Friday, March 29, 2024

राणा के बाद अब बैंक लूटने वाले अंबानी और अन्य कार्पोरेट्स कब होंगे गिरफ्तार?

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रविवार तड़के दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में यस बैंक के को-फाउंडर राणा कपूर को गिरफ्तार कर लिया। ईडी अधिकारियों ने उनसे करीब 30 घंटे की पूछताछ की।

इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि जिसने बैंक लुटवाया वो तो गिरफ्तार हो गया पर उन बड़े-बड़े कार्पोरेट्स की गिरफ्तारी क्यों नहीं हो रही, जिन्होंने बैंक लूटा? क्या नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या की तरह इनके विदेश भाग जाने का इंतजार सरकार कर रही है? तब इनके खिलाफ मुकदमें दर्ज़ होंगे, लुकआउट नोटिसें जारी होंगी।

वास्तव में यस बैंक जो सफलता की ऊंचाईयां तय करता जा रहा, यकायक उसकी स्पीड पर ब्रेक लग गया, क्योंकि जिन बड़े लोगों को उसने कर्ज दिया था, वह वापस नहीं लौटा रहे थे। बैंक ने उन लोगों को भरपूर पैसा दे डाला जो डूब रहे थे। कैफे कॉफी डे ग्रुप के मालिक वीजी सिद्धार्थ ने कर्ज के कारण आत्महत्या कर ली।

जबकि जेट एयरवेज के मालिक नरेश मित्तल ने जेट एयरवेज के पहियों को जाम कर डाला। बैंक के तीसरे बड़े डिफाल्टर अनिल अंबानी हैं, जिनकी कंपनी भी नष्ट होने के कगार पर है। ये सभी अरबों का कर्ज डकार गए।

इनके अलावा बैंक ने दीवान फायनेंस और डीएचएलएफ के कपिल वधावन, सीजी पावर के पूर्व चेयरमैन गौतम थापर, कॉक्स एंड किंग्स को भी बड़ा लोन दिया था। इसके अलावा यस बैंक  ने आईएलएंडएफएस, सीजी पावर, एस्सार पावर, एस्सेल ग्रुप, रेडियस डिवेलपर्स और मंत्री ग्रुप जैसे ग्रुप्स को लोन बांटे हैं। इनके डिफॉल्टर होने से यस बैंक की यह हालत हुई है।

दरअसल यस बैंक के ग्राहकों की लिस्ट में रीटेल से ज्यादा कॉरपोरेट ग्राहक हैं। यस बैंक ने जिन कंपनियों को लोन दिया, उनमें अधिकतर घाटे में हैं। कंपनियां दिवालिया होने की कगार पर हैं, लिहाजा लोन वापस मिलने की गुंजाइश कम है, जब कंपनियां डूबने लगीं तो बैंक की हालत भी पतली होने लगी। अब यस बैंक की भी जिम्मेदारी स्टेट बैंक आफ इंडिया और एलआईसी लेड कंसोर्शियम के उठाने की बात चल रही है, जिसका जनादेश केंद्र सरकार के पास नहीं है।

वास्तव में कुल मिलाकर यस बैंक के पास दो ही ऑप्शन बचे हैं कि या तो इसके लिए कोई इन्वेस्टर आगे आए और निवेश करे या फिर इसका किसी और बैंक के साथ मर्जर कर दिया जाए। लेकिन मर्जर होने की चांस भी कम ही हैं।

यस बैंक के घोटाले ने काफी हद तक सिस्टम के फेल्योर को उजागर कर दिया है। मोदी सरकार अपने पहले टर्म में कहती थी कि वो यूपीए सरकार की गलतियों को भुगत रही है, लेकिन पिछले सालों में इकनॉमी पर जीएसटी और नोटबंदी का बुरा असर हुआ। उसके बाद पीएनबी बैंक में घोटाले उजागर हुए। आईएलएंड एफएस का मामला हो या फिर महाराष्ट्र के पीएमसी बैंक का सरकार का लचर रवैया ही देखने को मिला है।

यस बैंक पर कुल 24 हजार करोड़ डॉलर की देनदारी है। बैंक के पास करीब 40 अरब डॉलर (2.85 लाख करोड़ रुपए) की बैलेंस शीट है। यस बैंक को कैपिटल बेस बढ़ाने के लिए दो अरब डॉलर चुकाने होंगे। बैंक ने इसके लिए अपना रेजोल्यूशन प्लान घरेलू लेंडर्स एसबीआई, एचडीएफसी, एक्सिस बैंक और एलआईसी को भी सौंपा था, लेकिन उनके प्लान पर लेंडर्स में सहमति नहीं बनी है। अगस्त 2018 में बैंक के शेयर का प्राइस 400 रुपये था, जो नकदी की कमी के चलते फिलहाल 37 रुपये के आसपास है। बैंक का मार्केट कैप 8,888.40 करोड़ रुपये है।

आरबीआई किसी भी सूरत में देश के चौथे बड़े प्राइवेट यस बैंक को डूबने से बचाना चाहता है। इसी वजह से गुरुवार को इस बैंक पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं। यस के निदेशक मंडल को भंग कर दिया गया है। बैंक के ग्राहक केवल 50 हजार रुपये की नकदी निकाल सकेंगे। सरकार यस बैंक को डूबने से बचाने के लिए एसबीआई की योजना मंजूर करने के साथ एसबीआई को यस बैंक में हिस्सा खरीदने के लिए कंसोर्शियम बनाने को कह सकती है।

एसबीआई के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी (सीएफओ) प्रशांत कुमार को यस बैंक का प्रशासक नियुक्त किया गया है। रिजर्व बैंक ने बयान में कहा है कि केंद्रीय बैंक इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि विश्वसनीय पुनरोद्धार योजना के अभाव, सार्वजनिक हित और बैंक के जमाकर्ताओं के हित में उसके सामने बैंकिंग नियमन कानून, 1949 की धारा 45 के तहत रोक लगाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है।

इससे पहले दिन में सरकार ने एसबीआई और अन्य वित्तीय संस्थानों को यस बैंक को उबारने की अनुमति दी थी। यदि इस योजना का क्रियान्वयन होता है तो कई वर्षों में यह पहला मौका होगा जबकि निजी क्षेत्र के किसी बैंक को जनता के धन के जरिए संकट से उबारा गया।

इससे पहले 2004 में ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का ओरियंटल बैंक आफ कॉमर्स में विलय किया गया था। 2006 में आईडीबीआई बैंक ने यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक का अधिग्रहण किया था। इससे करीब छह माह पहले रिजर्व बैंक ने बड़ा घोटाला सामने आने के बाद शहर के सहकारी बैंक पीएमसी बैंक के मामले में भी इसी तरह का कदम उठाया था।

सितंबर, 2018 में यस बैंक में हो रही अनियमितताएं खुलकर सबके सामने आ गईं, जब रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने तीन वजहों का हवाला देते हुए राणा कपूर को 31 जनवरी, 2019 के बाद बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ के पद पर बने रहने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। केंद्रीय बैंक ने इस फैसले के लिए यस बैंक में नियमों के पालन में ढिलाई और खराब गवर्नेंस को प्रमुख वजह के रूप में गिनाया।

आरबीआई की सख्ती के कारण कपूर को पद छोड़ना पड़ा और रवनीत गिल बैंक के नए प्रमुख बने। इसी बीच यस बैंक के खिलाफ भेदिया कारोबार के आरोप भी लगे। हालांकि, बैंक की सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ और आरबीआई ने बैंकिंग एक्ट के मुताबिक यस बैंक का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है।

भ्रष्टाचार में लिप्त डीएचएफएल ने बैंक द्वारा दिए गए 4,450 करोड़ रुपये के लिए इस कंपनी को पैसे दिए थे, जिसकी जांच की जा रही थी। ईडी अधिकारियों ने कहा कि यस बैंक ने डीएचएफएल को 3,750 करोड़ रुपये का ऋण और डीएचएफएल द्वारा नियंत्रित फर्म आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स को 750 करोड़ रुपये का एक और ऋण किया था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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