यादों में वीना: दिल कांच की तरह पारदर्शी और दिमाग कैंची की तरह तेज

20 दिसंबर, 2022 को वीना असमय इस दुनिया से कूच कर गईं। बागपत के अपने पैतृक गांव में खेत जाते समय वह एक रेल हादसे का शिकार हो गईं। उनके निधन के एक महीने बाद यानि 20 जनवरी को दिल्ली के प्रेस क्लब में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें वीना को जानने और चाहने वालों ने उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। इस समय इलाहाबाद में रह रही महिला अधिकार कार्यकर्ता कुमुदिनी पति ने इस अवसर पर एक शोक संदेश भेजा। इस शोक संदेश में उन्होंने वीना की शखिसयत और अपने रिश्ते का चित्र खींचा है:

वीना से मेरी मुलाकात उस दौर में हुई थी जब हम दिल्ली में एपवा (AIPWA) के बैनर तले तमाम आंदोलनों में लगे हुए थे। उस समय वीना एपवा से अपने जीवन के व्यक्तिगत संघर्षों में मदद के लिए आई हुई थी। उसने अपना ससुराल और फिर घर भी छोड़ दिया था, क्योंकि वह घरेलू हिंसा का शिकार नहीं बनना चाहती थी। पहली बार मैने देखा कि वीना किसी तरह समझौता करके ज़िंदगी की नैया पार नहीं लगाना चाहती थी। बल्कि आत्मनिर्भर होकर स्वाभिमान से जीना चाहती थी। पर वह यह भी समझ रही थी कि यह आसान नहीं होने वाला था। यह सब किसी संगठन के साथ जुड़कर सामाजिक बदलाव के आंदोलन के साथ जुड़कर ही संभव था। इस तरह से वीना हर उस प्रश्न पर चिंतन करने लगी जो औरतों और समाज को शोषण के शिकंजे में जकड़ लेता है। वीना के अंदर एक निर्भीक योद्धा का तेवर था जिसकी वजह से वह एडवोकेट कामरेड अपर्णा भारद्वाज के साथ जुड़ीं और अपने पिता के मकान में अपने और बहन अंजू के हिस्से के लिए लम्बी कानूनी लड़ाई लड़कर जीत हासिल कर सकी।

वीना में एक अद्भुत गुण था, वह सच्चाई के लिए अपनों से निर्मम लड़ाई लड़ते हुए उससे अपना आत्मीय और इंसानी संबंध बनाए रखती थी। वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती कि किसी के साथ अन्याय न करे। इतनी नरम दिल थी कि पिता के निर्मम व्यवहार के बावजूद उनका पूरा ख्याल रखती इसलिए अंतिम समय तक पिता और भाई के प्रति अपना फर्ज निभाती रही। वो दोस्त भी अद्भुत थी, जिसका हाथ पकड़ा उसका उसका साथ अंत तक दिया। अपर्णा के कैंसर के इलाज के समय, नोरा चोपड़ा के ‘पार्किंसन’ बीमारी के दौर में, मेरा ‘कैटेरैक्ट’ आपरेशन के समय, किरण के केस के दौर में, मिस्टर गिल की बीमारी के समय, और ना जाने कितनों का साथ निभाती रहीं। काश! मैं कभी बुरे समय में उसका साथ दे पाती! संगठन में कैसा भी काम होता, भले कितना कठिन ही क्यों ना हो वीना कभी पीछे नहीं हटी।

मैंने देखा उसे डॉक्यूमेंट्री बनाने का शौक और हुनर भी था। एक बार 8 मार्च महिला दिवस के अवसर पर दूरदर्शन के लिए कई महिलाओं से इंटरव्यू लेने के क्रम में मुझसे भी अधिक समय के लिए नोएडा में घर पर मिली। पहली बार में ही हम दोस्त बन गए। मुझे पहले लगा था कि ये नई लड़की क्या सवाल पूछेगी? पर इंटरव्यू के दौरान ही समझ गई कि ये बहुत परिपक्व है और महिला मुद्दों की अच्छी समझ रखती है।

मेरे दिल्ली छोड़ने के बाद कभी-कभार वीना से बात होती तो वह प्रश्नों की झड़ी लगा देती। ऐसा लगता कि वह बहुत कुछ समझना और करना चाहती थी और अवसरों की तलाश में बेचैन रहती थी। उसका जनचौक से जुड़ना बहुत अच्छा लगा था। एक बार अपने विचारों की धार को पैना करने के लिए वीना ने जब कलम उठाई तो रुकी ही नहीं। वह एक से एक तीखे और गहरे व्यंग्य लिखती, राजनीतिक कविताएं लिखती, खोजी रिपोर्टें लिखती और ख़तरों से खेलते हुए, पुलिस से भिड़ते हुए भी ग्राउंड रिपोर्ट भेजती रहती। वीना से कई बार बात होती कि वह अच्छी डॉक्यूमेंट्रीज बनाए, खासकर मजदूरों के जीवन और संघर्षों पर। मैं उसे अंग्रेजी भी सिखाना चाहती थी ताकि वह दुनिया का बेहतर साहित्य पढ़ सके। उसने कहा था कि गांव की ज़मीन का मामला हल होते ही जनचौक के साथ दूनी ऊर्जा के साथ लग जाएगी और यह काम भी करेगी।

वीना एक बेहद ईमानदार, आत्मीय स्वभाव वाली, निर्भीक और सच्ची महिला थी। दिल कांच की तरह पारदर्शी और दिमाग कैंची की तरह तेज। बस ऐसे लोग ही क्यों दुनिया छोड़कर चले जाते हैं, इस गुत्थी को सुलझा नहीं पाती हूं। वीना हमारे परिवार की सदस्य बन गई थी, छोटी बहन जैसी, जब इलाहाबाद आती तो घर पर रूकती, चाय बनाती, पराठे सेंक कर खाती और मैं उसे इलाहाबाद की स्पेशल ‘इमरती’ और कच्चे आम की मीठी चटनी बनाकर खिलाती। हम ना जाने कितनी बातें करते कि दिन और रात का पता भी नहीं चलता था। पर वीना बिन बताए ऐसे चली जाएगी मैंने सपने में भी नहीं सोचा था।

सपना तो हम कुछ नया करने की देखते थे। आज भी लगता है कि वीना जैसी साथी और दोस्त बिरले ही मिलते है। हमने उसे बिना बात के कैसे खो दिया? क्यों हम उसे रेल की पटरी पर से खींच कर बचा ना सके? वीना का मुस्कुराता चेहरा कभी भूल नही सकती। इस ठंड में आज भी उसका भेंट किया हुआ स्वेटर पहनी हुई हूं। उसके जज्बे को सौ-सौ सलाम! वह हमारे बीच हरदम ज़िंदा रहेगी।

( कुमुदिनी पति स्वतंत्र टिप्पणीकार और महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं।)

कुमुदिनी पति

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  • वीना जी का अचानक चला जाना बेहद दुखद है.उन जैसी संघर्संषशील महिलाएं ही समाज को बदलने और हक़ अधिकार से वंचितों को उनके अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष करती हैं. दूसरो को गरिमा से जीना सिखाती हैं.उन जैसी महिला की जरूरत समाज को बहुत होती है. दुखी मन से उन्हें नमन और श्रद्धांजलि - राज वाल्मीकि

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कुमुदिनी पति