Friday, June 2, 2023

खादी के दामन पर चस्पा हो गया है खाकीधारियों के खून का छींटा

आज की सुबह बेहद बुरी खबर के साथ शुरू हुयी। सुबह ही सुबह एक पुलिस के ही मित्र का फोन आया कि चौबेपुर थाना क्षेत्र में एक मुठभेड़ हो गयी है और सीओ बिल्हौर सहित कई पुलिस जन मारे गए हैं। बाद में पता लगा कि, कानपुर जिले में चौबेपुर थानांतर्गत, बिकरु गांव में वहां के हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को गिरफ्तार करने गयी एक पुलिस पार्टी पर जिसमें एक डीएसपी देवेन्द्र मिश्र, और एसओ चौबेपुर सहित 8 पुलिसजन थे, एक मुठभेड़ में मारे गए। 

कर्तव्य पालन में हुयी यह बेहद दुःखद घटना, उत्तर प्रदेश के हाल के अपराध के इतिहास की एक बड़ी घटना है। डीएसपी, देवेंद्र मिश्र, जो सीओ बिल्हौर थे, प्रतापगढ़ में कुछ सालों पहले, कानून व्यवस्था की एक घटना में मारे जाने वाले डीएसपी जिया उल हक के बाद, संभवतः ऐसी घटनाओं में शहीद होने वाले, दूसरे डीएसपी हैं। बहुत पहले 1982 में जिला गोंडा में इसी प्रकार की घटना में डीएसपी केपी सिंह शहीद हो गए थे। 

कानपुर का बिकरु गांव, न तो बीहड़ का कोई गांव है और न ही विकास दुबे किसी संगठित दस्यु गिरोह का सरगना ही है। न ही यह इलाका दस्यु प्रभावित ही है। यह गांव, शहर से बहुत दूर भी नहीं है। विकास दुबे, एक आपराधिक चरित्र का व्यक्ति है और किसी समय बसपा का एक छोटा मोटा नेता भी था। लेकिन ज़रूरत पड़ने पर सफेदपोश बदमाश जैसे सभी राजनीतिक दलों में ठीहा खोज लेते हैं, वैसे यह भी ठीहा खोज लेता है। इलाके में इसकी छवि एक दबंग और पेशेवर बदमाश की है और यह है भी। यह एक अजीब विडंबना भी है ऐसे छवि के दुष्टों और अपराधी नेताओं में जनता एक अजब तरह का नायकत्व भी ढूंढ लेती है। 

यह नायकत्व का नतीजा है या, हमारी राजनीति और चुनाव व्यवस्था की गम्भीर त्रुटि, कि, पंद्रह वर्ष से या तो विकास दुबे, स्वयं या तो उसकी पत्नी या उसका भाई, ज़िला पंचायत का सदस्य रहा है। अपने गांव का वह निर्विरोध प्रधान भी एक समय रहा है। छोटे स्तर पर ही राजनीतिक गतिविधियों के कारण विधायक या संसदीय के चुनाव में यह किसी न किसी के साथ जुड़ा ही रहता है। 2001 में, इसने, कानपुर देहात के शिवली थाने में ही भाजपा के एक नेता, संतोष शुक्ल, जो तब दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री भी थे, की हत्या कर दी थी। यह हत्या थाने के अंदर थाना कार्यालय में ही हुयी थी। मैं उस समय कानपुर में ही नियुक्त था, लेकिन जिले में नहीं बल्कि एसपी एन्टी डकैती ऑपरेशंस था। लेकिन तब मैं घटनास्थल पर यह सूचना मिलने पर गया था। 

Screenshot 2020 07 03 at 4.58.21 PM

आप यह जान कर हैरान रह जाएंगे कि दिन दहाड़े और थाना ऑफिस में हुयी हत्या की उस घटना में विकास दुबे अदालत से बरी हो गया था। उस समय वह उसी क्षेत्र के एक बसपा नेता, जो मंत्री भी रह चुके थे के काफी करीब था। 2017 में एसटीएफ़ द्वारा भी गिरफ्तार किया गया था, पर उसमें भी जमानत पर है। इसके अलावा और भी बहुत सी आपराधिक घटनाएं हैं जिनमें यह मुल्जिम है। सभी पर मुक़दमे चल रहे हैं, और वह एक रजिस्टर्ड हिस्ट्रीशीटर भी है। 

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि यह केवल बसपा से जुड़ा था या है, बल्कि यह सभी राजनीतिक दलों में अपने स्वार्थानुसार घुसपैठ करता रहता है। राजनीति और समाज सेवा से इसे इलाके में लोकप्रियता मिलती है पर यह मूल रूप से एक अपराधी और सम्पन्न लोगों से धन की वसूली करने वाला व्यक्ति है। यह उस तरह का हार्डकोर क्रिमिनल या आतंकी संगठन जैसा मामला नहीं है, बल्कि यह सफेदपोश लेकिन संगीन अपराध से जुड़ा मामला है। 

पुलिस के इस ऑपरेशन में क्या कमियां रही हैं इस पर तो तभी कुछ कहा जा सकता है जब सिलसिलेवार पूरा घटनाचक्र पता चले। अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन एक बात तो तय है कि इस दबिश या रेड की भनक विकास दुबे के किसी न किसी करीबी को ज़रूर रही होगी। यह गोपनीयता भंग किस स्तर पर हुयी है , सीधे किसी पुलिसकर्मी की मिलीभगत से हुयी है या जनता के किसी व्यक्ति ने ऐसा किया है यह अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन एक बात तय है कि ऐसे ऑपरेशन के समय पुलिस पार्टी द्वारा मुल्जिम की शक्ति, उसके छिपने के ठिकानों और फ़ायरपावर का अंदाज़ा लगाने में कहीं न कहीं चूक ज़रूर हो गयी है। बदलते परिवेश के अनुसार, पुलिसिंग के ढर्रे भी बदलने होंगे और दबिश तथा इसी प्रकार के अन्य ऑपरेशन के समय एक प्रोफ़ेशनल परिपक्वता बनाये रखनी पड़ेगी। 

police in village

यह भी खबर है कि यह गाँवों में लॉकडाउन के दौरान आवशयक वस्तुएँ बँटवा रहा था और शोभन आश्रम की अकूत संपत्ति पर भी क़ाबिज़ होने की कोशिश कर रहा था । विकास दुबे पकड़ा भी जाएगा, और अगर कोई मुठभेड़ हुयी तो वह मारा भी जाएगा। यह भी हो सकता है कि वह खुद ही अदालत के सामने हाज़िर हो जाए। पर राजनीति के अपराधीकरण का यह दुष्परिणाम पुलिस को जो भोगना पड़ता है, उसका यह एक उदाहरण है। 

राजनीति में अपराधीकरण को पुलिस नहीं ठीक कर सकती है क्योंकि यह उसके बस में नहीं है लेकिन पुलिस में अपराधी तत्वों की घुसपैठ न हो यह तो पुलिस को ही सुनिश्चित करना पड़ेगा। यहां पुलिस को विकास दुबे की कितनी खबर थी यह तो नहीं पता पर विकास को पुलिस के संभावित कार्यवाही की पूरी खबर थी इसीलिए यहां पुलिस का यह ऑपरेशन विफल रहा और ज़बरदस्त हानि उठानी पड़ी। 

कानपुर में पुलिस मुठभेड़ के दौरान अपराधियों के हमले में शहीद पुलिस कर्मी,

1-देवेंद्र कुमार मिश्र, सीओ बिल्हौर

2-महेश यादव, एसओ शिवराजपुर 

3-अनूप कुमार सिंह चौकी इंचार्ज मंधना

4-नेबूलाल, सब इंस्पेक्टर शिवराजपुर 

5-सुल्तान सिंह कांस्टेबल थाना चौबेपुर 

6-राहुल, कांस्टेबल बिठूर 

7-जितेंद्र, कांस्टेबल बिठूर 

8-बब्लू कांस्टेबल बिठूर

कर्तव्य पालन में वीरगति प्राप्त सभी पुलिस जन को विनम्र श्रद्धांजलि। 

( विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं। )

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles

धर्मनिपेक्षता भारत की एकता-अखंडता की पहली शर्त

(साम्प्रदायिकता भारत के राजनीतिक जीवन में एक विषैला कांटा है। भारत की एकता धर्मनिरपेक्षता...