Friday, March 29, 2024

कोयला खदान निजीकरण: मोदी सरकार बनाम हेमंत सरकार

देश की सर्वोच्च सरकारी कंपनियों और धरोहरों के निजीकरण के बाद अब मध्य भारत की कोयला खदानें मोदी सरकार के निशाने पर हैं। मोदी सरकार ने नीलामी के लिए कोयला खदानों को सूचीबद्ध भी कर लिया है। इस सूची में ओड़ीशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड तथा पश्चिम बंगाल की कुछ कोयला खदानें शामिल हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोयला ब्लॉकों की ऑनलाइन नीलामी की प्रक्रिया की ख़बर से 18 जून के बाद कोयला निजीकरण पर सियासत गर्म है और झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओड़िसा और छत्तीसगढ़ में विरोध तेज हो गया है। 

पश्चिम बंगाल में कोयला खदानों के मजदूर लगातार तीन दिन भूख हड़ताल पर रहे। झारखंड में 103 वर्ग किमी में फैली कुल 22 कोयला खदानें हैं। इन सभी कोयला खदानों की मजदूर यूनियनें खदानों के निजीकरण के विरोध में जुलूस निकाल रही हैं। दिलचस्प बात ये है कि झारखंड में कोयला खदानों के निजीकरण के मसले पर राज्य की हेमंत सोरेन की सरकार मजदूरों के साथ है। निजीकरण का विरोध करने वालों में झारखंड की सोरेन सरकार के घटक दल भी शरीक हैं। 

देश में कोयला क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ़ लाखों कोयला मजदूर हड़ताल पर हैं। इसमें वामपंथी संगठनों के अलावा आरएसएस से जुड़ी बीएमएस तक को भारी दबाव में शामिल होना पड़ा है। इस मामले के विभिन्न जानकर भी निजीकरण के खिलाफ हैं। माइंस मिनरल एंड पीपल के अध्यक्ष श्रीधर रामामूर्ति का कहना है कि “अगर कोयला खदानों का निजीकरण होता है तो निजी कंपनियां अंधाधुंध खनन करेंगी और कोल इंडिया जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को हाशिए पर धकेल देंगी।” 

महा गामा विधानसभा क्षेत्र की कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह कोयला खदानों के निजीकरण मामले का शुरू से ही विरोध कर रही हैं। बता दें कि 

ललमटिया कोयला खदान उनके ही विधानसभा क्षेत्र महागामा में आता है। निजीकरण विरोधी आंदोलन की अगुआई करते हुए दीपिका पांडेय सिंह ने कहा ” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजना लोगों की कीमत पर कुछ उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए कोयला क्षेत्र का निजीकरण करने की है। भाजपा सरकार ने कुछ उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए इसके निजीकरण की योजना बनाई है। हम जनता के हित में निजीकरण के खिलाफ लड़ते रहेंगे। अगर कोयला खदानों का निजीकरण हुआ तो सबसे पहले हमारी लाश से गुजरना होगा, क्योंकि जल, जंगल, जमीन और झारखंड की सभी संपदाओं को बचाना हम झारखंड वासियों का मौलिक अधिकार है।

और इसको बचाने के लिए हेमंत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार मोदी सरकार से क़ानूनी लड़ाई लड़ रही है। अभी तो सिर्फ 22 कोयला खदान क्षेत्रों में आंदोलन शुरू हुआ है, ज़रूरत पड़ी तो पूरे राज्य में जन आंदोलन होगा। लेकिन हम झारखंडवासी किसी निजी कंपनी को किसी भी कोयला खदान में घुसने नहीं देंगे। झारखंड की संपदा से झारखंडवासियों का आर्थिक हित जुड़ा हुआ है। जो उनके कमाने खाने का एक मात्र जरिया है। अगर निजीकरण होता है तो उद्योगपति अपनी मर्जी चलाएंगे जिससे बड़ी संख्या में स्थानीय लोग बेरोजगार हो जाएंगे। और हम ऐसा नहीं होने देंगे।”

मई की शुरुआत में जब कोयला निजीकरण का विरोध हुआ तो 18 मई 2020 को बीसीसीएल ने केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री प्रहलाद जोशी का बयान जारी किया। मंत्री ने बयान में कहा है कि कोल इंडिया का निजीकरण नहीं होगा। उन्होंने कहा कि कंपनी के पास पर्याप्त कोयला भंडार है, जो देश में 100 वर्षों से अधिक तक बिजली बनाने के लिए पर्याप्त है। सरकार को कोल इंडिया पर गर्व है और आने वाले समय में इसे और मजबूत किया जाएगा। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 जून को कोयला ब्लॉकों की ऑनलाइन नीलामी की प्रक्रिया शुरू की थी। लेकिन मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में हेमंत सरकार की दखल के बाद कोयला खदानों की नीलामी में पेंच आ गया है।  

सवाल ये है कि मोदी सरकार के निशाने पर सबसे ज्यादा झारखंड के कोयला खदान ही क्यों हैं? वजह साफ़ है झारखंड की सभी 22 कोयला खदानों का कुल दायरा 103 वर्ग किलोमीटर तक में है, और इन 22 कोयला खदानों में लगभग 386 करोड़ टन कोयले का भंडार है। जबकि इन 22 कोयला खदानों से झारखंड सरकार के खजाने में आने वाली कुल राशि 90 हजार करोड़ के पार होगी। 

सवाल है कि क्या विदेशी कम्पनियों से खनन करा कर भारतीय ज़रूरतों की पूर्ति हो सकेगी? जब सरकारी कंपनी खनन करने में सक्षम है तो निजी कंपनी की ज़रूरत क्यों है? गौरतलब है कि 1973 में कोयला खनन के राष्ट्रीयकरण के बाद निजी कंपनियों को खनन की इज़ाज़त नहीं थी। कोयला खनन की सरकारी कंपनियों की क्षमता पर्याप्त है और उनमें ज़रूरत के मुताबिक़ इजाफे की भी गुंजाइश है लेकिन सरकार का असली मकसद कोयला क्षेत्र में कॉरपोरेट्स के लिए लूट व अकूत मुनाफाखोरी के लिए बाजार तैयार करना है।

भारत में महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन में कोयला का भंडार होना भारतीयों के लिए एक बड़ा वरदान है। और इसे बचाना राष्ट्र हित में है। अब देखना यह है कि राष्ट्र हित में इसे बचाने में हेमंत सरकार कितना कामयाब हो पाती है। राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए कोयला निजीकरण कोई मसला नहीं है। लेकिन स्थानीय मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक, वेब या फिर प्रिंट सभी जगहों पर यह लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। 

(लेखक अफ्फान नोमानी रिसर्च स्कॉलर, लेक्चरर व स्तंभकार हैं। और आजकल हैदराबाद में रहते हैं।)

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