Friday, April 19, 2024

जनता को कोरोना के हवाले कर राफेल के बाद अब राम मंदिर पर जश्न की तैयारी

आखिर रफाले भारत आ ही पहुंचा। क्या शान से स्वागत हुआ है। इतिहास में आज तक शायद ही कभी किसी भी रक्षा सौदे का इतना भव्य स्वागत हुआ हो। कमीशनखोरी के आरोपों का डर पिछले 40 सालों से हमेशा से बना रहता था। राजीव गांधी की भारतीय इतिहास में अब तक की सबसे शक्तिशाली सरकार तक को बोफोर्स की खरीदारी ने ही कालिख पुतवा दी थी।

हमें याद है कि वीपी सिंह के साथ-साथ हमने भी इस देश में जगह-जगह जार्ज फर्नांडिस के कलेजी कलर के स्वेटर में भाषण सुनने के लिए इलाहाबाद में घूम-घूम कर भाषण सुने थे। मिस्टर क्लीन नाम से मशहूर राजीव गांधी को मिस्टर डर्टी बनाने का काम वीपी सिंह ने बोफोर्स तोपों के जरिए ही किया था। आज शायद ही कोई टीवी एंकर दिखता हो, जो राफेल पर कोई सवाल रखे।

अख़बारों को तो लगता है देश ने पढ़ना ही छोड़ दिया है। शायद अब अख़बार पढ़ने का काम सिर्फ प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने के दौरान ही किया जाता है। वैसे भी नौकरी तो अब है भी नहीं, इसलिए शायद यह काम भी स्थगित हो रखा है।

फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलंडे भी आज कितना शर्मिंदा होंगे। पता नहीं उन्हें क्या खब्त सवार हुई कि जब राफेल का मामला कुछ साल पहले तूल पकड़ा तो बोल उठे थे, वे चीजें, जो फ़्रांस के राष्ट्रहित से नहीं जुड़ी थीं। उल्टा कहा जाए तो फ़्रांस के हित के खिलाफ थीं। उनके देश की एक रक्षा विमान बनाने वाली निजी कंपनी बंदी के कगार पर खड़ी थी। उसे भारत के प्रधानमंत्री ने अपने देश के तमाम रक्षा विशेषज्ञों की तकनीकी बाधाओं को एक झटके में किनारे कर सौदे को मंजूरी दे डाली थी।

आख़िरकार होलंडे से बेहतर तो फ़्रांस के नए नवेले राष्ट्रपति मैक्रों निकले। जब सामने से आंख का अंधा और गांठ का पूरा मिल रहा हो, तो उसे लेने से इंकार करना अपने-आप में कितनी बड़ी मूर्खता है। इसे नई पीढ़ी वाले लोग कहीं बेहतर समझ सकते हैं।

खैर इस बारे में काफी कुछ पहले भी लिखा जा चुका है। यदि किसी को रुचि है तो द हिन्दू के एन राम ने इस पर तफसील से मय सुबूतों के सब कुछ इतनी बार लिख डाला है, कि इसके आगे कुछ भी कहना सूरज को रोशनी दिखाने के समान है, लेकिन क्या फर्क पड़ता है। झूठ को यदि हजार बार बोला जाए तो सच को बड़ी बेरहमी से मौत के घाट सुलाया जा सकता है।

असल में सवाल आज यह है कि क्या एक बार फिर से राफेल अगले एक हफ्ते तक भोलीभाली जनता को अपनी बेरोजगारी, भुखमरी और कोरोना से लगातार तिल-तिल बढ़ते मौत के मुहाने पर खड़े देश से ध्यान भटकाने के औजार के रूप में इस्तेमाल होना मंजूर हो सकता है।

अगले हफ्ते तक अयोध्या में रामजन्मभूमि के शिलान्यास का मुद्दा पहले से ही पृष्ठभूमि में गरमाने के लिए देश भर में कई संगठन लगे हुए हैं। इसलिए इस बारे में कोई संदेह नहीं कि सत्ता पक्ष के पास आने वाले समय में लम्बे समय तक दोनों हाथ भरे हुए हैं।

इस बीच देश को फुर्सत मिले तो वह कोरोना वायरस के बढ़ते संकट, और हाल ही में छोटे और मझौले उद्योगों के बारे में आए नवीनतम सर्वेक्षण को देखने की जहमत उठा सकता है। इसमें साफ़ किया गया है कि मार्च से लेकर जून के बीच में इस क्षेत्र से 2.5-3 करोड़ लोग बेरोजगार हुए थे, जो जुलाई से सितंबर की तिमाही में 1.5 करोड़ लोग और बेरोजगार हो सकते हैं। ये आंकड़े भले ही अब भयावह नहीं लगते, क्योंकि भुखमरी और बेरोजगारी के प्रति हमारी इम्म्युनिटी अब इतनी बढ़ चुकी है कि अब इन आंकड़ों का हम पर कोई असर नहीं पड़ता।

कोरोना के लिए लगाए गए लॉकडाउन का असर काम-काज पर पड़ा था। उसके बारे में सह-सही अनुमान उद्योग अभी तक नहीं लगा सका था, अब उसे अनलॉक की इस प्रक्रिया में दो-चार होना पड़ रहा है। इस समय इस ज्वार-भाटे में भाटे के समय को कोई नहीं चीन्हता। यहां तो लॉकडाउन के समय के उद्योगों की कोई फ़िक्र नहीं देश के हुक्मरानों को, और जो इससे पीड़ित हुए हैं। तो भला अब एक बार दोबारा खुलकर अंततः मर रहे उद्योगों की कौन परवाह करे?

इस सबके बावजूद चूँकि मामला आज 15 लाख से अधिक संक्रमित लोगों का है, जिसमें देश के लाखों लोगों को एक बार फिर से 15-15 लाख यूं ही मिलने के ख्वाब आए थे। इसके चलते वे सभी आज भी उस मुगालते की सजा पा रहे हैं। इस बार के 15 लाख की संख्या का जिक्र देश के लिए कोढ़ में खाज साबित हुआ है।

मजाल है कि कांग्रेस में राहुल और उनके कुछ कांग्रेसी टोली के अलावा बाकी के विपक्षी स्पेस में इसको लेकर कोई भव्य आयोजन की तयारी हो। तकरीबन सभी राजनीतिक दल आज के दिन में क्वारंटीन हालत में नीम बेहोशी के दौर में चले जा चुके हैं। मोदी सरकार और उसकी राज्य सरकारों ने कोरोना को ‘आपदा में अवसर’ के तौर पर भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी है।

आज 29 जुलाई के यदि नवीनतम आंकड़ों पर नजर डालें तो कोरोना का कहर अब 15 लाख को भी पार कर एक ही दिन में 16 लाख को छूने के लिए मचल उठा है। रात 11 बजे तक आंकड़े कुछ इस प्रकार थे…
भारत देशे, कलियुगे 29 जुलाई रात्रि 11 बजे तक भारत सरकार के कोविड साईट के अनुसार कुल संक्रमित लोगों की संख्या 15 लाख 84 हजार 299 हो चुकी थी। मरने वालों की कुल संख्या 35000 हो चुकी थी।

महाराष्ट्र में कुल संक्रमित लोगों की संख्या पहली बार चार लाख के आंकड़े को भी पार कर चुकी है।

इसके बाद तमिलनाडु में 2.34 लाख, दिल्ली 1.33 लाख के साथ तीसरे नंबर पर बना हुआ है। बहुत जल्द ही उसे पछाड़ने के लिए कई राज्यों में जबर्दस्त होड़ लगी हुई है। इसमें फिलहाल कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में होड़ लगी हुई है, और ये दोनों राज्य एक लाख के आंकड़े को पार कर चुके हैं। वास्तव में देखें तो आज आंध्रप्रदेश में पहली बार ये आंकड़े एक दिन में ही 10000 से ऊपर गए हैं, जो शायद सिर्फ एक बार महाराष्ट्र के इतिहास में देखने को मिला था। महाराष्ट्र में भी आज ये मामले 9000 से ऊपर है।

यदि थोड़ा और गहराई में जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि मुंबई अब तकरीबन कोरोना की लहर से मुक्त होता दिख रहा है, जैसा कि दिल्ली अब करीब-करीब सामान्य स्थिति की और लौटता दिख रहा है। जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में आज तकरीबन 3400 नए मामले प्रकाश में आने के साथ वहां पर कुल संख्या 77000 को पार कर गई है, लेकिन इसे कहीं से भी यूपी के पीक के तौर पर नहीं गिना जा सकता।

हाल ही में विदेश से लौटे एक मित्र से बात करने पर पता चला है कि तमाम लफ्फाजियों के बावजूद जिस प्रकार की लापरवाही यूपी में विदेशों से लौट रहे लोगों के साथ देखने को मिल रही है, ऐसे में वह 22 करोड़ की आबादी के साथ क्या कर रही होगी, इसे अच्छे से समझा जा सकता है। मित्र के अनुसार, हवाई अड्डे से लौटते समय भले ही 8 घंटे रुकना पड़ा था, लेकिन क्वारंटीन के लिए जब कहा गया कि आपको एक हफ्ते दिए गए यूपी गाजियाबाद के होटलों में रुकना होगा, और अगले एक हफ्ते अपने घर पर रहना होगा, तो इन चौदह दिनों में एक बार भी डॉक्टर क्या आदमजात भी सरकार की ओर से झांकने नहीं आया है।

यूपी और बिहार को वाकई में ऐसे में पांच अगस्त को होने वाले भव्य राम मंदिर के शिलान्यास की ही जरूरत है। वैसे देखने में किसी को लग सकता है कि इस आयोजन के माध्यम से भक्तों ने हिंदुओं के आराध्य राम को स्थापित करने की मुहिम को एक अंजाम तक पहुंचाने का काम किया है। लेकिन यह बेड़ा राम ही वर्तमान सरकार के पार कराने के लिए काम आ रहे हैं, वक्त ही बताएगा।

(लेखक स्वंतत्र टिप्पणीकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।

Related Articles

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।