Saturday, April 20, 2024

अग्निपथ योजना का विरोध: मोदी सरकार के लिए क्या है राजनीतिक सबक?

नरेन्द्र मोदी सरकार के द्वारा सैन्य सुधार के नाम पर लायी गयी अग्निपथ योजना का चौतरफा विरोध हो रहा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, हरियाणा, तेलंगाना में बड़ी संख्या में छात्र-युवा इस योजना के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। एक दौर में बिहार में प्रदर्शन हिंसक गया और बड़े पैमाने पर रेलवे सहित सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुँचाया गया है। पिछले तीन दिनों से राज्य के 12 जिलों में इंटरनेट सेवा बंद है।

छात्र और युवाओं के द्वारा लगातार उग्र प्रदर्शन को देखते हुए मोदी सरकार ने सैन्य अफसरों को इस योजना के बचाव में आगे कर दिया है। लगातार सैन्य अफसर इस योजना की तथाकथित अच्छाइयों को मीडिया के सामने रख रहे हैं। हालांकि इन सबके बावजूद छात्र और युवा तंत्र में रोष थमता नहीं दिख रहा है। ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही केन्द्र की सरकार इन प्रदर्शनों से कोई राजनीतिक सीख लेगी? 

मोदी सरकार की खामियाँ

इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस वक्त नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे मजबूत और सबसे लोकप्रिय पार्टी है। एक समय तक ब्राह्मण, बनिया और शहरी क्षेत्रों की पार्टी कही जाने वाली भारतीय जनता पार्टी को नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह के कुशल संगठन की वजह से देश के सुदूर इलाकों में भी अपनी पकड़ बनाई है। आज उत्तर और पश्चिम भारत के अलावा पूर्व के राज्य जैसे बंगाल और ओडिसा में भी भाजपा अपने संगठन को मजबूती दे रही है। पूर्वोत्तर के राज्यों में भी भाजपा की सरकार है। एक पार्टी के रूप में निश्चित तौर पर भाजपा ने काफी प्रगति की है लेकिन क्या भाजपा देश के लोकतंत्र को भी मजबूत बना रही है? इस प्रश्न का जवाब ढूंढना ज्यादा मुश्किल नहीं है।

पिछले 8 वर्षों में भाजपा की राजनीति का सबसे नकारात्मक पक्ष यही रहा है कि पार्टी ने लोकतंत्र को सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित कर दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि लोकतंत्र में चुनाव का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, चुनाव ही वो माध्यम है जिसके तहत राजनीतिक दल को वैधता मिलती है। लेकिन ‘चुनावी जीत’ लोकतंत्र में सब कुछ नहीं होता। चुनाव होना और उसमें किसी एक दल को जीत मिले यह सिर्फ एक अंग है। लोकतंत्र का एक और महत्वपूर्ण पक्ष होता है ‘विपक्ष’ का होना। विपक्ष वो होता है जो सत्ता की लड़ाई में पिछड़ जाता है।

कोई भी राजनीतिक दल अपने प्रतिद्वंदी को हराना चाहता है लेकिन भाजपा के द्वारा लगातार कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष को अवैध करार देने की कोशिश की जा रही है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया जिसका नतीजा यह हुआ कि उनके प्रवक्ताओं ने टीवी पर बैठकर एंटी नेशनल का सर्टिफिकेट बाँटना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थकों की एक बहुत बड़ी फौज है, सरकार के किसी भी फैसले का विरोध करने वाले पत्रकारिता, कला, अकादमी जगत से जुड़े लोगों को पाकिस्तानी, देशद्रोही, जैसे अपमानजनक शब्द कहे जाते हैं, भाजपा नेतृत्व के द्वारा कभी भी अपने समर्थकों को रोकने की कोशिश नहीं की जाती है। 

भाजपा को यह समझना होगा कि वह इस देश की सत्ताधारी पार्टी है। उसे सबको साथ में लेकर चलने की कोशिश करनी ही होगी। एक बात यहाँ गौर करने योग्य यह है कि पिछले 8 वर्षों में सुधार के नाम पर लाए गए भूमि अधिग्रहण कानून, किसान कानून या अभी आने वाली अग्निपथ योजना, इन सब पर व्यापक सहमति बनाने के बजाए इन्हें ऐसे प्रस्तुत किया गया जैसे एक अहंकारी सरकार अपने फैसले को थोप रही है। क्या यह अच्छा नहीं होता कि सरकार विपक्ष की पार्टियों को बुलाकर उन्हें इस पर पहले से अवगत कराती कि उसकी योजना क्या है?

विपक्ष के भी कुछ वाजिब सुझाव होते उनको सुनती जिन राज्यों में इस योजना का सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है सरकार अगर चाहती तो पहले से आर्मी में जाने का सपना देखने वाले युवाओं के साथ संपर्क साधने की कोई योजना तैयार कर सकती थी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया जिसका नतीजा यह हुआ की लाचार और हताश युवा सड़कों पर उतर आया। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक बार लोकसभा में कहा था कि देश बहुमत से नहीं बल्कि सहमति से चलता है। दुर्भाग्य से उनकी सरकार के काम करने के तरीके में इसका अभाव दिखता है। 

(रूपेश रंजन जेएनयू में शोध छात्र हैं।)

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