लगता है गृहमंत्री अमित शाह पर अब शनि देवता की वक्र दृष्टि पड़ गई है। जिस तरह से गृहमंत्री शाह पर देश के भीतर और देश के बाहर हमले शुरू हो गए हैं उससे साफ़ लग रहा है कि आने वाले समय में उनकी राजनीति में कोई बड़ा बदलाव हो सकता है। इधर देश के कई राज्यों में नफरती माहौल को लेकर जहां देश के सौ से ज्यादा नौकरशाहों ने हिंदी पट्टी में चल रहे नफरती राजनीति पर गृहमंत्री शाह का ध्यान आकृष्ट किया है और उनके ऊपर भी सवाल उठाये गए हैं वही देश के बाहर विदेश में भी गृह मंत्री पर एक शख्स की हत्या को लेकर आरोप लगाए जा रहे हैं। जाहिर है कि इस तरह के खेल से अमित शाह की छवि पर गहरा असर पड़ेगा और यह देश को बदनाम भी कर सकता है।
यह पहली बार देखने और सुनने को मिल रहा है कि भारत के गृह मंत्री को किसी देश ने खालिस्तानियों पर हमले के लिए सीधा गृह मंत्री अमित शाह पर आरोप लगाया है और इस तरह के हमले में शाह की संलिप्तता की पुष्टि भी कर दी है। ऊपर से देखने में यह मामूली बात लग रही हो लेकिन यह काफी गंभीर मामला है। अगर पश्चिम के देशों में किसी गृहमंत्री के ऊपर इस तरह के आरोप किसी दूसरे देश द्वारा लगाए जाते तो उसकी जांच कराई जाती और संभव था कि उस मंत्री को इस्तीफा भी देना पड़ जाता।
यह सब इसलिए क्योंकि दो देशों का कूटनीतिक सम्बन्ध किसी मंत्री से बड़ा होता है और फिर किसी देश की प्रतिष्ठा का भी सवाल होता है। लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जिस मीडिया को इस मसले पर सरकार से सवाल पूछने की जरूरत थी वह मीडिया मौन है और जो मौन नहीं भी है उसमें इतनी ताकत नहीं है कि सरकार से सवाल पूछ कर आरोप लगाने वाले देश को माकूल जवाब दे सके।
लेकिन इससे भी बड़ा सवाल तो यह है कि क्या आजादी के बाद देश के भीतर जितने भी गृहमंत्री हुए हैं उन पर भी इस तरह के आरोप कभी लगे हैं? जिन देशों से सम्बन्ध सरोकार ख़राब होते हैं जाहिर है ऐसे देशों के बीच दोनों सरकारों को लेकर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं लेकिन जिस तरह से पहली बार कनाडा ने खालिस्तानियों पर हमले को लेकर गृह मंत्री शाह की संलिप्तता की पुष्टि की है यह अपने आप में कई सवालों को जन्म दे रहा है।
हम इसकी विस्तार से चर्चा करेंगे लेकिन सबसे पहले अभी हाल में ही देश के सौ पूर्व नौकरशाहों ने जिस तरह से उत्तराखंड और हिंदी पट्टी के कई छोटे राज्यों में चल रहे हिन्दू -मुसलमानों के बीच नफरत बढ़ाने वाली घटनाओं का जिक्र करते हुए गृह मंत्री अमित शाह के नाम पत्र लिखा है उससे साफ़ है कि गृहमंत्री अमित शाह का इकबाल भी अब कमजोर होता जा रहा है और ऐसा लगता है कि अब उन पर शनि की साढ़े साती की दशा शुरू हो गई है।
क्योंकि जिस तरह से देश के हिन्दी पट्टी में 80 बनाम 20 की राजनीति को बढ़ावा मिल रहा है और 80 फीसदी हिन्दुओं को 20 फीसदी मुसलमानों के नाम पर डराया और एकजुट होने का नारा दिया जा रहा है और उन नफरती लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, इसके बारे में देश के सौ पूर्व नौकरशाहों ने अमित शाह को पत्र लिखकर उन्हें ही कठघरे में खड़ा कर दिया है।
पूर्व नौकरशाहों ने अपने पत्र में वैसे तो बहुत सी बातों का जिक्र किया है लेकिन जिस तरह से सरकारी व्यवस्था और उसके रवैये से देश और समाज के भीतर साम्प्रदायिक नफरत और हिंसा बढ़ने की बात कही गई उससे अमित शाह की परेशानी और भी बढ़ गई है। उत्तराखंड को लेकर पत्र में खास उल्लेख करते हुए कहा गया है कि यहां अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकों के बीच विरोध का नया स्वरूप नकारात्मक संकेत देता है।
कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के तहत लिखे गए इस पत्र में पूर्व नौकरशाहों का कहना है कि कुछ साल पहले तक उत्तराखंड एक शांति, सद्भाव और पर्यावरण सक्रियता की अपनी परंपराओं के लिए जाना जाता था और यहां कभी भी बहुसंख्यकवादी आक्रामकता ज़रा भी दिखाई नहीं देती थी। हालांकि, बीते कुछ समय में उत्तराखंड की राजनीति में जानबूझकर सांप्रदायिकता का जहर घोला जा रहा है, जिससे नफरत की नई नर्सरी तैयार की जा सके। ये एक व्यवस्थित प्रयास है, जिसमें अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों के अधीन रहने को मजबूर किया जा रहा है।
पत्र में कहा गया है कि राज्य में हालात बदतर बनाने वाली सांप्रदायिक घटनाओं को लेकर अराजकता का एक दुष्चक्र चल रहा है, जहां नफरत फैलाने के आरोप में जमानत पर बाहर आने वाले लोग भी अपनी जमानत शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं।
पूर्व नौकरशाहों ने कहा, ‘अक्सर देखा गया है कि कई सरकारों के रवैये ने समाज में उन तत्वों की भागीदारी को बढ़ावा दिया है, जो सांप्रदायिकता और हिंसा को जन्म देते हैं। ये बहुसंख्यकवादी लोग नफरत, बहिष्कार और विभाजन की राजनीति पर वैचारिक रूप से खुद को कायम रखते हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में विशेष रूप से ऐसे तत्वों पर ध्यान देने की जरूरत है। ’
पत्र में उत्तराखंड की कुछ सांप्रदायिक घटनाओं का भी जिक्र किया गया है, जिसमें 10 सितंबर, 2024 को देहरादून प्रेस क्लब की एक हेट स्पीच भी शामिल है, जिसके वायरल वीडियो में यति नरसिंहानंद को कथित तौर पर ये कहते हुए सुना जा सकता है कि हिंदुओं को अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से महिलाओं और बच्चों की रक्षा के लिए हथियार रखना चाहिए।
इसी कार्यक्रम में ये दावा भी किया गया था कि विश्व धर्म संसद, जिसमें कई संतों के भाग लेने का कार्यक्रम है, इस साल 14 दिसंबर से 21 दिसंबर तक आयोजित की जाएगी। उन्होंने कथित तौर पर कहा कि वे इस संसद के दौरान उत्तराखंड को ‘इस्लाम-मुक्त’ बनाने पर चर्चा करेंगे।
मालूम हो कि दिसंबर, 2021 में हरिद्वार में एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया था, जिसमें मुसलमानों के प्रति नफरत भरे भाषण दिए गए थे और उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया था। ऐसे में एक और ‘धर्म संसद’ का आह्वान अल्पसंख्यक समुदाय के लिए नई चुनौती है।
मालूम हो कि इससे पहले 12 अगस्त, 2024 के बाद राज्य के देहरादून से लेकर चमोली समेत कई जिलों में नफरती भाषण और हिंसक घटनाएं देखने को मिली हैं। इसमें संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना और कथित तौर पर अल्पसंख्यक परिवारों को पलायन के लिए मजबूर करना, उनका आर्थिक बहिष्कार करना आदि गतिविधियां शामिल हैं, जिसके जिम्मेदार कुछ मुट्ठी भर लोग और संगठन हैं।
पूर्व नौकरशाहों ने इसके पीछे बजरंग दल और राष्ट्रीय सेवा संगठन का नाम बताया है। उनके अनुसार, महापंचायतों और धर्म संसदों का आयोजन राज्य में हिंसा और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दे रहा है।
पत्र में कहा गया है कि अतीत और वर्तमान की ज्यादातर हेट स्पीच या हिंसा की घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार लोगों को हिरासत में भी नहीं लिया गया है। यहां तक कि जिन मामलों में कुछ गिरफ्तारियां भी हुई हैं, उनमें से अधिकांश को जमानत दे दी गई है, जिसमें गाजियाबाद के डासना मंदिर के विवादित पुजारी यति नरसिंहानंद का नाम भी शामिल है।
गौरतलब है कि 19 सितंबर, 2024 को 18 राज्यों की 53 महिलाओं और नागरिक समाज समूह के लोगों ने उत्तराखंड के राज्यपाल को एक खुला पत्र लिखा था, जिसमें महिलाओं की सुरक्षा को खतरे में डालने के तरीके की निंदा की गई थी और पुलिस पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप भी लगाया गया था।
पूर्व सिविल सेवा अधिकारियों के अनुसार, एक ओर जहां अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोगों पर शारीरिक हमला किया गया है और सार्वजनिक रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया है। वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ़ दल के करीबी लोग, जो ऐसी हिंसा के मामले में असल अपराधी हैं, उनके लिए पुलिस का नरम रुख देखने को मिला। उनके मामलों को कमजोर करने की कोशिश की गई और पीड़ितों पर अपनी शिकायत वापस लेने के लिए दबाव डालने का भी प्रयास किया गया।
पूर्व नौकरशाहों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि यदि इस नफरती अभियान को नहीं रोका गया, तो यह संवेदनशील सीमावर्ती राज्य संगठित हिंसा के दुष्चक्र में फंस सकता है, जिसके गंभीर प्रभाव हो सकते हैं।
महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव के दौरान पूर्व नौकरशाहों का यह पत्र बीजेपी शासित राज्यों पर एक करारा प्रहार तो है ही इसके साथ ही गृह मंत्री शाह की राजनीति पर भी सवाल उठ रहे हैं। देश में अमन चैन और साम्प्रदायिक सौहार्द की जिम्मेदारी गृह मंत्री के ऊपर होती है लेकिन जिस तरह का माहौल कई राज्यों में बनते जा रहा है उससे साफ़ है कि गृह मंत्री सवालों के घेरे में आ गए हैं। लेकिन मामला केवल यही तक का नहीं है।
इसी सप्ताह की शुरुआत में कनाडा के उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन ने अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट को बताया कि भारत के गृहमंत्री अमित शाह कनाडा के नागरिकों की हत्या की साजिश में शामिल थे। मॉरिसन ने यह खुलासा पब्लिक सेफ्टी को लेकर बनी कनाडाई संसदीय समिति की सुनवाई में के दौरान किया था।
हालांकि, कंज़र्वेटिव पार्टी की सांसद रेकल डैंचो ने वाशिंगटन पोस्ट के साथ जानकारी साझा करने के कनाडा के निर्णय पर सवाल उठाया। जब डैंचो ने कनाडा के उप विदेश मंत्री मॉरिसन से इस बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा, ‘पत्रकार ने मुझे फोन करके पूछा कि क्या यह वही व्यक्ति है। मैंने पुष्टि की कि हां यह वही व्यक्ति है। ’
ज्ञात हो कि अमेरिकी अख़बार वाशिंगटन पोस्ट ने 14 अक्टूबर को अनाम कनाडाई अधिकारियों के हवाले से लिखा था कि भारतीय राजनयिकों की बातचीत और संदेशों में ‘केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी’ का उल्लेख है, जिन्होंने कनाडा में खुफिया जानकारी जुटाने वाले मिशन और सिख अलगाववादियों पर हमले’ की अनुमति दी थी।
इसी तारीख़ को भारत ने ‘सुरक्षा चिंताओं’ के मद्देनजर अपने राजनयिकों और उच्चायुक्त को वापस बुला लिया था। हालांकि कनाडा ने दावा किया था कि उसने भारतीय राजनयिकों को देश से निष्कासित किया है। इसी रोज भारत ने कनाडा के छह राजनयिकों को देश से निष्कासित कर दिया था।
बता दें कि भारत-कनाडा के बीच कूटनीतिक विवाद एक साल पहले एक हत्या से शुरू हुआ था। 18 जून, 2023 को कनाडा के वैंकूवर स्थित गुरु नानक सिख गुरुद्वारा की पार्किंग में कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर (जिसे भारत ने आतंकवादी घोषित कर रखा था) की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। इस घटना के तुरंत बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपने देश की संसद में कहा था कि ‘भारत सरकार की संभावित संलिप्तता के आरोपों’ की जांच की जा रही है।
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के पहले संस्करण में शाह का नाम नहीं था। इसमें केवल ‘भारत के एक वरिष्ठ अधिकारी’ की संलिप्तता का संदर्भ दिया गया था। हालांकि, रिपोर्ट प्रकाशित होने के कई घंटे बाद अख़बार ने अपने स्रोतों से अधिक विस्तृत जानकारी हासिल की और वरिष्ठ भारतीय अधिकारी की पहचान अमित शाह के रूप में लिखकर कर अपडेट कर दी।
वाशिंगटन पोस्ट ने ही अपनी रिपोर्ट में बताया था कि सिंगापुर में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नैथली ड्रोइन की एक बैठक हुई थी। बैठक में कनाडा के उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन के साथ रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी भी शामिल थे। रिपोर्ट के मुताबिक़, उस बैठक में कनाडा की तरफ़ से शाह की संलिप्तता और अन्य सबूतों के बारे में विस्तृत जानकारी साझा की गई थी।
लेकिन डोभाल ने कुछ भी मानने से इनकार कर दिया था। बड़ी बात तो यह है कि इस मामले में भारत सरकार की तरफ से अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की गई है। जानकार मान रहे हैं कि अगर भारत कोई प्रतिक्रिया देता है तब कनाडा और भी कोई बड़ा खुलासा कर सकता है। ऐसे में एक बात तो साफ़ हो गई है कि अब भारत और कनाडा के रिश्ते तार-तार तो हो ही गए हैं भारत विश्व बिरादरी के सामने बदनाम भी हो रहा है।
गृह मंत्री अमित शाह को बीजेपी अपना चाणक्य मानती है। जाहिर है कि जो नेता पार्टी को जीत दिलाने में कारगर हो उसका लोहा तो हर कोई मानेगा ही। पिछले एक दशक में बीजेपी का ग्राफ जिस तेजी से आगे बढ़ा है और देश के अधिकतर राज्यों में बीजेपी सरकार बनी है उसमें अमित शाह की राजनीतिक बुद्धिमत्ता की बड़ी भूमिका रही है। यह भूमिका चाहे पॉजिटिव रही हो या निगेटिव लेकिन बीजेपी को बहुत से लाभ हुए हैं। लेकिन यह भी सच है कि अमित शाह की भूमिका कई मामलों में संदेहास्पद भी रही है।
गुजरात दंगों के मामले में इसी अमित शाह को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य से बाहर कर दिया था। 2010 में, बीजेपी के सदस्य अमित शाह को सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में दो साल के लिए अपने गृह राज्य से निष्कासित कर दिया गया था। हालांकि, 2014 में वह बरी हो गए थे। उन पर कई और गंभीर आरोप लगे थे।
याद कीजिये महाराष्ट्र जाकर अमित शाह ने शरद पवार को क्या -क्या कहा था ? अमित शाह ने इसी साल के 21 जुलाई को महाराष्ट्र के पुणे में बीजेपी के एक सम्मेलन में पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार पर ‘भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाने’ का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा, ‘वे भ्रष्टाचार के बारे में बोल रहे हैं। भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार के सबसे बड़े सरगना शरद पवार हैं और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है। अब वे हम पर क्या आरोप लगाएंगे? अगर भ्रष्टाचार को संस्थागत बनाने का काम किसी ने किया है, तो वह आप ही हैं, शरद पवार।’
इसके कुछ दिनों बाद शरद पवार ने अमित शाह पर हमला करते हुए कहा था कि ‘जिसे अपने गृह राज्य से निकाल दिया गया, वह आज गृह मंत्री है। इसलिए हमें सोचना चाहिए कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। जिन लोगों के हाथों में यह देश है, वे किस तरह गलत रास्ते पर जा रहे हैं, हमें इस बारे में सोचना चाहिए मुझे सौ फीसदी भरोसा है कि वे देश को गलत रास्ते पर ले जाएंगे। हमें इस पर ध्यान देना चाहिए।’
अब यह कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र चुनाव के दौरान अमित शाह पर भी कई तीखे हमले हो सकते हैं। शरद पवार समेत कई और विपक्षी नेता अमित शाह पर जमकर हमला कर सकते हैं। जिन बातों को लोग भूल गए थे अब उन बातों को फिर से ज़िंदा किया जा सकता है और अब इस बात की सम्भावना ज्यादा हो गई है कि अमित शाह को लेकर बिहार की राजनीति भी गरमा रही है।
अगले साल बिहार में चुनाव होने हैं और यहाँ एनडीए बनाम इंडिया के बीच जमकर लड़ाई होनी है। ऐसे में अगर अमित शाह को लेकर पार्टियां जो भी आग उगलेंगी उससे अमित शाह की राजनीति कुंद हो सकती है। पीएम मोदी के बाद कौन? इसके जवाब से शाह का नाम बाहर भी हो सकता है और ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर यह माना जा सकता है कि शनि की साढ़ेसाती से आखिर कौन बच सकता है?
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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