सौंदर्य बोध : सोच,नजरिया और बाजार

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सौंदर्य, हमेशा से हमारे लिए उत्सुकता का विषय रहा है। पहली बार सुंदरता का अहसास भी मानव को तब हुआ होगा जब उसने अपनी छवि को किसी तालाब या नदी में देखा होगा। मानव का यही सौंदर्य बोध स्त्री और पुरुष के बीच के संबंध की कड़ी बनकर उभरा होगा जो प्रकृति के साथ अपनी सहजता अपनी सरलता को साथ लिए हुए था।

आज भी सौंदर्य, आदिवासी समुदायों में अपनी सरलता और सहजता लिए हुए मौजूद है।

प्राचीन काल के विभिन्न संस्कृतियों में जैसे– मिश्र, रोम और ग्रीक में सौंदर्य मानक और प्रतियोगिताएं प्रचलित थी। मगर आज आधुनिक समय में विकास के साथ बाजार और समाज के बदलते हुए मानकों ने स्त्री और स्त्री सौंदर्य को सौंदर्य प्रतियोगिताओं में खड़ा कर दिया है।

महिलाओं के सौंदर्य के प्रति हमारी धारणाएं रंग, रूप,और उसकी शारीरिक बनावट आदि तक आकर सिमट गया है। महिलाओं की इन खूबसूरती की धारणाओं से पहले महिलाओं की कला, उनकी खासियत मायने रखती थी।

आज के मॉडर्न सौंदर्य प्रतियोगिता की शुरुआत 20 वीं शताब्दी का प्रारंभ माना जाता है। आधुनिक सौंदर्य प्रतियोगिता 1921 में  अमेरिका से हुआ। यह प्रतियोगिता एक व्यवसायी द्वारा पर्यटकों को लुभाने के लिए किया गया था। प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध से उत्पन्न आर्थिक मंदी के कारण 1932 में USA में इस आयोजन को बंद करना पड़ा।

मगर सौंदर्य प्रतियोगिताओं की लोकप्रियता इतनी बढ़ी की, इसकी लोकप्रियता को देखते हुए अन्य संगठनों ने 1950 में और उसके बाद भी सौंदर्य प्रतियोगिता को आयोजित कराने को प्रेरित किया। 

सौंदर्य प्रतियोगिता के ग्लोबल विस्तार ने इसे विश्व स्तर पर ला कर खड़ा कर दिया। 1951 में मिस वर्ल्ड और1952 में मिस यूनिवर्स की शुरुआत हुई। इसके बाद इन प्रतियोगिताओं को और भी व्यापक और विस्तार दिया जाने लगा। मिस इंटरनेशनल, एशिया पैसिफिक की भी शुरुआत हुई।

भारत भी इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं से अछूता नहीं रहा। 1966 में भारत की पहली मिस वर्ल्ड रीता फारिया बनी। इसके बाद ब्लैक अमेरिकन को भी इन प्रतियोगिता में शामिल किया जाने लगा। व्यापार और बाजार की दृष्टि से सभी देशों में सौंदर्य प्रतियोगिता आयोजित किया जाने लगा।

सारे देशों ने ग्लोबल पहचान के लिए अपने-अपने प्रतिनिधि भेजना शुरू किया। जिसने कहीं न कहीं व्यापार और बाजार को संबद्ध किया।

सौंदर्य प्रतियोगिताओं के इस दौड़ में पुरुषों को भी 20 वीं शताब्दी में शामिल किया जाने लगा। 1920 के दशक में होनेवाली महिलाओं की सौंदर्य प्रतियोगिताओं और उसकी सफलता ने पुरुषों के सौंदर्य की अवधारणा को भी बदल दिया।

1940-1950 के दशक तक मि.अमेरिका और मि. यूनिवर्स प्रतियोगिताएं शुरू हुईं, जो शारीरिक सौंदर्य और आकर्षण पर केंद्रित था। 1960–1970 तक मि. वर्ल्ड की स्थापना शुरू हुई और अंतरराष्ट्रीय आयामों को जोड़ा गया।

सौंदर्य प्रयोगिताओं की व्यापकता और उसके विस्तृत रूप ने सौंदर्य के बदलते मानकों को वैश्विक रूप में स्थापित किया। एक तरफ स्त्री सौंदर्य के पैमाने बदले जाने लगे तो दूसरी तरफ पुरुषों के सौंदर्य के पैमाने में माचो मैन, सिक्स पैक का डिमांड बढ़ने लगा।

स्त्री और पुरुष मॉडल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सौंदर्य और सौंदर्य प्रसाधनों का प्रचार और प्रसार भी करने लगे और उसका प्रतिनिधत्व भी।

विकास के बदलते स्वरूप में सौंदर्य मानक और भी तेजी से बदलते जा रहे हैं। वर्तमान समय में जहां मोबाइल फोन और डेटा कंपनियों का राज है। वहां सोशल मीडिया भी सौंदर्य के मानकों को बदलने में अहम भूमिका निभा रहा है। सोशल मीडिया के एक मिनट के रील में इन्फ्लूएंसर सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

उससे बदलते लुक को इस तरह परोस और दिखा रहे कि इसकी चपेट में आज की युवा पीढ़ी आ रही है। मार्केटिंग का एक टारगेट होता है ‘कैच द यंग’ और ये टारगेट अपने ट्रेंड्स के साथ एक साइकिल में घूमते रहते हैं। ब्यूटी प्रोडक्ट जो हमारी इनसिक्योरिटी का बिजनेस करता है उसका टारगेट भी युवा पीढ़ी ही होता है।

जिस तरह सौंदर्य प्रतियोगिताओं में चुने जाने वाले सेलिब्रिटी एड के जरिए सौंदर्य प्रसाधनों का प्रचार करते नजर आते हैं, वैसे ही सोशल मीडिया पर इन्फ्लूएंसर छोटे–छोटे रील्स में परोस रहे हैं। इन रील्स से प्रभावित होकर आजकल बच्चे भी स्कूल मेकअप ट्यूटोरियल दे रहे हैं। बच्चों मे मेकअप और नो–मेकअप वाला मेकअप ट्रेड करने लगा है।

इंटरनेट पर ‘सेफ़ोरा किट’ नाम का ट्रेंड शुरू हुआ है। जिसमें 8 साल, दस साल की बच्चियां मेकअप लगा रही हैं। लगभग हर सोशल मीडिया ट्रेंड की तरह ये भी अमेरिका से आया है। इसके चंगुल में बच्चे ही नहीं माता–पिता भी आ रहे हैं।

भारत जैसे घनत्व वाले देश में सोशल मीडिया जितनी तेजी से बढ़ा है, उतनी ही तेजी से सोशल मीडिया के जरिए सौंदर्य प्रसाधनों का ट्रेंड भी भारत में बढ़ा है। माना ये जा रहा है कि भारत की ब्यूटी इंडस्ट्री अगले साल तक 2 ट्रिलियन रुपए की हो जाएगी।

सौंदर्य प्रसाधनों के अलावा कॉस्मेटिक सर्जरी भी दुनिया भर में बहुत बड़ा बिजनेस बनकर उभर रहा है। 2023 में सबसे ज्यादा कॉस्मेटिक सर्जरी अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश के नाम है। उसके बाद ब्राज़ील, जर्मनी, मैक्सिको है। भारत जैसा विकसित देश भी इस सूची में अमेरिका के बाद चौथे स्थान पर है।

भारत में 10.28% लोग कॉस्मेटिक सर्जरी को अपना रहे हैं, जो फ्रांस जैसे पूंजीवादी देश के आंकड़े 8.83% से ज्यादा है। 2023 में सबसे ज्यादा कॉस्मेटिक सर्जरी लाइपोसक्शन सर्जरी है जिसमें शरीर के विभिन्न हिस्सों से फैट निकला जाता है। इस सर्जरी के बाद ब्रेस्ट ऑग्मेंटेशन जिसे ‘बूब जॉब’ कहा जाता है।

आईलिड सर्जरी, टमी टक, नोज जॉब, ब्रेस्ट लिफ्ट, लिप फिलर्स, बट लिफ्ट, ये सारी सर्जरी बड़ा मार्केट बनकर उभर रहा है और हमारी बॉडी को लेकर हमारी इनसिक्योरिटी का बिजनेस करने में कामयाब होता है।

खूबसूरती का कोई पैमाना नहीं होता, वो देखने वाले की सोच और उसके नजरिए पर निर्भर करता है।

 (मंजुला शिक्षा, कला और बाल मनोविज्ञान के क्षेत्र से जुड़ी हैं)

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