Friday, March 29, 2024

वंचितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे स्वामी अग्निवेश

स्वामी अग्निवेश जी कई दिनों गंभीर रूप से थे । वे लीवर की समस्या से पीड़ित थे, लीवर का ट्रांसप्लांट होना था, डोनर भी मिले लेकिन समय ने साथ नहीं दिया। शाम को खबर मिली कि वे नहीं रहे । स्वामी जी भगवाधारी थे लेकिन क्रांतिकारिता में उन्हें आजादी के बाद के शीर्षस्थ क्रांतिकारियों में गिना जा सकता है।

स्वामी जी आर्य समाज के अध्यक्ष रहे। कर्मकांड और अंधविश्वास पर जबर्दस्त प्रहार करते रहे। तेलुगु भाषी होने के बावजूद उनके हिंदी अंग्रेजी के अलावा कई भाषाओं का ज्ञान देखकर विवेकानन्द याद आते हैं।

उनकी ख्याति बंधुआ मजदूरों के मुद्दों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के तौर पर स्थापित करने को लेकर रही। उन्होंने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को बंधुआ मजदूरों के मुक्ति और पुनर्वास को लेकर कानून बनाने को मजबूर किया। मैंने सबसे पहले नोबेल पुरस्कार प्राप्त कैलाश सत्यार्थी जी को उनके कार्यकर्ता के तौर पर देखा था। बाद में वह स्वामी जी से अलग हो गए लेकिन दुनिया में सभी इस बात को जानते और मानते हैं कि कैलाश सत्यार्थी स्वामी अग्निवेश जी के चेले रहे थे।   

जब मैं 1982 में दिल्ली गया तथा युवा जनता दल के महामंत्री होने के कारण जंतर मंतर में आना जाना रहा तभी से स्वामी जी से लगातार मुलाकात होते रही। हरियाणा की जनता पार्टी की सरकार में वे मंत्री रहे। मंत्री के तौर पर भी उनके काम को सराहा गया। पार्टी के चुनाव में मैंने उन्हें चंद्रशेखर जी को चुनौती देते देखा। उनका सामान भी जंतर-मंतर से फेंका गया परंतु वे अंतिम समय तक  जंतर-मंतर में जमे रहे । उनका जंतर मंतर में रहना देश भर के आंदोलनकारियों के लिए अत्यंत महत्व का था क्योंकि वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो सदा मदद के लिए तैयार रहते थे।

तमाम देशभर के आंदोलनकारी साथी स्वामी जी के यहां भोजन भी करते, विश्राम भी करते थे। कार्यालय का इस्तेमाल वाचनालय के रूप में तथा अधिकारियों और मंत्रियों को पत्र लिखाने के लिए भी होता था। जब भी कभी स्वामी जी दिल्ली में होते, जंतर-मंतर पर होने वाले कार्यक्रम के लिए समय भी देते थे। स्वामी जी देश का ऐसा कोई भी कोना नहीं, जहां आंदोलनकारियों के समर्थन में वहां पहुंचे न हों ।पास्को आंदोलन से लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन सभी से जुड़े रहे।

 स्वामी जी के भाषण के देश और दुनिया में करोड़ों लोग कायल थे। स्वामी जी का भाषण मुर्दों में भी जान फूंकने वाला होता था।

जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के आंदोलनों को उन्होंने लगातार समर्थन दिया ।दसियों बार नर्मदा घाटी गए। गत 30 वर्षों में आयोजित सम्मेलनों का अभिन्न अंग रहे ।

एक बार जब माओवादियों ने जिलाधीश का अपरहण कर लिया था तब डॉ. बी डी शर्मा जी के साथ मिलकर बातचीत में भी शामिल हुए। उन्होंने एकीकृत आंध्र प्रदेश में भी शांति बहाली के लिए वार्ताएं कीं। 

मुझे याद है जब अन्ना हजारे जी का पहला आंदोलन दिल्ली में हुआ तब जंतर मंतर की दीवार से सटाकर मंच बना था जिसका वे संचालन कर रहे थे। भीड़ में स्वामी जी ने जब मुझे देखा तो उन्होंने मुझे माइक से आवाज देकर बुलाया। मैं मंच पर नहीं गया क्योंकि मेरे सामने ही आंदोलन को समर्थन देने आए ओम प्रकाश चौटाला और उमा भारती को अन्ना के समर्थनकों द्वारा हूट कर दिया गया था। मैंने स्वामी जी को मंच के बगल में जाकर बता दिया कि मैं समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय सचिव हूं इसलिए मंच पर जाना उचित नहीं होगा परंतु उन्होंने अन्ना जी, जो मुझे पहले से ही जानते थे, को सब कुछ बतलाकर मुझे मंच पर बुलाने की अनुमति ले ली। इस तरह मैं अन्ना आंदोलन से शारीरिक तौर पर जुड़ तो गया।

बाद में मुझे कोर कमेटी में भी शामिल कर लिया गया। पहली कोर कमेटी की बैठक में पहली बार शामिल होने के लिए प्रशांत भूषण जी के घर पहुंचा तब मैंने अजीब दृश्य देखा। कोर कमेटी में जो अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की संस्था के साथी थे वे स्वामी अग्निवेश जी के कांग्रेस से रिश्ते को लेकर सवाल जवाब कर रहे थे। मुझे यह देखकर बहुत बुरा लगा मैंने स्वामी जी के तपस्वी और संघर्षशील जीवन पर बोलना शुरू कर दिया जिससे माहौल तनावपूर्ण हो गया। मुझे पहली बैठक में ही समझ में आ गया कि अरविंद केजरीवाल सब कुछ अपने हाथ में केंद्रित करके रखना चाहते हैं। बाद में जो कुछ हुआ, वह सर्वविदित है। मुझे लगता है कि वह स्वामी जी के साथ बहुत बड़ा अन्याय था। 

मैंने और मेधा जी ने बहुत प्रयास किया कि दोनों पक्षों की सार्वजनिक बयान बाजी बंद हो लेकिन किरण बेदी के बड़बोले बयानों ने बात बिगाड़ दी। स्वामी जी विलेन बना दिए गए। स्वामीजी को सदा इस बात का दुख रहा।

मुझे फिर उनके साथ शराबबंदी आंदोलन में काम करने का मौका मिला। हमने राष्ट्रीय स्तर पर नशा मुक्ति आंदोलन साथ मिलकर चलाया जिसके कार्यक्रमों में स्वामी जी ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की। उनका सबसे बड़ा योगदान सभी धर्मों के धर्मगुरुओं को शराबबंदी के लिए एकजुट करने का रहा। मुलताई गोलीचालन के बाद उनके द्वारा किया गया सहयोग भुला नहीं सकता। सुरेंद्र मोहन जी के साथ उन्होंने किसान संघर्ष समिति को जीवित रखने में तथा किसानों पर किए जा रहे पुलिस दमन को रोकने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।

मुझे याद है कि जब आष्टा में किसान पंचायत हुई तथा पंचायत परिसर में किसान पंचायत पुलिस प्रशासन द्वारा नहीं करने दी जा रही थी तब एक खेत में उन्होंने महापंचायत को संबोधित कर उस मुख्यमंत्री को खुली चुनौती दी थी जिससे उनकी मित्रता रही थी। उन्होंने गुलाब देशमुख के घर में बैठकर कार्यकर्ताओं के साथ भोजन किया था। उसके बाद चुनाव में भी वे मुलताई और बैतूल आए। मेरे पूरे परिवार के साथ उनका घनिष्ठ संबंध रहा । 

जब भी कोरोना काल के पहले उनसे मिला वे सदा एक ही बात कहते थे हमको मिलकर कुछ बड़ा करना है, जो कुछ हम सब कर रहे हैं उससे काम चलने वाला नहीं।

मैं उनको एक ही जवाब देता रहा स्वामी जी हम सब आपके साथ हैं। स्वामी जी कुछ नया खड़ा करने के लिए कई बैठकें बुलाते रहे कई साथियों के द्वारा बुलाई जाने वाली बैठकों में जाते रहे ।लेकिन बात बनी नहीं।

स्वामी जी ने जनता पार्टी के नेता के तौर पर हरियाणा में मंत्री पद भी हासिल किया था। 2 वर्ष पहले वे जनता दल यू में शामिल हुए। लेकिन उन्हें नीतीश कुमार ने कोई तवज्जो नहीं दी जिसका उन्हें अत्यंत दुख रहा।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वामी जी दुनिया में भारत के मेहनतकशों और वंचित तबकों के प्रतिनिधि के तौर पर जाने जाते थे।

स्वामी जी को आखिरी सलाम!

(डॉ. सुनीलम समाजवादी नेता हैं और आप मध्य प्रदेश विधानसभा में विधायक भी रह चुके हैं।) 

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles