कैराना में सांप्रदायिकता का जहर फैलाने की शाह ने थामी कमान!

Estimated read time 1 min read

2013 में सांप्रदायिक दंगे का दर्द झेलने वाला मुज़फ़्फ़रनगर जिले से सटे शामली जिले की कैराना विधानसभा एक बार फिर सांप्रदायिक ज़हरखुरानों की ज़बान पर चढ़ा हुआ है। 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति की धुरी बनने वाले कैराना में एक बार फिर नफरत और भेदभाव का जहर घोला जा रहा है। इसकी कमान खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संभाली हुई है। 22 जनवरी शनिवार को अमित शाह कैराना पहुंचे थे। अपने पहले चुनावी दौरे पर शाह का कैराना जाने का भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है।

अमित शाह को पांच साल बाद कैराना और उसके कथित पलायन की फिर याद आयी है। इस बीच उन्हें न तो कोरोना के दौरान प्रवासी मजदूरों की कोई चिंता रही और न ही दिल्ली की सड़कों पर उनसे मिलने की उन्होंने कोई कोशिश की। इतना ही नहीं खुद गृहमंत्री रहते उन्हें एक साधन तक उनके घरों तक पहुंचाने के लिए मुहैया नहीं कराया।

लेकिन अब वह चुनाव के मौके पर कैराना जरूर आ गए हैं। और कह रहे हैं कि उन्होंने उजड़े लोगों को बसा दिया। कैराना के 6 परिवारों से मुलाकात के जरिये अपने सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाते हुये उन्होंने कहा कि “ये वही कैराना है जहां पहले लोग पलायन करते थे। जब मैं लोगों से मिला तो उन्होंने कहा कि मोदी जी की कृपा हो गई। बीजेपी की सरकार बनी। योगी जी ने कानून व्यवस्था को सुधारा है। हमें पलायन करवाने वाले पलायन कर गए हैं।” और इस दौरान वह लगातार कोरोना के मद्देनजर जारी चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों की धज्जियां उड़ाते रहे।

एक साल पुराने मामले में सपा उम्मीदवार को नामाकंन के लिये जाते समय किया गिरफ्तार

ऐसा नहीं है कि अमित शाह के जाने के बाद ही वहां यह कवायद शुरू हुई है। इसके पहले 15 जनवरी शनिवार को समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी व सिटिंग विधायक नाहिद हसन को नामांकन करते जाते समय यूपी पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था। जहां से विशेष अदालत ने उन्हें 14 दिन के लिए न्‍यायिक हिरासत में भेज दिया था। गौरतलब है कि 6 फरवरी 2021 को सपा विधायक और प्रत्याशी नाहिद हसन, उनकी मां व पूर्व सांसद तबस्सुम हसन, समेत 40 लोगों के ख़िलाफ़ शामली थाना क्षेत्र में गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज़ कराया गया था। 

फिर पूरी घटना को सांप्रदायिक रंग देते हुये पूरी भाजपा मंडली मुस्लिम सपा प्रत्याशी के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार में जुट गई। जिसे अंजाम तक पहुंचाने के लिये शनिवार 22 जनवरी को अमित शाह कैराना पहुंचे थे।

तीनों विधानसभाओं पर एक नज़र

शामली जिले की तीन विधानसभा सीटें हैं। कैराना, शामली और थाना भवन। कैराना में जहां हिंदुओं के पलायन का मुद्दा बना वहीं शामली विधानसभा सुरेश राणा के जहरीले सांप्रदायिक बोल से सुलगता रहा। यूँ तो ये पूरा इलाका गन्ने की खेती के लिए जाना जाता है, और सुरेश राणा ही योगी सरकार में गन्ना मंत्री हैं। वहीं दूसरी ओर किसान नेता राकेश टिकैत ने लगातार गन्ने के रेट का मसला उठाते हुए कहा है कि पिछली तीन सरकारों की तुलना की जाए तो योगी सरकार में गन्ने के रेट में सबसे कम बढ़ोत्तरी हुई है। वो योगी सरकार को इस मामले में तीसरे नंबर पर बताते हैं।

मुज़फ्फ़रनगर दंगों के बाद से जाट वोट बीजेपी के पाले में नज़र आया जिसका सियासी फायदा भी पार्टी को पहुंचा। लेकिन किसान आंदोलन के बाद अब जाट और मुस्लिमों की दूरियां कम हुई हैं। आरएलडी और सपा ने गठबंधन किया है जिससे राजनीतिक हालात काफी बदले हैं।

कैराना विधानसभा सीट

कैराना विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 3 लाख 17 हजार के क़रीब है। जिसमें 1,10000 मुस्लिम वोट हैं। वहीं क़रीब 90 हजार जाट मतदाता हैं। 11,000 ब्राह्मण, 7000 वैश्य, 4,800 क्षत्रिय, 25,000 गुर्जर मतदाता, 34,000 कश्यप मतदाता, 36,000 दलित मतदाता, भी कैराना में निर्णायक हैं।

इस इलाके से हुकुम सिंह 7 बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं। 2017 में भाजपा ने दिवंगत हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को कैराना विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन सांप्रदायिक और पलायन के मुद्दे के बावजूद वह चुनाव नहीं जीत सकी थीं।

कैराना लोकसभा सीट पर 2014 में भाजपा के हुकुम सिंह सांसद बने थे। उनके देहांत के बाद जब 2018 में यहां उपचुनाव हुआ तो आरएलडी के टिकट पर नाहिद हसन की मां तबस्सुम हसन को उतारा गया। सपा ने भी उन्हें समर्थन दिया और उन्होंने बीजेपी को हरा दिया। नाहिद हसन के पिता चौधरी मुनव्वर हसन भी यहां से सांसद और विधायक रहे हैं। कुल मिलाकर इस मुस्लिम गुर्जर परिवार का कैराना की राजनीति में लंबे समय से कायम है।

1996 से पहले भाजपा कैराना में कहीं नहीं थी। हुकुम सिंह जब कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए तो यह सीट भाजपा को तोहफे में मिलने लगी। हुकुम सिंह चार बार भाजपा के टिकट पर कैराना सीट से जीते। तीन बार वह कांग्रेस आरएलडी आदि दलों से जीते। हुकुम सिंह का विकल्प न भाजपा के पास रहा और न ही विपक्ष के पास। कैराना की सियासत दो-घरानों हुकुम सिंह और मुनव्वर हसन के परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है।

2022 विधानसभा चुनाव के लिये सपा ने इकरा हसन को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं भाजपा ने मृगांका सिंह, कांग्रेस ने हाजी अख़लाक़ और बसपा ने राजेंद्र सिंह उपाध्याय को अपना उम्मीदवार बनाया है। 

शामली विधानसभा

क़रीब साढ़े तीन लाख मतदाताओं वाले शामली विधानसभा क्षेत्र में जाट मतदाता 70 हजार, मुस्लिम मतदाता 65 हजार, वाल्मीकि मतदाता क़रीब 40 हजार, कश्यप मतदाता 25 हजार, ब्राह्मण मतदाता 22 हजार, वैश्य मतदाता 38 हजार और गुर्जर मतदाता 21 हजार हैं। इनके अलावा सैनी, प्रजापति और पांचाल मतदाता भी हैं।

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के तेजेंद्र निर्वाल (70085 वोट) ने कांग्रेस के पंकज कुमार मलिक को (40365 वोट) को हराया था। जबकि रालोद के बिजेंद्र सिंह को 33551 वोट और बसपा के मोहम्मद इस्लाम को 17114 वोट मिले थे।

वहीं 2012 विधानसभा चुनाव में शामली विधानसभा सीट पर कांग्रेस के पंकज मलिक विधायक बने थे। पंकज मलिक को 53947 वोट मिले थे। पंकज मलिक अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। पंकज मलिक एक जाट नेता हैं और इस सीट पर सबसे ज्यादा मतदाता जाट और मुस्लिम के हैं।

2022 में भाजपा ने मौजूदा विधायक तेजेंद्र सिंह निर्वाल को, सपा-रालोद ने प्रसन्न चौधरी को और बसपा ने ब्रिजेंद्र मलिक जाट और कांग्रेस ने मोहम्मद अयूब जंग को प्रत्याशी बनाया है। 

शामली में गन्ने की कम कीमतें, समय से भुगतान न होना, महँगाई और बिजली के महंगे बिल मुख्य मुद्दा है। शहर में रेलवे फाटक पर फ्लाईओवर का नहीं बनना भी इस बार एक बड़ा मुद्दा बन गया है। यहां रेलवे फाटक नहीं होने से करीब 30 से 45 मिनट तक का जाम लग जाता है।

थाना भवन विधानसभा सीट

3,10,389 मतदाताओं वाले थाना भवन विधानसभा सीट में 93,000 मुस्लिम मतदाता हैं। 42 हजार जाट मतदाता और 60 हजार दलित मतदाता हैं। इनके अलावा 21 हजार सैनी, 11 हजार कश्यप, 20,000 ठाकुर, 14,000 ब्राह्मण और गुर्जर, चौहान वोट भी कुछ संख्या में हैं।

साल 2017 के चुनाव में इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के सुरेश राणा दूसरी बार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। उन्होंने बसपा के अब्दुल वारिस खान को हराया था। सुरेश राणा को 90995 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे बसपा उम्मीदवार अब्दुल वारिस को 74178 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर रहे रालोद उम्मीदवार जावेद राव को 31275 वोट मिले थे, सपा उम्मीदवार चौथे नंबर पर रहे थे।

वहीं 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा के सुरेश राणा (53719 वोट) ने कड़ी टक्कर के बाद अशरफ अली खान को (53454 वोट) को हराया था। तीसरे नंबर पर बसपा के अब्दुल वारिस खान (50001 वोट) और चौथे नंबर पर समाजवादी पार्टी के किरनपाल कश्यप (10198 वोट) थे।

2022 विधानसभा चुनाव के लिये भाजपा ने एक बार फिर सुरेश राणा को उम्मीदवार बनाया है। जबकि कांग्रेस ने सत्य श्याम सैनी को, बसपा ने जहीर मलिक को और सपा रालोद गठबंधन ने असरफ अली को प्रत्याशी बनाया है। जबकि नर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर शेर सिंह राणा मैदान में हैं।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author