Friday, March 29, 2024

यूपी में अवैध निरुद्धि पर मिलेगा 25 हजार रुपये मुआवजा और दोषी अफसर को सजा

किसी व्यक्ति को अवैध निरुद्धि में रखने की शिकायत पर तीन माह में जांच होगी और आरोप सही पाए जाने पर पीड़ित को तत्काल 25 हजार रुपये का मुआवजा मिलेगा। साथ ही दोषी अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही होगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्सम्बन्धी निर्देश पर उत्तर प्रदेश सरकार ने 23 मार्च 2021 की व्यापक दिशा निर्देश प्रदेश के जिलाधिकारियों को जारी किया है। हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव व अपर मुख्य सचिव गृह को इस नीति का कड़ाई से पालन कराने का निर्देश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी एवं न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने वाराणसी के रोहनिया इलाके के निवासी शिव कुमार वर्मा व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। खंडपीठ ने कहा कि अधिकारियों द्वारा आम लोगों का उत्पीड़न किया जाना उस व्यक्ति की ही नहीं, असहाय की मनोदशा को चोट पहुंचाने वाली सामाजिक क्षति है। ऐसे में पीड़ित को मुआवजा दिलाना सामाजिक बुराई को हतोत्साहित करना भी है।

प्रदेश सरकार की ओर से खंडपीठ को बताया गया कि सरकार की इस नई नीति के तहत आम लोगों के जीवन के मूल अधिकार का हनन करने वाले दोषी अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई होगी। उत्पीड़न व अवैध निरूद्धि की शिकायत की जांच तीन माह में पूरी की जाएगी और अवैध निरूद्धि सिद्ध होने पर पीड़ित को 25 हजार रुपये का तत्काल मुआवजा मिलेगा।

खंडपीठ ने कहा कि जिन लोगों को राजनीतिक संरक्षण नहीं प्राप्त है, आर्थिक रूप से सबल नहीं हैं, वे नौकरशाही की मनमानी कार्रवाई का मुकाबला नहीं कर सकते। इससे उनका व्यवस्था के प्रति भरोसा उठने लगता है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी सेवक आम लोगों का भी सेवक है इसलिए उसे अपनी शक्ति का इस्तेमाल अपने पद के दायित्व के दायरे में ही करना चाहिए। किसी भी अधिकारी द्वारा शक्ति का दुरुपयोग करने पर उसे किसी कानून में संरक्षण नहीं मिला है। परिणाम भुगतने की उसकी जवाबदेही होगी। इसलिए विवेकाधिकार का मनमाना प्रयोग करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई के साथ पीड़ित को मुआवजा पाने का अधिकार है। सरकार ऐसी राशि की वसूली दोषी अधिकारियों से अवश्य करे।

इस नीति में सरकार ने स्पष्ट किया है कि आम लोगों के जीवन के मूल अधिकार का हनन करने वाले दोषी अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाही होगी। उत्पीड़न व अवैध निरुद्धि की शिकायत की जांच तीन माह में पूरी की जाएगी और अवैध निरुद्धि साबित होने पर पीड़ित को तत्काल 25 हजार रुपये मुआवजा मिलेगा। खंडपीठ ने कहा है कि इस नीति को प्रदेश के सभी ब्लाकों, तहसील मुख्यालयों, जिला कलेक्ट्रेट व पुलिस थानों में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाए, डिस्प्ले बोर्ड पर लगाया जाए और अखबारों में प्रकाशित किया जाए। आदेश की प्रति सभी तहसील व जिला बार एसोसिएशन को भेजी जाए, ताकि आम लोगों को इसकी जानकारी हो सके।

खंडपीठ ने कहा है कि सरकारी सेवक आम लोगों का भी सेवक है। इसलिए उसे पद के दायरे में रहते हुए ही अपनी शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए। उत्पीड़नात्मक कार्रवाई दुर्भाग्यपूर्ण है। किसी भी अधिकारी द्वारा शक्ति का दुरुपयोग करने पर उसे किसी कानून में संरक्षण नहीं मिला है।

याची शिवकुमार का जमीन बंटवारे को लेकर पारिवारिक विवाद था। परिवार के सदस्यों के बीच झगड़े की स्थिति को देखते हुए पुलिस ने धारा 151 में चालान किया। आठ अक्तूबर 20 को दरोगा ने प्रिंटेड फॉर्म पर नाम भरकर रिपोर्ट भेजी, जिस पर एसडीएम ने केस दर्ज कराया। याची ने 12 अक्तूबर, 20 को बंधपत्र दिया, किंतु उसे रिहा नहीं किया गया। खतौनी के सत्यापन की तहसीलदार से रिपोर्ट मांगी। 21 अक्तूबर को पेश करने का निर्देश दिया। रिपोर्ट आने पर याची रिहा किया गया। यह याचिका दायर कर याची ने 12 अक्तूबर से 21 अक्तूबर 20 तक अवैध निरुद्धि के मुआवजे की मांग की।

खंडपीठ के निर्देश पर डीजीपी ने सभी पुलिस अधिकारियों को परिपत्र जारी किया और कहा कि चालान प्रिंटेड प्रोफार्मा पर नहीं होगा और पूर्ण विवरण, पत्रजात के साथ चालान रिपोर्ट भेजी जाए। मुआवजे के मुद्दे पर सरकार ने नीति जारी कर कोर्ट में पेश की। जिस पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है और कहा है कि मुआवजे की नीति आने के बाद याची के लिए अलग से आदेश देने की आवश्यकता नहीं है।

अपर मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी द्वारा गृह (पुलिस) अनुभाग-3 लखनऊ: दिनांक: 23 मार्च, 2021 में परिशान्ति कायम रखने के उद्देश्य से दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन धारा 107/116/151 के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट को प्राप्त शक्तियों के क्रियान्वन के विषय मे दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं।

दिशा-निर्देश में कहा गया है कि अपने अधिकारिता क्षेत्र के अन्तर्गत परिशान्ति कायम रखने के लिए ऐसे व्यक्तियों, जिनसे परिशान्ति भंग होने अथवा लोक प्रशान्ति विक्षुब्ध होने की आशंका है, के खिलाफ निरोधक कार्यवाहियां किये जाने हेतु दण्ड प्रकिया संहिता, 1973 के अन्तर्गत कार्यकारी मजिस्ट्रेट को यथानिर्दिष्ट अधिकार दिये गये हैं तथा इसकी पूरी प्रक्रिया का विधिवत् उल्लेख भी किया गया है, तथापि यदाकदा ऐसे दृष्टान्त सामने आते हैं जिनसे यह आभाषित होता है कि सम्बन्धित कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने बिना न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग किये आदेश पारित किया है अथवा निर्धारित प्रक्रिया का समुचित अनुपालन नहीं किया है। ऐसे ही एक प्रकरण (क्रिमिनल रिट पिटीशन संख्या- 16386/2020, शिवकुमार वर्मा एवं अन्य बनाम उ0 प्र0 राज्य एवं अन्य, आदेश दिनांक 02.02.2021) में मा0 उच्च न्यायालय, इलाहाबाद ने सम्बन्धित कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा निर्गत आदेशों को सम्यक् न मानते हुए एक उचित कार्यप्रणाली विकसित किये जाने तथा यथोचित दिशा-निर्देश निर्गत किये जाने का आदेश दिया है।

शांति व्यवस्था व लोक प्रशांति बनाये रखने के उद्देश्य से निरोधक कार्यवाहियों के विषय में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अन्तर्गत कार्यकारी मजिस्ट्रेट की अधिकारिता एवं प्रक्रिया का विधिवत उल्लेख किया गया है। आवश्यकता इस बात की है कि कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा अपने न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग करते हुए एवं निर्धारित प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए प्रत्येक स्तर पर मुखरित आदेश पारित किए जायें।

धारा-107-(परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति) और धारा – 151( संज्ञेय अपराधों का किया जाना रोकने के लिए गिरफतारी) के अन्तर्गत स्थानीय पुलिस अथवा अन्य प्राधिकारी द्वारा कार्यकारी मजिस्ट्रेट को इत्तिला दिये जाने की चालानी रिपोर्ट प्रिन्टेड प्रोफार्मा पर रिक्ति को भरते हुए प्रेषित न किया जाए अपितु प्रत्येक प्रकरण की मेरिट को दर्शित करते हुए मुखरित आख्या भेजी जाए। प्रत्येक मामले मे विवाद से समबन्धित पूर्ण, सुस्पष्ट एवं तथ्यात्मक विवरण (सुविचारित कारणों सहित) अंकित की जाए। यह भी स्पष्ट किया जाए कि आरोपी व्यक्ति या व्यक्तियों से शांति भंग की आशंका किस आधार पर है। प्रत्येक चालानी रिपोर्ट के साथ प्रकरण से सम्बन्धित आवश्यक प्रपत्र, जैसे प्रार्थना पत्र, एनसीआर की प्रति इत्यादि अवश्य संलग्न किये जाएं। प्रत्येक चालानी रिपोर्ट यदि किसी चौकी प्रभारी अथवा उप निरीक्षक द्वारा तैयार की जाती है तो उस पर सम्बन्धित प्रभारी निरीक्षक/थानाध्यक्ष द्वारा परीक्षण कर अपनी स्पष्ट एवं तथ्यात्मक टिप्पणी अंकित करने के उपरान्त ही अग्रिम कार्यवाही हेतु प्रेषित की जाए।

यदि 107/116 की चालानी रिपोर्ट के साथ आरोपी व्यक्ति को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-151 के तहत गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत भी किया जा रहा है तो ऐसी स्थिति में चालानी रिपोर्ट में विशिष्ट रुप से यह स्पष्ट किया जाना आवश्यक है कि किस संज्ञेय अपराध को कारित करने हेतु आरोपी व्यक्ति प्रवृत्त था, जिसे अन्यथा नहीं रोका जा सकता था और रोकने के लिए उसे गिरफ्तार किया जाना आवश्यक था।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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