Wednesday, April 24, 2024

महाराष्ट्र टकराव में अमित शाह एंगल भी

महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के बीच एक सप्ताह से भी ज्यादा समय से जारी गतिरोध अभी बना हुआ है। सतही और जाहिरा तौर पर तो यह मामला दोनों दलों के बीच मुख्यमंत्री पद हासिल करने की खींचतान का है, लेकिन भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की महत्वाकांक्षाओं के तार भी इस खींचतान से जुड़े हुए हैं। इसी वजह से कहा जा रहा है कि अगर भाजपा की अगुवाई में सरकार बन भी गई तो देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री नहीं होंगे।

पार्टी से जुड़े जानकार सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी दोबारा फडणवीस को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व की पसंद भी फडणवीस ही हैं। इसीलिए उन्हें भाजपा विधायक दल का दोबारा नेता चुनने में कहीं कोई समस्या नहीं आई, लेकिन शाह की चाहत कुछ और है। सूत्रों के मुताबिक शाह इस मामले में अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर सोच में हैं। उन्हें लगता है कि फडणवीस अगर दोबारा मुख्यमंत्री बन गए तो आगे चल कर पांच साल बाद वे राष्ट्रीय राजनीति में उनके लिए चुनौती बन सकते हैं। तब मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर संघ नेतृत्व भी सहज ही उन्हें महाराष्ट्रियन ब्राह्मण होने के नाते आसानी से स्वीकार कर लेगा। इसीलिए वे फडणवीस के बजाये किसी अन्य को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। इस सिलसिले में उनकी पसंद महाराष्ट्र प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल हैं। गौरतलब है कि देवेंद्र फडणवीस की सरकार में राजस्व और लोकनिर्माण मंत्री रहे पाटिल को अमित शाह ने विधानसभा चुनाव से महज तीन महीने पहले ही प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया था।

सूत्रों के मुताबिक शाह ने हालांकि जाहिरा तौर पर अपनी पसंद या इच्छा का इजहार नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री पद लेने के लिए अड़ी शिवसेना की जिद्द को वे भी परोक्ष रूप से हवा दे रहे हैं। इसके पीछे उनका एकमात्र मकसद फडणवीस को दोबारा मुख्यमंत्री बनने से रोकना है।

बताया जाता है कि शिवसेना ने अगर अपनी जिद छोड़ भी दी तो वह भाजपा का मुख्यमंत्री इसी शर्त पर स्वीकार करेगी कि फडणवीस के बजाये किसी अन्य नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाए। ऐसी स्थिति में शाह की पसंद के तौर पर चंद्रकांत पाटिल के नाम पर सहमति बन सकती है।

उल्लेखनीय है कि सूबे के प्रमुख मराठा नेताओं में शुमार पाटिल वैसे रहने वाले तो कोल्हापुर यानी पश्चिम महाराष्ट्र के हैं, लेकिन पुणे की कोथरूड विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर वे पहली बार विधानसभा में पहुंचे हैं। इससे पहले वे विधान परिषद के सदस्य रहते आए हैं। कोल्हापुर में ही अमित शाह की ससुराल भी है।

बताया जाता है कि पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष पद पर पाटिल की नियुक्ति को भी देवेंद्र फडणवीस ने पसंद नहीं किया था। उनकी नियुक्ति को वे अपने लिए राजनीतिक खतरे के तौर पर देख रहे थे, इसीलिए पहले उनके बारे में प्रचारित करवाया गया कि वे मराठा नहीं बल्कि जैन हैं। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में जैन समुदाय के भी कई लोग अपने नाम के साथ पाटिल उपनाम लगाते हैं। चंद्रकांत पाटिल के बारे में जब यह प्रचार कारगर नहीं रहा तो उनकी घेराबंदी कर उन्हें अपने गृह जिले से दूर पुणे की ब्राह्मण बहुल कोथरूड विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए मजबूर किया गया। वहां उन्हें बाहरी उम्मीदवार के तौर पर भी प्रचारित कराया गया। इस प्रचार को हवा देने का काम भी पार्टी के उन लोगों ने ही किया जो वहां सिटिंग विधायक मेधा कुलकर्णी के समर्थक माने जाते हैं।

गौरतलब है कि फडणवीस की करीबी मेधा कुलकर्णी का टिकट काटकर ही पाटिल को वहां उम्मीदवार बनाया गया था। कुल मिलाकर उन्हें हराने के लिए जो भी संभव प्रयास हो सकते थे, वे सभी फडणवीस और उनके समर्थकों की ओर से किए गए। इन सारे प्रयासों के बावजूद पाटिल करीब 25000 वोटों से चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

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