Thursday, April 25, 2024

भगत सिंह का भारत चाहिए या माफीवीर सावरकर का, नौजवानों को करना होगा फैसला

देश के नौजवानों के नाम खुला पत्र

प्यारे नौजवान साथियों,
आज हमारा प्यारा मुल्क बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहा है। पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है। एक चिंगारी से पूरा मुल्क जलने के लिए तैयार बैठा है। देश का बहुसंख्यक हिंदू, अल्पसंख्यक मुस्लिम को शक की नजर से देख रहा है। अल्पसंख्यक मुस्लिम डर के साये में जीने पर मजबूर है।

मुल्क के ये हालात सत्ता द्वारा लोगों को धर्म-जात-क्षेत्र के नाम पर बांटने की नीति अपनाने की वजह से बने हुए हैं। फासीवादी विचारधारा हमारी सांझी विरासत को तहस-नहस करने की लिए प्रयासरत है। धारा 370 का खात्मा, CAA और NRC जैसे कानून इसी फूट डालो-राज करो नीति का हिस्सा है। 

सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ प्रगतिशील जनता सड़कों पर धरना-प्रदर्शन कर रही है। देश का छात्र सत्ता के जुल्म सहते हुए ललकार रहा है। इसके विपरीत सत्ता द्वारा तैयार की गई अंधभक्तों की एक बड़ी फ़ौज सत्ता के इशारे पर जन-विरोधी फैसलों के पक्ष में धरने-प्रदर्शन कर रही है।

वहीं ये फ़ौज उन लोगों पर या प्रदर्शनों पर हमले भी कर रही है, जो सत्ता के खिलाफ बोलने के लिए मुंह खोल रहे हैं। ये अंधी फ़ौज सत्ता के इशारे पर तोड़-फोड़ भी कर रही है। सत्ता के आदेश पर वो हत्याएं भी कर रही है। इस अंधभक्तों की फ़ौज में 90 प्रतिशत नौजवान ही हैं। 

फ्री नेट डेटा से लैस नफरत फैलाता व नफरत ग्रहण करता अंधभक्त नौजवानों, हिंदुत्त्वादी संगठनों द्वारा लंबे समय से  चलाए जा रहे झूठे प्रचार, जिसमें मीडिया और शोशल मीडिया ने एक बड़ी भूमिका निभाई, जिसके अथक प्रयासों से मुल्क को तोड़ने वाली अंधभक्तों की फ़ौज तैयार हुई। ये अंधभक्तों की फ़ौज जो हॉलीवुड के किरदार जांबी की तरह काम करती है। अपने आका के कहने के अनुसार काम करती है। इनको खून पीना, मांस नोचना पसंद है। इंसानो को मार कर खुशी में नृत्य करते हैं।

इन नौजवानों को देश की समस्याओं पर लड़ना चाहिए। इन नौजवानों को मजदूर की मेहनत, किसान की किसानी, अच्छी और मुफ्त शिक्षा-स्वास्थ्य, रोजगार के लिए लड़ना चाहिए। इन नौजवानों को हमारे पूर्वजों द्वारा अर्जित किए गए सार्वजनिक उपक्रमों और जल-जंगल-जमीन-पहाड़ को बचाने के लिए लुटेरी कार्पोरेट जमात और सत्ता के खिलाफ लड़ना चाहिए, लेकिन अफसोस बहुमत नौजवान इन मुद्दों पर लड़ने के बजाए इन मुद्दों के खिलाफ सत्ता के लिए अंधभक्तों की फ़ौज में शामिल है।

देश का किसान जो लंबे समय से खेती के घाटे में रहने से आत्महत्या कर रहा था उसकी आत्महत्या की रफ्तार कछुए से खरगोश हो गई है। फसल पर लागत मूल्य बढ़ रहा है जबकि फसल के दाम बढ़ने की बजाए कम हो रहे हैं। किसान का प्याज एक रुपये में दो किलो, आलू एक रुपये में चार किलो बिकता है, लेकिन बाजार में मंहगा आलू-प्याज सबको रुलाता रहता है। 

देश का प्राइवेट संघठित क्षेत्र का मजदूर जो अपने आपको मजदूर नहीं कर्मचारी कहलवाना पसंद करता था, मजदूर बोलना उनको गाली लगता था। उसको महीने में एक तयशुदा वेतन मिलता था। साल में बोनस मिलता था। उसको लग रहा था की उसकी जिंदगी तो अच्छे से गुजर जाएगी। समस्याएं वहां भी थीं पक्का, कच्चा, ठेके का मजदूर जो संघर्ष कर रहा था, लेकिन फिर भी हालत इतने खराब नहीं थे, जितने 2014 के बाद राम राज्य आने के बाद हुए।

इस दौरान लाखों की तादात में मजदूरों की नौकरी गई है। सरकारी कर्मचारी तो अपने आपको कर्मचारी भी कहलवाना पसंद नही करता था। वो तो खुद को सरकार समझ रहा था। छटनी के डर से सहमा हुआ है।

इसके विपरीत असंघठित क्षेत्र का मजदूर जो सुबह चौक पर खड़ा होकर अपने श्रम की बोली लगवाता है, जिसकी हालात दयनीय थी। उसको कभी किसी ने इंसान ही नहीं माना। उसके हालात और भी ज्यादा गर्त में गए हैं। रोटी-कपड़ा-मकान, शिक्षा-स्वास्थ्य अब सपनों में भी नहीं मिलता है। 

इसके साथ ही एक नया मजदूर उभरा है जो पढ़ा-लिखा है। जो महानगरों में ऊबर-ओला में अपनी गाड़ी लगाए हुए है या  स्वेगी-जोमैटो में डिलवरी बॉय का काम करके सरकार और कंपनी के हाथों लुट रहा है। 14 से 16 घण्टे काम करने के बाद भी महीने के दस हजार भी नहीं मिलते हैं। न कोई छुट्टी न कोई आराम। 

इसके बाद भी ये नौजवान अपने हक, अपनी मेहनत को लूटने वाली कंपनी और सरकार के खिलाफ लड़ने के बजाए सत्ता का हथियार बन सुबह-शाम मुल्क के अल्पसंख्यक मुस्लिमों, कश्मीरियों या पाकिस्तान को गाली देकर उनको अपना दुश्मन मानकर खुश हो लेता है। जैसे उनके बुरे दिनों के लिए सत्ता नहीं अल्पसंख्य मुस्लिम, कश्मीरी या मुस्लिम ही जिम्मेदार है।

मध्यम वर्ग, जिसमें छोटा पूंजीपति, दुकानदार, IT सेक्टर में काम करने वाला मजदूर, उच्च सरकारी कर्मचारी जो 2014 में मोदी सरकार को लाने में अहम भूमिका में था। जो अंधभक्त बनने की पहली कतारों में शामिल था। उसके आंखों से अंधभक्ति का चश्मा जरूर उत्तर गया है। वो खुल कर तो नहीं, लेकिन दबी जुबान सत्ता की जनविरोधी नीतियों खासकर अर्थव्यवस्था की मौत पर जरूर मुखालफत करने लगा है। 

देश के नौजवानों को 2014 का चुनावी शंखनाद याद करना चाहिए। जनता जो कांग्रेस के मंहगाई, कुशासन और भ्रष्टाचार से दुखी थी। पूरे देश में उनके खिलाफ लोग सड़कों पर थे। 

देश की आवाम की भावनाओं को भांप कर फासीवादी भाजपा और उसके नेता नरेंद्र मोदी ने जनता से वादा किया था कि हमारी सरकार आते ही सबसे पहली मीटिंग में पहला काम देश के अन्नदाता का कर्जा माफ किया जाएगा। फसल का दाम दोगुना किया जाएगा और लागत मूल्य घटाया जाएगा। प्रत्येक साल दो करोड़ रोजगार नौजवानों को दिया जाएगा। सबका साथ-सबका विकास, अच्छे दिन जैसे लोक लुभावन वादे किए गए।

दूसरा सबसे बड़ा वादा काला धन वापिस लाने का किया गया। काला धन, जिसको बाबा रामदेव ने लाखों करोड़ बताया। वादा किया गया कि सरकार बनने के 100 दिन के अंदर काला धन वापस आ जाएगा। वापस आते ही प्रत्येक भारतीय के हिस्से में 15-15 लाख आएंगे। जनता कल्पनाओं में खो गई। काला धन आएगा 15-15 लाख मिलेंगे। इन रुपयों से चमकदार मकान, लक्जरी गाड़ी, ब्रांडेड कपड़े। 

इन्हीं कल्पनाओं में खोए-खोए मुल्क की आवाम ने देश की गद्दी पर फासीवादी पार्टी को प्रचंड बहुमत से बैठा दिया। सरकार बन गई। राजा गद्दी पर बैठ गया। जब मुल्क के अलग-अलग हिस्सों से किसान कर्जमाफी की आवाज उठने लगी तो सरकार द्वारा बनाई गई अंधभक्तों की फ़ौज ने बोला कि 15 लाख मिल जाएंगे तो कर्ज माफी का क्या करोगे। बस 15 लाख आने वाले ही हैं। 

जब रोजगार की मांग की गई तो हमारे राम राज्य के सत्तासीन राजा नरेंद्र मोदी ने कहा कि सड़क पर रहेड़ी लगा कर पकोड़े बेचना भी एक बड़ा रोजगार है। देश के नौजवानों को पकोड़े भी बेचने चाहिए। 

काला धन लाने का क्या रहा पूछा तो बोला गया, देश द्रोहियों से निपट लें उसके बाद आ जाएगा। लोग अच्छे दिनों को एड़िया उठा-उठा कर देख रहे थे तभी एक रात साहब टेलीविजन पर अवतरित हुए और बड़े ही क्रांतिकारी अंदाज में नोटबंदी की घोषणा कर दी। साहब ने बोला कि ये कालाधन लाने की पहली सीढ़ी है।

देश के अंदर जो लुटेरे पूंजीपतियों और उनके साझेदार नेताओं ने जो काला धन मुल्क में ही छुपाया हुआ है वो इस नोटबंदी से बाहर आ जाएगा। साहब बोले जा रहे थे लोग सुन रहे थे। साहब बोल रहे थे, मेरे मुल्क के मेहनतकश 80 प्रतिशत अवाम को डरने की जरूरत नहीं है। इस फैसले से 20 प्रतिशत लुटेरे को डरना चाहिए। देश की अवाम को देश हित में ये कड़वी दवा पीनी पड़ेगी, ताकि हमारे मुल्क का भविष्य उज्वल हो सके।

अगले दिन से बैंकों के आगे लंबी-लंबी लाइने लग गई। लाइनों में लगे लोग खुश थे। अब लुटेरों को नानी याद आ जाएगी। दिन बीते। महीने बीते। बीत गए पांच साल, लेकिन लुटेरे पूंजीपति को नानी याद नहीं आई। नानी आवाम को जरूर आ गई। सैंकड़ो लोग लाइनों में खड़े-खड़े स्वर्ग को प्रस्थान कर गए।

कितनी लड़कियों की शादियां रुक गईं। देश की अर्थव्यवस्था कोमा में चली गई। देश के अंदर छोटी-बड़ी लाखों फैक्ट्रियां बंद हो गईं। लाखों लोग बेरोजगार हो गए। लोगों के एक तबके ने सरकार के खिलाफ बोलना शुरू किया तो सत्ता के द्वारा बनाई गई नौजवानों की अंधभक्त फ़ौज लोगों के खिलाफ ही प्रचार करने लगी।

तमिलनाडु के किसानों ने दिल्ली आकर नंगे होकर प्रदर्शन किया या लाखों की तादाद में देश के अलग-अलग हिस्सों से किसान-मजदूर दिल्ली आकर प्रदर्शन कर रहे थे। उसी समय वो अंधभक्तों की भीड़ सोशल मीडिया, मीडिया से लेकर सार्वजनिक जगहों, क्लबों में सक्रिय होकर इन आंदोलनों को बदनाम करने के लिए सभी तरीके अपना रही थी। आंदोलनकारियों को देशद्रोही, अर्बन नक्सली, पाकिस्तान परस्त बोला जा रहा था। 

चुनाव में किए गए वादे पूरे करने की मांग करना भी अब देश द्रोही हो गया। इसके विपरीत सत्ता द्वारा देश का बड़ा कार्पोरेट लाखों-करोड़ों रुपये डकार कर फरार किया गया। ताकि भविष्य में उनसे चुनावी खर्च लिया जा सके। नोटबंदी के बाद GST, जिसने भारत की कोमा में जा चुकी अर्थव्यवस्था का गला रेतने का काम किया।

भारतीय सत्ता जो फासीवादी विचारधारा से लैस, जो संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को ध्वस्त करने के लिए CAA और NRC जैसे काले कानून लागू कर रहा है। भारतीय संविधान द्वारा कश्मीर को धारा 370 के अंतर्गत दिया गया विशेष दर्जा गैर लोकतांत्रिक तरीके से हटाया जाना, आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन, या नार्थ ईस्ट स्टेट के अधिकारों को कुचलना भविष्य में मुल्क को गृह युद्ध की तरफ धकेल रहा है।

सत्ता लोगों को लड़ाकर पिछले दरवाजे से जल-जंगल-जमीन-पहाड़-खान और सार्वजनिक उपक्रमों को कार्पोरेट को नमक के भाव में देना चाहती है, लेकिन देश का बहुमत नौजवान अब भी मोदी और मोदी के राम राज्य की जय जयकार कर रहा है।

नौजवान साथियों, क्या इस बुरे दौर में जब देश के हालात बहुत नाजुक हैं। उस समय देश के नौजवानों को जनता की जन समस्याओं पर लड़ने के बजाए, क्या जनता के खिलाफ लड़ना चाहिए? सत्ता की जनविरोधी नीतियों का विरोध करने के बजाए क्या सत्ता के सामने नतमस्तक हो जाना चाहिए? 

आज मुल्क के नौजवानों के सामने दो रास्ते है। शहीद-ऐ-आजम भगत सिंह का रास्ता, जिसने 23 साल की उम्र में देश के क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी। मेहनतकश आवाम की समाजवादी सत्ता की बात की, धर्मनिरपेक्ष देश की बात की, धर्म-इलाका-जाति के नाम पर एक इंसान दूसरे इंसान का शोषण न करे, आजाद मुल्क में सबको शिक्षा-स्वास्थ्य मिले, सामंती और साम्राज्यवादी शक्तियों का विनाश हो। जिसने अंग्रेजी साम्रज्यवाद की आंखों में आंख डाल कर ललकारा, जिसने फांसी को हंसते-हंसते गले लगाया। 

दूसरा रास्ता माफीवीर और अंग्रेजों की पेंशन पर पलने वाले धर्मनिरेपक्षता विरोधी विनायक दामोदर सावरकर का है। जिसने सजा मिलते ही अंग्रेज सरकार के आगे घुटने टेक दिए। जिसने अपनी अंतिम सांस तक सामंती और साम्राज्यवादी सत्ता के लिए काम किया। जिसने बराबरी और धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा के विपरीत असमानता पर आधारित धार्मिक राज्य बनाने के लिए काम किया। हमारे मुल्क की खूबसूरती हमारी सांझी संस्कृति में ही है नफरतों में नहीं। 

सही रास्ते का चुनाव आपको करना है। ऐसा मुल्क जिसमें सबको बराबरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, मेहनतकश को उसकी पूरी मेहनत का दाम मिले, कमजोर तबके को विशेष रियायत मिले। हमारे प्राकृतिक संसाधनों की लूट बंद हो। एक शांत और सामूहिक आवाम के लिए उन्नति करता पूरे विश्व को रास्ता दिखाता मुल्क हो या जात-धर्म-क्षेत्र के नाम पर खून बहाता, लुटा-पीटा गुलाम मुल्क। फैसला आपको करना है कौन सा रास्ता चुनते हो, क्योंकि भविष्य आपका और आपकी आने वाली नस्लों का आपके हाथों में है।

उदय चे
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और हिसार में रहते हैं।)

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