Tuesday, April 16, 2024

भागलपुर: बीपीएल कोटा समाप्त किए जाने पर छात्रों में रोष, जुलूस निकाल कर विश्वविद्यालय प्रशासन का पुतला फूंका

भागलपुर। भागलपुर स्थित तिलकामांझी विश्वविद्यालय में वर्ष 2010 से सभी स्नातकोत्तर विभागों, महाविद्यालयों में स्नातक व स्नातकोत्तर के सभी विषयों व व्यवसायिक कोर्सों में निर्धारित सीट के अतिरिक्त 2 सीटों पर BPL (गरीबी रेखा से नीचे) वाले परिवार के छात्रों का नामांकन शुरू हुआ था और वर्ष 2017 तक बीपीएल परिवार के छात्रों का यह नामांकन होता रहा।

वर्ष 2018 से ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से केन्द्रीकृत व्यवस्था के तहत विश्वविद्यालय (स्नातक में एक बार ओएफएसएस के माध्यम पटना से) द्वारा नामांकन लिए जाने के पश्चात निर्धारित सीट के अतिरिक्त 2 सीट पर बीपीएल परिवार के छात्रों का नामांकन लेना अकारण और बिना किसी सूचना के बंद कर दिया गया। उस समय इस सवाल पर विश्वविद्यालय प्रशासन की चुप्पी बनी रही।

दूसरी तरफ स्नातकोत्तर के लिए ऑनलाइन नामांकन विश्वविद्यालय प्रशासन ने 2018 में खुद संचालित किया, लेकिन बीपीएल कोटे से नामांकन नहीं लिया गया।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो पत्र विश्वविद्यालय प्रशासन Memorial No. CCDC/489-572, 17.09.2010 को बीपीएल कोटे में नामांकन को लेकर जारी किया था। आज तक इसे खत्म करने के लिए कोई भी पत्र विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से जारी नहीं हुआ है।

मामले पर विरोध स्वरूप 22 सितंबर को छात्र राष्ट्रीय जनता दल द्वारा टीएमबीयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष शान्तनु राउत के नेतृत्व में विश्वविद्यालय प्रशासनिक भवन परिसर में कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता का पुतला दहन किया गया। पुतला दहन के पूर्व, छात्र राजद के कार्यकर्ता विश्वविद्यालय स्वास्थ्य केन्द्र के समीप एकत्रित हुए तथा वहां से जुलूस की शक्ल में मारवाड़ी महाविद्यालय, जुगलबढ़ चौक, विश्वविद्यालय थाना तथा कंपनीबाग के रास्ते विश्वविद्यालय पहुंचे। इस दौरान सभी कार्यकर्ता “बीपीएल कोटा के तहत नामांकन लेना होगा”, “गरीबों की हकमारी नहीं सहेंगे”, “विश्वविद्यालय प्रशासन होश में आओ”, “तानाशाह कुलपति मुर्दाबाद”, “डीएसडब्लू-सीसीडीसी हाय-हाय”, “विश्वविद्यालय प्रशासन तेरी मनमानी नहीं चलेगी” आदि नारे लगाते रहे।

पुतला दहन के मौके पर शान्तनु ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा निर्गत पत्र की अवहेलना कर नामांकन में बीपीएल कोटा को समाप्त किए जाने के पश्चात लगातार मांग किए जाने के बावजूद कोटे को बहाल न करना यह दर्शाता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा दुर्भावना से प्रेरित होकर बीपीएल कोटा को समाप्त किया गया है। छात्र राजद विश्वविद्यालय प्रशासन के इस तानाशाही रवैये के खिलाफ 27 सितम्बर 2021 को विश्वविद्यालय प्रशासनिक परिसर में एकदिवसीय धरना देगा।

छात्र राजद के प्रधान महासचिव चन्दन यादव तथा मो. उमर ताज अंसारी ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन यदि अविलम्ब बीपीएल कोटे का नामांकन प्रारम्भ नहीं किया तो उसे उसके इस गरीब विरोधी रवैये का मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा।

स्नातकोत्तर छात्र संघ के समाज विज्ञान संकाय के पूर्व संकाय सदस्य लालू यादव तथा नीरज कुमार ने कहा कि विश्वविद्यालय में चहुंओर भ्रष्टाचार व्याप्त है, नियम, अधिनियम, परिनियम को ताक पर रख कर सारे कार्य किए जा रहे हैं, छात्र राजद इसे कतई बर्दास्त नहीं करेगा।

छात्र राजद के ऋषिराम यादव तथा प्रिंस कुमार ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन दीक्षांत समारोह तथा पोशाक के नाम पर छात्रों से लिए गए पैसे अविलम्ब वापस करे।

इस दौरान गुंजन कुमार, रामबिहारी कुमार, संजीव कुमार, श्रवण कुमार, रमण , गुलशन, सावन यादव समेत सैकड़ों छात्र राजद के कार्यकर्ता मौजूद थे ।

दूसरी तरफ जब इस मामले को लेकर तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के अतिथि शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. आनंद आजाद ने विश्वविद्यालय प्रशासन के सीसीडीसी व डीएसडब्ल्यू से बात की तो सीसीडीसी ने कहा कि अब बीपीएल कोटे का नामांकन बंद हो गया है, वर्ष 2017 में नया रेगुलेशन आने के पश्चात स्पोर्ट्स तथा वार्ड आदि के लिए कोटा निर्धारित किया गया, पर बीपीएल के लिए कुछ नहीं किया गया। वहीं डीएसडब्ल्यू ने कहा कि बीच में दो-तीन साल नामांकन बंद रहा, तो आप लोग कुछ नहीं बोले, अब बोल रहे हैं, अब कैसे होगा?

मतलब साफ है कि एक तरह से कहें तो विश्वविद्यालय प्रशासन अपने ही द्वारा निर्गत किये गये पत्र के आलोक में अपनी जवाबदेही से पीछे भाग रहा है।

अतिथि शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. आनन्द आजाद कहते हैं कि वर्ष 2017 में स्पोर्ट्स तथा वार्ड के लिए कोई पहली बार कोटा की शुरुआत नहीं की गयी। विश्वविद्यालय में यह पूर्व से ही चला आ रहा है।

वे आगे कहते हैं कि सीसीडीसी महोदय को विश्वविद्यालय द्वारा 2005 तथा 2002 मे निर्गत पत्र का भी अवलोकन करना चाहिए। हां! रेगुलेशन में समय-समय पर कुछ संशोधन हो सकता है, जैसे 2019 के बाद सभी शैक्षणिक संस्थानों समेत सरकारी नौकरियों में 10 फिसदी आरक्षण दिया जा रहा है। उपरोक्त जितने भी तरह के आरक्षण की बात की जा रही है, वो निर्धारित सीट के अंदर की बात है। पर यहां बीपीएल कोटे की बात की जा रही है। वह निर्धारित सीट के अतिरिक्त 2 सीट की बात है, उसे निर्धारित सीट के भीतर धक्का-मुक्की करने की कोई जरूरत नहीं है। वर्तमान समय तक बीपीएल कोटा को कहीं से किसी भी निर्देश द्वारा समाप्त नहीं किया गया है।

डीएसडब्ल्यू कहते हैं कि ‘दो-तीन साल नामांकन बंद रहा तो आप लोग कुछ नहीं बोले, अब बोल रहे हैं, अब कैसे होगा? ‘  इस सवाल पर जवाब देते हुए डॉ. आनंद आजाद ने कहा कि अगर दो-तीन साल से बीपीएल कोटे से एडमिशन नहीं हो रहा है, तो इस अपराध के लिए जिम्मेदार विश्वविद्यालय प्रशासन है, न कि कोई छात्र संगठन न ही कोई राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता! नियम के तहत कार्य करना विश्वविद्यालय प्रशासन की जिम्मेदारी है, न कि किसी और की। हां, कोई छात्र संगठन, राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता आपके द्वारा ही निर्गत पत्र के आलोक में आपकी कमजोरियों व खामियों की ओर विश्वविद्यालय प्रशासन का ध्यान जरूर आकृष्ट करायेंगे।

अगर, विश्वविद्यालय प्रशासन बीपीएल कोटे के तहत नामांकन नहीं ले रहा है तो विश्वविद्यालय प्रशासन बड़ा अपराध कर रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन खुद अपने निर्गत पत्र के आलोक में जानकारी के अभाव के कारण वर्ष 2018 में हुए नामांकन के वक्त इस सवाल को लेकर चुप्पी साधे रहा, लेकिन जब अब ये मामला संज्ञान में आ गया है, तो उसके बाद अगर विश्वविद्यालय प्रशासन जान बूझकर लापरवाही करता है, तो इसका साफ मतलब है कि विश्वविद्यालय प्रशासन बीपीएल कोटे की हकमारी कर रहा है।

उक्त मामले पर डॉ. अंजनी कहते हैं कि इस सवाल को लेकर जब छात्र संगठन ने आवाज उठाना शुरू किया तो विश्वविद्यालय प्रशासन पूरे मामले को सुलझाने के बजाय उलझाने पर तुला हुआ है। बीपीएल कोटे के नामांकन को लेकर सरकार से मंतव्य का बहाना बना रहा है, जबकि वर्तमान समय तक विश्वविद्यालय प्रशासन ना तो सिंडिकेट व सीनेट में वर्ष 2010 के पत्र के आलोक में कोई फैसला लिया है। जब बीपीएल कोटे से एडमिशन को लेकर सवाल उठने लगा, तो अपनी काली करतूतों को छिपाने के लिए सरकार से मंतव्य का रास्ता ढ़ूंढ रहा है। जो साफ तौर पर विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही है। इससे स्पष्ट होता कि विश्वविद्यालय प्रशासन की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति कितना असंवेदनशील हैं।

अंजनी कहते हैं कि एक तरह से कहें तो विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जानबूझकर बीपीएल कोटे को खत्म किया जा रहा है और गरीब छात्रों को उनके हक से वंचित करने की पूरी साजिश रची जा रही है, जो विश्वविद्यालय के लिए अत्यंत दु:खद व दुर्भाग्यपूर्ण है।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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