संवाद: पितृसत्ता और धर्म स्त्री के समक्ष शाश्वत चुनौतियां

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इंदौर। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की स्वतंत्रता और समाज में भागीदारी के अवसरों पर देश-विदेश में कई कार्यक्रम हुए। इसी कड़ी में इंदौर के हिन्दी साहित्य समिति सभागृह में “स्त्री के समक्ष शाश्वत चुनौतियां” विषय पर एक संवाद का आयोजन हुआ।

इस संवाद में चर्चित लेखिका डॉ. अमिता नीरव ने कहा कि वैज्ञानिक नज़रिये से महिलाएं पुरुषों से कमतर नहीं बल्कि कई मामलों में उनसे बेहतर होती हैं। मानव सभ्यता का ज्ञात इतिहास दस हज़ार सालों का है, जो बताता है कि वैश्वीकरण की शुरुआत में जब बस्तियां बसाने और स्थायी रूप से रहने की शुरुआत हुई तो संसाधनों पर कब्जे के लिए युद्ध की शुरुआत हुई और युद्ध में विजय के लिए अधिक जनसंख्या की जरूरत के चलते स्त्रियों को लगातार केवल प्रजनन हेतु मजबूर किया गया।

यह सिलसिला लगभग दो सौ वर्ष पूर्व तक जारी रहा, मगर लगातार दमित होने बावजूद कोई बड़ा विद्रोह देखने में नहीं आता। अपने चर्चित उपन्यास माधवी के अंशों का वाचन करते हुए उन्होंने कहा कि दासत्व भी दीर्घकाल तक रहने पर व्यसन हो जाता है। यदि चेतना को स्वतन्त्रता की तृष्णा न हो तो परतंत्रता सुविधाजनक लगती है। स्त्री मुक्ति के प्रयास प्लूटो और रोमन काल में भी हुए मगर स्त्री अधिकारों के प्रति चेतना की शुरुआत उन्नीसवीं सदी में स्वातंत्र्य आंदोलनों के दौरान ही हुई। आज भी स्त्री के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पितृसत्ता और बाज़ार की सत्ता है।

पितृसत्ता शोषक है और बाज़ार सत्ता उसका दोहन कर रही है और उसे लगातार वस्तु के रूप में पेश कर रही है। आज धर्म भी दुनिया में कहीं भी स्त्री के पक्ष में नहीं खड़ा है। धर्म जब संस्थागत रूप अख़्तियार कर लेता है तो उस पर काबिज पुरुष ही उसका इस्तेमाल स्त्री के विरोध में करते हैं। धर्म भी महिलाओं के कंधे पर ही सवार होता है और उन्हीं का शोषण करता है। देश में बाबाओं का फलता फूलता कारोबार हमारे सामने है। धर्म भी स्त्री के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। राजनीतिक रूप में स्त्रियों के समक्ष एक अन्य चुनौती सत्ता के किरदार में बदलाव की है। सत्ता की प्रकृति क्रूर होती है और स्त्री की सबसे बड़ी ताकत उसका स्त्री होना, उसकी संवेदनाएं हैं। इन दोनों में सामंजस्य एक चुनौती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संजू कुमारी ने स्त्री का संघर्ष उस सोच से है जो उसको कमजोर या कमतर समझती है। शिक्षा आज भी स्त्रियों के लिए बड़ी चुनौती है। हम बैंक अधिकारी, कर्मचारी समाज के उस तबके से हैं जो तुल्नात्मक रूप से सक्षम है हमें यह ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए की हम उन महिलाओं को शिक्षित होने में सहयोग करें जिनको जरूरत है।

विषय प्रवर्तन करते हुए अरविंद पोरवाल ने कहा कि महिला दिवस मनाने कि शुरुआत भी 1908 में न्यूयार्क में गारमेंट उद्योग में कार्यरत महिला श्रमिकों की अपनी सेवा शर्तों में सुधार को लेकर की गई हड़ताल के सम्मान स्वरूप हुई थी और फिर यह सिलसिला वोट के अधिकार, सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्तियों के अधिकार के लिए और नौकरी और व्यावसायिक प्रशिक्षणों में भेदभाव के विरोध के साथ ही विश्व युद्ध के दौरान शांति के प्रयासों के पक्ष में आंदोलनों को रूप में चलता रहा।

एमपीबीओए लैंगिक समानता के लिए प्रातिबद्ध है और बतौर संगठन महिला साथियों के संवैधानिक अधिकारों, लंबे संघर्षों से प्राप्त अधिकारों के रक्षण और उनमें सुधार के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है। उनने कहा कि हमारी सामाजिक ज़िम्मेदारी भी है औ एक बेहतर आर्थिक, सामाजिक स्थिति में होने के चलते हमें असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के अधिकारों के लिए भी प्रयासरत रहना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एमपी बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन द्वारा “स्त्री के समक्ष शाश्वत चुनौतियां” विषय पर संवाद का आयोजन हिन्दी साहित्य समिति सभागृह में किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्तव्य चर्चित लेखिका डॉ.अमिता नीरव ने दिया एवं अध्यक्षता बैंक ऑफ महाराष्ट्र की सहायक महाप्रबंधक संजू कुमारी ने की। स्वागत एवं विषय प्रवर्तन अरविंद पोरवाल ने किया एवं आभार प्रदर्शन पीयूष जैन ने किया। संवाद में बड़ी संख्या में महिला कर्मचारियों, अधिकारियों ने अपने बात रखी। इस अवसर पर दोनों अतिथियों सहित उपस्थित सभी महिला सदस्यों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया गया।

(अरविंद पोरवाल एमपी बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के महासचिव हैं।)

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