Friday, April 19, 2024

बहुत खुश होगी चर्चिल की आत्मा!

“बोली से, गोली से नहीं”। 15 अगस्त, 2017 को लाल किले से की गयी इस घोषणा के जरिये मोदी ने खुलकर बताया था कि नई दिल्ली कश्मीर के लोगों के साथ किस तरह से पेश आएगी। केवल तीन दिन पहले, कश्मीर में नई दिल्ली के राज्यपाल ने कश्मीरी नेताओं को भरोसा दिलाया था कि अचानक भारी संख्या में सेना का जमावड़ा,  हजारों अमरनाथ तीर्थ यात्रियों को तत्काल कश्मीर छोड़ने और अपने-अपने घरों को वापस जाने के निर्देश और समूची घाटी में फोन और इंटरनेट सेवाओं के बंद कर देने को किसी बड़ी घटना के संकेत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।

फिर, सोमवार 5 अगस्त की सुबह, संविधान का एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद बिना किसी चर्चा के संविधान से छांट दिया गया। इसका जोरदार तरीके से स्वागत किया गया। इस तरह से औपचारिक तौर पर और सर्जरी के जरिये कश्मीरी स्वायत्तता के आखिरी अवशेष को भी हटा दिया गया।

एक ऐसा कदम जिसे नेक कत्तई नहीं करार दिया जा सकता है लेकिन कई गैर-भाजपाई दलों ने दिल खोल कर उसकी तारीफ की। शिवसेना के एक सांसद ने इस बात का भरोसा जाहिर किया कि भविष्य का अखंड भारत अब बेहद करीब है। इससे शुरुआत कर कश्मीर के उस हिस्से को भी समाहित कर लिया जाएगा, जिस पर अभी तक पाकिस्तान का कब्जा है और जिसमें बलूचिस्तान भी शामिल है।

कुछ लोगों का कहना है कि यह संवैधानिक बदलाव कोई बड़ी बात नहीं है, केवल लंबे समय से चली आ रही वास्तविकता की स्वीकार्यता है। लेकिन यहां उत्सव और गर्व है। यह कहा जाएगा कि ‘भारत का एकीकरण आखिरकार पूरा हो गया है, ’सरदार पटेल की आत्मा आज कितनी खुश होगी!’ (नहीं, ऐसी बात नहीं है। लेकिन यह एक और चर्चा का विषय है।)

अगर बीजिंग की पीपुल्स असेम्बली में एक छोटे से भाषण के बाद  तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को गर्वित चीन का तिब्बत क्षेत्र या गर्वित चीन का तिब्बत प्रदेश में तेज़ी से तब्दील कर दिया जाता है।  निश्चित रूप से चीन के कई हिस्सों में इसका जश्न मनाया जाएगा।

बहुत सालों पहले जब भारतीय अंग्रेजों से आजादी की मांग कर रहे थे, तब विंस्टन चर्चिल के नेतृत्व में कुछ अंग्रेज उसका जवाब देते हुए कहते थे कि: ‘ आप लोग आजादी सिर्फ इसलिए चाहते हैं ताकि अपने में से जो कमजोर और छोटे लोग हैं, उन्हें कुचल सकें’।

‘और मैं सही था।’, चर्चिल को आज कहीं यह गर्जन करते सुना जा सकता है।

उन संघर्षपूर्ण दिनों में हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा के चैंपियन हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के प्रयासों का विरोध करते थे। वो ऐसा कहा करते थे कि, ‘ देखो, हिटलर किस तरह से कट्टर अल्पसंख्यकों के साथ निपटता है!’ हाल के सालों में, ऐसे चैंपियन कहते रहे हैं, ‘देखो कैसे इजरायल एक कठिन अल्पसंख्यक बहुल इलाके से निपटता है।’

इजरायली उदहारण की रोशनी में, यह सम्भव है कि कश्मीर के इस मिलान के जरिये कश्मीर घाटी और खासकर जम्मू और उसके आस-पास के इलाके में शेष भारतीयों के बसाए जाने के बाद,  घाटी के बहुसंख्यक मुसलमानों को अल्पसंख्यक समुदाय में तब्दील करने के स्पष्ट लक्ष्य के साथ जम्मू और कश्मीर को एकल केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर स्थापित कर दिया जाए। अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के साथ इस दिशा में काम शुरू हो गया है।

ताकत का अपना कानून होता है और न्याय की शक्ति अलग होती है। पहला तेजी से काम करता है, बाद वाले में समय लगता है।

कभी-कभी बहुत लम्बा वक्त बीत जाता है, जैसा कि हम भारतीयों को पता था जब अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, जैसा कि दलाई लामा और उनके तिब्बती लोग जानते हैं कि वे स्वायत्तता के एक विशेष स्वरुप की लड़ाई लड़ रहे हैं, और जैसा कि फिलीस्तीनी जानते हैं कि अपने आत्म सम्मान को बनाये रखने की इस लड़ाई में उनकी अधिक से अधिक भूमि कहीं न कहीं एक भीमकाय शक्ति के आगे समाप्त हो रही है।

ये केवल कुछ उदाहरण हैं। दुनिया में लाखों ऐसे हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपमान सहते बिताई है। ऐसे युग जहां राष्ट्र और समाज कमजोर वर्गों को असंतोष जाहिर करने की अनुमति देते हों, वास्तव में दुनिया के इतिहास में अपेक्षाकृत नये हैं।

हममें से कुछ लोगों ने भोलेपन में सोचा था कि भारत में ये युग हमेशा बना रहेगा। उस विश्वास को धारण करते हुए हम ‘डेमोक्रेसी’ और ’ह्यूमन राइट्स’ के ऊंचे बैनरों को पकड़कर दुनिया में गर्व से सीना तानकर चल रहे थे। अब हम उसकी पताका को लपेट लेंगे और अपनी गर्दन झुका देंगे।

भारत का बड़ा हिस्सा कश्मीर को समाहित करने की सराहना कर रहा है। ‘संकल्प’ और ‘राष्ट्रीय महानता!’ का बैनर लेकर मार्च करने वालों का ढोल-नगाड़ों के साथ स्वागत किया जाएगा। मोदी के समर्थकों की तादाद में भी वृद्धि हो जाएगी।

लेकिन बहुमत हमेशा सही नहीं होता है। सदियों से, भारत में छुआछूत और अमेरिका में गुलामी की प्रथा को व्यापक समर्थन मिलता रहा है। साम्राज्यवादी ब्रिटेन के लोगों ने विद्रोही उपनिवेशों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई का वादा करने वाली सरकारों के लिए बार-बार मतदान किया।

भारत के भीतर, अगर सख्त कानून मौजूद नहीं होते तो महिलाओं और दलितों के प्रति भेदभाव को खुला समर्थन हासिल होता। यहां तक कि कई गांवों, तालुकों या जिलों में यह आज भी बना हुआ है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि हमास के आतंकी हमलों के कारण फिलीस्तीन के मुक्ति आंदोलन को चोट पहुंची है। आज़ादी के नाम पर किए गए कश्मीरी चरमपंथियों के आतंकी हमलों ने ढेर सारे भारतीयों को अलग-थलग कर दिया, जो शायद दूसरे तरीके से कश्मीरी स्वायत्तता के पक्षधर रहे हों।

सच्चाई यह है कि हजारों-लाखों कश्मीरी पंडित भाग गए या फिर उन्हें घाटी से पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया गया। यह  कश्मीर को शामिल करने के भारतीय चैंपियनों के लिए सबसे बड़ा उपहार था।

लेकिन यहां तक कि गंभीर खामियां भी किसी इंसान के अपने ऊपर शासन के अधिकार को बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं छीन सकती हैं। इसी तरह किसी क्षेत्र विशेष के लोगों के अधिकार के मामले में भी यह उतना ही सच है कि वे अपने शासकों को अपनी सहमति देते हैं या फिर उसे अपने पास रखते हैं। आखिरकार वे इंसान हैं, कोई रोबोट नहीं।

धारा 370 का खात्मा इस आरोप की पुष्टि करता है कि केंद्र की वहां के भूभाग में रुचि है लोगों से उसका कुछ लेना-देना नहीं है। यह इस बात का भी संकेत देता है कि अब कश्मीरियों के दिल और दिमाग को जीतने की पॉलिसी का अंत हो गया है।

केन्द्रशासित प्रदेश, ये दो शब्द सब कुछ कह देते हैं। लेकिन कर्म के कानून का अभी खात्मा नहीं हुआ है। अंत में, इतिहास उन लोगों के प्रति दयालु नहीं रहा है जिन्होंने कभी असहमति रखने वालों की अवमानना की है।

(यह लेख राजमोहन गांधी ने लिखा है। अंग्रेजी में लिखे गए इस लेख का अनुवाद रविंद्र सिंह पटवाल ने किया है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।

Related Articles

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।