आजकल हमारे रिश्तों-नातों में मिठास की कमी महसूस हो रही है। दिवाली जैसे त्योहार में औपचारिकतावश मिठाई के डिब्बों का लेन-देन तो दिखता है पर दिल से प्रेम की मिठास का आदान-प्रदान महसूस नहीं होता।
मनुष्य में प्यार-प्रेम, परोपकार, सद्भावना जैसी सकारात्मक मानवीय भावनाएं हैं तो घृणा, ईर्ष्या, द्वेष जैसी नकारात्मक भावनाएं भी। स्वार्थी होना तो सहज प्रवृित है पर दंभ-घमंड, छल-कपट, दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृति खतरनाक है।
वैसे यह भी सच है कि स्वभावत: मनुष्य शांति-सुकून-अमन-चैन की जिंदगी चाहता है। पर अपनी नकारात्मक भावनाओं या दुर्भावनाओं के कारण मनुष्यता का दुश्मन और विनाशक भी बन जाता है।
इसके मद्दे नजर, दुनिया पर नजर डालें तो रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल, फिलिस्तीन, लेबनान, ईरान युद्ध आदि मनुष्य और मनुष्यता का विनाश कर रहे हैं।
दिवाली से समय हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के बाघा बॉर्डर पर हमारे सीमा सुरक्षा बल के जवान पाकिस्तान के सीमा सुरक्षा बलों के जवानों को मिठाईयों के डिब्बे देकर उनका मुंह मीठा कराते हैं, पर पाकिस्तान के दिल में खटास फिर भी भरी रहती है। इसकी मिसाल जम्मू-कश्मीर में मिलती है जहां वह आतंकवादी हमले कराता रहता है।
आज के समय में या कहिए आधुनिक तकनीक व इंटरनेट के इस डिजिटल युग में दुनिया एक ‘ग्लोबल विलेज’ हो गई है। आज दुनिया में कहां क्या हो रहा है, हमें सब पता चल रहा है। एक दूसरे पर हावी होने की प्रवृति, प्रतिशोध की भावना नरसंहार करवा रही है।
लोग हिंसा पर उतारू हैं और एक दूसरे के खून के प्यासे बन गए हैं। आजकल इजराइल जो कर रहा है, वह इसका सटीक उदाहरण है।
हम गौतम बुद्ध की धरती से हैं और दुनिया में युद्ध नहीं शांति चाहते हैं। भारत के कूटनीतिक प्रयास यही हैं कि यदि युद्ध बंद हो जाएं और शांति बहाल हो जाए। चीन भी अपनी चालाकियों को छोड़ मनुष्यता के हक में हो जाए और इस तरह मानवता कायम हो जाए तो इससे ‘मीठा’ कुछ नहीं हो सकता।
हमारे देश में भी जाति-संप्रदाय-समुदायों के नाम पर घृणा व्याप्त है। चाहे सवर्ण हिंदू और दलित हों, हिंदू मुसलमान हों या मणिपुर के मैतेई और कुकी। देश के संविधान में इन सभी को बराबरी का दर्जा प्राप्त है पर जाति-संप्रदाय-समुदायों की संकीर्ण सोच के कारण इनमें नफरत भरी है।
परणिामस्वरूप, दंगे और हिंसा भड़कती रहती है। यदि हमारी सत्ताधारी सरकारें व राष्ट्रीय राजनीतिक दल जाति-धर्म-समुदाय से ऊपर उठकर सभी देशवासियों को देश का समान नागरिक समझें (जो कि लोकतांत्रिक सरकार और राजनीतिक दल होने के कारण उन्हें समझना ही चाहिए), अपने राजनीतिक स्वार्थ से परे होकर सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबके हित में प्रयास करें तो निश्चय ही इसका परिणाम हमारे देश और समाज के लिए ‘मीठा’ होगा।
आजकल हमारे सामाजिक संबंधों, रिश्तों-नातों में मिठास की कमी महसूस हो रही है। ऐसा लग रहा है कि हमारे रिश्ते स्वार्थ की बुनियाद पर टिक गए हैं या फिर रिश्तों में प्यार की बजाय व्यापार हावी हो गया है।
दिवाली जैसे त्योहार में औपचारिकतावश मिठाई के डिब्बों का लेन-देन तो दिखता है पर दिल से प्रेम की मिठास का आदान-प्रदान नहीं होता।
इसी सिलसिले में बताता चलूं कि इन दिनों त्योहार का सीजन चल रहा है। खास कर दिवाली का त्योहार है। ऐसे में मिठाईयों का आदान-प्रदान करने की परंपरा रही है। इसलिए मैं मिठाई के कुछ डिब्बे लेने मिठाई की दुकान पर गया। वहां पड़ोसी रामलाल जी से मिठाई की दुकान पर मुलाकात हो गई।
पता चला कि वे तीन तरह की मिठाईयां पैक करवा रहे हैं। एक तो ड्राई फ्रूट व काजू-कतली, दूसरी सामान्य मिठाई और तीसरी सोन पापड़ी। कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि ये ड्राई फ्रूट और काजू-कतली खास लोगों के लिए है, जिनसे बिजनेस के संबंध हैं और इससे उन्हें बिजनेस मिलेगा और उनका आर्थिक लाभ होगा।
सामान्य मिठाईयां रिश्तेदारों, पड़ोसियों के लिए हैं। सोनपापड़ी घर की मेड (घरेलू सहायिका), सफाई करने वालों, घर का कूड़ा उठाने वालों के लिए है। क्या करें औपचारिकताएं निभानी पड़ती हैं।
यानी उन्होंने उनसे संबंधित लोगों की औकात के अनुसार मिठाईयां ली थीं।
यह दर्शाता है कि सामाजिक संबंधों में अमीरी-गरीबी, लोगों के पेशे-व्यवसाय जात-पांत, धर्म-संप्रदाय आदि भेदभावकारी कारक रहे हैं।
मुझे मुन्नाभाई एमबीबीएस का एक दृश्य याद आ रहा है, जिसमें संजय दत्त अपने एक घरेलू सहायक को गले से लगाते हैं। उसे जादू की झप्पी देते हैं। और वह सहायक इमोशनल होकर कहता है, रुलाएगा क्या।
सोचता हूं क्या ऐसे दृश्य सिर्फ फिल्मों मे ही होने चाहिए, असल जीवन में क्यों नहीं होते। होते भी हैं तो अपवादस्वरुप होते हैं, सामान्य क्यों नहीं होते।
क्या आम आदमी, गरीब इंसान, किसी भी जाति-धर्म का इंसान, इंसान नहीं होता। क्या उसमें मानवीय भावनाएं नहीं होतीं। क्या वह मानवीय गरिमा का हकदार नहीं होता।
हमारे यहां कूड़ा उठाने वाले, सफाई करने वाले इंसान को दोयम दर्जे का इंसान माना जाता है। उसके प्रति लोगों में आदर की भावना प्राय: नहीं होती। पर मुझे लगता है कि हमारा कूड़ा उठाने वाला, सफाई का काम करने वाला व्यक्ति महत्वपूर्ण है।
क्योंकि वह स्वच्छता बनाए रखकर हमें स्वस्थ रहने में हमारी मदद करता है। हमें बीमारियों से बचाता है। इसलिए वह बराबर आदर-सम्मान पाने का हकदार है।
हमारे कार्यालय में हमें चाय-पानी देने वाला, हमारे मंगाने पर हमारी जरूरत की चीजें लाकर देने वाला, हमारा कार्यालय सहायक भी उसी आदर सम्मान का हकदार है। पर प्राय: ऐसे लोगों की हम अनदेखी करते हैं। उन्हें महत्वहीन समझते हैं।
इसका कारण यह हो सकता है कि हमारी समाज व्यवस्था में काम हमारी जाति और जन्म के आधार पर थोप दिए गए हैं। जाति जो उच्च-निम्न क्रम पर आधारित है उसी के अनुसार कार्यों का भी उच्च-निम्न क्रम में वर्गीकरण कर दिया गया है।
अपने रिश्तेदारों में भी हम प्राय: उनकी हैसियत देखकर यानी उनके पास कितना धन है, कितना ऊंचा पद है या रुतबा है या कितना बड़ा बिजनेस है, आदि से उनका मूल्यांकन करते हैं और उसी के अनुरूप उनके साथ व्यवहार करते हैं। हमारे एक मित्र कहते हैं कि बन जाते हैं गैर भी रिश्तेदार जब धन पास होता है, टूट जाता है गरीबी में जो रिश्ता खास होता है।
ऐसे में हम रहीम दास जी का वह दोहा भूल जाते हैं जिसमें वह कहते हैं ‘रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिए डार, जहां काम आवै सुई कहा करै तरवार।’ समाज में हर मनुष्य का महत्व अपनी-अपनी जगह होता है। अत: हर मनुष्य को उचित आदर-सम्मान देना हमारा कर्तव्य है। इस कर्तव्य के पालन हेतु, खासकर त्योहारों के मौके पर यह आदर भाव हमें दिखाना भी चाहिए।
पर्व-त्योहार हमारे जीवन में आनंद और उल्लास लेकर आते हैं। इन त्योहारों पर हम अपने नाते-रिश्तेदारों को, सहकर्मियों को, मित्रों-परिचितों को, पड़ोसियों को उस पर्व-त्योहार की बधाई देते हैं।
अगर जुम्मन मियां रामलाल जी को गले मिलकर दिवाली की बधाई दें तो रामलाल जी मिठाई खिलाकर उनका मुंह मीठा कर दें। ईद पर वे जुम्मन मियां को मुबारकबाद दें और जुम्मन मियां रामलाल जी के गले मिलकर उन्हें सेवईयां खिलाकर अपना सौहार्द प्रकट करें तो इससे निश्चय ही मुंह में ही नहीं हमारे दिल में भी मिठास घुल जाएगी।
ऐसे मौकों पर हम अपनी इंसानियत का परिचय देते हुए, बिना किसी ऊंच-नीच या छोटे-बड़े, अमीर-गरीब का भेदभाव रखे, लोगों के प्रति आदर-सम्मान का भाव रखते हुए, कुछ ऐसा सद्वयवहार करें, कुछ प्रेम के ऐेसे मीठे बोल बोलें, जिससे उनके मन में मिठास घुल जाए और उनमें भी आपके प्रति आदर भाव बढ़ जाए।
इसी मिठास की आज जरूरत है। हमारे प्रिय कवि गोपाल दास नीरज ने इसी संदर्भ में लिखा है – ‘अब तो मजहब कोई ऐसा चलाया जाए, जहां इंसान को इंसान बनाया जाए।’
(राज वाल्मीकि सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)
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