ख़ुद में एक अकादमी थे डॉ. श्याम बिहारी राय

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नई दिल्ली। पूंजीवाद ने किताबों को उत्पाद बनाने के साथ ही दो तरह का खेल शुरू किया, पहला किताबों के प्रकाशन-उत्पादन को पाठक की पसंद के दायरे तक सीमित किया। दूसरा किताबों का मूल्य अधिक रखकर इसे वर्ग विशेष तक सीमित रखने की साजिश की। पूँजीवाद के इस खेल को डॉ. श्याम बिहारी राय ने पकड़ा और इसके प्रतिरोध में ग्रंथ शिल्पी प्रकाशन की नींव पड़ी। ग्रंथ शिल्पी प्रकाशन की नींव डालने वाले डॉ. श्याम बिहारी राय का 10 फरवरी, 2020 को देहावसान हो गया।

वरिष्ठ आलोचक जगदीश्वर चतुर्वेदी उन्हें याद करते हुए कहते हैं- “डॉ.श्याम बिहारी राय हिन्दी प्रकाशन जगत का जाना-पहचाना चेहरा थे। हिन्दी का आदर्श प्रकाशक कैसा हो और उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, प्रकाशन के जरिए मार्क्सवाद का प्रचार-प्रसार कैसे करें, इन सब सवालों का उत्तर थे राय साहब ।
राय साहब बेहद सुलझे मार्क्सवादी थे, एमए पीएचडी। वे हिन्दी के प्रख्यात आलोचक नंददुलारे बाजपेयी के छात्र रहे थे। अनेक वर्ष केन्द्र सरकार के संस्थान नीपा में काम करने के बाद प्रकाशन के काम में लग गए। उनसे मैं जब भी मिलता, मुझे मन में शांति मिलती।

उनके साथ मेरा परिचय तकरीबन 35 सालों से है। मैं जब जेएनयू पढ़ने आया तो उनसे मेरी मुलाकात हुई, मित्रता हुई, हम दोनों लंबे समय तक एक-दूसरे के सुख-दुख के साझीदार भी रहे । राय साहब जैसा बेहतरीन मनुष्य, बेहतरीन निष्ठावान मार्क्सवादी मैंने नहीं देखा। ग्रंथ शिल्पी संभवतः भारत में यह अकेला प्रकाशन है जो सिर्फ अनुवाद छापता है। समाज विज्ञान, शिक्षा, साहित्य, मीडिया, दर्शन आदि की तकरीबन 300 से ज्यादा विश्व विख्यात किताबें अकेले राय साहब ने छापी हैं। इतनी किताबें भारत का कोई भी बड़ा प्रकाशक नहीं छाप पाया है।
राय साहब ने जिस निष्ठा के साथ हिन्दी की सेवा की है वह अपने आपमें विरल चीज है। ईमानदारी से प्रकाशन करना, लेखक और अनुवादक को नियम से हर साल रॉयल्टी देना, पेशेवर ढंग से प्रकाशन चलाना, ये ऐसे गुण हैं जिनको देखकर राय साहब का मित्र होने पर गर्व होता है। राय साहब बहुत थोड़ी पूंजी से प्रकाशन चलाते रहे। लेकिन ईमानदारी और पेशेवर नजरिये को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। मेरी किताबों के प्रकाशन में उनकी केन्द्रीय भूमिका रही है।
बुजुर्ग होने के बावजूद वो सुबह नौ-साढ़े नौ बजे ठीक दुकान पर पहुँच जाते और शाम को पांच बजे निकल देते। संभवतः भारत में कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी इतनी मार्क्सवाद की किताबें नहीं छापी हैं जितनी अकेले राय साहब ने छापी हैं। उनके निधन से हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी क्षति हुई है। हम सबकी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।”

वरिष्ठ पत्रकार लेखक उर्मिलेश उन्हें याद करते हुए कहते हैं, “ओह, बहुत ही दुखद! लेखक-प्रकाशक और हिन्दी के अनेक लेखकों के प्रेरक-व्यक्तित्व डॉ. श्याम बिहारी राय नहीं रहे! उनका भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया! आजीवन वह लेखन और  प्रकाशन की वामपंथी-धारा के एक सुदृढ़ स्तम्भ रहे! उनके द्वारा स्थापित और संचालित प्रकाशन-गृह ‘ग्रंथशिल्पी’ ने दुनिया भर के तमाम यशस्वी जन पक्षधर और वामपंथी लेखकों-विचारकों की महत्वपूर्ण पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद कराया और उन्हें प्रकाशित किया! ‘ग्रंथ शिल्पी’ ने अनेक भारतीय लेखकों की विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विषयों पर केंद्रित दर्जनों कालजयी पुस्तकें छापीं हैं! डॉ. राय हम जैसे लोगों के लिए हमेशा प्रेरक रहे! ऐसे अग्रज और मार्गदर्शक-साथी को सलाम और सादर श्रद्धांजलि!”

वरिष्ठ कवि, पत्रकार विमल कुमार उन्हें याद करते हुए कहते हैं- “डॉ. श्याम बिहारी राय जी बहुत कमिटेड आदमी थे। थे तो आलोचक वे लेकिन बाद में उन्होंने ग्रंथ शिल्पी प्रकाशन को खड़ा किया। और बहुत सारी सामग्री का हिंदी में अनुवाद किया। ज्ञान-विज्ञान की जो किताबें हैं उसको अनुवाद के माध्यम से लाने का बहुत बड़ा काम जो संस्थागत काम हो सकता है वो काम उन्होंने किया। उनके जितना ज्ञान विज्ञान की किताब हिंदी में किसी ने नहीं छापा है। खासकर मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़ी हुई जो किताबे हैं समाजिक विज्ञान, एजुकेशन, हिस्ट्री, पोलिटिक्स, लिटरेचर के उन्होंने मोटे मोटे ग्रंथ छापे हैं। जिससे शोध के छात्रों को बहुत मदद मिली।

ये सब वह बहुत चुपचाप भाव से करते रहे। जो एक जमाने में राज्यों की एकेडमियों का काम था वो काम एकेडमियों ने कराना बंद कर दिया। वो सब डॉ. श्याम बिहारी राय ने ग्रंथ शिल्पी प्रकाशन के माध्यम से किया। उनका ये बहुत बड़ा योगदान रहा है। इसके चलते वो अपना लेखन उतना नहीं कर पाए। वो कथन और उद्भावना पत्रिकाओं से भी जुड़े हुए थे। मेरी उनसे 4-5 मुलाकातें हैं। एक किताब उन्होंने रोमिला थापर की छापी थी, जो सोमनाथ मंदिर पर थी। मैंने आउटलुक में उसकी समीक्षा लिखी थी। उसका एक दक्षिणपंथी इतिहासकार ने जवाब लिखा था। हिंदी समाज उनका सदैव ऋणी रहेगा। मैं उनको विनम्र श्रद्धाजलि देता हूं।”

वरिष्ठ हिंदी साहित्यालोचक अजय तिवारी उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहते हैं, “ वे केवल प्रकाशक नहीं थे, वे समाज विज्ञानी भी थे। वे एक प्रतिबद्ध विचारक और ज्ञान विज्ञान के विविध क्षेत्रों में विश्व स्तर के कामों की अच्छी जानकारी रखते थे। वे बहुत से लेखकों को भी उनके विषय संबंधित पुस्तकों और प्रकाशकों की सूचनाएं देते थे। उनमें से बहुत सी सामग्री का वो खुद भी अध्ययन करते थे। अनुवाद के लिए पुस्तकों का चुनाव स्वयं करते थे। वे होमियोपैथी के भी बहुत बड़े विशेषज्ञ थे और होमियोपैथी में चिकित्सा के जितने तरीके थे उनके बारे में उनका ज्ञान बहुत विश्वसनीय था। वे डॉ. राम विलास शर्मा के निकट संपर्क में रहे हैं। हम लोगों के बहुत पुराने और आत्मीय मित्र थे उनके जाने से हम सबको बहुत निजी क्षति हुई है।” 

युवा समाज शास्त्री रमा शंकर सिंह उन्हें याद करते हुए कहते हैं, “समाज विज्ञान एवं मानविकी को समर्पित ग्रन्थ शिल्पी प्रकाशन के संस्थापक श्री श्याम बिहारी राय नहीं रहे। उनकी स्मृतियों को नमन। हिंदी पट्टी के कोने-अंतरे में वे बेहतरीन किताबें लेकर गए। हिंदी में मूल रूप से और अनूदित सैकड़ों किताबों को उन्होंने पाठकों को उपलब्ध कराया। सुशोभन सरकार, एरिक हॉब्सबाम और फ्रांज फैनन जैसे बड़े नामों को उन्होंने छोटे-छोटे कस्बों तक पहुंचाया।”

(सुशील मानव जनचौक के विशेष संवाददाता हैं।)     

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