काबुलीवाला, कहानी पढ़ी थी। तब तक अफगानिस्तान या किसी और मुल्क की परिकल्पना दिमाग में नहीं थी। उस कहानी ने एक पिता की जो अपने मुल्क और परिवार से हजारों मील दूर था उसके दिल में अपनी बेटी के लिए पल रहे मोहब्बत की गहरी भावना मेरे युवा मन को अंदर तक झकझोर कर संवेदित कर दी थी। आज भी याद है बाद के दिनों में पता चला कि काबुल नदी के किनारे के एक गांव से निकला आचार्य पाणिनी भारत के संस्कृति जगत का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण आचार्य बने और आज भी आचार्य बने हुए हैं। बाद के दिनों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कोलकाता से निकलने और काबुल ले जाने वाले व्यक्ति भगत राम जी के बारे में पढ़ा। 1983 की बात है मैं पीलीभीत के एक इलाके में घूम रहा था। पता चला कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पेशावर से काबुल तक पहुंचाने वाले, जिनके लिए मेरे दिलों में गहरी आस्था और भक्ति भाव था। वह भगत राम जी इसी पीलीभीत शहर में रहते हैं।
मैं अपने अग्रज कामरेड स्वर्गीय स्वतंत्रता सेनानी बृजबिहारी लाल जी, जो लंबे समय तक भगत राम जी के साथ कम्युनिस्ट पार्टी में काम कर चुके थे और उनके मित्र थे, के साथ भगत राम जी के आवास पर गया। एक नौजवान को इस तरह से देख कर उस बुजुर्ग क्रांतिकारी के दिल में एक गहरा अनुराग पैदा हो गया। उन्होंने हमारे कामरेड से कहा कि अगर समय हो तो इस लड़के को यहां छोड़ दो। कल मैं इस कॉमरेड को जहां जाना होगा वहां भेज दूंगा। रात भर मैं उनके साथ रहा और पेशावर से काबुल की रोमांचक यात्रा का पूरा विवरण उन्होंने मुझे सुनाया। उसी समय उसी दिन पता चला कि उनका पूरा नाम भगतराम तलवार है और वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय कौंसिल के सदस्य भी हैं। भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन में 50 के दशक से ही लगातार सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। आज सोचता हूं नकली राष्ट्र वादियों के बारे में।जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर अपना जहरीला देश विरोधी प्रचार अभियान चलाते हैं। नेताजी का एक भी अनुयायी ऐसा नहीं है जिसने उनके साथ काम किया हो वह भारत के वामपंथी आंदोलन की अग्रिम कतार में न रहा हो। और जीवन भर समाजवादी मूल्यों के प्रति समर्पित न रहा हो।
आज बुद्ध के तक्षशिला का इलाका विश्व साम्राज्यवाद के आखेट स्थल में बदल गया है। सोवियत संघ की घुसपैठ का जब हम मार्क्सवादी लेनिनवादियों ने विरोध किया और कहा कि क्रांति का सैन्य निर्यात नहीं होता। तब बहुत सारे वामपंथी मित्रों ने उस समय हम लोगों का विरोध किया। उस समय भगत राम जी ने भी मुझसे कहा था कि सोवियत संघ को यह नहीं करना चाहिए था। अफगानिस्तान के लोग बहुत ही खुद्दार, अमन पसंद और स्वाभिमानी होते हैं। उन्होंने कभी भी किसी की ग़ुलामी नहीं स्वीकारी। उनके बादशाहों ने, उनके नायकों ने दुनिया में बहुत बड़ी-बड़ी विजय हासिल की है। भारत ने भी अनेक बार वहां के लोगों का पराक्रम देखा है। आज अफगानिस्तान की पहाड़ियां काबुल नदी का पानी कंधार और तंजबीर के इलाके अमेरिकी के रासायनिक बमों, बारूदों और बारूदी सुरंगों के विस्फोट को स्वचालित मशीन गन तोपों से अटे पड़े हैं। मुल्क के चप्पे-चप्पे पर अमेरिकी बर्बरता, क्रूरता के निशान तथाकथित लोकतांत्रिक दुनिया की अमानवीयता की गवाही दे रहे हैं।
शायद ही कोई मिट्टी का कोना बचा हो जहां साम्राज्यवादी पूंजी के क्रूर कारस्तानियों ने उसे मनुष्य के जीने लायक छोड़ा हो। लेकिन यह अफगानी नागरिकों की अपनी जिजीविषा है जिसके बल पर उन्होंने दुनिया के सबसे बरबर महाबली ताकत को पीछे खदेड़ दिया। इस दौर में अमेरिका की रक्त पिपासु कारपोरेट कंपनियों ने मनुष्यता के खिलाफ जो अपराध किया है उसे आने वाला इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। 70 के दशक में अफगानिस्तान लोकतांत्रिक और समाजवादी मूल्यों की तरफ बढ़ रहा था। यह एक ऐसा मुल्क है जो अपनी जियोपोलिटिकल स्थिति के चलते अरब जगत सहित पश्चिमी दुनिया और भारतीय उपमहाद्वीप का प्रवेश स्थल है। जो किसी भी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय ताकत के लिए महत्वपूर्ण रणनीतिक केंद्र भी है। अमेरिका अपने वैश्विक वर्चस्व के लिए अफगानिस्तान की इस स्थिति को नजरअंदाज नहीं कर सकता था। इसलिए अफगानिस्तान को अपने हितों में एक कट्टरपंथी इस्लामिक मुजाहिद्दीन सेना का संगठन कर पीछे की तरफ धकेल दिया। इसके लिए उन्होंने पाकिस्तानी आईएसआई और सीआईए का एक गठबंधन तैयार किया।
सोवियत विरोधी राष्ट्रीय भावना का फायदा उठाकर अफगानिस्तान को छोटे-छोटे लड़ाकू समूहों कबीलों के बर्बर जाल में फंसा दिया। जिन्हें हथियार गोला बारूद और भारी धन मुहैया कराया गया। सोवियत संघ को पीछे हटना पड़ा। यहीं से तालिबानी राजनीतिक ताकत का अभ्युदय और अफगानिस्तान के आंतरिक गृह युद्ध में फंसने का दौर शुरू हो जाता है। जो अमेरिका के लिए बहुत ही फायदेमंद था। पहाड़ों की गोद में बसे सुरयम्य घाटियों नदियों जंगलों और उर्वरक पठारों से बने खूबसूरत भूखंड की मार्मिक ऐतिहासिक कहानी है। महाशक्तियों के खतरनाक खेल जो हमने येरूशलम और गाजा पट्टी के इलाके में भी देखा उसे आज कंधार काबुल के इलाके में भी देख रहे हैं। यह दुर्भाग्य है भारत में बैठे हुए हिंदुत्व नकली राष्ट्रवादी विध्वंसक अपराधी गिरोह भारत की जनता में इस अवसर का लाभ उठाकर अफगानी नागरिकों के विरोध में एक माहौल बना रहे हैं। और भारत के लिए फिर से एक नए दुश्मन के सामने खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। आज भारत के हर लोकतांत्रिक नागरिक के लिए आवश्यक है कि भारतीय सत्ता प्रतिष्ठानों द्वारा फैलाए जा रहे इस जहरीले विध्वंसक अभियान का मुकाबला करे।
इस जहरीले प्रचार अभियान में खुद को शामिल न होने दे। अफगानिस्तान में जो कुछ भी फैसला होगा वहां का लोकतांत्रिक जनमानस करेगा। अफगानिस्तान के प्रगतिशील नागरिक इंजीनियर, वैज्ञानिक, डॉक्टर, बौद्धिक जगत के लोग इस बात से चिंतित हैं और संगठित हो रहे हैं। वे अपना रास्ता खुद ढूंढेंगे । अफगानी नागरिक किस राज्य व्यवस्था को पसंद करेंगे उनकी अपनी समझ और उनकी क्षमता पर निर्भर करेगा। लेकिन हम भारत में इसकी आड़ लेकर चलाए जा रहे किसी भी घृणित सांप्रदायिक अभियान का कड़ा प्रतिवाद करेंगे। अफगानी लोग और सरकार हमेशा से भारत और भारत की जनता का मित्र और सहयोगी रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उन्होंने हर दौर में कठिन से कठिन दौर में भारत का समर्थन किया है। हर राष्ट्र और समाज के जीवन में ऐसे अंधकार भरे दौर आते हैं। लेकिन हमें महा शक्तियों के क्रूर जाल का पर्दाफाश करना और उनके खेल को कामयाब नहीं होने देना है ।
हम अपने पड़ोस में नाटो और सीटो तथा अमेरिकी लाबी के विध्वंशक कारोबार को जारी रहने की इजाजत नहीं दे सकते। अफगानी नागरिकों ने अमेरिका से अपने को आजाद किया है आने वाले समय में वे किसी कट्टरपंथी सांप्रदायिक मजहबी देश बनने से खुद को बचा लेंगे हमें यह उम्मीद है। आज अफगानिस्तान जिस विध्वंसक टकराव के दौर से गुजर रहा है हम उम्मीद करते हैं कि शीघ्र ही वहां के जागरूक जन गण इस संकट से बाहर निकल आएंगे और अफगानिस्तान में एक लोकतांत्रिक आधुनिक गणराज्य बनाने में कामयाब होंगें। भारतीय नागरिकों को भाजपा आरएसएस के द्वारा संचालित इस्लामोफोबिया की परियोजना का हिस्सा नहीं बनना होगा। हमें सचेत रहना है और हर तरह के अफगानिस्तान के नाम पर चलाए जा रहे आंतरिक घृणा अभियान का मजबूती से प्रतिकार करना है। आज हम सबके सामने यही कार्यभार है। जिसे अंजाम देने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए।
अफगान नागरिकों को अपने समाज और राष्ट्र के भविष्य का फैसला करने में उन्हें मदद करनी चाहिए। अमेरिका, रूस, चीन, ईरान, भारत, पाकिस्तान किसी को भी अफगानिस्तान के संकट का लाभ उठाने और उसे गलत दिशा में ले जाने की कोशिश को रोकने का कार्यभार हमें पूरा करना होगा। यही भारतीय उपमहाद्वीप के जन गण के समग्र हित में होगा। भारतीय शासक वर्ग जिस तरह से अमेरिका के साथ रणनीतिक रिश्ता बना कर भारत में अमेरिका की घुसपैठ को मजबूत करने और उसके पूंजी के जाल को फैलने की इजाजत दे रहा है हमारे लिए चिंता का विषय है। हमें अफगानिस्तान की त्रासदी से निश्चय ही सबक लेना चाहिए। वियतनाम, लाओस, कंबोडिया, अफगानिस्तान में अमेरिका को करारी शिकस्त मिली है। भारतीय नागरिकों को भी अमेरिकी विशालकाय कारपोरेशनों की गिरफ्त से भारत को जाने से बचाने की लड़ाई को आगे बढ़ाना आज की ऐतिहासिक जरूरत है। यही अफगानिस्तान त्रासदी का हमारे देश के लिए सबक भी है।
(जयप्रकाश नारायण सीपीआई एमएल के आजमगढ़ जिले के प्रभारी हैं।)
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