आर्यन खान को फंसाया गया था षड्यंत्र के तहत: एसआईटी

“आर्यन खान ड्रग के धंधे में नहीं था। वह एक षड्यंत्र के तहत फंसाया गया था।” यह कहना है नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की एसआईटी का, जिसे इस बहुचर्चित ड्रग मामले की जांच सौंपी गयी थी। इस मामले के सूत्रधार समीर वानखेड़े के खिलाफ एनसीबी को विभागीय कार्यवाही करनी चाहिए। ऐसे अफसरों की इस प्रकार की हरकतों से न केवल महत्वपूर्ण जांच एजेंसियों की साख पर सवाल उठता है बल्कि जांच एजेंसियों की प्रोफेशनल कार्यवाही पर से भी लोगों का भरोसा उठने लगता है। साख के संकट के कारण ऐसे संवेदनशील और हाई प्रोफाइल मामले, पुलिस या सामान्य जांच या लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों के पास से हटा कर, विशेषज्ञ जांच एजेंसियों को सौंपे जाते हैं। एनसीबी भी इसी प्रकार की एक विशेषज्ञ जांच एजेंसी है, जो मादक पदार्थों, ड्रग और अन्य नशा से जुड़े बड़े मामलों की धर पकड़, उसकी तफ्तीश और अभियोजन के लिये गठित की गयी है।

जांच रिपोर्ट के बारे में हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर के अनुसार, “इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान ड्रग्स की एक बड़ी साजिश या एक अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्करी सिंडिकेट का हिस्सा थे। कॉर्डेलिया क्रूज पर छापे और आर्यन खान की गिरफ्तारी के दौरान, कई अनियमितताएं एनसीबी द्वारा की गयी थीं।”

एनसीबी की एसआईटी द्वारा, की गयी जांच में, एनसीबी की मुंबई इकाई के आरोपों के विपरीत, निकलने वाले यह कुछ प्रमुख निष्कर्ष हैं, जिन्हें अखबार ने सूत्रों के हवाले से छापा है। एसआईटी के अनुसार-

● आर्यन खान के पास कभी भी ड्रग्स नहीं मिला था, इसलिए उसका फोन कब्जे में लेने और उसकी चैट की जांच करने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी।

● चैट से यह नहीं पता चलता कि आर्यन खान किसी अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट के हिस्से थे।

● छापे की वीडियो-रिकॉर्डिंग एनसीबी मैनुअल द्वारा तय किये गए दिशा निर्देशों के अनुसार नहीं की गयी थी।

● मामले में गिरफ्तार कई आरोपियों से बरामद दवाओं को, अलग-अलग रिकवरी मेमो के द्वारा नहीं बल्कि एकल वसूली के रूप में दिखाया गया था।

यह जांच के शुरुआती निष्कर्ष हैं और अभी एसआईटी जांच को अंतिम रूप नहीं दिया गया है।

समीर बानखेड़े जो एनसीबी के जोनल डायरेक्टर थे, ने आरोप लगाया था कि, “आर्यन पर ड्रग्स लेने का आरोप है, उसके बाद, उस पर, एनडीपीएस एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। वह वैश्विक ड्रग कार्टेल के संपर्क में भी था। एनसीबी ने 14 लोगों को, छापे के दौरान रोका था और उनसे लंबी पूछताछ के बाद आर्यन खान (24), अरबाज मर्चेंट (26) और मुनमुन धमेचा (28) को 3 अक्टूबर को गिरफ्तार कर लिया गया था। आर्यन खान को 28 अक्टूबर को, अदालत से जमानत मिल गई थी। यह छापा 2 अक्टूबर, 2021 को पड़ा था।”

एसआईटी ने एनसीबी के इन आरोपों को सही नहीं पाया है और जांच तथा छापेमारी दल का नेतृत्व करने वाले, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मुंबई की क्षेत्रीय इकाई के पूर्व निदेशक समीर वानखेड़े के आचरण और जांच पर भी सवाल उठाया है। समीर वानखेड़े को, उनके मूल कैडर में प्रत्यावर्तित भी कर दिया गया है। 

एसआईटी जांच के शुरुआती निष्कर्षों ने बंबई उच्च न्यायालय की उन टिप्पणियों को भी सही ठहराया, जो बॉम्बे हाईकोर्ट ने, पिछले साल 28 अक्टूबर को आर्यन खान को जमानत देते समय की थी। हाईकोर्ट के जमानत फैसले में, कहा गया था कि “किसी भी साजिश के अस्तित्व का कोई सबूत नहीं मिला था।” कॉर्डेलिया क्रूज की एसआईटी जांच के अनुसार, आर्यन खान ने अपने दोस्त से कभी नहीं पूछा था कि, क्या क्रूज पर ड्रग्स लाए जायेंगे।

इन तथ्यात्मक गलतियों के अंतर्गत जांच की प्रक्रिया में भी कई प्रक्रियात्मक खामियों की ओर इंगित किया गया है, जिसकी पहले से ही एक अलग सतर्कता जांच चल रही है। समीर वानखेड़े ने पिछले साल 2 अक्टूबर की रात को मुंबई में ग्रीन गेट पर अंतरराष्ट्रीय क्रूज टर्मिनल पर एक क्रूज जहाज, कॉर्डेलिया पर छापा मारने के लिए अधिकारियों और कुछ गवाहों की एक टीम का नेतृत्व किया। एनसीबी ने 13 ग्राम कोकीन, पांच ग्राम मेफेड्रोन, और 21 ग्राम नशीली वस्तुएँ जब्त किया था।

इस मामले में आर्यन खान के खिलाफ, उसके व्हाट्सएप बातचीत के कुछ अंशों को, सबूत के रूप में आधार बनाया गया था। व्हाट्सएप चैट पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि, यह कोई सबूत नहीं है। व्हाट्सएप चैट को अक्सर पुलिस, किसी अपराध के सबूत के रूप में देखती है और प्रस्तुत करती है। पर क्या व्हाट्सएप चैट को किसी अपराध में सबूत के तौर पर पेश किया जा सकता है? इसका उत्तर दिया है सुप्रीम कोर्ट ने।

इस बिंदु पर विचार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, “लोकप्रियता विश्वसनीयता का पैमाना नहीं है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप पर संदेशों का आदान-प्रदान किसी सबूत के रूप में मान्य नहीं है और ऐसे व्हाट्सएप संदेशों के आदान-प्रदान करने वाले, केवल इस बातचीत के आधार पर दोषी नहीं ठहराए जा सकते हैं।”

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और हृषिकेश रॉय की पीठ ने इस संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है,

“आजकल व्हाट्सएप संदेशों का सबूत क्या है? इन दिनों सोशल मीडिया पर कुछ भी बनाया और हटाया जा सकता है। हम इसे सबूत के मूल्य के रूप में नहीं देखते हैं। जब हमने ही इसे जाली और मनगढ़ंत बताया है तो किसी भी हाईकोर्ट, को, किसी भी व्हाट्सएप संदेश पर क्यों विश्वास करना चाहिए? सोशल मीडिया पर आजकल कुछ भी बनाया और हटाया जा सकता है। हम व्हाट्सएप संदेशों को कोई महत्व नहीं देते हैं।”यह मुद्दा दक्षिण दिल्ली नगर निगम और एक कंसोर्टियम के बीच 2016 के एक रियायत समझौते से संबंधित था।

समीर वानखेड़े भी कोई एक सामान्य पुलिस कांस्टेबल या नयी भर्ती के सब इंस्पेक्टर नहीं हैं जिनसे ऐसी गलती की उम्मीद की जाय। वे एक आईआरएस अफसर हैं और एनसीबी में जोनल डायरेक्टर के महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त हैं। पर इस मामले में बरामदगी से लेकर आर्यन की गिरफ्तारी और पूछताछ तक, जिस प्रकार का जाल उन्होंने बुना था, वह शुरू से ही संदेहास्पद लग रहा था। एक पुलिस अफसर होने के नाते हम यह जानते हैं कि, हर रिकवरी और गिरफ्तारी पर मीडिया से लेकर अदालत तक सभी न केवल संदेह करते हैं बल्कि वे अपनी अपनी तरह से जांच भी, उस घटना की करने लगते हैं। वे भी कानून जानते हैं और उनके भी अपने सूत्र होते हैं।

पुलिस बहुत सी चीजें चाह कर भी उनकी नज़रों से छुपा नहीं सकती है। यदि हम यह मान लें कि पुलिस की जांच पर कोई भी सवाल नहीं उठेगा और अदालत, मीडिया आदि सभी, पुलिस या सम्बंधित जांच एजेंसी की हर थियरी को बिना प्रश्नाकुलता दिखाए जस का तस स्वीकार कर लेंगे तो, यह पुलिस या जांच एजेंसियों की सबसे बड़ी गलतफहमी है। हम शीशे के घर में हैं। हमें न केवल सबूत जुटाना है बल्कि उसे लंबी और दक्ष वकीलों से घिरी अदालतों में प्रमाणित भी करना है।

इस मामले में भी यही हुआ। जैसे ही आर्यन खान की गिरफ्तारी हुई इस पर सवाल उठने लगे। समीर वानखेड़े को यह अंदाजा लगा लेना चाहिए था कि आर्यन खान की इस मामले में गिरफ्तारी से यह मामला, मीडिया की सुर्खियों में लगातार बना रहेगा और जांच एजेंसी के हर कदम पर सवाल उठेंगे। और ऐसा हुआ भी। टीवी डिबेट हुए, अखबारों में भी खबरें छपीं और राजनीतिक दलों के नेता भी इस मामले में कूदे।

आर्यन खान को तो अब एनसीबी ने ही बरी कर दिया है, पर इस पूरे मामले में समीर बानखेड़े बेनकाब हो गए। महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने  जो सवाल इस मामले में और समीर वानखेड़े के निजी जीवन के बारे में उठाये उसका उत्तर न तो एनसीबी दे पाई और न ही समीर। समीर वानखेड़े का जो रहस्य उनके विभाग को भी नहीं पता था, वह भी खुल कर सामने आ गया। अब उन पर क्या कार्रवाई होती है यह तो भविष्य में ही पता चलेगा, पर कार्रवाई तो होगी ही, यह तय है। एसआईटी की जांच से तो फिलहाल यही प्रमाणित हो रहा है कि, आर्यन खान केस, शुरू से ही उगाही और परेशान करने की नीयत से थोपा गया मामला था और आर्यन की इस मामले में संलिप्तता और ड्रग की बरामदगी, पहले ही दिन से संदिग्ध लग रही थी।

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

विजय शंकर सिंह
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