संयुक्त राज्य अमेरिका में आरएसएस और बीजेपी की ओर से भारत के अल्पसंख्यकों पर बढ़ते सरकार समर्थित दमन के खिलाफ़ आवाज़ तेज़ होती जा रही है। कुछ दिन पहले अमेरिकी गृहमंत्रालय की ओर से जारी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2022 में भारत को अल्पसंख्यकों का दमन करने वाले देशों की सूची में रखा गया था। अब इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) की पहली त्रैमासिक रिपोर्ट में भी इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाते हुए बाइडेन प्रशासन से हिंदू उग्रवादी समूहों के नेताओं और सदस्यों पर प्रतिबंध लगाने और भारत को विशेष चिंता वाले देशों (CPC) में शामिल करने की माँग की गयी है। साथ ही कहा गया है कि भारत सरकार को तुरंत एक लिंचिंग विरोधी क़ानून बनाना चाहिए।
IAMC भारतीय मूल के अमरीकियों का सबसे बड़ा एडवोकेसी संगठन है जो अल्पसंख्यक समुदाय समेत सभी वंचित वर्गों के हक़, अमन और इंसाफ़ की लड़ाई लड़ता है। इस संगठन ने 2023 की जनवरी से लेकर मार्च में भारत में अल्पसंख्यक विरोधी घटनाओं का संकलन करते हुए “भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न” शीर्षक से जो त्रैमासिक रिपोर्ट जारी की है वह बताती है कि भारत में अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म में चिंताजनक इज़ाफ़ा हुआ है।
इस रिपोर्ट में भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि भारत सरकार और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस ओर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है। हिंसा और भेदभाव की बढ़ती घटनाओं ने अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है। इन घटनाओं ने भय और असुरक्षा का माहौल पैदा किया है।
रिपोर्ट में इस सिलसिले में कई सिफ़ारिशें की गयी हैं। इनमें कहा गया है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून का शासन बरकरार रहे और अपराधियों को हर हाल में सज़ा मिले चाहे उसकी राजनीतिक संबद्धता कुछ भी हो। इससे न्याय प्रणाली में विश्वास बहाल करने में मदद मिलेगी और यह साफ़ संदेश जाएगा कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव करने वाले कानूनों की समीक्षा करनी चाहिए और उन्हें निरस्त करना चाहिए। इस सिलसिले में धर्मांतरण विरोधी कानून, गोमांस प्रतिबंध कानून, हिजाब प्रतिबंध और नागरिकता संशोधन अधिनियम का ज़िक़्र किया गया है जो रिपोर्ट के मुताबिक देश में अशांति के कारण रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को धार्मिक स्थलों और पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए, जिन्हें अक्सर निशाना बनाया जाता है। अल्पसंख्यकों को हिंदू मिलिशिया और गौरक्षक समूहों से बचाने के लिए सरकार को एक राष्ट्रीय एंटी-लिंचिंग बिल भी पारित करना चाहिए।
रिपोर्ट में सिफ़ारिश की गयी है कि भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों को अतिक्रमण विरोधी अभियान के नाम पर मुस्लिमों के घरों, आजीविका और पूजा स्थलों पर बुलडोजर चलाना तुरंत बंद करना चाहिए। रिपोर्ट में याद दिलाया गया है कि धर्म या विश्वास के आधार पर असहिष्णुता और भेदभाव के सभी रूपों और राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र पर भारत ने भी हस्ताक्षर किये हैं। इस लिहाज़ से भारत सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि पुलिस प्रभावी रूप से मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा की घटनाओं की जाँच करे और मुकदमा चलाए।
रिपोर्ट में हिंदू त्योहारों के दौरान हथियारों के प्रदर्शन की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए सिफ़ारिश की गयी है राज्य सरकारें त्योहारों और अन्य सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान सुरक्षा बंदोबस्त करें, खासतौर पर जहाँ सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की आशंका होती है। सोशल मीडिया और अन्य संचार माध्यमों की अभद्र भाषा और हिंसा को उकसाने वालों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई करनी चाहिए। साथ ही स्कूलों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में धार्मिक विविधता और सहिष्णुता को शामिल किया जाना चाहिए।
आईएएमसी ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति ह्यूमन एकाउंटेबिलिटी एक्ट के माध्यम से ऐसे व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगा सकते हैं जिन्होंने मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है या इसमें सहभागी रहे हैं। इसे देखते हुए बाइडेन प्रशासन को हिंदू चरमपंथी समूहों के नेताओं और सदस्यों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। इसी के साथ अमेरिकी विदेश विभाग को मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के घोर उल्लंघन के लिए भारत को विशेष चिंता वाले देश (CPC) के रूप में नामित करने की सिफ़ारिश मान लेनी चाहिए। यह सिफ़ारिश अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर बना अमेरिकी आयोग (USCIRF) लगातार चार साल से करता आया है।
आईएएमसी की यह रिपोर्ट अमेरिका में हिंदुत्ववादी संगठनों के खिलाफ़ बढ़ते जन दबाव की एक बानगी है। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर न्यूजर्सी में बुल्डोजर के साथ रैली निकली थी। हिंदुत्ववादी संगठनों के प्रभाव में निकाली गयी इस रैली में योगी आदित्यनाथ की तस्वीर भी थी। अमेरिका के कई अल्पसंख्यक और मानवाधिकार संगठनों ने इसका कड़ा प्रतिवाद किया था जिसके बाद प्रशासन की ओर से इसकी अनुमति देने को लेकर खेद जताया गया था। यह रिपोर्ट बताती है कि भारतीय मूल के अल्पसंख्यक अमेरिकी सरकार पर भारत को चेताने के लिए दबाव बना रहे हैं जो धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की रिपोर्ट को लेकर पहले ही दबाव में है।
(लेखक चेतन कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)