Thursday, March 28, 2024

पीएम साहब! इन बच्चों के मन की बात भी सुनिए एक बार

एनआरसी-सीएए विरोधी आंदोलनों में छोटे बच्चों की अच्छी खासी संख्या देखने को मिल रही है। कुछ बहुत छोटे बच्चे अपनी धरनारत मांओं के साथ दिन-रात धरने पर रहने को विवश हैं। कुछ बच्चे अपनी भागीदारी खुद निर्धारित कर रहे हैं। क्या विडंबना है कि इन आंदोलनरत बच्चों की आवाज़ अभी तक मीडिया और सत्ता के कानों से दूर है।

सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली 11 वर्ष की दुबली-पतली सलमा शाहीन बाग़ में धरना देती महिलाओं से जब नारा लगवाती हैं तब देखने सुनने वालों का जी भर आता है। शाहीन बाग़ की सलमा को 15-20 मिनट तक लगातार बिना थके नारे लगवाते देखना-सुनना अपने आप में एक अद्भुत अनुभूति है। आप एक बार सलमा के नारों को सुन लीजिए। आजादी वाले नारे से आपकी जो भी शिकायत है यकीन मानिए वो दूर हो जाएगी।

सलमा आपको बताएगी कि उसे ममता वाली, गैरतवाली, इज़्ज़तवाली, प्यारी प्यारी आजादी चाहिए। उसे अशिक्षा, असुरक्षा, बेरोजगारी, बदहाली से आजादी चाहिए। उसे मुस्लिम विरोधी नफ़रत वाली राजनीति से आज़ादी चाहिए। 

सलमा जैसी और भी कई बच्चे हैं जो बेमिसाल हैं। ये सब एनआरसी-सीएए विरोधी आंदोलन के संघर्ष में तपकर पके बच्चे हैं। इनसे आप बात करेंगे तो पाएंगे कि ये वो बच्चे नहीं हैं जो नवंबर 2019 के पहले होते थे। इनकी बातों, इनकी आंखों, इनके चेहरे की भाव भंगिमा और शरीरिक भाषा सब कुछ बदल चुकी है। ये ऑन लाइन गेम, मोबाइल गेम और खाने पीने, मौज-मस्ती तक सिमटी दुनिया वाले बच्चे नहीं हैं।

इन बच्चों की बातों में आपको संविधान (आइन) मिलेगा। इनकी बातों में आपको मुल्क, अमन, भाईचारे की बात मिलेगी। इनकी बातों में आपको गांधी, बाबा साहेब अंबेडकर, अशफाक़उल्लाह, अबुल कलाम आज़ाद का जिक्र मिलेगा। इनकी बातों में आपको पीड़ा, संकटग्रस्त भविष्य और नागरिकता छिनने का दंश मिलेगा।

सीलमपुर के धरना स्थल पर पर सात साल का अजमल, छह साल की अलविना ख़ान, चार साल की महक, पांच साल के जैद, ग्यारह साल के अदनान, हाथों में सावित्री बाई फुले, भीमराव अंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह और महात्मा गांधी की तस्वीरें और तिरंगा लिए बैठे मिलेंगे। इनसे बात करेंगे तो ये आपको बहुत प्रभावित करेंगे।

पीठ पर ‘रिजेक्ट एनआरसी, सीएए’ का बैनर और हाथों में तिरंगा लिए सात वर्षीय अब्दुल्ला आपको इंद्रलोक के धरना स्थल पर मिलेंगे। तिरंगा मांगने पर अब्दुल्ला अपने एक साथी को बताते हैं कि अम्मी कहती हैं तिरंगा हाथ में लेना भर नहीं होता। इसका बहुत मान रखना पड़ता है। इसे जमीन पर नहीं धर सकते। इसे पैर के पास नहीं धर सकते। इसे लेकर सुसू करने नहीं जा सकते। ये हमारे हिंदुस्तान के सम्मान का प्रतीक है। इसका बहुत ख्याल रखना पड़ता है।

सुंदर नगरी के एपीजे अब्दुल कलाम पार्क में मां के साथ धरने पर आई छह वर्षीय अफशां इतनी बड़ी बात कहती हैं, जोकि बड़े-बड़े आज तक नहीं समझ सके। बच्ची अफशां आजकल किस मनोदशा से गुजर रही हैं इसका अंदाजा लगाकर मन रोने को हो आता है। अफशां कैमरे पर कहती हैं, “मोदी संविधान को तोड़ना चाहते हैं, वो हमारी हिंदू-मुस्लिम की एकता को खत्म करना चाहते हैं। मोदी हमें बाहर निकालना चाहे हैं।”

छोटे-छोटे मुस्लिम बच्चों को किस हद की मनोयातना से गुज़रना पड़ रहा है। खुरेजी धरना स्थल पर बैठी 13 वर्षीय छात्रा मरियम बताती हैं, “एक दिन मेरी एसएसटी की टीचर ने क्लास में कहा कि मुस्लिम लोगों को सीएए और एनआरसी का विरोध नहीं करना चाहिए। ये अच्छा कानून है।” लेकिन 13 वर्षीय बच्ची मरियम का इस विकट समय में निजी जीवन संघर्ष से निकला साहस और तर्कशीलता देखिए जो पलटकर अपनी एसएसटी शिक्षिका से कहती हैं, “आप लोग गैरमुस्लिम हैं न, इसलिए आपको नहीं पता। क्योंकि ये आपके साथ नहीं हो रहा है। इसलिए आप इस काले कानून को अच्छा बता रही हैं।” 

मुस्तफाबाद के धरना स्थल पर फुटपाथ पर एक न्यु इंडिया के डिटेंशन कैंप का मॉड्यूल खड़ा है। जिस पर लिखा है ‘गेट ऑफ हेल’। इस जहन्नुम में मुस्लिम वेशभूषा में एक मुस्लिम बच्चा साहिल खड़ा मिलेगा, आंखों में गहरे अवसाद और चेहरे पर मुस्कान लिए। स्वभाव से बेहद शर्मीला और संकोची साहिल आपसे यूं तो पहली मुलाकात में नहीं खुलेगा। लेकिन यदि आप उससे दोस्ताना दिखाएंगे और उसे लगेगा कि उसे आपसे कोई ख़तरा नहीं है तो वो आपसे बात भी करेगा। बात नहीं सवाल करेगा।

उसे ख़बरों के जरिए ये पता है कि असम में बच्चों को मां-बाप से अलग डिटेंशन कैंपों में रखा जाता है। उसे अपनी अम्मी अब्बू से बेहद लगाव है। वो उनसे अलग नहीं होना चाहता। वो पूछता है आखिर हमने सरकार का क्या बिगाड़ा है। ये सरकार हम मुसलमानों के जान की दुश्मन क्यों है?

वो ये भी पूछता है कि मोदी जी तो अपनी अम्मी से ख़ूब प्यार करते हैं अपने जन्मदिन पर उनसे वो आशीर्वाद लेने भी जाते हैं फिर हम बच्चों को हमारी अम्मियों से क्यों छीनना चाहते हैं? वो ये भी पूछेगा कि हम अपनी दुनिया में बेहद खुश हैं, न हमें किसी से दिक्कत है, न हमसे किसी को दिक्कत है फिर मोदी जी हमारे लिए अलग दुनिया, जहन्नुम की दुनिया क्यों बनाना चाहते हैं। मैं उसके ऐसे ही सवालों से दो-चार होकर आया हूं। यकीन मानिए उससे सामना होने के बाद मेरी कई रातें, कई दिन बेचैनी और तनाव में गुज़रे।

12वीं कक्षा की छात्रा निशात अपनी पढ़ाई बर्बाद होने से बेहद निराश है। निशात अपनी पीड़ा का इजहार करते हुए बताती हैं, “ इस साल हमारा बोर्ड का इम्तहान है, लेकिन परीक्षा की तैयारी करने के बजाय हमें यहां विरोध प्रदर्शन में बैठने के लिए मजबूर किया गया है। हमारे साथ इस आंदोलन में दसवी और बारहवीं की सैकड़ों छात्राएं हिस्सा ले रही हैं। सरकार हमें जीने ही नहीं देना चाहती, पढ़ाई तो बहुत दूर की बात है।

उसने कहा कि हमारे लिए पढ़ाई और परीक्षा से ज़्यादा ज़रूरी अब ये मुल्क और इसकी अवाम की ज़िंदगी के अधिकार हैं। हम बोर्ड का इम्तहान देकर डिग्री हासिल भी कर लें तो क्या वो डिग्री डिटेंशन कैंप में दिखाएंगे। जब हमसे हमारी नागरिकता ही छीन ली जाएगी तो डिग्री ही किस काम रह जाएगी। हम अपनी कम्युनिटी, अपने संविधान अपने मुल्क़ को बचाने के लिए यहां हैं।”

ईदगाह, कसाबपुरा धरनास्थल का मंच तो बच्चियां ही संभाल रही हैं। यहां कि बच्चियां आपको संविधान एनआरसी और सीएए पर बहुत कुछ बता सकती हैं। आप उनसे बात करके महसूस कर सकते हैं कि मुल्क के हालात कितने ख़तरनाक और अलोकतांत्रिक हो चुके हैं। एक 13-14 साल का बच्चा कहता है, न हम खेलने जा पा रहे हैं, न हम पढ़ने जा पा रहे हैं।

उसने कहा कि पहले उन्होंने हमारे खाने पर हमला किया, हम जब भी गोश्त लेने बाज़ार जाते, लौटने तक घर के लोग बेचैन रहते। फिर बाबरी मस्जिद का मसला उठा तो फिर हम घरों में क़ैद होकर दुआ करते रहे कि ये समय किसी तरह सही सलामत निकल जाए बस। और अब हर समय यही डर रहता है कि कब हमें कुत्ता पकड़ने वाली नगर निगम की गाड़ियों में भरकर डिटेंशन कैंप में फेंक दिया जाएगा। हमारे ही मुल्क़ में हमारा होना इस कदर गुनाह हो गया है अब।

(सुशील मानव पत्रकार और लेखक हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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