एक जमाना था जब देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी खुद नाटक देखने आते थे लेकिन आज किसी राष्ट्राध्यक्ष या राष्ट्रप्रमुख को इसके लिए समय नहीं और कोई संस्कृति मंत्री नाटकों के महाकुंम्भ का उद्घाटन करने आता भी है तो दर्शक उसके लिए सवा घण्टे तक इंतजार करते हैं। हालांकि मंत्री महोदय प्रयागराज के महाकुंम्भ में समुद्रमंथन का उद्घाटन करने गए थे।
जी, हां! कल भारंगम के उद्घाटन में ऐसा ही हुआ। और तो और एनएसडी जैसी स्वायत्त संस्था के मंच पर संस्कार भारती के प्रमुख को भारंगम में सम्मानित किया गया।
क्या कभी इससे पहले साहित्य अकादमी या संगीत नाटक अकादमी के किसी उद्घाटन समारोह में इप्टा या जलेस या प्रलेस के किसी प्रमुख को मंच पर बुलाकर सम्मानित किया गया? ऐसा कोई उदाहरण नजर नहीं आता, याद नहीं आता। आखिर सरकारी आयोजन में संस्कृति मंत्रालय के अधिकारियों का मंच पर आना तो समझ में आता है। मंत्रलाय अनुदान देता है ऐसे आयोजनों को पर सरकारी आयोजन से संस्कार भारती का क्या लेना देना?

आखिर एनएसडी के भारंगम में ऐसा यह कौन सा रंग है, क्या यही एक रंग और श्रेष्ठ रंग है जिसके बारे में एक पत्रकार ने सवाल उठाया था प्रेस कांफ्रेंस में। जहाँ तक स्मृति जाती है पहले ये सब नहीं होता था। खुले आकाश में एनएसडी के परिसर में जब भारंगम के उद्घाटन समारोह की व्यवस्था की गई थी क्योंकि चुनाव आयोग ने दिल्ली में चुनाव के मद्देनजर कमानी सभागार में उद्घाटन समारोह करने की अनुमति नहीं दी क्योंकि आदर्श चुनाव आचार संहिता लगी हुई है और इसलिए यह समारोह इन हाउस हुआ।
बहरहाल, लोग खुले आकाश में ठंड में झेलते हुए उद्घाटन का इंतज़ार कर रहे थे। उद्घाटन शाम 6,30 पर होना था। मीडिया को 6.15 तक आने के लिए आमंत्रित किया गया था पर 7.50 तक संस्कृति मंत्री नहीं आये और समारोह का उद्घाटन नाटक “रंग चिंतन” भी शुरू हो गया। इस बीच एनएसडी के निदेशक चितरंजन त्रिपाठी को लपकते हुए एनएसडी के प्रवेश द्वार पर जाते देखा गया। उम्मीद हुई कि मंत्री जी आये पर दर्शकों को निराशा हुई। मंत्री जी 8 बजे के करीब आये और इतना लंबा बोल गए कि उद्घाटन नाटक ”रंग चिंतन“ के 4 गाने काटने पड़े और नाटक को छोटा करना पड़ा। रात साढ़े 9 बजे समारोह खत्म हुआ।
क्या ऐसे में शेखर कपूर से उद्घाटन नहीं कराया जा सकता। क्या उनकी हस्ती किसी मंत्री से कम है? देवानंद के भांजे और बलराज साहनी के परिवार से जुड़े पद्मभूषण से सम्मानित शेखर कपूर इस समय बॉलीवुड की प्रखर प्रतिभाओं से एक हैं। उनक़ा अवदान और उनकी पहचान किसी मंत्री से कम नहीं। लेकिन भारत में कला से अधिक प्रोटोकॉल को तवज्जो दी जाती है।
इस बीच रंगदूत राजपाल यादव जरूर मंच पर आए और उन्होंने अपने अंदाज में समा बांधा। खूब तालियां बजी और उन्होंने अपने भाषण में एनएसडी को अपडेट करने के लिए सरकार से 2500 करोड़ रुपए के पैकेज की मांग की और भारत तथा विदेशों में एनएसडी के पूर्व कलाकारों से भी अपील की कि वे भी इसमें सहयोग करें।

राजपाल यादव ने भारंगम को कान्स फ़िल्म समारोह के टक्कर का बनाने की बात कही। उन्होंने एनएसडी में बिताए अपने पलों को याद किया और इसे दुनिया की बेहतरीन नाट्य संस्था बताया। उन्होंने कहा कि 1994 में वे इसके छात्र बने थे और 1999 में फिल्मों में आये इस तरह उनकी फिल्मी यात्रा भी भारंगम के समय से शुरू हुई और दोनों के 25 वर्ष हो गए। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने कभी सपने में सोचा नहीं था कि वे भारंगम के रंगदूत बनेंगे। यादव ने कहा कि उन्होंने नुक्कड़ नाटक से थिएटर शुरू किया पर वे फिल्मों के साथ साथ थिएटर भी करते रहेंगे इसे छोड़ेंगे नहीं।
एनएसडी के उपाध्यक्ष भरत गुप्ता ने इससे पहले अपने उद्बोधन में कहा कि वह 1984 से एनएसडी से जुड़े। उन्होंने पूरी दुनिया के नाट्य संस्थानों को देखा है पर एनएसडी जैसी कोई संस्था नहीं है। एनएसडी का पाठ्यक्रम दुनिया के किसी भी रंग संस्थान से श्रेष्ठ है। इसमें जितनी विविधता और शैलियां हैं, वैसा किसी पाठ्यक्रम में नहीं।

कार्यक्रम में मीता वशिष्ठ को संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदूरी ने सम्मानित किया। इसके बाद संस्कार भारती के प्रमुख अभिषेक बनर्जी को भी मंच पर बुलाकर सम्मानित किया गया तो कई दर्शक और पत्रकार चौंक गए।
एनएसडी के प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार ने एक रंग और श्रेष्ठ रंग के बारे में सवाल कर जो आशंका व्यक्त की थी वह सच साबित हुई जब संस्कार भारती का रंग भारंगम पर चढ़ा। 7.45 तक कुछ पत्रकार भी चले गए क्योंकि अखबारों में 8 बजे के बाद बड़ी खबरें ही छपती हैं। बहरहाल, लोग इंतज़ार करते करते बोर हो गए थे। वीआईपी सीट पर एनएसडी के पूर्व निर्देशक कीर्ति जैन, देवेंद्र राज अंकुर, अनुराधा कपूर में से कोई नजर नहीं आया।
(विमल कुमार कवि और पत्रकार हैं)
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