लाह

इंडियन एक्सप्रेस में कल फोटो के साथ एक खबर छपी थी कि एक 80 वर्षीय कुली ‘मुजीबुल्लाह’ चारबाग-लखनऊ रेलवे स्टेशन पर बिना पैसे लिए प्रवासी मजदूरों का सामान ढो रहे हैं।

मैं और डेजी प्रवासियों के बीच कुछ राहत वितरण के लिए गए थे तो नजरें स्टेशन पर उन्हें तलाशती रहीं और “जहां चाह वहां राह” की तर्ज पर हमारी उनसे मुलाकात हो ही गई। उस समय वे एक ठेले पर सामान लेकर बाहर निकल रहे थे। ‘भैय्या पैसा नहीं चाहिए ?’.. ‘तुम सब खुद इतनी तकलीफ़ में हो।’

हमें लग रहा था कि हम किसी फ़रिश्ते से मिल रहे हैं । 1970 से वे चारबाग लखनऊ स्टेशन पर कुली का काम कर रहे हैं। अपने पेशे पर इतना गर्व तो कम ही देखने को मिलता है। गुलजार नगर अपनी बेटी के साथ रहते हैं और 6 किमी पैदल चलकर स्टेशन आते हैं मजदूरों की मदद के लिए। उम्र फिर से सुन लीजिए- 80 साल, लेकिन उनका कहना था कि इससे ज्यादा ही है। जब चारबाग स्टेशन पर कोई कुली नहीं दिख रहे हैं तो मुजीबुल्लाह केवल मदद करने स्टेशन आते हैं। केवल इतना ही नहीं..…जब उन्होंने हमसे बात करनी शुरू की तो लगा कि हम किसी सूफी संत से मिल रहे हैं।
वो सूफी का कौल हो, या पंडित का ज्ञान
जितनी बीती आप पर बस उतना ही जान।

कबीर के दोहे सुनाते वे कई बार फक्कड़ संत लगे। जीवन का ऐसा खूबसूरत दर्शन उस मामूली से दिख रहे इंसान ने बताया कि बरबस ही सलाम निकल जाये। कुरान-गीता का दर्शन उन्होंने पांच मिनट में समझा दिया जो उनके अनुसार एक इंसान का दूसरे इंसान से बस प्यार है। आठवीं कक्षा पास इस फ़रिश्ते के लिए ही शायद कबीर कह गये थे :
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।

(मधुर गर्ग की रिपोर्ट। फेसबुक से साभार।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

स्मृति शेष : जन कलाकार बलराज साहनी

अपनी लाजवाब अदाकारी और समाजी—सियासी सरोकारों के लिए जाने—पहचाने जाने वाले बलराज साहनी सांस्कृतिक...

Related Articles

स्मृति शेष : जन कलाकार बलराज साहनी

अपनी लाजवाब अदाकारी और समाजी—सियासी सरोकारों के लिए जाने—पहचाने जाने वाले बलराज साहनी सांस्कृतिक...