Friday, March 29, 2024

अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी ने भी माना कि कृत्रिम नहीं है कोविड 19 वायरस, ट्रम्प की परेशानी बढ़ी

वैसे तो सारी दुनिया में जनता की नब्ज़ को भाँपने के लिए अनेक सर्वेक्षण होते हैं, लेकिन अमेरिकी सर्वेक्षणों की प्रतिष्ठा ख़ासी बेहतर समझी जाती है। क्योंकि इनसे सच का आभास होता है। जबकि भारत में सर्वेक्षणों की आड़ में तरह-तरह के ‘खेल’ खेले जाते हैं। तभी तो भारत में कोरोना से निपटने को लेकर हुई तमाम लापरवाही के बावजूद नरेन्द्र मोदी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री होते हैं, जबकि इन्हीं लापरवाहियों के आधार पर ट्रम्प को अमेरिकी जनता कोरोना आपदा से निपटने में नाकाम करार देती है।

चुनावी साल में ट्रम्प को अमेरिकी जनता की नाराज़गी का आभास काफ़ी वक़्त से हो रहा था। तभी वो लगातार अपनी नाकामियों का ठीकरा चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पर फोड़ते रहे हैं। दूसरी ओर, मोदी को भी प्रवासी मज़दूरों और दिहाड़ी कामगारों की नाराज़गी का आभास तो काफ़ी पहले हो चुका था, उन्होंने माफ़ी माँगने का ढोंग भी किया, लेकिन हालात से निपटने के लिए अब जाकर अपने क़दम आगे बढ़ाये हैं, जब पानी सिर से ऊपर बहने लगा। यहाँ मोदी की तुलना ट्रम्प से इसीलिए हो रही है क्योंकि ‘झूठ का क़िला’ बनाने और ‘अफ़वाहों के ज़रिये सियासत चमकाने’ के लिहाज़ से ट्रम्प और मोदी, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। 

ट्रम्प को लगा तगड़ा झटका

अमेरिकी अख़बार ‘डेली मेल’ में प्रकाशित एक सर्वे के मुताबिक़, क़रीब 55 फ़ीसदी अमेरिकी जनता ने ट्रम्प को कोरोना वायरस से निपटने में नाकाम करार दिया है। इतना ही नहीं, अमेरिका में दोबारा स्कूलों को खोले जाने के ट्रम्प के फ़ैसले को भी लोगों ने सिरे से नकार दिया है। ट्रम्प ने 27 अप्रैल को कई राज्यों के गवर्नरों से स्कूलों को खोलने के बारे में चर्चा की थी। इस सवाल पर सर्वे में शामिल क़रीब 85 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि अभी स्कूल खोलना सरासर ग़लत आइडिया होगा। सिर्फ़ 14 फ़ीसदी लोगों ने ट्रम्प को ग़लत नहीं माना। ज़ाहिर है, ट्रम्प की लोकप्रियता औंधे मुँह गिर चुकी है। इसीलिए सर्वे को उनके लिए बहुत तगड़ा झटका माना जा रहा है।

बौखलाये ट्रम्प, ‘चीन मुझे चुनाव हरवा देगा’

जैसे भारत में चुनाव के वक़्त पाकिस्तान का राग अलापा जाता है, बिल्कुल वैसे ही अमेरिकी जनता के सामने ट्रम्प बार-बार चीन को अमेरिका का दुश्मन नम्बर वन बनाकर पेश कर रहे हैं। चीन को लगातार घेर रहे हैं। इस खेल में गोदी मीडिया भी उनका भरपूर साथ दे रहा है। कभी कोरोना को कृत्रिम बताया जाता है तो कभी जैविक हथियार, कभी प्रयोगशाला से लीक की थ्योरी चलती है, कभी WHO की लापरवाही और चीन से उसकी मिलीभगत की बातें होती हैं तो कभी चीन पर वक़्त रहते पूरा ब्यौरा नहीं देने की बातों को उछाला जाता है।

लेकिन अब अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने ऐसे तमाम दावों की हवा निकाल दी है। ट्रम्प-युग के बावजूद अमेरिका की लोकतांत्रिक संस्थाओं का भारत की तरह पूर्ण पतन अभी नहीं हुआ है। इसीलिए, अमेरिका के ‘ऑफ़िस ऑफ द डायरेक्टर ऑफ़ नेशनल इंटेलिजेंस’ ने ट्रम्प और उनके पीछे खड़े अमेरिकी गोदी मीडिया के इन दावों को सिरे से ख़ारिज़ कर दिया है कि कोविड-19 वायरस कृत्रिम या मानव-निर्मित है और ये वुहान की वायरोलॉजी लैब से लीक हुआ है। ख़ुफ़िया एजेंसी ने ये कहकर जैविक हथियार वाली थ्योरी को भी नकार दिया है कि कोविड-19 किसी जेनेटिक बदलाव का नतीज़ा है।

लेकिन अपनी सियासी खाल को बचाने के लिए डोनॉल्ड ट्रम्प का चीन पर हमला जारी है। न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स को दिये इंटरव्यू में ट्रम्प ने चीन को लेकर काफ़ी सख़्त शब्दों में कहा कि “मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ”। यानी, वायरस को लेकर चीन को सबक सिखाने के लिए विकल्पों पर काम चल रहा है। उनसे पूछा गया कि क्या वह चीन पर हाई टैरिफ का इस्तेमाल करेंगे या क़र्ज़ों को बट्टे खाते में डालेंगे? तो ट्रम्प सीधा जवाब टाल गये और बोले, “कई चीज़ें हैं जो मैं कर सकता हूँ”। अपनी गिरती लोकप्रियता से बौखलाए ट्रम्प ने कहा, “मैं हार जाऊँ, इसके लिए चीन जो कुछ भी कर सकता है, करेगा”।

‘बिडेन जीते तो अमेरिका पर चीन का क़ब्ज़ा’

ट्रम्प ने कहा कि वह मानते हैं कि चीन उनके प्रतिपक्षी और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार पूर्व उपराष्ट्रपति जोए बिडेनको जितवाना चाहता है। ताकि चीन पर व्यापार और अन्य मुद्दों को लेकर जो दबाव बना है, वह कम हो जाए। इससे पहले भी ट्रम्प कह चुके हैं कि ‘बिडेन जीते तो अमेरिका पर चीन का क़ब्ज़ा हो जाएगा’। ये बात बिल्कुल वैसी ही है जैसे 2015 में बिहार चुनाव में कहा गया था कि बीजेपी नहीं जीती तो पाकिस्तान में दिवाली मनायी जाएगी।

हाल ही में अख़बार ‘वाशिंगटन टाइम्स’ ने अमेरिकी सरकार के हवाले से लिखा था कि कोरोना वायरस के वुहान लैब से फैलने की सम्भावना सबसे ज़्यादा है। इससे पहले ट्रम्प कह चुके हैं कि कोरोना वायरस वुहान की लैब से एक इंटर्न की ग़लती की वजह से लीक हुआ। लेकिन अब ख़ुफ़िया एजेंसियों की रिपोर्ट से साफ़ हो चुका है कि ट्रम्प हवा में तलवार भाँज रहे थे। उनके प्रभाव में आकर फ्रांस के एक नोबेल विजेता वायरस विशेषज्ञ ने भी आव देखा न ताव और बग़ैर किसी शोध के दावा कर दिया कि ये वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा नहीं हुआ, बल्कि किसी औद्योगिक हादसे का नतीज़ा हो सकता है।

साफ़ है कि वैज्ञानिक भी राजनीतिक बयान दे रहे थे। भारत में भी कई वैज्ञानिक मोदी-चालीसा का गायन-वादन कर चुके हैं। राष्ट्रपति के सुर में सुर मिलाते हुए दो सप्ताह पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो कह चुके हैं कि चीन को वुहान लैब में अमेरिकी जाँच की इजाज़त देनी चाहिए क्योंकि वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी से कुछ ही दूर वो सी-फूड मार्केट है, जहाँ की मछली बेचने वाली वेई नामक महिला को कोविड-19 का पहला मरीज़ माना गया है।

ट्रम्प के जाल में नहीं फँसी भारत सरकार

हाल के दिनों में कोरोना को लेकर ट्रम्प ने चीन पर तीखे हमले करके दुनिया को ये समझाने की कोशिश की कि दो लाख से ज़्यादा जानें लेने वाला और 30 लाख से ज़्यादा लोगों को संक्रमित करने वाला कोरोना वायरस चीन की वुहान लैब से ही बाहर निकला है। मज़े की बात ये भी रही कि ट्रम्प ने भारत से भी उसके सुर में सुर मिलाने को कहा था। लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय ने साफ़ मना कर दिया। अलबत्ता, ट्रम्प जैसी दुर्दशा कल को नरेन्द्र मोदी की ना हो जाए, इसे देखते हुए भारतीय गोदी मीडिया और बीजेपी के आईटी सेल ने चीन का चरित्र हनन करने में अपनी ताक़त वैसे ही झोंक दी है, जैसे राहुल गाँधी और नेहरू का किया जाता है।

हालाँकि, चीन भी कोई दूध का धुला नहीं है। लेकिन चीन ने जैसी भी हरकतें की हैं, वैसा कमोबेश हर देश में हमेशा होता रहा है। दुनिया के हरेक देश के मीडिया को अपनी सरकारों की ओर से तय होने वाले राष्ट्रीय हितों के अनुसार ही चलना पड़ता है। अमेरिका, इटली, स्पेन, फ़्राँस, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों से कोरोना से निपटने में कोताही दिखाने की कोई मामूली ख़बरें नहीं आयी हैं। इसीलिए सभी को चीन को खलनायक के रूप में पेश करने में मज़ा आ रहा है। भारत में भी चीन से आयातित ख़राब PPE और टेस्टिंग किट जैसी घटनाएँ चीन के ख़िलाफ़ माहौल बनाने में बड़ा योगदान देती हैं।

बहरहाल, ट्रम्प की हवा अब बहुत बिगड़ चुकी है, क्योंकि अमेरिकी और वैश्विक इंटेलिजेंस कम्युनिटी अब उस व्यापक वैज्ञानिक सहमति के साथ खड़ी है जो मानती है कि COVID-19 मानव निर्मित या आनुवंशिक रूप से परिष्कृत नहीं है। इसी तरह अभी तक वायरस के चमगादड़ या किसी अन्य जीव से इसके इंसान में आने के दावों की भी कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई है। ज़ाहिर है, कोरोना संक्रमण के कई रहस्य अभी क़ायम हैं।

उधर, चीन की सफाई पर दुनिया को यक़ीन नहीं हो रहा। वो बार-बार वुहान की लैब से वायरस लीक होने के दावे को मनगढ़न्त और झूठा बताता रहा है। लैब में 1500 से ज़्यादा वायरस मौजूद हैं जिन पर रिसर्च होते हैं। ये लैब फ़्राँस के ज़ोरदार सहयोग से बनी थी और इसमें अमेरिका भी फंडिंग कर चुका है। लेकिन अभी चुनाव और हार को सिर पर मंडराता देख ट्रम्प ने चीन को अपना मुख्य प्रतिद्वन्द्वी बना लिया है। भारत में लोकसभा चुनाव ज़रूर काफ़ी दूर हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल और बिहार के चुनाव की आहट तो अब मिलने लगी है। बीजेपी को पूरे देश के कोरोना के प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पीड़ितों की वैसे परवाह नहीं है, जैसे बंगालियों को लेकर उनका मन मचलने लगा है। 

(मुकेश कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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