Friday, March 29, 2024

भारत छोड़ो आंदोलन: ग्वालिया में जब गूंजी अंग्रेजों के खिलाफ खड्गधारी की आवाज़

आज ही के दिन 8 अगस्त 1942 को बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान कहा जाता है, में भारत छोड़ो आंदोलन की पूर्व संध्या पर गांधी जी ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया था। जिसका टेक्स्ट मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। इसी भाषण में उन्होंने भारतीयों से आज़ादी के लक्ष्य के लिये, दृढ़ निश्चय के साथ, आह्वान करते हुए ‘करो या मरो’ का नारा दिया। ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के लगभग सभी शीर्ष नेताओं (राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के अलावा अन्य को भी) को गांधी के भाषण देने के चौबीस घंटे के अंदर गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया था। अन्य बहुतेरे कांग्रेस नेताओं को तो समूचे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जेल में ही रखा गया था। 

यह आन्दोलन ऐसे समय प्रारंभ किया गया था, जब दुनिया परिवर्तन के दौर से गुजर रही थी। पश्चिम में दूसरा विश्वयुद्ध लगातार जारी था और पूर्व में साम्राज्‍यवाद और उपनिवेशवाद के खिलाफ आंदोलन तेज होते जा रहे थे। एक तरफ भारत में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी, और दूसरी तरफ सुभाष चंद्र बोस भारत को आजाद करने के लिए आज़ाद हिंद फौज को मजबूत कर रहे थे।

अप्रैल 1942 में क्रिप्स मिशन के साथ कांग्रेस के नेताओं की वार्ता असफल हो गयी थी। अंग्रेज कोई ठोस आश्वासन नहीं दे पा रहे थे। वे अब भी भारत को भरमा रहे थे। 8 अगस्त, 1942 को बम्बई में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में यह घोषित किया गया था कि अब भारत में ब्रिटिश शासन की तत्काल समाप्ति भारत में स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र की स्थापना के लिए अत्यंत जरूरी हो गयी है।

इस आन्दोलन का लक्ष्य भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद 9 अगस्त सन 1942 को गांधी जी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ था। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। भारत छोड़ो का नारा यूसुफ मेहर अली ने दिया था।

9 अगस्त, 1942 की सुबह ही कांग्रेस के अधिकांश नेता गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें देश के अलग-अलग भागों में जेल में डाल दिया गया। साथ ही कांग्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। देश के प्रत्येक भाग में हड़तालों और प्रदर्शनों का आयोजन किया गया। सरकार द्वारा पूरे देश में गोलीबारी, लाठीचार्ज और गिरफ्तारियां की गयीं। लोगों का गुस्सा भी हिंसक गतिविधियों में बदल गया था। लोगों ने सरकारी संपत्तियों पर हमले किये, रेलवे पटरियों को उखाड़ दिया और डाक व तार व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया। अनेक स्थानों पर पुलिस और जनता के बीच संघर्ष भी हुए। सरकार ने आन्दोलन से सम्बंधित समाचारों के प्रकाशित होने पर रोक लगा दी। अनेक समाचारपत्रों ने इन प्रतिबंधों को मानने की बजाय स्वयं बंद करना ही बेहतर समझा।

1942 के अंत तक लगभग 60,000 लोगों को जेल में डाल दिया गया और कई हजार मारे गए। मारे गए लोगों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। बंगाल के तामलुक में 73 वर्षीय मतंगिनी हाजरा, असम के गोहपुर में 13 वर्षीय कनकलता बरुआ, बिहार के पटना में सात युवा छात्र व सैकड़ों अन्य प्रदर्शन में भाग लेने के दौरान गोली लगने से मारे गए। देश के कई भाग जैसे उत्तर प्रदेश में बलिया, बंगाल में तामलुक, महाराष्ट्र में सतारा, कर्नाटक में धारवाड़ और उड़ीसा में तलचर व बालासोर, ब्रिटिश शासन से मुक्त हो गए और वहां के लोगों ने स्वयं की सरकार का गठन किया। जय प्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली, एसएम जोशी, राम मनोहर लोहिया और कई अन्य नेताओं ने लगभग पूरे युद्ध काल के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियों का आयोजन किया।

गांधी जी का भारत छोड़ो भाषण: 

प्रस्ताव पर चर्चा शुरू करने से पहले मैं आप सभी के सामने एक या दो बात रखना चाहूँगा, मैं दो बातों को साफ़-साफ़ समझना चाहता हूँ और उन दो बातों को मैं हम सभी के लिये महत्वपूर्ण भी मानता हूँ। मैं चाहता हूँ की आप सब भी उन दो बातों को मेरे नजरिये से ही देखें, क्योंकि यदि आपने उन दो बातों को अपना लिया तो आप हमेशा आनंदित रहोगे।

यह एक महान जवाबदारी है। कई लोग मुझसे यह पूछते हैं कि क्या मैं वही इंसान हूँ जो मैं 1920 में हुआ करता था, और क्या मुझमें कोई बदलाव आया है। ऐसा प्रश्न पूछने के लिये आप बिल्कुल सही हो। मैं जल्द ही आपको इस बात का आश्वासन दिलाऊंगा कि मैं वही मोहनदास गांधी हूँ जैसा मैं 1920 में था।

मैंने अपने आत्मसम्मान को नहीं बदला है। आज भी मैं हिंसा से उतनी ही नफरत करता हूँ जितनी उस समय करता था। बल्कि मेरा बल तेज़ी से विकसित भी हो रहा है। मेरे वर्तमान प्रस्ताव और पहले के लेख और स्वभाव में कोई विरोधाभास नहीं है। वर्तमान जैसे मौके हर किसी की जिंदगी में नहीं आते लेकिन कभी-कभी एक-आध की जिंदगी में ज़रूर आते हैं। मैं चाहता हूं कि आप सभी इस बात को जानें कि अहिंसा से ज्यादा शुद्ध और कुछ नहीं है, इस बात को मैं आज कह भी रहा हूँ और अहिंसा के मार्ग पर चल भी रहा हूँ।

हमारी कार्यकारी समिति का बनाया हुआ प्रस्ताव भी अहिंसा पर ही आधारित है, और हमारे आन्दोलन के सभी तत्व भी अहिंसा पर ही आधारित होंगे। यदि आप में से किसी को भी अहिंसा पर भरोसा नहीं है तो कृपया करके इस प्रस्ताव के लिये वोट ना करें। मैं आज आपको अपनी बात साफ़-साफ़ बताना चाहता हूँ। भगवान ने मुझे अहिंसा के रूप में एक मूल्यवान हथियार दिया है। मैं और मेरी अहिंसा ही आज हमारा रास्ता है।

ग्वालिया टैंक मैदान का वह स्थान जहां से गांधी ने भाषण दिया था।

वर्तमान समय में जहां धरती हिंसा की आग में झुलस चुकी है और वहीं लोग मुक्ति के लिये रो रहे हैं, मैं भी भगवान द्वारा दिये गए ज्ञान का उपयोग करने में असफल रहा हूं, भगवान मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा और मैं उनके द्वारा दिये गए इस उपहार को जल्दी समझ नहीं पाया। लेकिन अब मुझे अहिंसा के मार्ग पर चलना ही होगा।

अब मुझे डरने की बजाए आगे देखकर बढ़ना होगा। हमारी यात्रा ताकत पाने के लिये नहीं बल्कि भारत की आज़ादी के लिये अहिंसात्मक लड़ाई के लिए है। हिंसात्मक यात्रा में तानाशाही की संभावनाएं ज्यादा होती हैं जबकि अहिंसा में तानाशाही के लिये कोई जगह ही नहीं है। एक अहिंसात्मक सैनिक खुद के लिये कोई लोभ नहीं करता, वह केवल देश की आज़ादी के लिये ही लड़ता है। कांग्रेस इस बात को लेकर बेफिक्र है कि आज़ादी के बाद कौन शासन करेगा।

आज़ादी के बाद जो भी ताकत आएगी उसका संबंध भारत की जनता से होगा और भारत की जनता ही ये निश्चित करेगी कि उन्हें ये देश किसे सौंपना है। हो सकता है कि भारत की जनता अपने देश को पेरिस के हाथों सौंपे। कांग्रेस सभी समुदायों को एक करना चाहती है न कि उनमें फूट डालकर विभाजन करना चाहती है।

आज़ादी के बाद भारत की जनता अपनी इच्छानुसार किसी को भी अपने देश की कमान सँभालने के लिये चुन सकती है। और चुनने के बाद भारत की जनता को भी उसके अनुरूप ही चलना होगा। मैं जानता हूँ कि अहिंसा परिपूर्ण नहीं है और ये भी जानता हूँ कि हम अपने अहिंसा के विचारों से फ़िलहाल कोसों दूर हैं लेकिन अहिंसा में ही अंतिम असफलता नहीं है। मुझे पूरा विश्वास है, छोटे-छोटे काम करने से ही बड़े-बड़े कामों को अंजाम दिया जा सकता है।

ये सब इसलिए होता है क्योंकि हमारे संघर्षों को देखकर अंततः भगवान भी हमारी सहायता करने को तैयार हो जाते हैं। मेरा इस बात पर भरोसा है कि दुनिया के इतिहास में हमसे बढ़कर और किसी देश ने लोकतांत्रिक आज़ादी पाने के लिये संघर्ष किया होगा। जब मैं पेरिस में था तब मैंने कार्लाइल फ्रेंच प्रस्ताव पढ़ा था और पंडित जवाहरलाल नेहरु ने भी मुझे रशियन प्रस्ताव के बारे में थोड़ा बहुत बताया था। लेकिन मेरा इस बात पर पूरा विश्वास है कि जब हिंसा का उपयोग कर आज़ादी के लिये संघर्ष किया जायेगा तब लोग लोकतंत्र के महत्व को समझने में असफल होंगे।

जिस लोकतंत्र का मैंने विचार कर रखा है, उस लोकतंत्र का निर्माण अहिंसा से होगा, जहाँ हर किसी के पास समान आज़ादी और अधिकार होंगे। जहाँ हर कोई खुद का शिक्षक होगा और इसी लोकतंत्र के निर्माण के लिये आज मैं आपको आमंत्रित करने आया हूँ। एक बार यदि आपने इस बात को समझ लिया तब आप हिन्दू और मुस्लिम के भेदभाव को भूल जाओगे। तब आप एक भारतीय बनकर खुद का विचार रखोगे और आज़ादी के संघर्ष में साथ दोगे। अब प्रश्न ब्रिटिशों के प्रति आपके रवैये का है। मैंने देखा है कि कुछ लोगों में ब्रिटिशों के प्रति नफरत का रवैया है।

कुछ लोगों का कहना है कि वे ब्रिटिशों के व्यवहार से चिढ़ चुके हैं। कुछ लोग ब्रिटिश साम्राज्यवाद और ब्रिटिश लोगों के बीच के अंतर को भूल चुके हैं। उन लोगों के लिये दोनों ही एक समान हैं। उनकी यह घृणा जापानियों को आमंत्रित कर रही है। यह काफी खतरनाक होगा। इसका मतलब वे एक गुलामी की दूसरी गुलामी से अदला-बदली करेंगे।

हमें इस भावना को अपने दिलो दिमाग से निकाल देना चाहिये। हमारा झगड़ा ब्रिटिश लोगों के साथ नहीं है बल्कि हमें उनके साम्राज्यवाद से लड़ना है। ब्रिटिश शासन को खत्म करने का मेरा प्रस्ताव गुस्से से पूरा नहीं होने वाला।

यह किसी बड़े देश जैसे भारत के लिये कोई ख़ुशी वाली बात नहीं है कि ब्रिटिश लोग जबरदस्ती हमसे धन वसूल रहे हैं। हम हमारे महापुरुषों के बलिदानों को नहीं भूल सकते। मैं जानता हूँ कि ब्रिटिश सरकार हमसे हमारी आज़ादी नहीं छीन सकती, लेकिन इसके लिये हमें एकजुट होना होगा। इसके लिये हमें खुद को घृणा से दूर रखना चाहिए।

खुद के लिये बोलते हुए, मैं कहना चाहूँगा की मैंने कभी घृणा का अनुभव नहीं किया। बल्कि मैं समझता हूँ कि मैं ब्रिटिशों के सबसे गहरे मित्रों में से एक हूँ। आज उनके अविचलित होने का एक ही कारण है, मेरी गहरी दोस्ती। मेरे दृष्टिकोण से वे फ़िलहाल नरक की कगार पर बैठे हुए है। और यह मेरा कर्तव्य होगा कि मैं उन्हें आने वाले खतरे की चुनौती दूँ। इस समय जहाँ मैं अपने जीवन के सबसे बड़े संघर्ष की शुरुआत कर रहा हूँ, मैं नहीं चाहता की किसी के भी मन में किसी के प्रति घृणा का निर्माण हो।

आज इस अवसर पर भारत छोड़ो आंदोलन, 1942 के सभी ज्ञात अज्ञात स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों को प्रणाम। जो दिवंगत हो गए हैं, उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। जो जीवित हैं, उन्हें बधाई, शुभकामनाएं तथा उनका आभार। 

इस आंदोलन का विरोध करने वाले, मुस्लिम लीग के साथ सरकार बनाने वाले और अंग्रेजों की मुखबिरी करने वालों की भर्त्सना की जाती है। 

भारत ज़िंदाबाद। 

भारत की अवधारणा ज़िंदाबाद !!

( विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं। )

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