प्रतीकात्मक तस्वीर
रिहाई मंच ने वरुण गांधी के समुदाय विशेष के खिलाफ घृणा फैलाने वाले वक्तव्य के मामले से बरी होने को सत्तासीनों और रसूखदारों के बच निकलने का एक और उदाहरण बताया। रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुएब ने कहा कि 2009 में वरुण गांधी के खिलाफ दो अलग-अलग पुलिस अधिकारियों द्वारा अलग-अलग थानों में एक ही जैसा मामला दर्ज किया गया था। 2013 में समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार के कार्यकाल में इस मुकदमे से जुड़े सभी गवाह मुकर गए। वरुण गांधी को अवर न्यायालय ने बरी कर दिया था।
इस मामले में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के माध्यम से पुलिस ने गवाहों पर पक्षद्रोही होने का दबाव बनाने का आरोप भी लगाया था। बाद में अखिलेश सरकार ने अवर न्यायालय के निर्णय के खिलाफ सेशन कोर्ट में अपील दायर की थी। सेशन कोर्ट ने भी गवाहों के पक्षद्रोही होने के बाद अवर न्यायालय द्वारा सुनाए गए निर्णय को यथावत रखने का फैसला सुनाया। इस फैसले की खबर को मुख्यधारा की मीडिया में स्थान न मिलना भी किसी पहेली से कम नहीं है।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने आज़मगढ़ के शिबली गांव में शिया समुदाय के जुलूस अम्मारी में लगाए गए नारों को पुलिस द्वारा भारत के विरुद्ध और पाकिस्तान के पक्ष में बताकर एफआईआर दर्ज कराने और फिर एफआईआर दर्ज कराने वाले दरोगा और तीन पुलिस वालों को लाइन हाजिर करने की घटना के लिए दिए गए तर्क को हास्यास्पद बताया है। मंच महासचिव ने इसे अतार्किक दलील कहा कि माइक की खराबी के कारण चारों पुलिसकर्मियों ने ‘हुसैनियत’ को ‘पाकिस्तान’ और ‘यज़ीदियत’ को ‘हिंदुस्तान’ सुन लिया था। अगर आयोजकों ने कार्यक्रम की रिकार्डिंग नहीं करवाई होती और उसे उच्च अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत न किया होता तो कुछ बेगुनाह पुलिस की साम्प्रदायिक मानसिकता के चलते देशद्रोह के झूठे आरोप में जेल में ठूंस दिए जाते।
राजीव यादव ने कहा कि जब अधिकारी उत्तरदायित्वविहीन हों तो भ्रष्टाचार और अराजकता को फलने-फूलने का अवसर मिलता ही है। उन्होंने कोपागंज की ग्राम विकास अधिकारी सपना सिंह का उदाहरण देते हुए कहा कि एक महिला अधिकारी के कपड़े एसडीएम सदर अतुल बक्स ने केवल इसलिए पकड़ कर खींच लिए, क्योंकि रास्ते में ट्रैफिक के चलते वह एसडीएम की गाड़ी को पास नहीं दे पाईं थी। इससे पता चलता है कि जवाबदेही के अभाव और पद के अहंकार में अधिकारी किसी भी हद तक चले जाते हैं। आने वाले दिनों में बहुत संवेदनशील मुद्दे पर न्यायालय का निर्णय अपेक्षित है, इसलिए अधिकारियों को सुनिश्चित करना होगा कि शिबली गांव की तरह सच पर झूठ का पत्तर न चढ़ सके।
This post was last modified on November 7, 2019 10:28 pm