बीजापुर। छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित बस्तर संभाग में आदिवासियों के बीच धार्मिक आस्थाओं के सवाल को लेकर काफी तनाव और आपसी तकरार की स्थिति बनी हुई है। ऐसी एक घटना विगत दिनों होलिका दहन के दिन यानि मार्च 17 को घटी जिसमें पादरी यालम शंकर को मौत के घाट उतार दिया गया था। कई समय से ऐसी कई घटनाओं के बारे में इधर-उधर से सुनने को मिल रहा था। इन तमाम मामलों को गहराई से समझने के लिए जब ग्राउंड जीरो पहुंचे तब पता चला कि यालम शंकर का मामला तो केवल हिमशैल का शीर्ष ही है।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) और प्रोग्रेसिव क्रिश्चियन अलायन्स (पीसीए) के संयुक्त तत्वावधान में किये गए फैक्ट फाइंडिंग इन्वेस्टीगेशन के दौरान पाया गया कि ऐसे सैकड़ों मामले हैं, जिनकी न ही कोई रिपोर्टिंग हुई है और न ही सरकार ऐसे मामलों को गंभीरता से लेती है। अधिकांश मामलों में यह पाया गया कि स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने पीड़ित को राहत और न्याय दिलाने के बजाय उनके ही ऊपर केस ठोंककर उन्हें और ज्यादा तंग किया है।
अनगिनत भयानक और बर्बर हिंसक वारदात
“घटना 8 मार्च 2021 की है, शाम के लगभग 7 बजे थे। मैं सुरगुडा में एक विश्वासी परिवार के घर प्रार्थना के लिए गया हुआ था। लगभग 7:30 के आसपास एक छोटी सी आराधना के साथ प्रार्थना खत्म कर चुका था। तभी कुछ लोग आकर क्रिश्चियन लोग भाग जाओ बोलकर हल्ला कर गाली गलौज करने लगे। इतने में ही और भी लोग लाठी, कुल्हाड़ी लेकर घर में घुस आए। इससे पहले की हम कुछ समझ पाते या बोलते वे लोग सबको मारने पीटने लगे। पहले सुद्दू, फिर जग्गू, उसके बाद दूरसाईं, फिर सुखराम सभी मिलकर मुझे मारने लगे। मेरा सिर फट गया और मैं लहुलुहान हो गया। बहुत सारे लोग इसी तरह लहुलाहन थे।“ यह कथन है पास्टर सैमसन बघेल का जो बस्तर जिला के लोहंडीगुडा तहसील के मंडवा गांव के मेथोडिस्ट चर्च के पादरी है।
इस घटना में एक अन्य विश्वासी चंटू गावडे बताते हैं कि सभी को मार पीटकर बाहर निकालने के बाद दहशतगर्दों ने बाइबिल, दरी व गीत पुस्तकों को जला दिया। इसके अलावा मोटरसाइकिल और साइकिल को भी तोड़-फोड़ दिया। छानबीन के दौरान ऐसा ही हिंसक रवैया अन्य कई घटनाओं में भी पायी गयी।
यह कोई इकलौती घटना नहीं है, परंतु ऐसी सैकड़ों घटनायें पूरे बस्तर संभाग में हो रही हैं। 18 मार्च 2019, को कोंडागांव जिले के फरसगाँव में, सोम लाल को मसीही विश्वास के कारण धार्मिक कट्टरपंथियों ने बुरी तरह पीटा। हमला इतना गंभीर था कि उसके रिश्तेदारों को उसे अस्पताल ले जाना पड़ा।
24 मार्च 2019, बीजापुर जिले के भैरमगढ़ ब्लाक के फरसेगढ़ गांव में लगभग 150 धार्मिक चरमपंथियों की भीड़ ने एक प्रार्थना सभा में घुसकर पादरी सुदरू पर हमला बोल दिया और उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। इस घटना को अंजाम देने के लिए दस गांवों से कट्टरपंथी जमा हुए थे। उन्होंने गांव में प्रार्थना सभा आयोजित करने के खिलाफ धमकी दी कि सभाएं बंद करो या गंभीर परिणाम भुगतो।
20 फरवरी, 2020 को दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल के पास टिकनपाल गांव में पोडिया ताती के परिवार को बेरहमी से पीटा गया। परिवार धार्मिक कट्टरपंथियों के दबाव में था कि वे अपने विश्वास को त्याग दें। हमलावर जब घर पर पोडिया ताती को खोजते आये तो वह घर पर नहीं था, जिसके कारण परिवार के अन्य सदस्यों – ताती की मां, उनकी पत्नी और बच्चों पर ताबड़तोड़ हमला किया गया। ताती गोंड जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। हमलावरों ने न केवल उन्हें पीटा, बल्कि उनके घर में तोड़ फोड़ किया, बोरवेल को क्षतिग्रस्त किया, धान और अन्य खाद्य पदार्थों को जला दिया और मुर्गियों को जबरदस्ती ले गए। किसी तरह वे बचकर इलाज के लिए किरंदुल के सरकारी अस्पताल में भर्ती हुए। इस बीच हमलावरों ने ईसाइयों को जान से मारने की धमकी भी दी है। टाटी ने 21 फरवरी 2020 को किरंदुल थाने में हमलावरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज (नंबर 14/2020) की।
6 मार्च 2020, को बीजापुर जिले में धार्मिक कट्टरपंथियों ने पास्टर सन्नू तेलम के घर पर पथराव किया। हमलावरों ने पादरी और उनके परिवार को गालियां दीं, उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी, और मांग की कि वे अपने ईसाई धर्म को त्याग दें।
दंतेवाड़ा जिले के जरम गांव में 6 अप्रैल 2020 की रात करीब 11 बजे मंगदुरम कश्यप के घर के बाहर कट्टरपंथियों का जमघट लगा रहा। मंगदुरम, उनकी पत्नी ललिता बाई और उनके बच्चों ने अपनी जान के डर से खुद को घर के अंदर ही बंद रखा। कट्टरपंथी निगरानी रखे थे कि यदि रात को कोई भी बाहर कदम रखे तो उन्हें जान से मार डाला जाए। पीड़ितों के अनुसार 7 अप्रैल की सुबह करीब छह बजे गांव के छह लोग कश्यप परिवार को बलपूर्वक गांव में एक जगह ले गए जहां करीब 200 ग्रामीणों की भीड़ उन्हें घेर लिया। बिना कुछ पूछे-बोले उन्होंने कश्यप के नन्हें पोते सहित परिवार के सदस्यों को पीटना शुरू कर दिया। ग्रामीणों की सामाजिक सभा ने परिवार को धमकी दी कि यदि उन्होंने पुलिस को हमले की सूचना दी तो उन्हें जान से मार दिया जायेगा इसके अलावा उन पर 5,000 रुपये, एक बकरी और कुछ मुर्गियों का जुर्माना भी लगाया गया। मंगदुरम कश्यप को आंख में गंभीर चोट पहुंची और लंबे समय तक इलाज कराना पड़ा। धमकी के बावजूद परिवार ने घटना की शिकायत पुलिस से की, लेकिन आज तक इसमें कोई कार्रवाई नहीं हुई।
21 जून 2020, को बीजापुर जिले में चार लोगों को मसीही विश्वास के कारण एक ग्राम सभा के दौरान कथित तौर पर बुरी तरह पीटा गया। इस घटना की कोई रिपोर्ट नहीं हुई। पीड़ितों ने बताया कि उन्हें अब गांव जाने में डर लगता है क्योंकि वे लोग उन्हें जान से ही मार डालेंगे।
बस्तर जिले के बद्रेंगा गांव में 26 जून 2020 की रात को तीन महिलाओं – चल्की कश्यप, रूपा कश्यप और मुन्ना मंडावी – को बुद्रो, हुंगो, रिंगो और लगभग 15-20 ग्रामीणों ने उनके धार्मिक विश्वास के कारण बुरी तरह पीटा था। महिलाएं एक विश्वासी के घर में प्रार्थना के बाद अपने घर लौट रही थीं।
16 अगस्त 2020, को बस्तर जिले के अंजार गांव में, ग्रामीणों के एक समूह ने पास्टर मोसु राम को धमकी दी, जब वह सोमारो और माडा के परिवारों का दौरा कर रहे थे। अगले दिन जब मोसु राम स्थानीय पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराने गया तो हमलावरों ने उसके घर को घेर लिया और उसके साथ मारपीट की।
18 अगस्त 2020, को बस्तर जिले के अजनार गांव में, ग्रामीणों के एक समूह ने विश्वासियों के एक दल पर हमला किया, जो एक प्रार्थना सभा में शामिल हो रहे थे और पास के एक गांव के पादरियों के नेतृत्व में एक बाइबल अध्ययन कार्यक्रम में शामिल हो रहे थे। पीड़ित जब मदद के लिए मरदुम थाने पहुंचे तो थाना प्रभारी ने घटना स्थल का दौरा किया और हमलावरों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। हालांकि बाद में, ईसाइयों के एक समझौते को प्रभावित करने के अनुरोध पर, हमलावरों ने पीड़ितों से माफी मांगी।
26 अगस्त 2020, को बस्तर जिले में धार्मिक कट्टरपंथियों के एक समूह ने दलसाई और तंगरू पर शारीरिक हमला किया। इससे पहले 6 जून को भी इसी तरह की घटना हुई थी, जब एक परिवार को ग्रामीणों ने धमकी दी थी और उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया।
2 सितंबर 2020, को, बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा तहसील के बदरेगा गांव में धार्मिक चरमपंथियों के एक भीड़ ने दो ईसाइयों – जगरा कश्यप (45) और उनके बेटे आशाराम कश्यप (20) पर जबरदस्त हमला बोल दिया। कट्टरपंथी यह मांग कर रहे थे कि कश्यप और उनके बेटे ईसाई धर्म छोड़ दें और हिंदू धर्म में लौट आएं। भीड़ में आये लोगों ने सुबह 10:30 बजे उनके घर में धावा बोल दिया और जगरा के कान पर तब तक प्रहार करते रहे जब तक वह खूनमखून नहीं हो गया। दूसरी तरफ आशाराम की पीठ, पैर औरहाथ पर गंभीर प्रहार करते रहे। जगरा के अपने भाई ग्रामीणों के समर्थन में थे। बाद में उन्हें इलाज के लिए सरकारी अस्पताल ले जाया गया और डॉक्टरों ने कहा कि जागरा का कान स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो गया है और उन्हें जीवन भर श्रवण यंत्र की आवश्यकता होगी। हालांकि पीड़ितों ने शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस थाने का दरवाजा खटखटाया, लेकिन अधिकारियों ने कहा कि वे तब तक प्राथमिकी दर्ज नहीं करेंगे जब तक कोई प्रत्यक्षदर्शी बयान देने के लिए आगे न आये।
11 अक्टूबर 2020, को कोंडागांव जिले के काकाबेड़ा गांव में लच्छिम और अमर सिंह को उनके धार्मिक विश्वास के कारण धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा बेरहमी से पीटा गया था। उन्हें तुरंत इलाज के लिए जिला अस्पताल ले जाया गया। मानव अधिकार समूहों ने कोंडागांव थाने से संपर्क किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। बाद में जिले के पुलिस अधीक्षक से मामले में हस्तक्षेप करने के अनुरोध के बाद उन्होंने स्वयं गांव में जाकर शांति स्थापित करने का प्रयास किया।
2 नवंबर 2020, को बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा तहसील के चित्रकोट गांव में एक हिंदूवादी गुट ने खेत में काम कर रहे ईसाइयों के एक समूह पर हमला बोल दिया, जिसमें 18 महिलाएं और 12 पुरुष पीड़ित हैं। लाठी-डंडे से लैस हमलावर खेत में घुस आये और लोगों को मारना शुरू कर दिया। तब लोग बचाव के लिए भागने लगे, पर तीन लोग नहीं भाग पाए जिनमें से एक नानी मोरिया नाम की एक महिला थी। हमलावरों ने उन्हें बुरी तरह पीटा और तीनों के सिर फूटने तक मारा। तीनों को सिर पर गंभीर चोटें आई थीं।
सुकमा जिले के चिंगरवारम गांव में 25 नवंबर 2020 को धार्मिक कट्टरपंथियों ने नशे की हालत में तंबू के नीचे सो रहे विश्वासियों के एक समूह पर हमला कर दिया। बांस के डंडे, लोहे की छड़ें, तीर-कमान और लोहे की हसिया से लैस, बड़ी भीड़ ने एक घर और समीप के चर्च पर हमला किया, जहां विश्वासियों ने पिछली शाम को एक नवजात शिशु का समर्पण कार्यक्रम मनाया था। कुछ 20-25 विश्वासी और परिवार के लोग घर में सो रहे थे और अन्य 25-30 चर्च हॉल में। नशे में धुत्त ग्रामीणों ने विश्वासियों पर धर्मांतरित करने और तेज़ संगीत बजाने का आरोप लगाते हुए हमला शुरू कर दिया। 15 से अधिक लोग इसमें गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें सुकमा के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। अन्य लोग प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए सुबह 6 बजे के पास के गादिरास पुलिस थाने पहुंचे, लेकिन शाम 4 बजे तक पुलिस ने कोई एफआईआर दर्ज नहीं किया और न ही कोई ठोस कार्रवाई की। पीयूसीएल जैसे मानवाधिकार समूहों द्वारा हिंसक घटनाओं की सुनियोजित वृद्धि पर बार-बार शिकायत करने के बावजूद, पुलिस-प्रशासन ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
7 जनवरी 2021, को सुकमा जिले के गादिरस थाना क्षेत्र के कोरा गांव में एक ईसाई दम्पति मासा कुंजामी और सनी कुंजामी को बुरी तरह पीटा गया। घटना सुबह करीब छह बजे की है, जब तीन लोग सोडी जोगा, सोडिया देवा और सोडी गंगा कुछ अन्य लोगों के साथ उनके घर में घुस आए और उन पर हमला कर दिया। दंपति से गाली-गलौज किया गया व लाठियों से पीटा गया। सनी कुंजामी को उनके बालों से पकड़ा गया था और उनके ब्लाउज द्वारा उनके घर के बाहर खींच लिया गया था। मासा कुंजामी को भी घसीटकर घर से बाहर निकाल दिया गया और उन पर जानलेवा इरादे से बार-बार हमला किया गया।
17 अप्रैल 2021, को बस्तर जिले के लोहंडीगुडा ब्लॉक के मारेंगा गांव में दो पुरुषों – पूरन और नानी और एक महिला, बोटी को उनके परिवार के सदस्यों ने उनकी धार्मिक मान्यताओं के कारण पीटा और गांव से बहिष्कृत कर दिया। पीड़ितों ने कहा, जब स्थानीय पुलिस गांव पहुंची, तो उन्हें भी ग्रामीणों ने धमकी दी, जिन्होंने तर्क दिया कि चूंकि उन्होंने कोई हत्या या कोई बड़ा अपराध नहीं किया है, इसलिए उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण प्रखंड के मेटापाल गांव में 6 नवंबर 2021 को पांच परिवारों के दस लोगों पर ग्रामीणों ने लाठियों से हमला किया। बुरी तरीके से घायल पीड़ितों में सन्नू मरकाम, मंगली मरकाम, हिडमा पोडियम, सोमारी पोडियम, चैतू पोडियम, जयराम सोढ़ी, वीजा सोढ़ी, गमचंद सोढ़ी, पांडे पोडियम हैं, जिन पर ईसाई धर्म का पालन करने के लिए हमला किया गया था।
16 नवंबर 2021, को बस्तर के डिमरीपाल में एक आदिवासी व्यक्ति और उसकी गर्भवती पत्नी को बुरी तरह पीटा गया क्योंकि वे ईसाई धर्म का पालन करते हैं।
बलात्कार और हत्या
29 मई, 2020, को कोंडागांव जिले के धनोरा थाना अंतर्गत कुमुद गांव में एक ईसाई महिला बज्जो बाई मंडावी का कथित तौर पर बलात्कार और हत्या कर दी गई। मारी गई महिला एक स्थानीय चर्च की सदस्य थी, और अक्सर अपने धार्मिक विश्वासों के कारण अपने गांव में होने वाले उत्पीड़न के बारे में बताया करती थी। उसे अपने विश्वास को त्यागने के लिए सार्वजनिक रूप से चार बार धमकी दी गई थी। 25 मई को वह पास के जंगल में जलाऊ लकड़ी लेने गई थी। चार दिन बाद उसका क्षत-विक्षत शव पास के जंगल में जलाऊ लकड़ी के बंडल के साथ मिला। एक स्थानीय व्यक्ति ने शव को देखा और तुरंत पुलिस को सूचना दी। बज्जो बाई ने दो साल पहले ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था और उनके चार नाबालिग बच्चे हैं।
घरों को तोड़कर भगाना
22 और 23 सितंबर, 2020, कोंडागांव जिले के काकड़ाबेड़ा, सिंगनपुर और तिलियाबेड़ा गांवों में धार्मिक कट्टरपंथियों के प्रभाव में ग्रामीणों द्वारा लगभग 16 घरों को पूरी तरह से तोड़ दिया गया था। पीड़ितों ने बताया कि यहां विश्वासियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर सामाजिक बहिष्कार और अप्रत्याशित हमले हुए। हमलों से पहले उन्हें गांव में एक बैठक में बुलाकर धमकी दी गई कि या तो वे अपनी ईसाई मान्यताओं की निंदा करें या फिर गांव छोड़कर चले जाएं। घटना के बाद आज तक कई लोग अपने घरों, परिवारों और जमीन को छोड़कर भाग गए और छिप-छिपकर जी रहे हैं। हालांकि इसकी शिकायत कोंडागांव थाने में दर्ज कराई गई थी, लेकिन तोड़फोड़ करने वालों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
इससे पहले कुछ ईसाई परिवारों 20 सितंबर 2020 को एक शिकायत कोंडागांव पुलिस थाने में आसन्न खतरे के संकेतों के आधार पर दर्ज की गई थी। घटना के बाद दूसरी 22 सितंबर 2020 को कोंडागांव पुलिस अधीक्षक कार्यालय में और तीसरी 24 सितंबर 2020 को जिला कलेक्टर के समक्ष की गई है। इसके बावजूद पुलिस और प्रशासन ने बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की कोशिश की। हालांकि, पीड़ितों ने कहा कि जब तक हमलावर ग्रामीण यह लिखित रूप से नहीं देते कि वे भविष्य में शांति से रहेंगे, वे अपनी शिकायत वापस लेने को तैयार नहीं हैं। बेघर और बहिष्कृत परिवार अभी भी भय और सदमे की स्थिति में जी रहे हैं।
पीड़ितों ने बताया कि अब उनकी जमीन को भी गांव के लोगों ने छीन लिया है। भय और तनाव के चलते कई लोग खुलकर गांव में चल फिर नहीं सक रहे हैं। विजय शोरी के अनुसार घटना के बाद लोगों ने टूटे-फूटे घरों को अपने अपने तरीके से बनाया और रहने लगे। हमको अब कोई काम नहीं देता – न निजी और न ही सरकारी। बच्चों को आंगनबाड़ी में भी दाखिला नहीं दे रहे। पूरा गांव में सभी रीति से विश्वासियों का हुक्का पानी बंद है। कोई एक दूसरे से बात भी नहीं करता। हमको बस एक दुश्मन के रूप से देखा जाता है।
धर्म की रक्षा और हिंसा का सवाल
विगत 1 अक्टूबर, 2021 को प्रदेश के सरगुजा जिले में सर्व सनातन हिंदू रक्षा मंच ने धर्मान्तरण के खिलाफ एक विशाल विरोध रैली का आयोजन किया था। यह हिंदुओं के ईसाई धर्म के प्रति बढ़ती आस्था के खिलाफ था। इसमें मुख्य वक्ता स्वामी परमानंद थे। रैली में आये हुए लोगों को संबोधित करते हुए वह कहते हैं, “मैं ईसाइयों और मुसलमानों के लिए अच्छी भाषा बोल सकता हूं, पर इनको यही भाषा समझ आती है। धर्म की रक्षा भगवान का काम है और यही हमारा काम भी है… हम किसके लिए कुल्हाड़ी रखते हैं? जो धर्मान्तरण करने आता है उसकी मुंडी काटो। अब तुम कहोगे कि मैं संत होते हुए भी नफरत फैला रहा हूं। लेकिन कभी-कभी आग भी लगानी पड़ती है। मैं तुम्हें बता रहा हूं; जो कोई भी आपके घर, गली, मोहल्ले, गांव में आता है, उन्हें माफ नहीं करना।”
वह आगे ईसाइयों को सही रास्ते पर लाने का ‘रोको, टोको और ठोको‘ का फॉर्मूला भी देते हैं। परमानंद महाराज ऊंचे स्वर में बोलते हैं, “पहले उन्हें (ईसाइयों) मित्र की तरह समझाओ। उन्हें ‘रोको‘ और अगर नहीं मानें तो ‘ठोको‘। मैं उनसे पूछता हूं जो इस धर्म (ईसाई) में चले गए, समुद्र छोड़कर कुएं में क्यों चले गए? इन्हें ‘रोको‘, फिर टोको (विरोध) और ठोको।‘
शायद बस्तर में जो उत्पीड़न हो रहा है वह इसी ‘रोको, टोको और ठोको‘ फॉर्मूले का हिस्सा है। ईसाइयों के खिलाफ बढ़ती हिंसक घटनाओं पर पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान के मुताबिक रूढ़ि परंपरा के नाम पर ऐसी बर्बरता एक सभ्य समाज में स्वीकार्य ही नहीं हो सकता। आदिवासियों के ऊपर हिंसा की इन घटनाओं को केवल स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया नहीं माना जा सकता है, जिसके सामने पुलिस-प्रशासन और सत्ता भी नतमस्तक है। निश्चित रूप से जातीय सत्ता और हिन्दू फासिस्ट तत्वों का गठजोड़ इन सुनियोजित हमलों के पीछे काम कर रही है। वास्ताव में ‘धर्मांतरण’ एक राजनीतिक गिमिक के सिवाय कुछ और नहीं है।
वहीं पीयूसीएल की प्रदेश सचिव रिंचिन का कहना है कि बस्तर में ईसाइयों का उत्पीड़न लोगों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है और यह इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि आदिवासी पहचान की रक्षा के नाम पर हिंदुत्ववादी कैसे आदिवासियों के खिलाफ आदिवासियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि ईसाई धर्म अपनाने वाला व्यक्ति आदिवासी बना रहता है, भले ही वे किसी भी धर्म को अपनाते हों। आदिवासी पहचान किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है।
इस संदर्भ में यह पूछना भी महत्वपूर्ण है कि यदि सवाल केवल आदिवासी संस्कृति और धर्म की रक्षा का है तो फिर आदिवासी हिंदुओं के रूप में पहचान बनाने वाले लोगों को इस घृणित तरीके से क्यों नहीं सताया जाता है। रिंचिन आगे कहती हैं “हमेशा की तरह महिलाएं खुद को समाज कहने वाली भीड़ द्वारा यौन उत्पीड़न का सामना करने, अपने घरों में हमला करने, पानी भरने वाले क्षेत्रों में प्रताड़ित करने और वैवाहिक और जन्म के घरों से बाहर निकाले जाने का खामियाजा भुगतती हैं। गौरतलब है कि संस्कृति की रक्षा के नाम पर ऐसा किया जा रहा है।”
भारत में हर नागरिक के संवैधानिक अधिकार को राज्य के द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए, जो वह करने में विफल रहा है, उसका कई बार अपराधियों के पक्ष में नरम रुख रहता है और पीड़ितों से समझौता करवाने की कोशिश करता है।
(छत्तीसगढ़ के बीजापुर से डॉ. गोल्डी एम जॉर्ज की रिपोर्ट।)
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