‘बजाज’ के बाद ‘पारले’ ने भी जहरीले न्यूज चैनलों को विज्ञापन न देने का फैसला किया है। पारले इस मुहिम में कुछ और कंपनियों को शामिल करने की कोशिश कर रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि समाज में जहर घोलने वाले चैनलों के खिलाफ कुछ और कंपनियां आगे आएंगी।
अमेरिका में भी कई कंपनियों ने एकजुट हो कर फेसबुक के खिलाफ ‘स्टॉप हेट फॉर प्रॉफिट’ कैंपेन की शुरुआत की थी। इसके तहत फेसबुक पर विज्ञापन रोक कर उसे ‘डिफंड’ करने की मुहिम को आगे बढ़ाया गया था। पचासों अमेरिकी कंपनियां फेसबुक को अपना विज्ञापन न देने के मुद्दे पर एकजुट हुई थीं। इसके बाद ही फेसबुक को अपनी नीतियां बदलनी पड़ी थीं।
अब कुछ उसी तर्ज़ पर भारतीय कंपनियों ने भी जहरीले न्यूज चैनलों के खिलाफ़ अपने विज्ञापन रोकने की मुहिम शुरू की है।
मुंबई पुलिस द्वारा रिपब्लिक और दो मराठी चैनलों के ‘झूठे टीआरपी रैकेट’ पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के कुछ देर बाद ही बजाज ऑटो के एमडी राजीव बजाज ने कहा कि उनकी कंपनी बजाज ऑटो ने विज्ञापनों के लिए तीन चैनलों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है। सीएनबीसी टीवी 18 के साथ बातचीत में उन्होंने ब्लैकलिस्ट चैनलों को समाज के लिए हानिकारक बताते हुए कहा, “हम बहुत स्पष्ट हैं कि हमारा ब्रांड कभी भी किसी भी ऐसी चीज से जुड़ा नहीं होगा जो हमारे समाज में जहर फैलाने का काम करते हैं।”
उन्होंने कहा कि एक मजबूत ब्रांड एक नींव है, जिस पर आप एक मजबूत व्यवसाय बनाते हैं। एक मजबूत व्यवसाय का उद्देश्य भी समाज के लिए योगदान करना है। हमारा ब्रांड कभी भी किसी चीज से जुड़ा नहीं है जो हमें लगता है कि समाज में विषाक्तता का स्रोत है।”
बेस्ट मीडिया इन्फो में पारले ने की थी सभी न्यूज विधाओं के बहिष्कार की अपील
अमेरिका की बड़ी कंपनियों द्वारा फेसबुक के खिलाफ़ चलाए जा रहे डिफंड कैंपेन के बाद ही बेस्ट मीडिया इन्फो की एक रिपोर्ट में देश की प्रमुख विज्ञापनदाता कंपनियों ने न्यूज चैनलों पर बढ़ते जहरीलेपन के बीच चिंता व्यक्त की थी। पारले उत्पाद के सीनियर मार्केटिंग हेड कृष्णराव बुद्ध ने कहा था, “एक दर्शक और विज्ञापनदाता के रूप में, मुझे वास्तव में लगता है कि समाचार चैनल दयनीय स्तर तक गिर गए हैं और विज्ञापनदाताओं के पास इस दुष्चक्र को तोड़ने का अवसर है, ब्रांडों को ऐसा सामूहिक रूप से करना चाहिए और ये वास्तविक उद्देश्य के साथ होना चाहिए। ऐसा करते समय, हमें इसका कारण भी बताना चाहिए कि हम सभी ऐसा कंटेंट के चलते कर रहे हैं। मैं मानता हूं कि ऐसा वातावरण किसी भी ब्रांड के लिए ख़तरनाक है, क्योंकि यह इन्हें भी नुकसान पहुंचाता है।”
इसके बाद कृष्णाराव बुद्ध ने सभी ब्रांडों से उसी मंच से अपील करते हुए कहा था, “मैं सभी प्रमुख विज्ञापनदाताओं को एक साथ आने और सभी समाचार विधाओं पर प्रतिबंध लगाने की अपील कर रहा हूं, जब तक कि वे समाचार में पवित्रता और नैतिकता लाने के लिए मजबूर न हों। मैं सभी समाचार विधाओं की बात कह रहा हूं, क्योंकि कहीं न कहीं उन्हें रिपोर्टिंग में ईमानदारी लानी होगी और केवल टीआरपी को ध्यान में रखते हुए ऐसी कहानियां नहीं बनानी चाहिए, जो अंतत: प्रत्येक दिमाग में जहर घोल रही हों।”
राव ने मुहिम की सफलता के बाबत कहा था, “शुरू में, मैंने सोचा था कि सभी विज्ञापनदाताओं को एक ही मंच पर लाना मुश्किल होगा, लेकिन यह असंभव नहीं है, यदि अधिकांश बड़े विज्ञापनकर्ता अपने ब्रांडों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने के दृष्टिकोण से सोचते हैं और यदि उन्हें उद्देश्यपरक ब्रांड के रूप में अपनी पहचान कायम रखना है तो वो ज़रूर इस मुहिम के साथ आएंगे।”
वहीं अमूल के कार्यकारी निदेशक आरएस सोढ़ी ने भी कहा था, “समाचार चैनल युवाओं के मन में नकारात्मकता ला रहे हैं और अब समय आ गया है जब विज्ञापनदाताओं को कार्रवाई करना होगा। अमूल वर्तमान में अपने कुल टेलीविजन बजट का 35-40 फीसदी समाचार चैनलों पर खर्च करता है। निस्संदेह, समाचार चैनल उपभोक्ता तक पहुंचने के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं और इसलिए आप उन पर पूरी तरह से विज्ञापन रोक नहीं सकते हैं। लेकिन, आप यह कहकर उनके ऊपर दबाव बना सकते हैं कि वो आइंदा इस तरह का व्यवहार नहीं करें। किसी भी विशेष घटना का उल्लेख किए बिना, हम निश्चित रूप से उन्हें व्यवहार करने और अवांछित आक्रामकता को नहीं दिखाने के लिए कह सकते हैं।” अमूल के निदेशक सोढ़ी ने कहा कि वो आगे बढ़ने का रास्ता सुझाने के लिए ब्रांड की मीडिया एजेंसी से बात करेंगे।
मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के सेल्स एंड मार्केटिंग के कार्यकारी निदेशक शशांक श्रीवास्तव ने कहा था, “सैद्धांतिक तौर पर, विज्ञापनदाताओं के लिए अच्छी और स्वच्छ सामग्री के साथ मीडिया में निवेश करना एक अच्छा विचार है। ब्रांड आमतौर पर दुर्भावनापूर्ण या अपमानजनक सामग्री के साथ जुड़ना पसंद नहीं करेंगे। ब्रांडों को इस तरह की तानाशाही से दूर रहना चाहिए कि समाचार चैनलों को किस तरह की सामग्री को चलाना है।” उन्होंने कहा कि विज्ञापन का पैसा कंटेंट को डायरेक्ट कर सकता है या नहीं, यह एक बहस-तलब मुद्दा है। और यहां तक कि अगर यह वांछनीय या संभव था, तो समान रूप से अस्थिर मुद्दा है कि कौन और क्या निर्णय लेता है कि सामग्री या व्यवहार आक्रामक या दुर्भावनापूर्ण है या विनाशकारी है। एक समाज के रूप में, हम यह परिभाषित करते हैं कि क्या स्वीकार्य है और क्या नहीं। और उसी के अनुसार काम करते हैं।
इस बीच भगवा गैंग ने बजाज और पारले के खिलाफ़ सोशल मीडिया पर बॉयकॉट मुहिम चलाना शुरू कर दिया है।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)