अमानवीयता की इंतहा है बुलडोजर न्याय 

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बड़े अफ़सोस और शर्म की बात है कि भारत सरकार संविधान के तहत अपराधियों पर कार्रवाई ना कर बुलडोजर न्याय को लंबे समय से प्रश्रय दे रही है। उसे बस्तियां उजाड़ने और कड़ी मेहनत से बने घर तोड़ने में आनन्दानुभूति हो रही है उसे घर में रहने वाले नन्हें  बच्चों, मां-बहनों, वृद्ध नागरिकों पर ज़रा भी रहम नहीं आता। ऐसे दुष्ट और हिंसक कार्यों पर हमारी न्याय व्यवस्था की चुप्पी से ऐसे कार्य बढ़ते जा रहे हैं।

किसी एक के अपराध की सज़ा पूरा परिवार भुगते और दर्दनाक हालात में रहे ये कैसा न्याय है? शांति, अहिंसा, क्षमा और दीन दुखियों को शरण देने वाले देश की यह तस्वीर चौंकाती भी है और भविष्य के फासिस्ट स्वरूप का भी अहसास कराती है। ऐसे मानवाधिकार के हनन और अमानवीय व्यवहार को रोकने की सख़्त ज़रूरत है।

सवाल ये भी उठता है, देश में क्यों रसूखदार और भाजपाई राजनैतिक अतिक्रमणकारियों, माफियाओं और यौन अपराधियों पर कार्रवाई नहीं होती इसे एक खास कौम, कांग्रेस के नेताओं तथा भाजपा विरोधियों पर ही अमल में लाया जाता है। आजकल तो जहां कारपोरेट को ज़मीन चाहिए उस क्षेत्र की बस्तियां अकारण उजाड़ दी जाती हैं। मणिपुर की लोमहर्षक हिंसा इसी का प्रतिफल थी।

इसकी शुरुआत भाजपा के यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सबसे पहले जेसीबी मशीन द्वारा अवैध निर्माणों को हटाने के लिए तथा डॉन और माफियाओं के खिलाफ किया गया। योगी आदित्यनाथ को बुलडोजर बाबा कहा जाने लगा। आदित्यनाथ द्वारा इसका इस्तेमाल मार्च 2017 में अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत के बाद से शुरू हुआ। 2020 तक, विकास दुबे जैसे कई अपराधियों के साथ-साथ राजनेता-बाहुबली और गैंगस्टर मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद की संपत्ति को बुलडोजर का इस्तेमाल करके ध्वस्त कर दिया गया था। 

दुबे के खिलाफ कार्रवाई तब शुरू हुई जब उसने और उसके साथियों ने जुलाई 2020 में गिरफ्तारी के प्रयास के दौरान आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। यूपी सरकार ने सरकारी जमीन और अन्य अवैध रूप से कब्जा की गई जमीन को मुक्त कराने के लिए प्रतिबद्धता जताई, बुलडोजर के इस्तेमाल से संबंधित कुछ निर्देश जारी किए और उनके दुरुपयोग की चेतावनी भी दी। आदित्यनाथ ने मार्च 2022 में मुख्यमंत्री के रूप में जब अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया। तो यह सिलसिला अयोध्या से लेकर बनारस तक गरीब तबके के लोगों पर चला और उन्हें उजड़ने पर मज़बूर किया।

अप्रैल 2022 के अंत तक, दिल्ली और गुजरात में दंगाइयों की संपत्ति पर बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया था, जिसके बाद राजनीति और कानूनी मुद्दे सामने आए जो अविचारित हैं। मध्य प्रदेश में अपराधियों के खिलाफ सख्त रुख दिखाने के उद्देश्य से राजनीतिक संदेश देने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल  शिवराज सिंह ने भी किया जो वर्तमान सरकार जारी रखे हुए है। हाल ही में छतरपुर में भारत बंद के दौरान एक थाने पर पत्थरबाजी करने को लेकर पूर्व सदर शहजाद अली पर एमपी पुलिस ने कार्रवाई की है। 

शहजाद अली ने कोतवाली का घेराव किया था। घेराव के दौरान पत्थर बाजी में पुलिसकर्मी सहित कई अधिकारी घायल हुए थे। जिसमें  सैकड़ों लोग शामिल थे । लेकिन उस चश्मे से सिर्फ शहज़ाद और उसका दस करोड़ से निर्मित नया मकान ही दिखा जिसे जिला प्रशासन ने बुलडोजर से ध्वस्त किया बल्कि परिसर के अंदर खड़ी चार कारों को चकनाचूर कर दिया। वर्तमान में शहज़ाद जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं। क्या उनका मुस्लिम और कांग्रेस नेता होना गुनाह है।

महाराष्ट्र में पैगंबर मुहम्मद साहब पर की गई टिप्पणी को लेकर लोगों ने थाने का घेराव कर पथराव किया था। छतरपुर शहर के कोतवाली थाने में पथराव और पुलिस के ऊपर जान लेवा हमला करने के मामले में पुलिस ने हाजी शहजाद अली को पुलिस ने मुख्य आरोपी बनाया है। शहज़ाद अली को मास्टर माइंड बताया जा रहा है। अभी तक उसकी गिरफ्तारी नहीं हुई है।

 आजकल अपराधियों खासकर भाजपा विरोधियों पर कार्रवाई त्वरित गति से शुरू हो जाती है। कानून और संविधान के बजाए बुलडोजर बाबा, मामा, भैया सक्रिय हो जाते हैं, ये ग़लत है। नवनिर्मित भवन ना तोड़कर उसे अपनी कस्टडी में  लिया जा सकता था। अपराधी को अदालत के आदेश तक नज़र बंद किया जा सकता था। अपराधी दंडित हो इसका इंतजार करना था किंतु एक विशेष नज़रिए से देखकर इस तरह देश की संपत्ति की बर्बादी कतई उचित नहीं है।

एक बात यह भी है  कि जब किसी का घर गिराया जाता है तो उसे अतिक्रमण ही कहा जाता है सालों से घरों में रहे लोग शासन की बिजली, पानी पाते हैं, राशन लेते हैं मतदान करते हैं, आधार कार्ड रखते हैं।नेताओं के साथ जब तब सरकारी अमला उनकी समस्याओं से रूबरू होने जाता है तब उन्हें अतिक्रमण नज़र नहीं आता। इसलिए अतिक्रमण करने वालों की प्रतिवर्ष सूची जाहिर की जानी चाहिए ताकि अतिक्रमण कारी लोगों के चेहरे सामने आ जाएं तथा अतिक्रमण हटाने के लिए मानवीयता दर्शाते हुए कम से कम एक साल का समय दिया जाए। आज अपराध, दूसरे दिन बुलडोजर चलाना अन्याय का प्रतीक है।मानव हित में नहीं है। ऐसे आदेशों को लागू करना कानून सम्मत नहीं है।

बुलडोजर का अधिक उपयोग स्वयं सांप्रदायिक प्रकृति का है। आलोचकों का तर्क है कि कानून के शासन को छोड़ना और बुलडोजर न्याय को अपनाना एक सत्ता समाज की ओर पहला कदम है। ऐसे समाज में, व्यक्तियों की सुरक्षा, जीवन और स्वतंत्रता राज्य के अधिकारियों के मनमाने फैसलों पर निर्भर करेगी। जिससे अधिनायकवादी ताकतें बढ़ेंगी जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को तहस-नहस कर देंगी।

(सुसंस्कृति परिहार एक्टिविस्ट और लेखिका हैं।)

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