लड़ाई तो लड़ाई है। चाहे वह जंग का मैदान हो या फिर चुनावी मैदान ही क्यों न हो। हार जीत का फैसला दोनों मैदान में ही होता है लेकिन चुनावी मैदान का खेल कुछ अलग भी होता है।
बदलते परिवेश में जंग-ए-मैदान की दुश्मनी तो कालांतर में सपाट भी हो जाती है लेकिन राजनीतिक हार जीत का खेल दुश्मनी का वह जहर पैदा करता है जो लम्बे समय तक लोगों को सालता है। हूक पैदा करता है और कभी -कभी खून बहाने पर भी विवश कर देता है। मौजूदा राजनीति लंपटई से ही शुरू होती है और उसी पर उसका अंत भी होता है।
चूंकि राजनीति अब जनता की सेवा नहीं यह एक बड़ा कारोबार है और कारोबारियों के बीच की लड़ाई तो खतरनाक होती ही है। चाहे इसमें जान ही क्यों न चली जाए।
मिल्कीपुर की कहानी कुछ अब ऐसी ही हो गई है। जब से लोकसभा चुनाव में अयोध्या सीट सपा के हाथ चली गई है तभी से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं और बाबा योगी नाथ की भवें तनी गयी हैं।
जो बाबा लगातार दो बार से यूपी की सत्ता हांक रहे हैं और यूपी की पूरी राजनीति और शासन तंत्र उनके चरणों में शरणागत है, उसी यूपी की मिल्कीपुर सीट बीजेपी के हाथ से निकल जाए, यह तो नाक कटने जैसी बात होगी।
और जब नाक ही कट गई तो बचा क्या? बीजेपी को हर हाल में मिल्कीपुर उपचुनाव में जीत चाहिए और योगी आदित्य नाथ को हर हाल में उनकी प्रतिष्ठा पर चोट नहीं चाहिए। प्रतिष्ठा चली गई तो बाबा पर बीजेपी हाई कमान बहुत बड़ा एक्शन ले सकता है। और एक्शन हो गया तो खेल खराब होगा।
अयोध्या की एक सीट है मिल्कीपुर। लोकसभा चुनाव से पहले यहां से विधायक वही थे जिन्होंने लोकसभा में सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत भी गए। नाम है अवधेश प्रसाद। सरल व्यक्ति हैं और जमीनी पहुंच रखते हैं। इलाके के लोगों में उनकी ख़ास पहचान है। सभी जातियों में एक सामान पहुंच है। जो उन्हें वोट नहीं देते वे भी चुनाव के बाद उनके साथ बैठने में गौरव महसूस करते हैं।
मिल्कीपुर विधान सभा में वैसे तो सपा की पहुंच लम्बे समय से रही है। सपा की वहां मजबूत पकड़ रही है और आज भी सपा वहां काफी मजबूत भी है। लेकिन पहली बार अब बीजेपी की नजर में मिल्कीपुर चढ़ गया है। पिछली बार यूपी की 9 सीटों पर उपचुनाव हुए थे, जिनमें से 6 सीटों पर बीजेपी की जीत हुई थी।
योगी बाबा का डंका बज गया था। लोक सभा चुनाव में बीजेपी की भारी हार के बाद बीजेपी की आडम्बरी राजनीति को बड़ा झटका लगा था। राज्य से लेकर दिल्ली तक में बीजेपी के बीच रुदाली देखी गई। पीएम मोदी का मुंह लटक गया था। यूपी लोकसभा का झटका पीएम मोदी और बाबा योगी के कमजोर इकबाल के प्रतीक के रूप में देखा गया था।
एक समय तो ऐसा भी आया जब लगा कि योगी बाबा की अब विदाई हो जायेगी लेकिन उपचुनाव में इस कांड पर मलहम लग गया और बहुत कुछ शांत हुआ।
लेकिन मिल्कीपुर को भी जीतना है। बीजेपी को हर हाल में मिल्कीपुर चाहिए। बीजेपी के लोग भी कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी हार मिली थी और वही हार मोदी को परेशान किये हुए है। अगर यूपी की अधिकतर सीटें बीजेपी के पास होतीं जैसे कि पहले थीं तब आज बहुत कुछ बदल गया होता और देश के कई नेता जेल में होते।
लेकिन सच तो यही है कि आज बीजेपी कई नेताओं के सामने शरणागत है ताकि केंद्र की सरकार बची रहे। सरकार गई तो बहुत कुछ चला जायेगा। बड़ी संख्या में वे लोग भी जेल जायेंगे जो कल तक सब को जेल भेजते रहे हैं। मौजूदा राजनीति का सच तो यही है। और इस राजनीति को बीजेपी ने शुरू किया है।
इसलिए मिल्कीपुर की जीत ज़रूरी है। दिल्ली विधान सभा का चुनाव पांच फरवरी को होना है और इसी के साथ मिल्कीपुर में भी उपचुनाव होने हैं। तैयारी खूब की गई है। एक तरफ बीजेपी की सेना तैयार है तो दूसरी तरफ सपा की सेना भी डटी हुई है।
बीजेपी को सपा से यह सीट छीनने की चुनौती है तो सपा की चुनौती यहां बने रहने की है ताकि बीजेपी को सच बताया जा सके।
इसी बीच समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने मिल्कीपुर उपचुनाव में जीत का दावा करते हुए कहा कि उनकी पार्टी हर हाल में चुनाव जीतेगी। लेकिन अगर गन प्वाइंट पर चुनाव जीतने की कोशिश की गई तो उनके कार्यकर्ता उस समय जो फैसला ले सकते हैं, वह लें, इस बात को मन में रखें।
सपा प्रमुख का यहां बयान कोई ऐसे ही नहीं आया है। और आया है तो इसके मायने को भी समझा जा सकता है। यह भी समझने की जरूरत है कि मिल्कीपुर कितनी अहमियत रख रही है।
रविवार को सपा मुखिया अखिलेश यादव ने लखनऊ में विवेकानंद की जयंती पर पत्रकारों को संबोधित करते हुए मिल्कीपुर उपचुनाव पर सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि मिल्कीपुर चुनाव में गन प्वाइंट पर गड़बड़ी की गई तो मैं अपने कार्यकर्ताओं से कहूंगा, उस समय जो फैसला ले सकते हैं, लें। बीजेपी ने अपने विभागों के लूटने वाले मंत्रियों को वहां ड्यूटी पर लगाया है।
योगी सरकार ने मिल्कीपुर को जीतने के लिए खूब घेराबंदी की है। बीजेपी ने इस सीट को जिताने के लिए 6 मंत्रियों को जिम्मेदारी सौंपी है। सीएम ने बीते दिनों बैठक में मंडल, शक्ति केंद्रों और बूथ इकाइयों में ज्यादा से ज्यादा मत प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा का मंत्र भी दिया।
इन मंत्रियों में प्रभारी मंत्री सूर्य प्रताप शाही, जल शक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, स्वास्थ्य राज्यमंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह, आयुष मंत्री दयाशंकर मिश्र दयालु, खेल मंत्री गिरीशचंद्र यादव, खाद्य एवं रसद राज्यमंत्री सतीश चंद्र शर्मा, सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर का नाम शामिल है। ये मंत्री मिल्कीपुर में अलग-अलग वर्गों के लोगों के साथ बैठक कर मतदान अपने पक्ष में कराना सुनिश्चित करेंगे।
अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट के आंकड़ों की बात करें तो यहां कुल मतदाताओं की संख्या 3 लाख 58 हजार है। ऐसा माना जाता है कि इसमें सबसे अधिक अनुसूचित जाति और फिर दूसरे नंबर पर पिछड़े वर्ग के वोटर हैं। यहां अनुसूचित जाति वर्ग में पासी समाज और ओबीसी में यादव सबसे प्रभावी हैं।
ओबीसी और दलित वोट बैंक के साथ ही मुस्लिम भी प्रभावी भूमिका में हैं। समाजवादी पार्टी को फौरी तौर पर इसी पीडीए समीकरण का लाभ मिलता है। और इस बार के चुनाव में भी मेन फोकस इन्हीं समुदायों पर रहेगा। यहां सवा लाख दलित हैं, जिनमें पासी बिरादरी के वोट ही करीब 55 हजार हैं। इसके अलावा 30 हजार मुस्लिम और 55 हजार यादवों की तादाद है।
इसके साथ ही मिल्कीपुर में सवर्ण बिरादरी में ब्राह्मण समाज के 60 हजार मतदाता हैं। क्षत्रियों और वैश्य समुदाय की तादाद क्रमश: 25 हजार और 20 हजार है। अन्य जातियों में कोरी 20 हजार, चौरसिया 18 हजार हैं। साथ ही पाल और मौर्य बिरादरी भी अहम हैं।
सपा ने सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को इस सीट से पहले ही प्रत्याशी घोषित कर रखा है। वहीं कांग्रेस नेता अजय राय ने कहा है कि वह यूपी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी प्रत्याशी का समर्थन करेंगे। यानि मिल्कीपुर सीट पर कांग्रेस अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी। जानकारी के मुताबिक 17 जनवरी से पहले बीजेपी मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उम्मीदवार घोषित कर सकती है।
लेकिन मामला बीजेपी के उम्मीदवार और सपा के उम्मीदवार को लेकर अब नहीं है। लड़ाई तो सपा और बीजेपी के बीच की है। लड़ाई एनडीए और इंडिया के बीच की है। और लड़ाई सरकार और विपक्ष के बीच के साथ ही इक़बाल की है। किसका इकबाल बड़ा है और किसका इकबाल बौना है यह भी देखा जाना है।
सामने कुम्भ मेले का जयघोष चल रहा है। यह सनातनी लोगों का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। इसी धरम के नाम पर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का खेल आगे बढ़ता है और कह सकते हैं कि बीजेपी के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की धारा यहीं से निकलती है या फिर निकलेगी भी।
उधर संभल का संग्राम चल रहा है। मस्जिद के भीतर मंदिर खोदे जा रहे हैं। खोये भगवान को खोदकर निकाला जा रहा है। यह सब इसलिए कि मिल्कीपुर जीवित रहे। यहां की लड़ाई का असर मिल्कीपुर पर पड़े। महाकुम्भ और संभल की लड़ाई मिल्कीपुर के मैदान में कितनी सफल होगी यह देश भी देखेगा और बीजेपी के साथ सपा भी देखेगी।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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