Tuesday, March 19, 2024

लोकतंत्र बचाने के संकल्प के साथ वैखरी विचारोत्सव संपन्न

नई दिल्ली। राजधानी के सुरजीत भवन में दो दिनों तक युवाओं और बुद्धिजीवियों का मेला लगा रहा। शनिवार यानि 26 मार्च को वैखरी विचारोत्सव का दूसरा दिन था। जिसमें साहित्य, राजनीति, सिनेमा, मीडिया एवं जेंडर के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों ने जहां अपनी समस्याओं को रखा वहीं देश की वर्तमान राजनीति पर भी चिंता जताई।

वैखरी विचारोत्सव में वक्ताओं ने कहा कि इस समय सत्तारूढ़ दल देश के लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर सीधा हमला कर रहा है। महिलाओं, आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों के साथ विपक्षी दलों को भी हाशिए पर धकेलने की कोशिश हो रही है। देश में एक उन्माद का माहौल बनाया जा रहा है। बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों और फिल्मकारों ने देश के लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बचाने के लिए राजनीतिक दलों से जनता के साथ जुड़कर सक्रिय हस्तक्षेप करने की अपील की।

वैखरी विचारोत्सव के संयोजक अशोक कुमार पाण्डेय ने कहा कि यह साहित्य, राजनीति, सिनेमा, मीडिया एवं जेंडर पर काम करने वाली शख्सियतों को एक मंच पर लाने की पहल है, जिसमें व्याख्यान, पैनल डिस्कशन, सम्मान समारोह, हिन्दी-उर्दू कविता पाठ एवं क़िस्सागोई जैसे कार्यक्रम हुए।

पहले सत्र में आरक्षण और जातिगत जनगणना पर गहन और गंभीर चर्चा हुई जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मण यादव, प्रो. रतन लाल समेत कई विद्वानों अपने विचार व्यक्त किए। वक्ताओं ने कहा कि सामाजिक न्याय का तकाजा यह कहता है कि देश में कितने संसाधन किस समूह के पास हैं इसका पता लगाना और जातिगत जनगणना करना जातिवाद फैलाना नहीं है।

दूसरे सत्र में वर्तमान संदर्भ में स्त्री के सवाल पर बात हुई। इसमें यह कहा गया कि नारीवाद या फेमिनिज्म अपने जैसे अन्य दमित अस्मिताओं एवं वर्ग के सवाल के साथ जुड़कर शोषण की परतें खोल सकता है। इस अवसर पर दलित एवं आदिवासी समाज के परिपेक्ष्य में भी स्त्री द्वारा भोगे जा रहे यथार्थ पर चर्चा हुई।

वर्तमान संदर्भ में स्त्री के सवाल पर चर्चा

तीसरा सत्र सिनेमा के नाम रहा जिसमें फिल्म जगत से आए नामचीन लेखकों, कलाकारों और निर्देशकों ने आज फ़िल्मों में बढ़ती सेंसरशिप, सिनेमा के व्यवसायीकरण और क्षेत्रीय भाषाओं के सिनेमा में अभी भी मौजूद विषयों को चुनने की मौलिकता और राजनैतिक घटनाओं पर तीखी टिप्पणी कर सकने की काबिलियत पर बात की।

विचारोत्सव के एक विशेष सत्र में राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म किए जाने पर एक प्रस्ताव पारित हुआ। कांग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने एक प्रस्ताव रखा, जिसे उपस्थित लोगों ने खड़े होकर और ताली बजाकर समर्थन किया।

सत्यातीत समय (पोस्टट्रुथ एरा) में साहित्य की भूमिका पर भी खुलकर चर्चा हुई। कवयित्री अनामिका ने कहा कि साहित्यकार या कवि अपने लेखन में समाज के दबे और सताए हुए लोगों को स्थान देता है। आलोचक संजीव कुमार ने विषय को रखा। वक्ताओं ने अपने-अपने कलात्मक ढंग से आज के दौर में साहित्य की प्रासंगिकता पर बात की लेकिन सभी का मानना था कि आज के टेक्नोलॉजी और कम अटेंशन स्पैन के बीच भी साहित्य वह दीया है जो इस अंधेरे में रोशनी का काम करता है।

राजनीति और विचारधारा के सत्र में जेडीयू के पूर्व सांसद अली अनवर, आप सांसद संजय सिंह, कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित, विंग कमांडर अनुमा आचार्य ने अपने विचार रखे। अलग-अलग पार्टियों से आए नेताओं ने एक स्वर में आज संविधान पर आए संकट से लड़ने की बात की।

अंतिम सत्र पत्रकारिता और मीडिया जगत पर था। इस अवसर पर मौजूद पत्रकारों और सोशल मीडिया पर अपने तरीके से प्रतिरोध की संस्कृति गढ़ रहे पैनल के सदस्यों ने अपने अनुभव साझा किए। यहां ट्रॉल से जूझने और अपनी जान की बाजी लगाकर सच सामने लाने वाले पत्रकारों की बातें सामने आईं।

वैखरी ने साम्प्रदायिक सद्भाव, महिला सशक्तिकरण और जुझारू पत्रकारिता के लिए काम कर रहे तीन विलक्षण लोगों को सम्मानित करने की घोषणा की थी। साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए यूसुफ मेहर अली सम्मान प्रो. वीके त्रिपाठी, स्त्री सशक्तिकरण पर काम करने के लिए पंडिता रमाबाई सम्मान योगिता भयाना को और पत्रकारिता में साहस से सत्य की खोज करने के लिए आलीशान जाफरी को राजेंद्र माथुर सम्मान दिया गया।

अशोक वाजपेयी से बात करते प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल

इस विचारोत्सव के अंतिम आयोजन में हिंदी-उर्दू कविता पाठ ने जो समा बांधा वह अतुलनीय था। जीवन की गहरी संवेदनाओं से लेकर आज के दौर पर तीखी टिप्पणियां, गजल से लेकर भोजपुरी सवैया और मराठी से हिंदी में अनुदित कविताएं इस सत्र का हिस्सा रहीं।

सबसे अंत में धन्यवाद ज्ञापन के दौरान टीम वैखरी की प्रीति और अशोक कुमार पांडेय ने सबका आभार व्यक्त किया और बिना किसी पूंजीवादी समर्थन के ऐसा आयोजन कर सकने के सपने को साकार होते देख खुशी जाहिर करते हुए इसे और बेहतर करने का संकल्प लिया।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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